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६. स्पर्धा लाभकारी हो अतः उनमे से इर्ष्या और हिंसाभाव नष्ट करे, अपयश प्राप्त स्पर्धकों को चिडाना (उपहास करना) बंद करे तथा सभी स्पर्धकों को पुरस्कार देना ऐसा लिखा है।  
 
६. स्पर्धा लाभकारी हो अतः उनमे से इर्ष्या और हिंसाभाव नष्ट करे, अपयश प्राप्त स्पर्धकों को चिडाना (उपहास करना) बंद करे तथा सभी स्पर्धकों को पुरस्कार देना ऐसा लिखा है।  
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७. स्पर्धा से होने वाली हानि बताने से बालकों के मन में न्यूनता की भावना निर्माण होती है अतः दूसरों का विजय सहर्ष स्वीकृत करे ऐसा भाव उत्पन्न करे । बहुत से लोगोंने प्रतियोगिता का अर्थ परीक्षा ऐसा भी किया ।
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७. स्पर्धा से होने वाली हानि बताने से बालकों के मन में न्यूनता की भावना निर्माण होती है अतः दूसरों का विजय सहर्ष स्वीकृत करे ऐसा भाव उत्पन्न करे । बहुत से लोगोंंने प्रतियोगिता का अर्थ परीक्षा ऐसा भी किया ।
    
==== अभिमत : ====
 
==== अभिमत : ====
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परन्तु विश्वास और श्रद्धा के बिना कोई भी अच्छा काम सम्भव नहीं है । अच्छाई के आधार पर ही दुनिया चलती है, कानून के आधार पर नहीं । रास्ते पर चलते हुए कोई दुर्घटना देखी और कोई व्यक्ति बहुत गम्भीर रूप से घायल हो गया है वह भी देखा । उस समय रुकना, उसकी सहायता करना उसे अस्पताल पहुँचाना कानून से बन्धनकारक नहीं है तो भी लोग होते हैं जो अपना काम छोड़कर घायल व्यक्ति की सहायता करते हैं । ठण्ड में ठिठुरने वाले खुले में सोये गरीब
 
परन्तु विश्वास और श्रद्धा के बिना कोई भी अच्छा काम सम्भव नहीं है । अच्छाई के आधार पर ही दुनिया चलती है, कानून के आधार पर नहीं । रास्ते पर चलते हुए कोई दुर्घटना देखी और कोई व्यक्ति बहुत गम्भीर रूप से घायल हो गया है वह भी देखा । उस समय रुकना, उसकी सहायता करना उसे अस्पताल पहुँचाना कानून से बन्धनकारक नहीं है तो भी लोग होते हैं जो अपना काम छोड़कर घायल व्यक्ति की सहायता करते हैं । ठण्ड में ठिठुरने वाले खुले में सोये गरीब
लोगों को कम्बल ओढाने वाले अच्छे लोग होते ही हैं । गरीब विद्यार्थियों को पढाई के लिये सहायता करने वाले दानी लोग होते ही हैं । ये सब नियम, कानून, बन्धन, मजबूरी, भय
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लोगोंं को कम्बल ओढाने वाले अच्छे लोग होते ही हैं । गरीब विद्यार्थियों को पढाई के लिये सहायता करने वाले दानी लोग होते ही हैं । ये सब नियम, कानून, बन्धन, मजबूरी, भय
 
या स्वार्थ से प्रेरित होकर यह काम नहीं करते । उनके हृदय में जो अच्छाई होती है उससे प्रेरित होकर ही करते हैं । मनुष्यों
 
या स्वार्थ से प्रेरित होकर यह काम नहीं करते । उनके हृदय में जो अच्छाई होती है उससे प्रेरित होकर ही करते हैं । मनुष्यों
 
के हृदयों में जो अच्छाई है उसीसे दुनिया चलती है । इस अच्छाई का नाश अविश्वास से होता है । इसलिये कुछ भौतिक स्वरूप की कीमत चुकाकर भी विश्वास का जतन करना चाहिये ।
 
