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इस अध्ययन के लिये उस देश के विद्वज्जन और सामान्यजन दोनों की सहायता प्राप्त की जा सकती है। उस देश का विश्वविद्यालय और शासन हमारे सहयोगी हो सकते हैं। उस देश का अध्ययन किया हो अथवा कर रहे हों ऐसे अन्य देशों के विद्वानों के साथ सम्पर्क स्थापित करना भी आवश्यक रहेगा।
 
इस अध्ययन के लिये उस देश के विद्वज्जन और सामान्यजन दोनों की सहायता प्राप्त की जा सकती है। उस देश का विश्वविद्यालय और शासन हमारे सहयोगी हो सकते हैं। उस देश का अध्ययन किया हो अथवा कर रहे हों ऐसे अन्य देशों के विद्वानों के साथ सम्पर्क स्थापित करना भी आवश्यक रहेगा।
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उस देश का वर्तमान जीवन जानना प्रारम्भ बिन्दु रहेगा। अर्थव्यवस्था, अर्थ के सम्बन्ध में दृष्टि, समाजव्यवस्था के मूल सिद्धान्त, कानून की दृष्टि, धार्मिक आस्थायें, शिक्षा का स्वरूप, शासन का स्वरूप, प्रजामानस आदि हमारे अध्ययन के विषय बनेंगे। लोगों के साथ बातचीत, प्रजाजीवन का अवलोकन, विद्वज्जनों से चर्चा और लिखित साहित्य हमारे साधन होंगे।
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उस देश का वर्तमान जीवन जानना प्रारम्भ बिन्दु रहेगा। अर्थव्यवस्था, अर्थ के सम्बन्ध में दृष्टि, समाजव्यवस्था के मूल सिद्धान्त, कानून की दृष्टि, धार्मिक आस्थायें, शिक्षा का स्वरूप, शासन का स्वरूप, प्रजामानस आदि हमारे अध्ययन के विषय बनेंगे। लोगोंं के साथ बातचीत, प्रजाजीवन का अवलोकन, विद्वज्जनों से चर्चा और लिखित साहित्य हमारे साधन होंगे।
    
वर्तमान से प्रारम्भ कर प्रजा के अतीत की ओर जाने का क्रम बनाना चाहिये। इन प्रजाओं का मूल कहाँ कहां है, वे किसी दूसरे देश से कब और क्यों यहां आये हैं, उनसे पहले यहाँ कौन रहता था, वे आज कहाँ है इसकी जानकारी प्राप्त करनी चाहिये । वर्तमान में और अतीत में इस प्रजा का दूसरी कौन सी प्रजाओं के साथ किस प्रकार का सम्बन्ध रहा है, वे आज किस देश से प्रभावित हो रहे हैं यह भी जानना चाहिये । इस देश का पौराणिक साहित्य इस देश का कैसा परिचय देता है और अपने अतीत से वर्तमान किस प्रकार अलग अथवा समान है यह जानना भी उपयोगी रहेगा । वर्तमान से अतीत में और अतीत से वर्तमान में देश की भाषा, वेशभूषा, खानपान, घरों की रचना, सम्प्रदाय, शिक्षा किस प्रकार बदलते रहे हैं यह जानना । । उपयोगी रहेगा। इस देश का नाम, भूगोल, विवाह पद्धति, परिवाररचना भी जानना चाहिये ।
 
वर्तमान से प्रारम्भ कर प्रजा के अतीत की ओर जाने का क्रम बनाना चाहिये। इन प्रजाओं का मूल कहाँ कहां है, वे किसी दूसरे देश से कब और क्यों यहां आये हैं, उनसे पहले यहाँ कौन रहता था, वे आज कहाँ है इसकी जानकारी प्राप्त करनी चाहिये । वर्तमान में और अतीत में इस प्रजा का दूसरी कौन सी प्रजाओं के साथ किस प्रकार का सम्बन्ध रहा है, वे आज किस देश से प्रभावित हो रहे हैं यह भी जानना चाहिये । इस देश का पौराणिक साहित्य इस देश का कैसा परिचय देता है और अपने अतीत से वर्तमान किस प्रकार अलग अथवा समान है यह जानना भी उपयोगी रहेगा । वर्तमान से अतीत में और अतीत से वर्तमान में देश की भाषा, वेशभूषा, खानपान, घरों की रचना, सम्प्रदाय, शिक्षा किस प्रकार बदलते रहे हैं यह जानना । । उपयोगी रहेगा। इस देश का नाम, भूगोल, विवाह पद्धति, परिवाररचना भी जानना चाहिये ।
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सम्प्रदायों को लेकर हमारे अध्ययन के मुद्दे कुछ इस प्रकार के हो सकते हैं...
 
