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मेरा काम दुनिया के नेताओं को यह समझाना था कि अमेरिका ने दुनिया को लूटकर विश्व साम्राज्य खड़ा करने का जो जाल बिछाया है, उस लूट के खेल में वे नेता भी शामिल हो जायें । आखिर ये सभी नेता कर्ज के जाल में फँस जाते हैं। यह उनकी वफादारी की निश्चितता मानी जाती है। बाद में तो चाहे तब हम हमारी राजकीय, आर्थिक या सेना की जरुरतों के लिए उनके पास निश्चित किया हुआ काम करवा सकते हैं, बदले में वे औद्योगिक क्षेत्र, पॉवर प्लान्ट, एयरपोर्ट आदि अपने देश में स्थापित कर विकास का भ्रम खड़ा करके अपनी राजकीय स्थिति मजबूत करते हैं, परन्तु अमेरिका की इन्जीनीयरिंग और निर्माण कार्य की कम्पनियों के मालिक हमारी कल्पना से भी अधिक धनवान बन जाते हैं।
 
मेरा काम दुनिया के नेताओं को यह समझाना था कि अमेरिका ने दुनिया को लूटकर विश्व साम्राज्य खड़ा करने का जो जाल बिछाया है, उस लूट के खेल में वे नेता भी शामिल हो जायें । आखिर ये सभी नेता कर्ज के जाल में फँस जाते हैं। यह उनकी वफादारी की निश्चितता मानी जाती है। बाद में तो चाहे तब हम हमारी राजकीय, आर्थिक या सेना की जरुरतों के लिए उनके पास निश्चित किया हुआ काम करवा सकते हैं, बदले में वे औद्योगिक क्षेत्र, पॉवर प्लान्ट, एयरपोर्ट आदि अपने देश में स्थापित कर विकास का भ्रम खड़ा करके अपनी राजकीय स्थिति मजबूत करते हैं, परन्तु अमेरिका की इन्जीनीयरिंग और निर्माण कार्य की कम्पनियों के मालिक हमारी कल्पना से भी अधिक धनवान बन जाते हैं।
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आज हम जूनून से चल रही इस हिंसक पद्धति के परिणाम देख सकते हैं। अत्यधिक सम्मान पाने वाले हमारी कम्पनियों के अधिकारी एशिया में गुलाम जितने मामूली वेतन पर अमानवीय स्थिति में लोगों से काम करवाते हैं । तेल कम्पनियाँ जानबूझ कर स्वच्छ नदियों में टोक्सिन डालती है और प्रजाको, प्राणियों को और वनस्पतियों को जानबूझकर मार कर प्राचीन संस्कृति का वंश समाप्त करने का काम करते हैं। दवा कम्पनियाँ एड्स से पीड़ित लाखों अफ्रिकन लोगों को जीवन रक्षक दवायें देने से मना करते हैं। हमारे अपने देश अमेरिका में भी १२० लाख लोग शाम को क्या खाउँगा इस चिन्ता में जीते हैं । उर्जा क्षेत्र में एनरोन और हिसाब के क्षेत्र में एण्डरसन जैसी अप्रामाणिक और लुटेरु कम्पनियाँ पैदा होती हैं । सन १९६० में दुनिया की बस्ती में सबसे अधिक धनवान २०% लोगों की आय सबसे गरीब २०% लोगों की आय की तुलना में ३० गुणा अधिक थी, वह १९९५ में ७८ गुणा अधिक हो गई। अमेरिका ईराक के युद्ध में ८७ अरब डोलर खर्च करता है। इससे आधी रकम में सारी दुनिया की सम्पूर्ण प्रजा को स्वच्छ जल, पर्याप्त भोजन, चिकित्सा सेवायें और आधारभूत शिक्षा दे सकते हैं ऐसा युनाइटेड नेशन्स का मानना है।