के हृदयों में जो अच्छाई है उसीसे दुनिया चलती है । इस अच्छाई का नाश अविश्वास से होता है । इसलिये कुछ भौतिक स्वरूप की कीमत चुकाकर भी विश्वास का जतन करना चाहिये ।
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शिक्षा का विषय राज्य सरकार का है इसलिये राज्य तो इसकी व्यवस्था करेगा यह स्वाभाविक है। इन विद्यालयों में साधारण रूप से प्रान्तीय भाषा ही माध्यम रहती है फिर भी अन्य प्रान्तों के निवासियों की संख्या के अनुपात में उन भाषा के माध्यमों के विद्यालय भी चलते हैं । उदाहरण के लिये राज्य की मान्यता वाले अधिकतम विद्यालय गुजराती माध्यम के होंगे परन्तु तमिल, सिंधी, उडिया, उर्दू, मराठी माध्यम के विद्यालय भी चलते हैं।
 
शिक्षा का विषय राज्य सरकार का है इसलिये राज्य तो इसकी व्यवस्था करेगा यह स्वाभाविक है। इन विद्यालयों में साधारण रूप से प्रान्तीय भाषा ही माध्यम रहती है फिर भी अन्य प्रान्तों के निवासियों की संख्या के अनुपात में उन भाषा के माध्यमों के विद्यालय भी चलते हैं । उदाहरण के लिये राज्य की मान्यता वाले अधिकतम विद्यालय गुजराती माध्यम के होंगे परन्तु तमिल, सिंधी, उडिया, उर्दू, मराठी माध्यम के विद्यालय भी चलते हैं।
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कुछ लोग ऐसे होते हैं जो केन्द्र सरकार की नौकरी करते हैं इसलिये उनके स्थानांतरण एक राज्य से दूसरे राज्य में होते हैं । ऐसे लोगों की सुविधा हेतु अखिल धार्मिक स्तर की संस्थायें चलती हैं। सीबीएसई (सैण्ट्रल बोर्ड ओफ सैकन्डरी एज्यूकेशन) ऐसा ही बोर्ड है । यह मान्यता पूरे देश में चलती है । इसमें हिन्दी और अंग्रेजी ऐसे दो माध्यम होते हैं । अब एक राज्य से दूसरे राज्यमें जाने में कठिनाई नहीं होती।
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कुछ लोग ऐसे होते हैं जो केन्द्र सरकार की नौकरी करते हैं इसलिये उनके स्थानांतरण एक राज्य से दूसरे राज्य में होते हैं । ऐसे लोगोंं की सुविधा हेतु अखिल धार्मिक स्तर की संस्थायें चलती हैं। सीबीएसई (सैण्ट्रल बोर्ड ओफ सैकन्डरी एज्यूकेशन) ऐसा ही बोर्ड है । यह मान्यता पूरे देश में चलती है । इसमें हिन्दी और अंग्रेजी ऐसे दो माध्यम होते हैं । अब एक राज्य से दूसरे राज्यमें जाने में कठिनाई नहीं होती।
    
तीसरा आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड होता है जो एक से अधिक देशों में विद्यालयों को मान्यता देता है । इसका उद्देश्य राज्य सरकार या केन्द्र सरकार की तरह प्रजाजनों की सुविधा देखने का तो नहीं है यह स्पष्ट है । अपना व्यापार कहो तो व्यापार और मिशन कहो तो मिशन विश्व के अन्य देशों में भी फैलाने का उद्देश्य है ।
 
तीसरा आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड होता है जो एक से अधिक देशों में विद्यालयों को मान्यता देता है । इसका उद्देश्य राज्य सरकार या केन्द्र सरकार की तरह प्रजाजनों की सुविधा देखने का तो नहीं है यह स्पष्ट है । अपना व्यापार कहो तो व्यापार और मिशन कहो तो मिशन विश्व के अन्य देशों में भी फैलाने का उद्देश्य है ।
    
===== अब प्रश्न क्या है ? =====
 
===== अब प्रश्न क्या है ? =====
अधिकांश लोगों को राज्य के बोर्ड की मान्यता होना
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अधिकांश लोगोंं को राज्य के बोर्ड की मान्यता होना
 
सर्वथा स्वाभाविक है, परन्तु आज सबको, विशेष रूप से संचालकों को, केन्द्रीय बोर्ड की मान्यता का आकर्षण बढ रहा है । मातृभाषा में पढ़ने की सुविधा नहीं होने पर भी केन्द्रिय बोर्ड चाहिये । उसके ही समान आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड की
 
