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७४. इस व्यवस्था में इस प्रकार तो सरकार की सहभागिता सुनिश्चित नहीं हो सकती । इस पद्धति को बदलना सरकार और शिक्षा दोनों के पक्ष में है । इसलिये उसे बदलने का प्रयास प्रथम करना चाहिये । अध्ययन और अध्यापन की सुस्पष्ट योजना बनाकर प्रथम तो देश के विट्रदूवर्ग को इससे सुपरिचित बनाना चाहिये । उनका समर्थन जुटाना चाहिये । संख्याबल नहीं अपितु ज्ञान और निष्ठा का बल बढाना चाहिये । इसे देशव्यापी भी बनाना चाहिये ।
 
७४. इस व्यवस्था में इस प्रकार तो सरकार की सहभागिता सुनिश्चित नहीं हो सकती । इस पद्धति को बदलना सरकार और शिक्षा दोनों के पक्ष में है । इसलिये उसे बदलने का प्रयास प्रथम करना चाहिये । अध्ययन और अध्यापन की सुस्पष्ट योजना बनाकर प्रथम तो देश के विट्रदूवर्ग को इससे सुपरिचित बनाना चाहिये । उनका समर्थन जुटाना चाहिये । संख्याबल नहीं अपितु ज्ञान और निष्ठा का बल बढाना चाहिये । इसे देशव्यापी भी बनाना चाहिये ।
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७५. दूसरे चरण में सरकार के साथ संवाद आरम्भ करना चाहिये । यह धन, भूमि या मान्यता के लिये नहीं करना चाहिये अपितु उन्हें शिक्षा को धार्मिक बनाने का विषय समझाने के लिये करना चाहिये । सभी सांसदों, विधायकों, पार्षदों तक संचार माध्यमों तथा प्रत्यक्ष भेंट के माध्यम से पहुँचना चाहिये । साथ ही हम सरकार का सम्पर्क कर रहे हैं इस विषय से लोगों को भी अवगत करना चाहिये ।
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७५. दूसरे चरण में सरकार के साथ संवाद आरम्भ करना चाहिये । यह धन, भूमि या मान्यता के लिये नहीं करना चाहिये अपितु उन्हें शिक्षा को धार्मिक बनाने का विषय समझाने के लिये करना चाहिये । सभी सांसदों, विधायकों, पार्षदों तक संचार माध्यमों तथा प्रत्यक्ष भेंट के माध्यम से पहुँचना चाहिये । साथ ही हम सरकार का सम्पर्क कर रहे हैं इस विषय से लोगोंं को भी अवगत करना चाहिये ।
    
७६. जनप्रतिनिधियों के बाद प्रशासनिक अधिकारियों से सम्पर्क करना चाहिये । उनसे भौतिक लाभ या कानूनी मान्यता आदि नहीं चाहिये यह स्पष्ट करना चाहिये परन्तु अपनी योजना में वैचारिक सहयोग और जहाँ सम्भव है सहभागिता माँगनी चाहिये ।
 
७६. जनप्रतिनिधियों के बाद प्रशासनिक अधिकारियों से सम्पर्क करना चाहिये । उनसे भौतिक लाभ या कानूनी मान्यता आदि नहीं चाहिये यह स्पष्ट करना चाहिये परन्तु अपनी योजना में वैचारिक सहयोग और जहाँ सम्भव है सहभागिता माँगनी चाहिये ।
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७९. इस योजना में विद्यार्थियों को तो विशेष रूप से सम्मिलित करना चाहिये क्योंकि बीस वर्ष के बाद वे ही इसे आगे बढायेंगे । तेजस्वी और मेधावी विद्यार्थियों को विशेष रूप से जोड़ना चाहिये ।
 