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आज हम जूनून से चल रही इस हिंसक पद्धति के परिणाम देख सकते हैं। अत्यधिक सम्मान पाने वाले हमारी कम्पनियों के अधिकारी एशिया में गुलाम जितने मामूली वेतन पर अमानवीय स्थिति में लोगोंं से काम करवाते हैं । तेल कम्पनियाँ जानबूझ कर स्वच्छ नदियों में टोक्सिन डालती है और प्रजाको, प्राणियों को और वनस्पतियों को जानबूझकर मार कर प्राचीन संस्कृति का वंश समाप्त करने का काम करते हैं। दवा कम्पनियाँ एड्स से पीड़ित लाखों अफ्रिकन लोगोंं को जीवन रक्षक दवायें देने से मना करते हैं। हमारे अपने देश अमेरिका में भी १२० लाख लोग शाम को क्या खाउँगा इस चिन्ता में जीते हैं । उर्जा क्षेत्र में एनरोन और हिसाब के क्षेत्र में एण्डरसन जैसी अप्रामाणिक और लुटेरु कम्पनियाँ पैदा होती हैं । सन १९६० में दुनिया की बस्ती में सबसे अधिक धनवान २०% लोगोंं की आय सबसे गरीब २०% लोगोंं की आय की तुलना में ३० गुणा अधिक थी, वह १९९५ में ७८ गुणा अधिक हो गई। अमेरिका ईराक के युद्ध में ८७ अरब डोलर खर्च करता है। इससे आधी रकम में सारी दुनिया की सम्पूर्ण प्रजा को स्वच्छ जल, पर्याप्त भोजन, चिकित्सा सेवायें और आधारभूत शिक्षा दे सकते हैं ऐसा युनाइटेड नेशन्स का मानना है।
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हमें आश्चर्य होता है कि आतंकवादी हम पर हमला क्यों करते हैं ? हम जो व्यवस्थित षडयंत्र चलाते हैं, उसके कारण आतंकवाद जन्म लेता है ऐसा कुछ लोग दोष देंगे। इतनी सीधी सादी बात हो तो अच्छा ही है। षडयंत्रकारी लोगों को ढूँढकर उनका न्याय तौल सकते हैं। परन्तु यह पद्धति षडयंत्र की तुलना में बहुत अधिक भयंकर ऐसी कोई वस्तु से विकसित हो रही है। यह कुछ लोगों की टोली से नहीं चलता, अपितु यह एक विचार या सिद्धान्त से चलता है, जो सनातन सत्य वेदवाक्य की भाँति सर्वत्र स्वीकृत होता है। वह सिद्धान्त यह है।
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हमें आश्चर्य होता है कि आतंकवादी हम पर हमला क्यों करते हैं ? हम जो व्यवस्थित षडयंत्र चलाते हैं, उसके कारण आतंकवाद जन्म लेता है ऐसा कुछ लोग दोष देंगे। इतनी सीधी सादी बात हो तो अच्छा ही है। षडयंत्रकारी लोगोंं को ढूँढकर उनका न्याय तौल सकते हैं। परन्तु यह पद्धति षडयंत्र की तुलना में बहुत अधिक भयंकर ऐसी कोई वस्तु से विकसित हो रही है। यह कुछ लोगोंं की टोली से नहीं चलता, अपितु यह एक विचार या सिद्धान्त से चलता है, जो सनातन सत्य वेदवाक्य की भाँति सर्वत्र स्वीकृत होता है। वह सिद्धान्त यह है।
    
“कोई भी आर्थिक विकास मानव जाति के लिए लाभदायी है। जैसे आर्थिक विकास अधिक, उतना ही अधिक लाभ ।" इस सिद्धान्त में से एक दूसरा फलित सिद्धान्त खड़ा हुआ है । “जो लोग इस आर्थिक विकास की अग्नि को प्रज्वलित रखने में अगुवा हैं, उन्हें गौरव और सम्पत्ति मिलनी चाहिए। जबकि जो लोग सामान्य मनुष्य के रुप में जन्मे हैं, वे सभी शोषण के योग्य हैं।"
 
“कोई भी आर्थिक विकास मानव जाति के लिए लाभदायी है। जैसे आर्थिक विकास अधिक, उतना ही अधिक लाभ ।" इस सिद्धान्त में से एक दूसरा फलित सिद्धान्त खड़ा हुआ है । “जो लोग इस आर्थिक विकास की अग्नि को प्रज्वलित रखने में अगुवा हैं, उन्हें गौरव और सम्पत्ति मिलनी चाहिए। जबकि जो लोग सामान्य मनुष्य के रुप में जन्मे हैं, वे सभी शोषण के योग्य हैं।"
