− | ईशावास्योपनिषद मे कहा है<ref>ईशावास्योपनिषद</ref> <blockquote>ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥</blockquote><blockquote>भावार्थ : वह ( ब्रह्म ) स्वत:ही पूर्ण है। उस में से कुछ अलग निकाला तो भी वह पूर्ण ही रहता है। और जो निकाला है वह भी पूर्ण ही रहता है। उस में बाहर से कुछ जोडने से भी उस का पूर्णत्व नष्ट नहीं होता।</blockquote>शून्य और अनंत यह दोनों ही संकल्पनाएँ इस पूर्णत्व की शोध प्रक्रिया का ही प्रतिफल है। ० से ९ तक के आंकडें भी पूर्णत्व के प्रतीक ही है। वेदों से भी अत्यंत प्राचीन काल से चले आ रहे इन धार्मिक (भारतीय) आंकड़ों में और एक आंकड़ा जोडने की आज तक किसी को आवश्यकता नहीं लगी। यही इस अंक प्रणाली के पूर्णत्व का लक्षण है। हमारे पूर्वजों द्वारा विकसित की हुई अंकगणित की जोड, घट, गुणाकार, भागाकार, वर्गमूल, घनमूल, कलन और अवकलन की आठ क्रियाएं भी पूर्णता का ही लक्षण है। इसी तरह गो-आधारित कृषि का तंत्र भी ऐसा पूर्ण है की जब तक सृष्टि में मानव है यह कृषि प्रणाली मानव की अन्न की आवश्यकताएं हमेशा पूर्ण करती रहेगी। | + | ईशावास्योपनिषद मे कहा है<ref>ईशावास्योपनिषद</ref> <blockquote>ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥</blockquote><blockquote>भावार्थ : वह ( ब्रह्म ) स्वत:ही पूर्ण है। उस में से कुछ अलग निकाला तो भी वह पूर्ण ही रहता है। और जो निकाला है वह भी पूर्ण ही रहता है। उस में बाहर से कुछ जोडने से भी उस का पूर्णत्व नष्ट नहीं होता।</blockquote>शून्य और अनंत यह दोनों ही संकल्पनाएँ इस पूर्णत्व की शोध प्रक्रिया का ही प्रतिफल है। ० से ९ तक के आंकडें भी पूर्णत्व के प्रतीक ही है। वेदों से भी अत्यंत प्राचीन काल से चले आ रहे इन धार्मिक (भारतीय) आंकड़ों में और एक आंकड़ा जोडने की आज तक किसी को आवश्यकता नहीं लगी। यही इस अंक प्रणाली के पूर्णत्व का लक्षण है। हमारे पूर्वजों द्वारा विकसित की हुई अंकगणित की जोड, घट, गुणाकार, भागाकार, वर्गमूल, घनमूल, कलन और अवकलन की आठ क्रियाएं भी पूर्णता का ही लक्षण है। इसी तरह गो-आधारित कृषि का तंत्र भी ऐसा पूर्ण है की जब तक सृष्टि में मानव है यह कृषि प्रणाली मानव की अन्न की आवश्यकताएं सदा पूर्ण करती रहेगी। |
| वास्तव में मोक्ष या परमात्मपद प्राप्ति या पूर्णत्व की प्राप्ति ही तो मानव जीवन का लक्ष्य है। कारण यह है कि केवल परमात्मा ही पूर्ण है। उसी तरह हर जीव भी अपने आप में पूर्ण है। पूर्ण है का अर्थ है पूर्णत्व के लिए आवश्यक सभी बातें उसमें हैं। मनुष्य जीवन का लक्ष्य ही इस तरह से सबसे पहले अपने आप को विकसित कर पूर्णत्व (लघु) प्राप्त करना और आगे इस लघु पूर्ण को विकसित कर उसको एक पूर्ण (परमात्मा) में विलीन कर देना है। | | वास्तव में मोक्ष या परमात्मपद प्राप्ति या पूर्णत्व की प्राप्ति ही तो मानव जीवन का लक्ष्य है। कारण यह है कि केवल परमात्मा ही पूर्ण है। उसी तरह हर जीव भी अपने आप में पूर्ण है। पूर्ण है का अर्थ है पूर्णत्व के लिए आवश्यक सभी बातें उसमें हैं। मनुष्य जीवन का लक्ष्य ही इस तरह से सबसे पहले अपने आप को विकसित कर पूर्णत्व (लघु) प्राप्त करना और आगे इस लघु पूर्ण को विकसित कर उसको एक पूर्ण (परमात्मा) में विलीन कर देना है। |