७९. इस योजना में विद्यार्थियों को तो विशेष रूप से सम्मिलित करना चाहिये क्योंकि बीस वर्ष के बाद वे ही इसे आगे बढायेंगे । तेजस्वी और मेधावी विद्यार्थियों को विशेष रूप से जोड़ना चाहिये ।
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८०. इस योजना के लिये अर्थसहाय करने हेतु धनवान लोगों को भी साथ में जोडना चाहिये । परन्तु आज जो धन देता है वह रौब भी जमाता है, प्रतिष्ठा भी चाहता है इस स्थिति को बदलने का प्रयास भी करना चाहिये ।
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८०. इस योजना के लिये अर्थसहाय करने हेतु धनवान लोगोंं को भी साथ में जोडना चाहिये । परन्तु आज जो धन देता है वह रौब भी जमाता है, प्रतिष्ठा भी चाहता है इस स्थिति को बदलने का प्रयास भी करना चाहिये ।
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८१. देश में अनेक शैक्षिक और सांस्कृतिक संगठन शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत हैं । कई संगठनों के तो अपने विश्वविद्यालय हैं । इन्हें इस योजना को अपनाना आसान है । इन संगठनों के प्रमुख लोगों के साथ संवाद स्थापित करना चाहिये । ये सारे संगठन अत्यन्त प्रभावी हैं । वे चाहें तो साथ मिलकर, चाहें तो अकेले भी अध्ययन-अनुसन्धान की योजना बना सकते हैं ।
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८१. देश में अनेक शैक्षिक और सांस्कृतिक संगठन शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत हैं । कई संगठनों के तो अपने विश्वविद्यालय हैं । इन्हें इस योजना को अपनाना आसान है । इन संगठनों के प्रमुख लोगोंं के साथ संवाद स्थापित करना चाहिये । ये सारे संगठन अत्यन्त प्रभावी हैं । वे चाहें तो साथ मिलकर, चाहें तो अकेले भी अध्ययन-अनुसन्धान की योजना बना सकते हैं ।
    
८२. इस प्रकार अध्ययन अनुसन्धान की देशव्यापी योजना बनानी चाहिये । इसके बिना पश्चिमीकरण के प्रभाव से मुक्त होना सम्भव नहीं है ।
 
८२. इस प्रकार अध्ययन अनुसन्धान की देशव्यापी योजना बनानी चाहिये । इसके बिना पश्चिमीकरण के प्रभाव से मुक्त होना सम्भव नहीं है ।
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८३. अध्ययन अध्यापन की इस योजना के साथ दो काम उसके सहयोगी के रूप में और करने चाहिये । एक काम है संस्कृत भाषा को जनमानस में और व्यवहार में प्रतिष्ठित करना । देशभर के संस्कृत के क्षेत्र में कार्यरत लोगों को इस काम का सूत्रसंचालन देना चाहिये । साथ ही संस्कृत विश्वविद्यालयों, वेद पाठशालाओं को अध्ययन अनुसन्धान की योजना समझाकर अपने अपने कार्य को इसके अनुरूप ढालने का आग्रह करना चाहिये । दूसरा है बालअवस्था से आरम्भ होने वाली शिक्षा हेतु पाठ्यक्रम और सामग्री बनाकर ह्वउन्हें प्रत्यक्ष क्रियान्वयन हेतु प्रवृत्त करना । शिशु-अवस्था से भी पूर्व गर्भावस्‍था. और शिशुअवस्था में भी शिक्षा तो होती ही है। उस शिक्षा हेतु मातापिताओं को इस योजना के अन्तर्गत बने पाठ्यक्रमों के आधार पर शिक्षित करना चाहिये ।
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८३. अध्ययन अध्यापन की इस योजना के साथ दो काम उसके सहयोगी के रूप में और करने चाहिये । एक काम है संस्कृत भाषा को जनमानस में और व्यवहार में प्रतिष्ठित करना । देशभर के संस्कृत के क्षेत्र में कार्यरत लोगोंं को इस काम का सूत्रसंचालन देना चाहिये । साथ ही संस्कृत विश्वविद्यालयों, वेद पाठशालाओं को अध्ययन अनुसन्धान की योजना समझाकर अपने अपने कार्य को इसके अनुरूप ढालने का आग्रह करना चाहिये । दूसरा है बालअवस्था से आरम्भ होने वाली शिक्षा हेतु पाठ्यक्रम और सामग्री बनाकर ह्वउन्हें प्रत्यक्ष क्रियान्वयन हेतु प्रवृत्त करना । शिशु-अवस्था से भी पूर्व गर्भावस्‍था. और शिशुअवस्था में भी शिक्षा तो होती ही है। उस शिक्षा हेतु मातापिताओं को इस योजना के अन्तर्गत बने पाठ्यक्रमों के आधार पर शिक्षित करना चाहिये ।
    
८४. धार्मिक विद्याओं, जैसे कि आयुर्वेद, ज्योतिष, वेद्विद्या, दर्शन, संगीत, नृत्य आदि की अनेक सरकारी और गैरसरकारी संस्थायें देशभर में चलती हैं। इन संस्थाओं में कमअधिक शुद्ध रूप में इन
 
८४. धार्मिक विद्याओं, जैसे कि आयुर्वेद, ज्योतिष, वेद्विद्या, दर्शन, संगीत, नृत्य आदि की अनेक सरकारी और गैरसरकारी संस्थायें देशभर में चलती हैं। इन संस्थाओं में कमअधिक शुद्ध रूप में इन
    
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