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यह सिद्धान्त अत्यन्त भयानक है। हम जानते हैं कि अनेक देशों में आर्थिक विकास उस देश के मुठ्ठी भर धनवानों का लाभ करता हैं। जबकि अधिकांश प्रजा के लिए वे अत्यन्त खराब स्थिति पैदा करते हैं। पूर्व वर्णित सिद्धान्त की मान्यता ऐसी है कि इस पद्धति से चलने वाले उद्योगों के प्रमुखों को विशेष दर्जा मिलना चाहिए। इस प्रावधान के कारण इसका असर अधिक मजबूत बनता जाता है। इस मान्यता में ही हमारी वर्तमान की अनेक समस्याओं की जड़ विद्यमान है। दुनिया को लूटने के भाँति-भाँति के षडयंत्र पैदा होने का कारण भी यह मान्यता ही है। जब धन के लोभ को बडा पुरस्कार मिलता है तब लोभ स्वयं समाज को बिगाड़ने वाला कारक बन जाता है। जब हम पृथ्वी के संसाधनों के बेतहाशा उपभोग का सन्त के जैसा गुणगान करेंगे, जब हम अपने बालकों को असाधरण सुखी जीवन जीने की स्पर्धा करना सिखायेंगे और जब हम अधिकांश लोगों को एक धनवान छोटे समूह के गुलाम के रुप में तुच्छ मानेंगे हैं तब हम स्वयं मुश्किलों को निमन्त्रण ही देंगे।  
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यह सिद्धान्त अत्यन्त भयानक है। हम जानते हैं कि अनेक देशों में आर्थिक विकास उस देश के मुठ्ठी भर धनवानों का लाभ करता हैं। जबकि अधिकांश प्रजा के लिए वे अत्यन्त खराब स्थिति पैदा करते हैं। पूर्व वर्णित सिद्धान्त की मान्यता ऐसी है कि इस पद्धति से चलने वाले उद्योगों के प्रमुखों को विशेष दर्जा मिलना चाहिए। इस प्रावधान के कारण इसका असर अधिक मजबूत बनता जाता है। इस मान्यता में ही हमारी वर्तमान की अनेक समस्याओं की जड़ विद्यमान है। दुनिया को लूटने के भाँति-भाँति के षडयंत्र पैदा होने का कारण भी यह मान्यता ही है। जब धन के लोभ को बडा पुरस्कार मिलता है तब लोभ स्वयं समाज को बिगाड़ने वाला कारक बन जाता है। जब हम पृथ्वी के संसाधनों के बेतहाशा उपभोग का सन्त के जैसा गुणगान करेंगे, जब हम अपने बालकों को असाधरण सुखी जीवन जीने की स्पर्धा करना सिखायेंगे और जब हम अधिकांश लोगोंं को एक धनवान छोटे समूह के गुलाम के रुप में तुच्छ मानेंगे हैं तब हम स्वयं मुश्किलों को निमन्त्रण ही देंगे।  
    
वैश्विक साम्राज्य खड़ा करने के पागलपन में कोर्पोरेशन, बैंक और सरकार (ये सब मिल कर कोर्पोरेटोक्रेसी) स्वयं आर्थिक और राजकीय प्रभाव और दबाव को उपयोग में लेकर जैसा ऊपर बताया है, वह गलत सिद्धान्त और उसमें से फलित होने वाले उपसिद्धान्त को ही अपने स्कूलों में पढ़ाया जाये, व्यापार में यही प्रचलित रहे और मीडिया में भी इसी के गुणगान गाये जायें, इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। यह कोर्पोरेटोक्रेसी अर्थात् कम्पनीशाही को हम खींच कर इस स्तर पर ले आये हैं कि हमारी वैश्विक संस्कृति एक राक्षसी मशीन बन गई है, जो हमेशा अधिक से अधिक ईंधन माँगती है, यहाँ तक कि वह सारी वस्तुएँ खा जायें और हमारा ही नाश करे । यह कोर्पोरेटोक्रेसी का सबसे महत्त्वपूर्ण काम इस पद्धति को लगातार मजबूत करते रहना और उसको फैलाना है। इस काम के लिए मेरे जैसे आर्थिक हत्यारों को कल्पना से भी परे भारी वेतन दिया जाता है । यह सब होते हुए भी हम जहाँ कमजोर पड़ते हैं, वहाँ सच में खूनी गुण्डों को काम सौंप देते हैं और वे भी अगर काम न कर पायें तो सेना द्वारा आक्रमण करवा दिया जाता है।
 