सर्वथा स्वाभाविक है, परन्तु आज सबको, विशेष रूप से संचालकों को, केन्द्रीय बोर्ड की मान्यता का आकर्षण बढ रहा है । मातृभाषा में पढ़ने की सुविधा नहीं होने पर भी केन्द्रिय बोर्ड चाहिये । उसके ही समान आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड की
 
मान्यता का आकर्षण भी बढ रहा है ।
 
मान्यता का आकर्षण भी बढ रहा है ।
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हमारे राष्ट्रीय हीनता बोध का यह इतना मुखर लक्षण है कि इसका खुलासा करने की भी आवश्यकता नहीं है ।
 
हमारे राष्ट्रीय हीनता बोध का यह इतना मुखर लक्षण है कि इसका खुलासा करने की भी आवश्यकता नहीं है ।
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विश्व भर के शिक्षाशास्त्री, समझदार व्यक्ति, देशभक्त लोग कहते हैं कि देश की शिक्षा देश की भाषा में ही होनी चाहिये, व्यक्ति की शिक्षा उसकी मातृभाषा में ही होनी चाहिये । मातृभाषा में शिक्षा के असंख्य लाभ और विदेशी भाषा में शिक्षा लेने की अनेक हानियाँ बताई जाती हैं, अनेक प्रमाण दिये जाते हैं तो भी लोगों पर उनका प्रभाव नहीं होता । लोगों का ही अनुसरण सरकार करती है ।
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विश्व भर के शिक्षाशास्त्री, समझदार व्यक्ति, देशभक्त लोग कहते हैं कि देश की शिक्षा देश की भाषा में ही होनी चाहिये, व्यक्ति की शिक्षा उसकी मातृभाषा में ही होनी चाहिये । मातृभाषा में शिक्षा के असंख्य लाभ और विदेशी भाषा में शिक्षा लेने की अनेक हानियाँ बताई जाती हैं, अनेक प्रमाण दिये जाते हैं तो भी लोगोंं पर उनका प्रभाव नहीं होता । लोगोंं का ही अनुसरण सरकार करती है ।
    
संचालक अंग्रेजी माध्यम का विद्यालय
 
संचालक अंग्रेजी माध्यम का विद्यालय
चलाते हैं क्योंकि लोगों को चाहिये । सरकार अंग्रेजी
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चलाते हैं क्योंकि लोगोंं को चाहिये । सरकार अंग्रेजी
माध्यम का इसलिये समर्थन करती है क्योंकि लोगों को
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माध्यम का इसलिये समर्थन करती है क्योंकि लोगोंं को
चाहिये । जो लोग जानते हैं कि लोगों को चाहिये वह देना
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चाहिये । जो लोग जानते हैं कि लोगोंं को चाहिये वह देना
नहीं होता, लोगों को क्या इष्ट है और क्या नहीं है यह
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नहीं होता, लोगोंं को क्या इष्ट है और क्या नहीं है यह
 
सिखा कर जो इष्ट है वह देना और अनिष्ट है उससे परावृत
 
सिखा कर जो इष्ट है वह देना और अनिष्ट है उससे परावृत
 
करना शिक्षा का काम है वे अंग्रेजी माध्यमका विरोध करते
 
करना शिक्षा का काम है वे अंग्रेजी माध्यमका विरोध करते
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मनोवैज्ञानिक समस्याओं का हल मनोवैज्ञानिक पद्धति से ही हो सकता है इतनी एक बात हमारी समझ में आ जाय तो हमें अनेक उपाय सूझने लगेंगे। परन्तु अभी तो समाज के बौद्धिक वर्ग के लोग ही इस ग्रहण से ग्रस्त हैं।
 
