* श्री रामकृष्ण स्वयं काली माता के भक्त थे । उन्होंने काली माता का साक्षात्कार किया था । परन्तु स्वामी तोतापुरी ने उन्हें निराकार ब्रह्म की अनुभूति करानी चाही । जब श्री रामकृष्ण ध्यान कर रहे थे तब स्वामी तोतापुरी ने उनकी भूकुटी के मध्यभाग में एक काँच का टुकड़ा चुभो दिया । रक्त का प्रवाह बहा, परन्तु कालीमाता की मूर्ति के टुकड़े टुकड़े होकर उसका साकार स्वरूप बिखर गया और श्री रामकृष्ण को निराकार ब्रह्म की अनुभूति हुई । परन्तु इस उदाहरण से कोई यह नहीं कह सकता कि निराकार ब्रह्म का साक्षात्कार भूकुटी के मध्यभाग में काँच का टुकड़ा चुभोने से होता है । अनुभूति तो बस होती है । | * श्री रामकृष्ण स्वयं काली माता के भक्त थे । उन्होंने काली माता का साक्षात्कार किया था । परन्तु स्वामी तोतापुरी ने उन्हें निराकार ब्रह्म की अनुभूति करानी चाही । जब श्री रामकृष्ण ध्यान कर रहे थे तब स्वामी तोतापुरी ने उनकी भूकुटी के मध्यभाग में एक काँच का टुकड़ा चुभो दिया । रक्त का प्रवाह बहा, परन्तु कालीमाता की मूर्ति के टुकड़े टुकड़े होकर उसका साकार स्वरूप बिखर गया और श्री रामकृष्ण को निराकार ब्रह्म की अनुभूति हुई । परन्तु इस उदाहरण से कोई यह नहीं कह सकता कि निराकार ब्रह्म का साक्षात्कार भूकुटी के मध्यभाग में काँच का टुकड़ा चुभोने से होता है । अनुभूति तो बस होती है । |