वैश्विक साम्राज्य खड़ा करने के पागलपन में कोर्पोरेशन, बैंक और सरकार (ये सब मिल कर कोर्पोरेटोक्रेसी) स्वयं आर्थिक और राजकीय प्रभाव और दबाव को उपयोग में लेकर जैसा ऊपर बताया है, वह गलत सिद्धान्त और उसमें से फलित होने वाले उपसिद्धान्त को ही अपने स्कूलों में पढ़ाया जाये, व्यापार में यही प्रचलित रहे और मीडिया में भी इसी के गुणगान गाये जायें, इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। यह कोर्पोरेटोक्रेसी अर्थात् कम्पनीशाही को हम खींच कर इस स्तर पर ले आये हैं कि हमारी वैश्विक संस्कृति एक राक्षसी मशीन बन गई है, जो हमेशा अधिक से अधिक ईंधन माँगती है, यहाँ तक कि वह सारी वस्तुएँ खा जायें और हमारा ही नाश करे । यह कोर्पोरेटोक्रेसी का सबसे महत्त्वपूर्ण काम इस पद्धति को लगातार मजबूत करते रहना और उसको फैलाना है। इस काम के लिए मेरे जैसे आर्थिक हत्यारों को कल्पना से भी परे भारी वेतन दिया जाता है । यह सब होते हुए भी हम जहाँ कमजोर पड़ते हैं, वहाँ सच में खूनी गुण्डों को काम सौंप देते हैं और वे भी अगर काम न कर पायें तो सेना द्वारा आक्रमण करवा दिया जाता है।
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मैं जब आर्थिक हत्यारे के रूप में काम करता था, तब मेरे जैसे लोग संख्या में बहुत कम थे। अब तो आर्थिक हत्यारे बहुत बड़ी संख्या में रखे जाते हैं । बड़े बड़े छलना भरे पदों के नाम बहुत सुन्दर सुन्दर रखे जाते हैं। और वे मोनसेन्टो, जनरल इलेक्ट्रीक, नाइके, जनरल मोटर्स, वोलमार्ट जैसी लगभग दुनियाँ की सभी विशाल कम्पनियों में काम करते हैं । “आर्थिक हत्यारे की स्वीकारोक्ति" की यह पुस्तक मुझ पर जितनी लागू होती है, उतनी ही उन सभी कम्पनियों में काम करने वाले आर्थिक हत्यारों को भी लागू  होती है। यह सच्ची वास्तविकता है। यह सब तुम्हें भी लागू होता है । क्यों कि तुम्हारा शोषण करके ही अमेरिका का वैश्विक साम्राज्य बना है। इतिहास हमें कहता है कि अगर इसे हम बदलेंगे नहीं तो इतना पक्का मानना कि बहुत ही खतरनाक परिणाम आने वाले हैं। ऐसे साम्राज्य स्थायी रुप से कभी नहीं रहते । प्रत्येक ऐसे साम्राज्य को बहुत बुरी तरह से बर्बाद किया गया है । हर ऐसा साम्राज्य बहुत बुरे ढंग से नष्ट हुआ है। अपने साम्राज्यवाद का विस्तार करने के प्रायसों में वे अनेक संस्कृतियों का नाश करते हैं और अन्त में उनका स्वयं का भी पतन होता है। दूसरे सभी देशों का शोषण करके मात्र एक ही देश आबाद नहीं रह सकता। मुझे तो यह लगता है कि हम सब निश्चित ही इतना तो समझते ही होंगे कि यह आर्थिक तंत्र हमें किस तरह लूट रहे हैं और प्राकृतिक सम्पत्तियों को लूटने का कभी सन्तोष न हो, ऐसी बड़ी भूख उत्पन्न करते हैं। और अन्त में उसमें से गुलामी को मजबूत करते हैं, अतः हमें इसे नहीं चलाना चाहिए। जिस व्यवस्था में थोड़े लोग ही समृद्धि मे लोटते हों और अरबों मनुष्य गरीबी, प्रदूषण और हिंसा में डूब कर मर रहे हों, उस व्यवस्था में हमें क्या करना चाहिए इसकी समीक्षा हम अवश्य करें ।
 
