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वास्तविकता भी यही है कि धार्मिक (धार्मिक) समाज में जिस प्रकार से विष्णु, गणेश, महेश आदि के जैसी ही लक्ष्मी, दुर्गा, काली, सरस्वती की पूजा होती है अन्य किसी भी समाज में नहीं की जाती। धार्मिक (धार्मिक) समाज जैसी अर्ध नारी नटेश्वर की कल्पना विश्व के अन्य किसी भी समाज में नहीं है।
 
वास्तविकता भी यही है कि धार्मिक (धार्मिक) समाज में जिस प्रकार से विष्णु, गणेश, महेश आदि के जैसी ही लक्ष्मी, दुर्गा, काली, सरस्वती की पूजा होती है अन्य किसी भी समाज में नहीं की जाती। धार्मिक (धार्मिक) समाज जैसी अर्ध नारी नटेश्वर की कल्पना विश्व के अन्य किसी भी समाज में नहीं है।
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मनुस्मृति में और भी कहा है कि स्त्री हमेशा सुरक्षित रहे यह सुनिश्चित करना चाहिए। कहा है<ref>मनुस्मृति 9.3</ref>:<blockquote>पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने।</blockquote><blockquote>पुत्रस्तु स्थविरे भावे न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हती।। 9.3 ।।</blockquote>स्त्री यह समाज की अनमोल धरोहर है। इसे कभी भी अरक्षित न रखा जाए। बचपन में पिता, यौवन में पति, बुढ़ापे में बेटा उसकी सदैव रक्षा करे। ऐसा कहने में स्त्री और पुरुष की प्राकृतिक सहज प्रवृत्तियों, क्षमताओं और आवश्यकताओं की गहरी समझ हमारे पूर्वजों ने बताई है।
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मनुस्मृति में और भी कहा है कि स्त्री सदा सुरक्षित रहे यह सुनिश्चित करना चाहिए। कहा है<ref>मनुस्मृति 9.3</ref>:<blockquote>पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने।</blockquote><blockquote>पुत्रस्तु स्थविरे भावे न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हती।। 9.3 ।।</blockquote>स्त्री यह समाज की अनमोल धरोहर है। इसे कभी भी अरक्षित न रखा जाए। बचपन में पिता, यौवन में पति, बुढ़ापे में बेटा उसकी सदैव रक्षा करे। ऐसा कहने में स्त्री और पुरुष की प्राकृतिक सहज प्रवृत्तियों, क्षमताओं और आवश्यकताओं की गहरी समझ हमारे पूर्वजों ने बताई है।
    
आजकल अधिकारों का बोलबाला है। यह समाज में सामाजिकता कम होकर व्यक्तिवादिता यानि स्वार्थ की भावना के बढ़ने के कारण है। सर्वप्रथम हमारे राजनेता यूनेस्को से लाये ‘मानवाधिकार’ फिर लाये ‘स्त्रियों के अधिकार’ फिर लाये ‘बच्चों के अधिकार‘। हमारा संविधान भी मुख्यत: (कर्तव्यों की बहुत कम और) अधिकारों की बात करता है। पूरी कानून व्यवस्था ही अधिकारों की रक्षा के लिए बनाई गई है। जब अधिकारों का बोलबाला होता है तो झगड़े, संघर्ष, अशांति, बलावानों द्वारा अत्याचार तो होते ही हैं। जब सामाजिक संबंधों का आधार कर्तव्य होता है समाज में सुख, शांति, समृद्धि निर्माण होती है। लेकिन अपने पूर्वजों से कुछ सीखने के स्थान पर हम पश्चिम का अन्धानुकरण करने को ही प्रगति मानने लगे हैं।
 
आजकल अधिकारों का बोलबाला है। यह समाज में सामाजिकता कम होकर व्यक्तिवादिता यानि स्वार्थ की भावना के बढ़ने के कारण है। सर्वप्रथम हमारे राजनेता यूनेस्को से लाये ‘मानवाधिकार’ फिर लाये ‘स्त्रियों के अधिकार’ फिर लाये ‘बच्चों के अधिकार‘। हमारा संविधान भी मुख्यत: (कर्तव्यों की बहुत कम और) अधिकारों की बात करता है। पूरी कानून व्यवस्था ही अधिकारों की रक्षा के लिए बनाई गई है। जब अधिकारों का बोलबाला होता है तो झगड़े, संघर्ष, अशांति, बलावानों द्वारा अत्याचार तो होते ही हैं। जब सामाजिक संबंधों का आधार कर्तव्य होता है समाज में सुख, शांति, समृद्धि निर्माण होती है। लेकिन अपने पूर्वजों से कुछ सीखने के स्थान पर हम पश्चिम का अन्धानुकरण करने को ही प्रगति मानने लगे हैं।

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