सम्प्रदायों को लेकर हमारे अध्ययन के मुद्दे कुछ इस प्रकार के हो सकते हैं...
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सम्प्रदायों की जीवनदृष्टि और विश्वदृष्टि कैसी है। वे जन्मजन्मान्तर में विश्वास करते हैं कि नहीं । अन्य सम्प्रदायों के लोगों के साथ इसके सम्बन्ध कैसे हैं । वे अपने सम्प्रदाय की श्रेष्ठ कनिष्ठ के रूप में तुलना करते है कि नहीं। उनका पंचमहाभूतों, वनस्पति और प्राणियों के साथ कैसा सम्बन्ध है ? पापपुण्य, अच्छाई बुराई, स्वर्ग नर्क आदि के बारे में उनकी कल्पना क्या है। उनके देवी देवता कौन हैं । उनका तत्त्वज्ञान क्या है। उनकी उपासना का स्वरूप कैसा है। उनके कर्मकाण्ड कैसे हैं। भौतिक विज्ञान, व्यापार, राजनीति, शिक्षा, परिवार आदि समाजजीवन के विभिन्न आयामों के साथ उनके साम्प्रदायिक जीवन का सम्बन्ध कैसा है। नीति, सदाचार, संस्कार, कर्तव्य, रीतिरिवाज आदि का सम्प्रदाय के साथ कैसा सम्बन्ध है । इनके धर्मग्रन्थ और शास्त्रग्रन्थ कौन से हैं किस भाषा में लिखे हुए हैं। इनके सम्प्रदाय प्रवर्तक कौन हैं, कैसे हैं। इनके धर्मगुरु किस परम्परा से बनते हैं। परम्परा निर्वहण की इनकी पद्धति कैसी है।
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सम्प्रदायों की जीवनदृष्टि और विश्वदृष्टि कैसी है। वे जन्मजन्मान्तर में विश्वास करते हैं कि नहीं । अन्य सम्प्रदायों के लोगोंं के साथ इसके सम्बन्ध कैसे हैं । वे अपने सम्प्रदाय की श्रेष्ठ कनिष्ठ के रूप में तुलना करते है कि नहीं। उनका पंचमहाभूतों, वनस्पति और प्राणियों के साथ कैसा सम्बन्ध है ? पापपुण्य, अच्छाई बुराई, स्वर्ग नर्क आदि के बारे में उनकी कल्पना क्या है। उनके देवी देवता कौन हैं । उनका तत्त्वज्ञान क्या है। उनकी उपासना का स्वरूप कैसा है। उनके कर्मकाण्ड कैसे हैं। भौतिक विज्ञान, व्यापार, राजनीति, शिक्षा, परिवार आदि समाजजीवन के विभिन्न आयामों के साथ उनके साम्प्रदायिक जीवन का सम्बन्ध कैसा है। नीति, सदाचार, संस्कार, कर्तव्य, रीतिरिवाज आदि का सम्प्रदाय के साथ कैसा सम्बन्ध है । इनके धर्मग्रन्थ और शास्त्रग्रन्थ कौन से हैं किस भाषा में लिखे हुए हैं। इनके सम्प्रदाय प्रवर्तक कौन हैं, कैसे हैं। इनके धर्मगुरु किस परम्परा से बनते हैं। परम्परा निर्वहण की इनकी पद्धति कैसी है।
    