मैं जब आर्थिक हत्यारे के रूप में काम करता था, तब मेरे जैसे लोग संख्या में बहुत कम थे। अब तो आर्थिक हत्यारे बहुत बड़ी संख्या में रखे जाते हैं । बड़े बड़े छलना भरे पदों के नाम बहुत सुन्दर सुन्दर रखे जाते हैं। और वे मोनसेन्टो, जनरल इलेक्ट्रीक, नाइके, जनरल मोटर्स, वोलमार्ट जैसी लगभग दुनियाँ की सभी विशाल कम्पनियों में काम करते हैं । “आर्थिक हत्यारे की स्वीकारोक्ति" की यह पुस्तक मुझ पर जितनी लागू होती है, उतनी ही उन सभी कम्पनियों में काम करने वाले आर्थिक हत्यारों को भी लागू  होती है। यह सच्ची वास्तविकता है। यह सब तुम्हें भी लागू होता है । क्यों कि तुम्हारा शोषण करके ही अमेरिका का वैश्विक साम्राज्य बना है। इतिहास हमें कहता है कि अगर इसे हम बदलेंगे नहीं तो इतना पक्का मानना कि बहुत ही खतरनाक परिणाम आने वाले हैं। ऐसे साम्राज्य स्थायी रुप से कभी नहीं रहते । प्रत्येक ऐसे साम्राज्य को बहुत बुरी तरह से बर्बाद किया गया है । हर ऐसा साम्राज्य बहुत बुरे ढंग से नष्ट हुआ है। अपने साम्राज्यवाद का विस्तार करने के प्रायसों में वे अनेक संस्कृतियों का नाश करते हैं और अन्त में उनका स्वयं का भी पतन होता है। दूसरे सभी देशों का शोषण करके मात्र एक ही देश आबाद नहीं रह सकता। मुझे तो यह लगता है कि हम सब निश्चित ही इतना तो समझते ही होंगे कि यह आर्थिक तंत्र हमें किस तरह लूट रहे हैं और प्राकृतिक सम्पत्तियों को लूटने का कभी सन्तोष न हो, ऐसी बड़ी भूख उत्पन्न करते हैं। और अन्त में उसमें से गुलामी को मजबूत करते हैं, अतः हमें इसे नहीं चलाना चाहिए। जिस व्यवस्था में थोड़े लोग ही समृद्धि मे लोटते हों और अरबों मनुष्य गरीबी, प्रदूषण और हिंसा में डूब कर मर रहे हों, उस व्यवस्था में हमें क्या करना चाहिए इसकी समीक्षा हम अवश्य करें ।
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हम 'आर्थिक हत्यारे' वैश्विक साम्राज्य खड़ा करते हैं। हम सब बहुत सज्जन स्त्री-पुरुष हैं, जो सब अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं का उपयोग करके दूसरे देशों के लिए ऐसी कठिन स्थिति पैदा करते हैं कि उसमें दूसरे देश  हमारी कोर्पोरेटोक्रेसी अर्थात् विशाल कम्पनियों, बैंको और हमारी सरकार के गुलाम बन जाय । हमारे माफिया सहभागीदारों की तरह हमें आर्थिक हत्यारे लालच देते हैं । देश में विकास के नाम पर बिजली के केन्द्र, हाइवे, मार्ग, बन्दरगाह, एयरपोर्ट और औद्योगिक क्षेत्रों को विकसित करने के लिए ऋण देते हैं । इन सभी ऋणों के साथ शर्त होती है कि केवल हमारे देश की इंजिनीयरिंग और निर्माण कार्य करने वाली कम्पनियों को ही वह ठेका देना होगा, अर्थात् जो ऋण देंगे उसके अधिकांश भाग की राशि अमेरिका से बाहर कभी नहीं जाती। लोगों के ये पैसे वाशिंग्टन की बैंकों में से न्यूयार्क, हस्टन और सान्फ्रान्सीस्को की इंजिनीयरिंग ऑफिसों में मात्र ट्रान्सफर होते है । परन्तु ऋण लेने वाले देश तो ऋण की सारी रकम तथा उस पर लगने वाला व्याज भी चुकाने को बाध्य हो जाते हैं, और इस प्रकार कर्ज में डूब जाते हैं। अगर आर्थिक हत्यारा पूर्ण रूप से सफल होता है तो उस देश को इतना बड़ा ऋण दे दिया जाता है कि लेने वाला देश इतनी बड़ी राशि कभी भी चुका न सके और कुछ वर्षों के बाद ही ऋण और ब्याज की किश्त अदा न कर पाये इस स्थिति में आ जाता है। ऐसी लाचार स्थिति में माफियों की तरह हम पूरा लाभ उठाते हैं। बाद में हम उस देश में पुलिस थाना स्थापित करने की माँग करते हैं जिससे तुम्हारी प्राकृतिक सम्पदा-पेट्रोलियम, खनिज आदि ले सकें। और वह कर्ज तो वैसा का वैसा खड़ा ही रहता है। इस तरह देश को गुलाम बनाते हैं और हमारा वैश्विक साम्राज्य बढ़ता हैं।
