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धार्मिक जीवनदृष्टि (धार्मिक शिक्षा लेखमाला)
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जीवन और जगत को देखने की अपनी अपनी दृष्टि होती है।
जीवन और जगत को देखने की अपनी अपनी दृष्टि होती है।
उस दृष्टि के अनुसार हर राष्ट्र की जीवनशैली विकसित होती
उस दृष्टि के अनुसार हर राष्ट्र की जीवनशैली विकसित होती
−
है,
लोगों
का मानस बनता है, व्यवहार होता है, उस
+
है,
लोगोंं
का मानस बनता है, व्यवहार होता है, उस
व्यवहार के अनुरूप और अनुकूल व्यवस्थायें बनती हैं और
व्यवहार के अनुरूप और अनुकूल व्यवस्थायें बनती हैं और
जीवन चलता है।
जीवन चलता है।
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