इन मुद्दों पर सम्प्रदायों के अध्ययन के बाद इनका जब संकलन करेंगे तब सम्प्रदाय समूह बनने लगेंगे। जीवनदृष्टि, विश्वदृष्टि और कर्मकाण्डों की पद्धति को लेकर समानता और भिन्नता के आधार पर ये समूह बनेंगे । इस्लाम और इसाइयत का इनके ऊपर कैसे प्रभाव हुआ है इसके आधार पर ये समूह बनेंगे।
 
इन मुद्दों पर सम्प्रदायों के अध्ययन के बाद इनका जब संकलन करेंगे तब सम्प्रदाय समूह बनने लगेंगे। जीवनदृष्टि, विश्वदृष्टि और कर्मकाण्डों की पद्धति को लेकर समानता और भिन्नता के आधार पर ये समूह बनेंगे । इस्लाम और इसाइयत का इनके ऊपर कैसे प्रभाव हुआ है इसके आधार पर ये समूह बनेंगे।
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==== ३. ज्ञानविज्ञान और शिक्षा की स्थिति का अध्ययन ====
 
==== ३. ज्ञानविज्ञान और शिक्षा की स्थिति का अध्ययन ====
 
ज्ञानविज्ञान और शिक्षा की स्थिति का अध्ययन किसी भी देश की ज्ञानात्मक स्थिति कैसी है उसके उपर उसका विकसित और विकासशील स्वरूप ध्यान में आता है। विकास का वर्तमान आर्थिक मापदण्ड छोडकर हमें ज्ञानात्मक मापदण्ड अपनाना चाहिये और उसके आधार पर देशों का मूल्यांकन करना चाहिये । ज्ञानविज्ञान और शिक्षा की स्थिति जानने के लिये इस प्रकार के मुद्दे हो सकते हैं...
 
ज्ञानविज्ञान और शिक्षा की स्थिति का अध्ययन किसी भी देश की ज्ञानात्मक स्थिति कैसी है उसके उपर उसका विकसित और विकासशील स्वरूप ध्यान में आता है। विकास का वर्तमान आर्थिक मापदण्ड छोडकर हमें ज्ञानात्मक मापदण्ड अपनाना चाहिये और उसके आधार पर देशों का मूल्यांकन करना चाहिये । ज्ञानविज्ञान और शिक्षा की स्थिति जानने के लिये इस प्रकार के मुद्दे हो सकते हैं...
# इस देश के शाखग्रन्थ कौन से हैं । वे किन लोगों ने लिखे हैं। किस भाषा में लिखे हैं।  
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# इस देश के शाखग्रन्थ कौन से हैं । वे किन लोगोंं ने लिखे हैं। किस भाषा में लिखे हैं।  
 
# इन शाखग्रन्थों की रचना करने वालों की योग्यता किस प्रकार की होनी चाहिये ऐसा विद्वानों का और सामान्यजनों का मत हैं।  
 
# इन शाखग्रन्थों की रचना करने वालों की योग्यता किस प्रकार की होनी चाहिये ऐसा विद्वानों का और सामान्यजनों का मत हैं।  
 
# इन शास्त्रग्रन्थों की आधारभूत धारणायें कौन सी हैं ।  
 
# इन शास्त्रग्रन्थों की आधारभूत धारणायें कौन सी हैं ।  
# ये शास्त्रग्रंथ कब या कब कब लिखे गये हैं । समय समय पर उनमें क्या परिवर्तन अथवा रूपान्तरण होते रहे हैं । ये परिवर्तन किन लोगों ने किस आशय से किये हैं । रूपान्तरण की आवश्यकता क्यों लगी।  
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# ये शास्त्रग्रंथ कब या कब कब लिखे गये हैं । समय समय पर उनमें क्या परिवर्तन अथवा रूपान्तरण होते रहे हैं । ये परिवर्तन किन लोगोंं ने किस आशय से किये हैं । रूपान्तरण की आवश्यकता क्यों लगी।  
 
# वर्तमान में इन शास्त्रग्रन्थों का अध्ययन कौन करता है, क्यों करता है।  
 
# वर्तमान में इन शास्त्रग्रन्थों का अध्ययन कौन करता है, क्यों करता है।  
 
# ये शास्त्रग्रन्थ किन किन बातों के लिये प्रमाण माने जाते हैं।  
 
# ये शास्त्रग्रन्थ किन किन बातों के लिये प्रमाण माने जाते हैं।  
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# भारत का अर्थशास्त्र, राजशास्त्र, समाजशास्त्र, वाणिज्यशास्त्र, उद्योगतन्त्र धर्म के अविरोधी है इसलिये सबक लिये हितकारी है ।  
 