मनोवैज्ञानिक समस्याओं का हल मनोवैज्ञानिक पद्धति से ही हो सकता है इतनी एक बात हमारी समझ में आ जाय तो हमें अनेक उपाय सूझने लगेंगे। परन्तु अभी तो समाज के बौद्धिक वर्ग के लोग ही इस ग्रहण से ग्रस्त हैं।
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मनोवैज्ञानिक पद्धतियाँ क्या होती हैं इसका विस्तृत निरूपण करने का यहाँ औचित्य नहीं है क्योंकि वे असंख्य होती हैं । सामान्य लोगों को भी ये सूझ सकती हैं और सामान्य लोग इसका प्रभाव भी जानते हैं ।  
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मनोवैज्ञानिक पद्धतियाँ क्या होती हैं इसका विस्तृत निरूपण करने का यहाँ औचित्य नहीं है क्योंकि वे असंख्य होती हैं । सामान्य लोगोंं को भी ये सूझ सकती हैं और सामान्य लोग इसका प्रभाव भी जानते हैं ।  
    
विद्यालय यदि ऐसी पद्धतियाँ अपनाना आरम्भ कर दें, इन्हें चालना दें तो हम इन समस्याओं से निजात पा सकते हैं । साहस करने की आवश्यकता है।
 
विद्यालय यदि ऐसी पद्धतियाँ अपनाना आरम्भ कर दें, इन्हें चालना दें तो हम इन समस्याओं से निजात पा सकते हैं । साहस करने की आवश्यकता है।
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अपने मोह को भी लोग तर्कों के आधार पर सही बताने का प्रयास करते हैं । ये सब कुतर्क होते हैं परन्तु वे करते ही रहते हैं । एक से बढकर एक प्रभावी तर्क भी असफल हो जाते हैं और मौन हो जाते हैं ।
 
अपने मोह को भी लोग तर्कों के आधार पर सही बताने का प्रयास करते हैं । ये सब कुतर्क होते हैं परन्तु वे करते ही रहते हैं । एक से बढकर एक प्रभावी तर्क भी असफल हो जाते हैं और मौन हो जाते हैं ।
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शासन स्वयं इस मोह से ग्रस्त है, विश्व विद्यालय, धर्माचार्य, उद्योगक्षेत्र सब इस मोह से ग्रस्त हैं। कभी वे ऐसी भाषा बोलते हैं कि लो, अब तो रिक्षावाले और घरनौकर भी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में भेजना चाहते हैं । मानों अंग्रेजी पढने का अधिकार उनके जैसे श्रेष्ठ लोगों का ही है, रिक्षावालों का या नौकरों का
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शासन स्वयं इस मोह से ग्रस्त है, विश्व विद्यालय, धर्माचार्य, उद्योगक्षेत्र सब इस मोह से ग्रस्त हैं। कभी वे ऐसी भाषा बोलते हैं कि लो, अब तो रिक्षावाले और घरनौकर भी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में भेजना चाहते हैं । मानों अंग्रेजी पढने का अधिकार उनके जैसे श्रेष्ठ लोगोंं का ही है, रिक्षावालों का या नौकरों का
नहीं । “प्रत्युत्त में ये नौकर और उनका पक्ष लेनेवाले राजकीय पक्ष के लोग अथवा समाजसेवी लोग कहते हैं कि बडे पढ़ते हैं तो छोटे क्यों न पढ़ें, उन्हें भी अधिकार है । इस प्रकार वे भी पढ़ते हैं ।' अपराध छोटे लोगों का नहीं है, तथाकथित बडों का ही है ।
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नहीं । “प्रत्युत्त में ये नौकर और उनका पक्ष लेनेवाले राजकीय पक्ष के लोग अथवा समाजसेवी लोग कहते हैं कि बडे पढ़ते हैं तो छोटे क्यों न पढ़ें, उन्हें भी अधिकार है । इस प्रकार वे भी पढ़ते हैं ।' अपराध छोटे लोगोंं का नहीं है, तथाकथित बडों का ही है ।
    
==== अंग्रेजी मनोवैज्ञानिक समस्या है ====
 
==== अंग्रेजी मनोवैज्ञानिक समस्या है ====
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अंग्रेजी के भूत को भगाने के लिये हमारे मानस को रोगमुक्त करने के लिये कुछ इस प्रकार से प्रयास करने होंगे...
 
