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८. जिन बातों के लिये हमें अंग्रेजी की आवश्यकता लगती है उन बातों के धार्मिक पर्याय निर्माण करना अधिक प्रभावी और अधिक सही उपाय है ।
 
८. जिन बातों के लिये हमें अंग्रेजी की आवश्यकता लगती है उन बातों के धार्मिक पर्याय निर्माण करना अधिक प्रभावी और अधिक सही उपाय है ।
सामर्थ्य के बिना विजय प्राप्त नहीं होती । क्या चिकित्साविज्ञान, तन्त्रविज्ञान, उद्योगतन्त्र, प्रबन्धन धार्मिक भाषा में नहीं सीखा जायेगा । लोग तर्क देते हैं कि इन विषयों की पुस्तकें धार्मिक भाषाओं में उपलब्ध नहीं है। तो इन्हें धार्मिक भाषाओं में लिखने से कौन रोकता है ? क्‍या इतने बडे देश में ऐसे विद्वान नहीं मिलेंगे ? अवश्य मिलेंगे । फिर क्यों नहीं लिखते ? अंग्रेजी में उपलब्ध है फिर कया आवश्यकता है ऐसा हम कहते हैं। धार्मिक भाषाओं में इन विषयों की पारिभाषिक शब्दावलि उपलब्ध नहीं है ऐसा कहते हैं । यह भी मिथ्या तर्क है क्योंकि शब्दावलि रची जा सकती है । धार्मिक भाषाओं की शब्दावलि अतिशय जटिल और कठिन
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सामर्थ्य के बिना विजय प्राप्त नहीं होती । क्या चिकित्साविज्ञान, तन्त्रविज्ञान, उद्योगतन्त्र, प्रबन्धन धार्मिक भाषा में नहीं सीखा जायेगा । लोग तर्क देते हैं कि इन विषयों की पुस्तकें धार्मिक भाषाओं में उपलब्ध नहीं है। तो इन्हें धार्मिक भाषाओं में लिखने से कौन रोकता है ? क्‍या इतने बडे देश में ऐसे विद्वान नहीं मिलेंगे ? अवश्य मिलेंगे । फिर क्यों नहीं लिखते ? अंग्रेजी में उपलब्ध है फिर क्या आवश्यकता है ऐसा हम कहते हैं। धार्मिक भाषाओं में इन विषयों की पारिभाषिक शब्दावलि उपलब्ध नहीं है ऐसा कहते हैं । यह भी मिथ्या तर्क है क्योंकि शब्दावलि रची जा सकती है । धार्मिक भाषाओं की शब्दावलि अतिशय जटिल और कठिन
 
होती है ऐसा कहते हैं । ऐसा कैसे हो सकता है ? यह तो परिचय का प्रश्न है । परिचय बढ़ता जायेगा तो वह सरल और सहज होती जायेगी । हम अनुवाद भी तो कर सकते हैं ।
 
होती है ऐसा कहते हैं । ऐसा कैसे हो सकता है ? यह तो परिचय का प्रश्न है । परिचय बढ़ता जायेगा तो वह सरल और सहज होती जायेगी । हम अनुवाद भी तो कर सकते हैं ।
  

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