# भारत का अर्थशास्त्र, राजशास्त्र, समाजशास्त्र, वाणिज्यशास्त्र, उद्योगतन्त्र धर्म के अविरोधी है इसलिये सबक लिये हितकारी है ।  
 
# भारत अध्यात्मनिष्ठ धर्मपरायण देश है। उसकी धर्म संकल्पना सम्प्रदाय संकल्पना से अलग है, अधिक व्यापक है और सर्वसमावेशक है।  
 
# भारत अध्यात्मनिष्ठ धर्मपरायण देश है। उसकी धर्म संकल्पना सम्प्रदाय संकल्पना से अलग है, अधिक व्यापक है और सर्वसमावेशक है।  
# भारत की आकांक्षा सदा से ही सब सुखी हों, सब निरामय हों, सब का कल्याण हो, किसी को कोई दुःख न हो ऐसी ही रही है। इसके अनुकूल ही भारत का व्यवहार और व्यवस्थायें बनती हैं। विश्व के सन्दर्भ में भारत की कल्पना 'सर्व खलु इदं ब्रह्म' की है। विश्व को भारत का ऐसा परिचय प्राप्त हो इस दृष्टि से आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में साहित्य की निर्मिति होनी चाहिये । विश्व के लोगों के लिये कार्यक्रम होने चाहिये । विश्वविद्यालय के लोगों को विश्व के देशों में जाना चाहिये। आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की शाखायें भी विदेशों में होनी चाहिये।  
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# भारत की आकांक्षा सदा से ही सब सुखी हों, सब निरामय हों, सब का कल्याण हो, किसी को कोई दुःख न हो ऐसी ही रही है। इसके अनुकूल ही भारत का व्यवहार और व्यवस्थायें बनती हैं। विश्व के सन्दर्भ में भारत की कल्पना 'सर्व खलु इदं ब्रह्म' की है। विश्व को भारत का ऐसा परिचय प्राप्त हो इस दृष्टि से आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में साहित्य की निर्मिति होनी चाहिये । विश्व के लोगोंं के लिये कार्यक्रम होने चाहिये । विश्वविद्यालय के लोगोंं को विश्व के देशों में जाना चाहिये। आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की शाखायें भी विदेशों में होनी चाहिये।  
 
# आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में एक ओर तो विश्वअध्ययन केन्द्र होना चाहिये और दूसरा भारत अध्ययन केन्द्र भी होना चाहिये । वर्तमान की स्थिति ऐसी है कि भारत पश्चिम के प्रभाव में जी रहा है, उसकी सारी व्यवस्थायें पश्चिमी हो गई हैं, भारत को अपने आपके विषय में कोई जानकारी नहीं है, पश्चिम की दृष्टि से भारत अपने आपको देखता है, पश्चिम की बुद्धि से अपने शास्त्रों को जानता है । इस समय भारत की प्रथम आवश्यकता है अपने आपको सही रूप में जानने की। भारत भारत बने, वर्तमान भारत अपने आपको सनातन भारत में परिवर्तित करे इस हेतु से भारत अध्ययन केन्द्र कार्यरत होना चाहिये । इसमें धार्मिक जीवनदृष्टि, भारत की विचारधारा, भारत की संस्कृति परम्परा, भारत की अध्यात्म और धर्म संकल्पना, भारत की शिक्षा संकल्पना, भारत के दैनन्दिन जीवन व्यवहार में और विभिन्न व्यवस्थाओं में अनुस्यूत आध्यात्मिक दृष्टि आदि विषय होने चाहिये। धार्मिक जीवन व्यवस्था और विश्व की अन्य जीवनव्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन, भारत की विश्व में भूमिका आदि विषयों में अध्ययन होना चाहिये । वर्तमान भारत में पश्चिमीकरण के परिणाम स्वरूप क्या क्या समस्यायें निर्माण हुई हैं और उनका समाधान कर हम भारत को पश्चिमीकरण से कैसे मुक्त कर सकते हैं इस विषय का भी अध्ययन होना चाहिये । संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी आन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत संस्थाओं के माध्यम से अमेरिका किस प्रकार अन्य देशों सहित भारत को अपने चंगुल में रखे हुए है इसका भी विश्लेषणात्मक अध्ययन होना चाहिये।
 
# आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में एक ओर तो विश्वअध्ययन केन्द्र होना चाहिये और दूसरा भारत अध्ययन केन्द्र भी होना चाहिये । वर्तमान की स्थिति ऐसी है कि भारत पश्चिम के प्रभाव में जी रहा है, उसकी सारी व्यवस्थायें पश्चिमी हो गई हैं, भारत को अपने आपके विषय में कोई जानकारी नहीं है, पश्चिम की दृष्टि से भारत अपने आपको देखता है, पश्चिम की बुद्धि से अपने शास्त्रों को जानता है । इस समय भारत की प्रथम आवश्यकता है अपने आपको सही रूप में जानने की। भारत भारत बने, वर्तमान भारत अपने आपको सनातन भारत में परिवर्तित करे इस हेतु से भारत अध्ययन केन्द्र कार्यरत होना चाहिये । इसमें धार्मिक जीवनदृष्टि, भारत की विचारधारा, भारत की संस्कृति परम्परा, भारत की अध्यात्म और धर्म संकल्पना, भारत की शिक्षा संकल्पना, भारत के दैनन्दिन जीवन व्यवहार में और विभिन्न व्यवस्थाओं में अनुस्यूत आध्यात्मिक दृष्टि आदि विषय होने चाहिये। धार्मिक जीवन व्यवस्था और विश्व की अन्य जीवनव्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन, भारत की विश्व में भूमिका आदि विषयों में अध्ययन होना चाहिये । वर्तमान भारत में पश्चिमीकरण के परिणाम स्वरूप क्या क्या समस्यायें निर्माण हुई हैं और उनका समाधान कर हम भारत को पश्चिमीकरण से कैसे मुक्त कर सकते हैं इस विषय का भी अध्ययन होना चाहिये । संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी आन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत संस्थाओं के माध्यम से अमेरिका किस प्रकार अन्य देशों सहित भारत को अपने चंगुल में रखे हुए है इसका भी विश्लेषणात्मक अध्ययन होना चाहिये।
 
इस अध्ययन केन्द्र में अध्ययन के साथ अनुसन्धान भी निहित है। यह अनुसन्धान ज्ञानात्मक आधार पर व्यावहारिक प्रश्नों के निराकरण हेतु होना चाहिये । केवल अनुसन्धान और व्यावहारिक अनुसन्धान का अनुपात तीस और सत्तर प्रतिशत का होना चाहिये ।  
 
इस अध्ययन केन्द्र में अध्ययन के साथ अनुसन्धान भी निहित है। यह अनुसन्धान ज्ञानात्मक आधार पर व्यावहारिक प्रश्नों के निराकरण हेतु होना चाहिये । केवल अनुसन्धान और व्यावहारिक अनुसन्धान का अनुपात तीस और सत्तर प्रतिशत का होना चाहिये ।  
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९. विधिवत आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय होने से पूर्व मुक्त विश्वविद्यालय, चल विश्वविद्यालय, लोक विश्वविद्यालय आदि रूप में भी कार्य हो सकता है। लघु रूप में ग्रन्थालय का प्रारम्भ हो सकता है । छुट्टियों में विद्यार्थियों और अध्यापकों के लिये अध्ययन और अनुसन्धान के प्रकल्प प्रारम्भ हो सकते हैं ।  
 