अंग्रेजी के भूत को भगाने के लिये हमारे मानस को रोगमुक्त करने के लिये कुछ इस प्रकार से प्रयास करने होंगे...
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१. जो लोग स्वयं अंग्रेजी के भूत से परेशान हैं वे इसका उपचार नहीं कर सकते । वे चाहते हैं कि पहले दूसरे लोग अंग्रेजी बोलना बन्द कर दें, बाद में हम भी बन्द कर देंगे । सब बोलते हैं इसलिये हमें भी बोलना पडता है, बाकी हम अंग्रेजी के पक्षधर नहीं हैं। ऐसे लोगों से अंग्रेजी का भूत मुस्कुराता है और अधिक जोर से चिपक जाता है ।
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१. जो लोग स्वयं अंग्रेजी के भूत से परेशान हैं वे इसका उपचार नहीं कर सकते । वे चाहते हैं कि पहले दूसरे लोग अंग्रेजी बोलना बन्द कर दें, बाद में हम भी बन्द कर देंगे । सब बोलते हैं इसलिये हमें भी बोलना पडता है, बाकी हम अंग्रेजी के पक्षधर नहीं हैं। ऐसे लोगोंं से अंग्रेजी का भूत मुस्कुराता है और अधिक जोर से चिपक जाता है ।
    
२. जो लोग मानते हैं कि आज का युवा वर्ग अंग्रेजी ही जानता है, उनके साथ सम्पर्क स्थापित करने के लिये हमें भी अंग्रेजी में व्यवहार
 
२. जो लोग मानते हैं कि आज का युवा वर्ग अंग्रेजी ही जानता है, उनके साथ सम्पर्क स्थापित करने के लिये हमें भी अंग्रेजी में व्यवहार
करना चाहिये । अंग्रेजी बोलकर हम उन्हें अंग्रेजी से मुक्त कर देंगे । उनकी बात सुनकर भी अंग्रेजी का भूत मुस्कुराता है । ऐसे लोगों से वह भागेगा नहीं ।
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करना चाहिये । अंग्रेजी बोलकर हम उन्हें अंग्रेजी से मुक्त कर देंगे । उनकी बात सुनकर भी अंग्रेजी का भूत मुस्कुराता है । ऐसे लोगोंं से वह भागेगा नहीं ।
    
३. अंग्रेजी को नहीं मानने वाले, नहीं चाहने वाले भी
 
३. अंग्रेजी को नहीं मानने वाले, नहीं चाहने वाले भी
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* विद्यालय द्वारा आयोजित भाषण या. निबन्ध प्रतियोगिता में अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों को सहभागी नहीं होने दिया जायेगा । केवल भाषण या निबन्ध प्रतियोगिता में ही क्यों किसी भी समारोह में सहभागी नहीं होने दिया जायेगा ।
 
* विद्यालय द्वारा आयोजित भाषण या. निबन्ध प्रतियोगिता में अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों को सहभागी नहीं होने दिया जायेगा । केवल भाषण या निबन्ध प्रतियोगिता में ही क्यों किसी भी समारोह में सहभागी नहीं होने दिया जायेगा ।
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* रोटरी, जेसीझ जैसे संगठन देशी भाषा भाषी लोगों ने बनाने चाहिये और उसमें अंग्रेजी बोलने वाले लोगों को प्रतिबन्धित करना चाहिये ।  
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* रोटरी, जेसीझ जैसे संगठन देशी भाषा भाषी लोगोंं ने बनाने चाहिये और उसमें अंग्रेजी बोलने वाले लोगोंं को प्रतिबन्धित करना चाहिये ।  
 
भूत को भगाने का सबसे कारगर उपाय उसकी उपेक्षा करना है । उपेक्षा के यहाँ बनाये हैं उससे अधिक अशिष्ट अनेक मार्ग हो सकते हैं । जिसे जो उचित लगे वह अपनाना चाहिये । मुद्दा यह है कि स्वाभिमान मनोवैज्ञानिक तरीके से व्यक्त होना चाहिये, बौद्धिक से काम नहीं चलेगा ।
 
भूत को भगाने का सबसे कारगर उपाय उसकी उपेक्षा करना है । उपेक्षा के यहाँ बनाये हैं उससे अधिक अशिष्ट अनेक मार्ग हो सकते हैं । जिसे जो उचित लगे वह अपनाना चाहिये । मुद्दा यह है कि स्वाभिमान मनोवैज्ञानिक तरीके से व्यक्त होना चाहिये, बौद्धिक से काम नहीं चलेगा ।
    
