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=== सब के प्रति स्नेहपूर्ण व्यवहार ===
 
=== सब के प्रति स्नेहपूर्ण व्यवहार ===
* बड़ों का छोटों के प्रति वात्सल्यभाव और छोटों का बड़ों के प्रति आदर का भाव होना मुख्य बात है। अपने से छोटों का रक्षण करना, उपभोग के समय छोटों का अधिकार प्रथम मानना, कष्ट सहने के समय बड़ों का क्रम प्रथम होना, अन्यों की सुविधा का हमेशा ध्यान रखना, कुटुम्बीजनों की सुविधा हेतु अपनी सुविधा का त्याग करना, बड़ों की आज्ञा का पालन करना, बड़ों की सेवा करना, कुटुम्ब के नियमों का पालन करना, अपने पूर्वजों की रीतियों का पालन करना, सबने मिलकर कुटुम्ब का गौरव बढ़ाना आदि सब कुटुम्ब के सदस्यों के लिए सीखने की और आचरण में लाने की बातें हैं।
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* बड़ों का छोटों के प्रति वात्सल्यभाव और छोटों का बड़ों के प्रति आदर का भाव होना मुख्य बात है। अपने से छोटों का रक्षण करना, उपभोग के समय छोटों का अधिकार प्रथम मानना, कष्ट सहने के समय बड़ों का क्रम प्रथम होना, अन्यों की सुविधा का सदा ध्यान रखना, कुटुम्बीजनों की सुविधा हेतु अपनी सुविधा का त्याग करना, बड़ों की आज्ञा का पालन करना, बड़ों की सेवा करना, कुटुम्ब के नियमों का पालन करना, अपने पूर्वजों की रीतियों का पालन करना, सबने मिलकर कुटुम्ब का गौरव बढ़ाना आदि सब कुटुम्ब के सदस्यों के लिए सीखने की और आचरण में लाने की बातें हैं।
 
* कुटुम्ब में साथ रहने के लिए अनेक काम सीखने होते हैं। भोजन बनाना, घर की स्वच्छता करना, साज सज्जा करना, पूजा, उत्सव, व्रत, यज्ञ, अतिथिसत्कार, परिचर्या, शिशुसंगोपन, आवश्यक वस्तुओं की खरीदी आदि अनेक बातें ऐसी हैं जो कुटुम्बीजनों को आनी चाहिए। ये सारी बातें शिक्षा से ही आती हैं।
 
* कुटुम्ब में साथ रहने के लिए अनेक काम सीखने होते हैं। भोजन बनाना, घर की स्वच्छता करना, साज सज्जा करना, पूजा, उत्सव, व्रत, यज्ञ, अतिथिसत्कार, परिचर्या, शिशुसंगोपन, आवश्यक वस्तुओं की खरीदी आदि अनेक बातें ऐसी हैं जो कुटुम्बीजनों को आनी चाहिए। ये सारी बातें शिक्षा से ही आती हैं।
 
* कुटुम्ब में वंशपस्म्परा चलती है। रीतिरिवाज, गुणदोष, कौशल, मूल्य, पद्धतियाँ, खूबियाँ आदि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होते हैं। इन सभी बातों की रक्षा करने का यही एक मार्ग है। ये सारे संस्कृति के आयाम हैं । पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होते हुए संस्कृति न केवल जीवित रहती है अपितु वह समय के अनुरूप परिवर्तित होकर परिष्कृत भी होती रहती है । संस्कृति की धारा जब इस प्रकार प्रवाहित रहती है तब उसकी शुद्धता बनी रहती है। संस्कृति की ऐसी नित्य प्रवाहमान धारा के लिए ही चिरपुरातन नित्यनूतन कहा जाता है। ये दोनों मिलकर संस्कृति का सनातनत्व होता है ।
 
* कुटुम्ब में वंशपस्म्परा चलती है। रीतिरिवाज, गुणदोष, कौशल, मूल्य, पद्धतियाँ, खूबियाँ आदि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होते हैं। इन सभी बातों की रक्षा करने का यही एक मार्ग है। ये सारे संस्कृति के आयाम हैं । पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होते हुए संस्कृति न केवल जीवित रहती है अपितु वह समय के अनुरूप परिवर्तित होकर परिष्कृत भी होती रहती है । संस्कृति की धारा जब इस प्रकार प्रवाहित रहती है तब उसकी शुद्धता बनी रहती है। संस्कृति की ऐसी नित्य प्रवाहमान धारा के लिए ही चिरपुरातन नित्यनूतन कहा जाता है। ये दोनों मिलकर संस्कृति का सनातनत्व होता है ।

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