९. विधिवत आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय होने से पूर्व मुक्त विश्वविद्यालय, चल विश्वविद्यालय, लोक विश्वविद्यालय आदि रूप में भी कार्य हो सकता है। लघु रूप में ग्रन्थालय का प्रारम्भ हो सकता है । छुट्टियों में विद्यार्थियों और अध्यापकों के लिये अध्ययन और अनुसन्धान के प्रकल्प प्रारम्भ हो सकते हैं ।  
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१०. लोगों को कमाई, मनोरंजन, अन्य व्यस्ततार्ये कम कर खर्च और समय बचाकर इस कार्य में जुड़ने हेतु आवाहन किया जा सकता है।  
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१०. लोगोंं को कमाई, मनोरंजन, अन्य व्यस्ततार्ये कम कर खर्च और समय बचाकर इस कार्य में जुड़ने हेतु आवाहन किया जा सकता है।  
    
११. सभी कार्यों के आर्थिक सन्दर्भ नहीं होते । सेवा के रूप में भी अनेक काम करने होते हैं इस बात का स्मरण करवाना चाहिये।  
 
११. सभी कार्यों के आर्थिक सन्दर्भ नहीं होते । सेवा के रूप में भी अनेक काम करने होते हैं इस बात का स्मरण करवाना चाहिये।  
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१४. तात्पर्य यह है कि औपचारिक प्रारम्भ होना ही प्रारम्भ है ऐसा नहीं है । देखा जाय तो अनौपचारिक रूप में तो भारत को बचाये रखना, भारत को भारत बनाने और विश्व को भी उपदेश देने का कार्य तो अभी भी हो रहा है । वह यदि नियोजित पद्धति से, एक उद्देश्य से, साथ मिलकर समवेत रूप में होगा तो अधिक प्रभावी ढंग से होगा। एक समय निश्चित रूप से आनेवाला है जब विश्व की सभी आसुरी शक्तियाँ और देवी शक्तियाँ संगठित होकर आमने सामने खडी होंगी। छोटे छोटे युद्ध, आतंकवादी हमले, बाजार और इण्टरनेट के माध्यम से आक्रमण तो चल ही रहा है परन्तु निर्णायक युद्ध भी शीघ्र ही होने वाला है। आज चल रहा है उस मार्ग पर चलकर विश्व बच नहीं सकता। बिना युद्ध के विश्व मार्ग नहीं बदलेगा। इस युद्ध में मुख्य भूमिका निभाने के लिये भारत को सिद्ध होना है। यह विश्व की आवश्यकता है और भारत की नियति ।  
 
१४. तात्पर्य यह है कि औपचारिक प्रारम्भ होना ही प्रारम्भ है ऐसा नहीं है । देखा जाय तो अनौपचारिक रूप में तो भारत को बचाये रखना, भारत को भारत बनाने और विश्व को भी उपदेश देने का कार्य तो अभी भी हो रहा है । वह यदि नियोजित पद्धति से, एक उद्देश्य से, साथ मिलकर समवेत रूप में होगा तो अधिक प्रभावी ढंग से होगा। एक समय निश्चित रूप से आनेवाला है जब विश्व की सभी आसुरी शक्तियाँ और देवी शक्तियाँ संगठित होकर आमने सामने खडी होंगी। छोटे छोटे युद्ध, आतंकवादी हमले, बाजार और इण्टरनेट के माध्यम से आक्रमण तो चल ही रहा है परन्तु निर्णायक युद्ध भी शीघ्र ही होने वाला है। आज चल रहा है उस मार्ग पर चलकर विश्व बच नहीं सकता। बिना युद्ध के विश्व मार्ग नहीं बदलेगा। इस युद्ध में मुख्य भूमिका निभाने के लिये भारत को सिद्ध होना है। यह विश्व की आवश्यकता है और भारत की नियति ।  
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१५. आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के मापदण्ड वर्तमान में भारत के शिक्षाक्षेत्र की स्थिति ऐसी है कि विद्यार्थी आठ वर्ष तक पढता है तो भी उसे लिखना और पढ़ना नहीं आता । वह दसवीं या बारहवीं में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होता है तो भी उसे पढे हुए विषयों का ज्ञान नहीं होता। अब तो विद्यार्थियों की आमधारणा बन गई है कि उत्तीर्ण होने के लिये पढने की नहीं चतुराई की आवश्यकता होती है। लोगों की भी धारणा बन गई है कि पढे लिखे को व्यवहारज्ञान या जीवनविषयक ज्ञान होना आवश्यक नहीं । शिक्षित लोगों का सर्वमान्य लक्षण है भाषाशुद्धि और अभिजात्य । आज दो में से एक भी नहीं है।
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१५. आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के मापदण्ड वर्तमान में भारत के शिक्षाक्षेत्र की स्थिति ऐसी है कि विद्यार्थी आठ वर्ष तक पढता है तो भी उसे लिखना और पढ़ना नहीं आता । वह दसवीं या बारहवीं में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होता है तो भी उसे पढे हुए विषयों का ज्ञान नहीं होता। अब तो विद्यार्थियों की आमधारणा बन गई है कि उत्तीर्ण होने के लिये पढने की नहीं चतुराई की आवश्यकता होती है। लोगोंं की भी धारणा बन गई है कि पढे लिखे को व्यवहारज्ञान या जीवनविषयक ज्ञान होना आवश्यक नहीं । शिक्षित लोगोंं का सर्वमान्य लक्षण है भाषाशुद्धि और अभिजात्य । आज दो में से एक भी नहीं है।
    
आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के सन्दर्भ में इस धारणा को सर्वथा बदलने की आवश्यकता रहेगी। सत्रह अठारह वर्ष का युवक दिन के बारह पन्द्रघण्टे अध्ययन नहीं करता तो वह विश्वविद्यालय का विद्यार्थी कहा जाने योग्य नहीं होगा। यदि सात्त्विक भोजन, पर्याप्त व्यायाम और योगाभ्यास के माध्यम से वह अपनी शारीरिक, मानसिक
 
आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के सन्दर्भ में इस धारणा को सर्वथा बदलने की आवश्यकता रहेगी। सत्रह अठारह वर्ष का युवक दिन के बारह पन्द्रघण्टे अध्ययन नहीं करता तो वह विश्वविद्यालय का विद्यार्थी कहा जाने योग्य नहीं होगा। यदि सात्त्विक भोजन, पर्याप्त व्यायाम और योगाभ्यास के माध्यम से वह अपनी शारीरिक, मानसिक
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और बौद्धिक क्षमताओं का विकास नहीं करेगा तो वह अध्ययन करने के लायक ही नहीं होगा। यदि बाजार में जाकर उचित दाम पर आवश्यक वस्तुओं की गुणवत्ता परख कर खरीदी करने की कुशलता विकसित नहीं करेगा तो वह अध्ययन करने के लायक ही नहीं बनेगा। यदि कष्ट सहने की क्षमता विकसित नहीं करेगा, सुविधाओं का आकर्षण नहीं छोड़ेगा तो अध्ययन करने के लायक ही नहीं बनेगा।
 
और बौद्धिक क्षमताओं का विकास नहीं करेगा तो वह अध्ययन करने के लायक ही नहीं होगा। यदि बाजार में जाकर उचित दाम पर आवश्यक वस्तुओं की गुणवत्ता परख कर खरीदी करने की कुशलता विकसित नहीं करेगा तो वह अध्ययन करने के लायक ही नहीं बनेगा। यदि कष्ट सहने की क्षमता विकसित नहीं करेगा, सुविधाओं का आकर्षण नहीं छोड़ेगा तो अध्ययन करने के लायक ही नहीं बनेगा।
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विश्वविद्यालय में प्रवेश से पूर्व इस प्रकार की योग्यता विद्यार्थियों को प्राप्त करनी होगी। प्रश्न यह है कि फिर विद्यार्थी ऐसे विश्वविद्यालय में क्यों आयेगा ? जब अन्यत्र शिक्षा सुलभ है । तब ऐसे कठोर परिश्रम की अपेक्षा करने वाले विश्वविद्यालय में क्यों कोई जाय ? परन्तु इस देश में कुछ अच्छे लोग भी होते हैं। उनमें विद्याप्रीति है, कठिनाई से प्राप्त होनेवाली बातों का आकर्षण है, जिज्ञासा है और महान उद्देश्ययुक्त काम में जुड़ने की आकांक्षा भी है। ऐसे लोगों के लिये आज अवसर नहीं है। आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय ऐसा अवसर देगा । इसलिये उसके मापदण्ड उच्च प्रकार के होंगे।
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विश्वविद्यालय में प्रवेश से पूर्व इस प्रकार की योग्यता विद्यार्थियों को प्राप्त करनी होगी। प्रश्न यह है कि फिर विद्यार्थी ऐसे विश्वविद्यालय में क्यों आयेगा ? जब अन्यत्र शिक्षा सुलभ है । तब ऐसे कठोर परिश्रम की अपेक्षा करने वाले विश्वविद्यालय में क्यों कोई जाय ? परन्तु इस देश में कुछ अच्छे लोग भी होते हैं। उनमें विद्याप्रीति है, कठिनाई से प्राप्त होनेवाली बातों का आकर्षण है, जिज्ञासा है और महान उद्देश्ययुक्त काम में जुड़ने की आकांक्षा भी है। ऐसे लोगोंं के लिये आज अवसर नहीं है। आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय ऐसा अवसर देगा । इसलिये उसके मापदण्ड उच्च प्रकार के होंगे।
    