वस्तुस्थिति यह है कि जिस दिन अमेरिका को पता चल जायेगा कि भारत के लोग अंग्रेजी बोलना नहीं चाहते, अपनी ही भाषा बोलने का आग्रह रखते हैं उसी दिन से अमेरिका के विश्वविद्यालयों में हिन्दी विभाग आरम्भ हो जायेंगे । धार्मिक भाषा के शत्रु और अंग्रेजी से मोहित धार्मिक ही हैं, और कोई नहीं यह समझ लेने की आवश्यकता है ।
 
वस्तुस्थिति यह है कि जिस दिन अमेरिका को पता चल जायेगा कि भारत के लोग अंग्रेजी बोलना नहीं चाहते, अपनी ही भाषा बोलने का आग्रह रखते हैं उसी दिन से अमेरिका के विश्वविद्यालयों में हिन्दी विभाग आरम्भ हो जायेंगे । धार्मिक भाषा के शत्रु और अंग्रेजी से मोहित धार्मिक ही हैं, और कोई नहीं यह समझ लेने की आवश्यकता है ।
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सज्जन, बुद्धिमान, समाजाभिमुख लोगों को इतना कठोर होना अच्छा नहीं लगता । वे इस प्रकार के उपायों को अपनाने को सिद्ध भी नहीं होते और उन्हें मान्यता भी नहीं देते । इसलिये भूत अधिक प्रभावी बनता है । ऐसे सज्जनों के समक्ष कठोर उपाय करने वाले हार जाते हैं और भूत मुस्कुराता है परन्तु सज्जन अपनी सज्जनता छोड़ते ही नहीं । यह अंग्रेजी को परास्त करने के रास्ते में बडा अवरोध है |
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सज्जन, बुद्धिमान, समाजाभिमुख लोगोंं को इतना कठोर होना अच्छा नहीं लगता । वे इस प्रकार के उपायों को अपनाने को सिद्ध भी नहीं होते और उन्हें मान्यता भी नहीं देते । इसलिये भूत अधिक प्रभावी बनता है । ऐसे सज्जनों के समक्ष कठोर उपाय करने वाले हार जाते हैं और भूत मुस्कुराता है परन्तु सज्जन अपनी सज्जनता छोड़ते ही नहीं । यह अंग्रेजी को परास्त करने के रास्ते में बडा अवरोध है |
    
“हमें अंग्रेजी से विरोध नहीं है, अंग्रेजीपन से विरोध है' ऐसा कहनेवाला एक बहुत बडा वर्ग है । यह वर्ग अंग्रेजी माध्यम का विद्यालय चलने का विरोध करता है परन्तु मातृभाषा माध्यम के विद्यालयों में अच्छी अंग्रेजी पढ़ाने का आग्रह करता हैं। इस तर्क में दम है ऐसा लगता है परन्तु यह आभासी तर्क है । इसके चलते इस वर्ग को न अंग्रेजी आती है न वे अंग्रेजी को छोड सकते हैं । भूत ताक में रहता है । ऐसे विद्यालय या तो अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में परिवर्तित हो जाते हैं या तो इनमें प्रवेश की संख्या कम हो जाती है। और उसकी अआप्रतिष्ठा हो जाती है । न ये अंग्रेजी अपना
 
“हमें अंग्रेजी से विरोध नहीं है, अंग्रेजीपन से विरोध है' ऐसा कहनेवाला एक बहुत बडा वर्ग है । यह वर्ग अंग्रेजी माध्यम का विद्यालय चलने का विरोध करता है परन्तु मातृभाषा माध्यम के विद्यालयों में अच्छी अंग्रेजी पढ़ाने का आग्रह करता हैं। इस तर्क में दम है ऐसा लगता है परन्तु यह आभासी तर्क है । इसके चलते इस वर्ग को न अंग्रेजी आती है न वे अंग्रेजी को छोड सकते हैं । भूत ताक में रहता है । ऐसे विद्यालय या तो अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में परिवर्तित हो जाते हैं या तो इनमें प्रवेश की संख्या कम हो जाती है। और उसकी अआप्रतिष्ठा हो जाती है । न ये अंग्रेजी अपना
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७. जिनको लगता है कि ज्ञानविज्ञान की, कानून और
 
