इनका जन्म मद्रास राज्य के तंजौर जिले के कुम्भकोणम्नगरमेंहुआ था। रामानुजम् केपिता श्रीनिवास आयंगरएक निर्धन किन्तुस्वाभिमानी व्यक्ति थे। रामानुजम् को गणित से बहुत प्रेम था। चौथी कक्षा से ही वे त्रिकोणमिति में रुचि लेने लगे थे। छात्र जीवन में ही उन्होंने गणित के अनेक सूत्रों का अपने आप पता लगाया था।उनकी अद्भुतप्रतिभा का पता लगने परवेइंग्लैंड बुलालिये गये। इंग्लैडमेंप्रोफेसर हार्डी के सहयोग से उन्होंने गणित में अनुसंधान किये और रायल सोसाइटी के फेलो चुने गये। अथक शोधकार्य और ब्रिटेन में शाकाहारी पौष्टिक भोजन न मिल पाने के कारण उनकास्वास्थ्य बहुत गिर गया और33 वर्षकी अल्पायुमें उनकी क्षय रोग से मृत्युहो गयी। गणित शास्त्र के जिन विषयों में रामानुजम्ने योग दिया है उनको संख्याओं कासिद्धांत,विभाजन (पार्टीशन) का सिंद्धात और सतत् भिन्नों का सिद्धांत कहते हैं। मृत्युके समय भीउनकामस्तिष्क इतना सजग था कि जब एक कार के नं० 1729 का उल्लेख हुआ तो तुरंत उनके मुँह से निकला कि 'हाँ, यह संख्या मैं जानता हूँ। यह वह छोटी से छोटी संख्या है जिसे दो प्रकार से दो घनों के योग के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है – (10³ +9³) तथा (12³+1³) | इनका जन्म मद्रास राज्य के तंजौर जिले के कुम्भकोणम्नगरमेंहुआ था। रामानुजम् केपिता श्रीनिवास आयंगरएक निर्धन किन्तुस्वाभिमानी व्यक्ति थे। रामानुजम् को गणित से बहुत प्रेम था। चौथी कक्षा से ही वे त्रिकोणमिति में रुचि लेने लगे थे। छात्र जीवन में ही उन्होंने गणित के अनेक सूत्रों का अपने आप पता लगाया था।उनकी अद्भुतप्रतिभा का पता लगने परवेइंग्लैंड बुलालिये गये। इंग्लैडमेंप्रोफेसर हार्डी के सहयोग से उन्होंने गणित में अनुसंधान किये और रायल सोसाइटी के फेलो चुने गये। अथक शोधकार्य और ब्रिटेन में शाकाहारी पौष्टिक भोजन न मिल पाने के कारण उनकास्वास्थ्य बहुत गिर गया और33 वर्षकी अल्पायुमें उनकी क्षय रोग से मृत्युहो गयी। गणित शास्त्र के जिन विषयों में रामानुजम्ने योग दिया है उनको संख्याओं कासिद्धांत,विभाजन (पार्टीशन) का सिंद्धात और सतत् भिन्नों का सिद्धांत कहते हैं। मृत्युके समय भीउनकामस्तिष्क इतना सजग था कि जब एक कार के नं० 1729 का उल्लेख हुआ तो तुरंत उनके मुँह से निकला कि 'हाँ, यह संख्या मैं जानता हूँ। यह वह छोटी से छोटी संख्या है जिसे दो प्रकार से दो घनों के योग के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है – (10³ +9³) तथा (12³+1³) |