जिस प्रकार अध्ययन की योग्यता चाहिये उस प्रकार से अध्ययन के विनियोग के विषय में भी स्पष्टता चाहिये । इस अध्ययन का उपयोग केवल व्यक्तिगत आकांक्षाओं की पूर्ति के लिये नहीं करना है अपितु जिस उद्दश्य से विश्वविद्यालय बना है उस उद्देश्य की पूर्ति के कार्य में सहभागी होने हेतु करना है । आज व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के नाम पर शुल्क देने के अलावा विद्यालय या शिक्षाक्षेत्र या समाज या देश के प्रति कर्तव्य की पर्ति । की कोई अपेक्षा ही नहीं की जाती। परीक्षा पूर्ण होते ही विश्वविद्यालय और विद्यार्थी का सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है। अध्यापकों का भी ऐसा ही है। विश्वविद्यालय छोडकर दूसरा व्यवसाय, दूसरा विश्वविद्यालय अत्यन्त सरलता से अपनाया जाता है। विश्वविद्यालय से मिलने वाला वेतन बन्द हुआ कि सम्बन्ध भी समाप्त हो जाता है। इस आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में ऐसा नहीं होगा । अध्ययन के बाद भी सेवा निवृत्ति के बाद भी विद्यार्थी और अध्यापक विश्वविद्यालय के साथ जुड़े रहेंगे, किंबहुना औपचारिक सेवानिवृत्ति और अध्ययन की पूर्णता होगी भी नहीं। विश्वविद्यालय का कार्य एक मिशन होगा जिसमें सब अपनी अपनी क्षमता से सहभागी होंगे।
 
जिस प्रकार अध्ययन की योग्यता चाहिये उस प्रकार से अध्ययन के विनियोग के विषय में भी स्पष्टता चाहिये । इस अध्ययन का उपयोग केवल व्यक्तिगत आकांक्षाओं की पूर्ति के लिये नहीं करना है अपितु जिस उद्दश्य से विश्वविद्यालय बना है उस उद्देश्य की पूर्ति के कार्य में सहभागी होने हेतु करना है । आज व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के नाम पर शुल्क देने के अलावा विद्यालय या शिक्षाक्षेत्र या समाज या देश के प्रति कर्तव्य की पर्ति । की कोई अपेक्षा ही नहीं की जाती। परीक्षा पूर्ण होते ही विश्वविद्यालय और विद्यार्थी का सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है। अध्यापकों का भी ऐसा ही है। विश्वविद्यालय छोडकर दूसरा व्यवसाय, दूसरा विश्वविद्यालय अत्यन्त सरलता से अपनाया जाता है। विश्वविद्यालय से मिलने वाला वेतन बन्द हुआ कि सम्बन्ध भी समाप्त हो जाता है। इस आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में ऐसा नहीं होगा । अध्ययन के बाद भी सेवा निवृत्ति के बाद भी विद्यार्थी और अध्यापक विश्वविद्यालय के साथ जुड़े रहेंगे, किंबहुना औपचारिक सेवानिवृत्ति और अध्ययन की पूर्णता होगी भी नहीं। विश्वविद्यालय का कार्य एक मिशन होगा जिसमें सब अपनी अपनी क्षमता से सहभागी होंगे।

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