७. जिनको लगता है कि ज्ञानविज्ञान की, कानून और
कोपोरेट की, तन्त्रज्ञान और मेनेजमेन्ट की भाषा अंग्रेजी है और इन क्षेत्रों में यश और प्रतिष्ठा प्राप्त करनी है तो अंग्रेजी अनिवार्य है उन लोगों को सावधान होने की आवश्यकता है । और इनसे भी सावधान होने की आवश्यकता है । इन मार्गों से अंग्रेजीयत हमारे ज्ञानक्षेत्र को, समाऊक्षेत्र को, अर्थक्षेत्र को ग्रस्त कर रही है। हम ज्ञानक्षेत्र को धार्मिक बनाना चाहते हैं तो इन क्षेत्रों को भी तो धार्मिक बनाना पडेगा । क्या हमें अभी भी समझना बाकी है कि कोपोरेट क्षेत्र ने देश के अर्थतन्त्र को, विश्वविद्यालयों ने देश के ज्ञानक्षेत्र को और मनेनेजमेन्ट क्षेत्र ने मनुष्य को संसाधन बनाकर सांस्कृतिक क्षेत्र को तहसनहस कर दिया है ? इन क्षेत्रों में अंग्रेजी की प्रतिष्ठा है । बडी बडी यन्त्रस्चना ने मनुष्यों को मजदूर बना दिया, पर्यावरण का नाश कर दिया, उस तन्त्रविज्ञान के लिये हम अंग्रेजी का ज्ञान चाहते हैं । अर्थात्‌ राक्षसों की दुनिया में प्रवेश करने के लिये हम उनकी भाषा चाहते हैं । हम बहाना बनाते हैं कि हम उनके ही शख्र से उन्हें समझाकर, उन्हें जीत कर अपना बना लेंगे । उन्हें जीतकर उन्हें अपना लेने का उद्देश्य तो ठीक है
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कोपोरेट की, तन्त्रज्ञान और मेनेजमेन्ट की भाषा अंग्रेजी है और इन क्षेत्रों में यश और प्रतिष्ठा प्राप्त करनी है तो अंग्रेजी अनिवार्य है उन लोगोंं को सावधान होने की आवश्यकता है । और इनसे भी सावधान होने की आवश्यकता है । इन मार्गों से अंग्रेजीयत हमारे ज्ञानक्षेत्र को, समाऊक्षेत्र को, अर्थक्षेत्र को ग्रस्त कर रही है। हम ज्ञानक्षेत्र को धार्मिक बनाना चाहते हैं तो इन क्षेत्रों को भी तो धार्मिक बनाना पडेगा । क्या हमें अभी भी समझना बाकी है कि कोपोरेट क्षेत्र ने देश के अर्थतन्त्र को, विश्वविद्यालयों ने देश के ज्ञानक्षेत्र को और मनेनेजमेन्ट क्षेत्र ने मनुष्य को संसाधन बनाकर सांस्कृतिक क्षेत्र को तहसनहस कर दिया है ? इन क्षेत्रों में अंग्रेजी की प्रतिष्ठा है । बडी बडी यन्त्रस्चना ने मनुष्यों को मजदूर बना दिया, पर्यावरण का नाश कर दिया, उस तन्त्रविज्ञान के लिये हम अंग्रेजी का ज्ञान चाहते हैं । अर्थात्‌ राक्षसों की दुनिया में प्रवेश करने के लिये हम उनकी भाषा चाहते हैं । हम बहाना बनाते हैं कि हम उनके ही शख्र से उन्हें समझाकर, उन्हें जीत कर अपना बना लेंगे । उन्हें जीतकर उन्हें अपना लेने का उद्देश्य तो ठीक है
 
क्योंकि वे अपने हैं, परन्तु उन्हें जीतने का मार्ग
 
क्योंकि वे अपने हैं, परन्तु उन्हें जीतने का मार्ग
 
ठीक नहीं है यह इतने वर्षों के अनुभव ने सिद्ध कर
 
ठीक नहीं है यह इतने वर्षों के अनुभव ने सिद्ध कर

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