# धर्मशिक्षा सम्पूर्ण ग्रामशिक्षा का आधार है। उसके साथ कर्मशिक्षा चाहिये । कर्मशिक्षा से तात्पर्य है उत्पादन के लिये आवश्यक कारीगरी की शिक्षा । कारीगरी के छोटे से केन्द्र से लेकर बड़े अनुसन्धान केन्द्र तक के सारे शिक्षासंस्थान गाँव में होने चाहिये । स्पष्ट है कि आज के जैसे बड़े कारखाने भारत तो क्या विश्व के किसी भी देश में चलाने योग्य नहीं हैं। यंत्र आवश्यक हैं, मनुष्य के कष्ट कम करने में, कुछ अनिवार्य काम करने के लिये सहायता करने में उनका उपयोग है परन्तु मनुष्य के स्थान पर काम करने में और मनुष्य को निकम्मा, बेरोजगार और आलसी तथा अकुशल बना देने के लिये जब यंत्रों का उपयोग होता है तब संस्कृति और समृद्धि दोनों की हानि होती है। आज की भाषा में जितने भी इंजीनियरिंग और टेकनिकल विश्वविद्यालय हैं वे सारे गाँव में होने चाहिये, लोहार, सुधार आदि कारीगरों के आवास होते हैं और काम करने के स्थान होते हैं वैसे ही परिवेश में होने चाहिये । इन विश्वविद्यालयों में काम करने वाले छोटे से लेकर बड़े छात्रों, कर्मचारियों और प्राध्यापकों के वेश भी वैसे ही व्यवसाय के अनुरूप होने चाहिये । वेश व्यवसाय के अनुरूप होते हैं, गाँव या नगर के अनुरूप या सम्पत्ति के अनुरूप नहीं। | # धर्मशिक्षा सम्पूर्ण ग्रामशिक्षा का आधार है। उसके साथ कर्मशिक्षा चाहिये । कर्मशिक्षा से तात्पर्य है उत्पादन के लिये आवश्यक कारीगरी की शिक्षा । कारीगरी के छोटे से केन्द्र से लेकर बड़े अनुसन्धान केन्द्र तक के सारे शिक्षासंस्थान गाँव में होने चाहिये । स्पष्ट है कि आज के जैसे बड़े कारखाने भारत तो क्या विश्व के किसी भी देश में चलाने योग्य नहीं हैं। यंत्र आवश्यक हैं, मनुष्य के कष्ट कम करने में, कुछ अनिवार्य काम करने के लिये सहायता करने में उनका उपयोग है परन्तु मनुष्य के स्थान पर काम करने में और मनुष्य को निकम्मा, बेरोजगार और आलसी तथा अकुशल बना देने के लिये जब यंत्रों का उपयोग होता है तब संस्कृति और समृद्धि दोनों की हानि होती है। आज की भाषा में जितने भी इंजीनियरिंग और टेकनिकल विश्वविद्यालय हैं वे सारे गाँव में होने चाहिये, लोहार, सुधार आदि कारीगरों के आवास होते हैं और काम करने के स्थान होते हैं वैसे ही परिवेश में होने चाहिये । इन विश्वविद्यालयों में काम करने वाले छोटे से लेकर बड़े छात्रों, कर्मचारियों और प्राध्यापकों के वेश भी वैसे ही व्यवसाय के अनुरूप होने चाहिये । वेश व्यवसाय के अनुरूप होते हैं, गाँव या नगर के अनुरूप या सम्पत्ति के अनुरूप नहीं। |