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हम 'आर्थिक हत्यारे' वैश्विक साम्राज्य खड़ा करते हैं। हम सब बहुत सज्जन स्त्री-पुरुष हैं, जो सब अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं का उपयोग करके दूसरे देशों के लिए ऐसी कठिन स्थिति पैदा करते हैं कि उसमें दूसरे देश  हमारी कोर्पोरेटोक्रेसी अर्थात् विशाल कम्पनियों, बैंको और हमारी सरकार के गुलाम बन जाय । हमारे माफिया सहभागीदारों की तरह हमें आर्थिक हत्यारे लालच देते हैं । देश में विकास के नाम पर बिजली के केन्द्र, हाइवे, मार्ग, बन्दरगाह, एयरपोर्ट और औद्योगिक क्षेत्रों को विकसित करने के लिए ऋण देते हैं । इन सभी ऋणों के साथ शर्त होती है कि केवल हमारे देश की इंजिनीयरिंग और निर्माण कार्य करने वाली कम्पनियों को ही वह ठेका देना होगा, अर्थात् जो ऋण देंगे उसके अधिकांश भाग की राशि अमेरिका से बाहर कभी नहीं जाती। लोगोंं के ये पैसे वाशिंग्टन की बैंकों में से न्यूयार्क, हस्टन और सान्फ्रान्सीस्को की इंजिनीयरिंग ऑफिसों में मात्र ट्रान्सफर होते है । परन्तु ऋण लेने वाले देश तो ऋण की सारी रकम तथा उस पर लगने वाला व्याज भी चुकाने को बाध्य हो जाते हैं, और इस प्रकार कर्ज में डूब जाते हैं। अगर आर्थिक हत्यारा पूर्ण रूप से सफल होता है तो उस देश को इतना बड़ा ऋण दे दिया जाता है कि लेने वाला देश इतनी बड़ी राशि कभी भी चुका न सके और कुछ वर्षों के बाद ही ऋण और ब्याज की किश्त अदा न कर पाये इस स्थिति में आ जाता है। ऐसी लाचार स्थिति में माफियों की तरह हम पूरा लाभ उठाते हैं। बाद में हम उस देश में पुलिस थाना स्थापित करने की माँग करते हैं जिससे तुम्हारी प्राकृतिक सम्पदा-पेट्रोलियम, खनिज आदि ले सकें। और वह कर्ज तो वैसा का वैसा खड़ा ही रहता है। इस तरह देश को गुलाम बनाते हैं और हमारा वैश्विक साम्राज्य बढ़ता हैं।
    
मैं और मेरे जैसे आर्थिक हत्यारों ने ईक्वाडोर (दक्षिण अमेरिका का देश) में गत ३५ वर्षों में आधुनिक अर्थशास्त्र, बैंक और इंजिनीयरिंग के विकास के नाम पर जो काम किया उससे गरीबी जो ५०% थी, वह ७०% हुई, कुल कर्ज २८ करोड़ डालर था वह १६०० करोड़ डॉलर हुआ, बेकारी १५% थी वह बढ़कर ७०% हुई, राष्ट्रीय सम्पत्ति का २०% गरीबों पर खर्च होता था, वह घटकर ६% रह गया ! ३५ वर्ष पहले शुद्ध नदी, शुद्ध पानी आदि था वह गन्दे गटर में बदल गया, क्योंकि ऑयल कम्पनियाँ प्रतिदिन ४० लाख गेलन गन्दा, तेल वाला और केन्सरयुक्त पानी इन स्वच्छ नदियों में डालती थीं। इन कम्पनियों ने ३५० खदानें खोदकर खुली छोड़ दीं, जिनमें मनुष्य और पशु गिरकर मरते रहते हैं।   
 
मैं और मेरे जैसे आर्थिक हत्यारों ने ईक्वाडोर (दक्षिण अमेरिका का देश) में गत ३५ वर्षों में आधुनिक अर्थशास्त्र, बैंक और इंजिनीयरिंग के विकास के नाम पर जो काम किया उससे गरीबी जो ५०% थी, वह ७०% हुई, कुल कर्ज २८ करोड़ डालर था वह १६०० करोड़ डॉलर हुआ, बेकारी १५% थी वह बढ़कर ७०% हुई, राष्ट्रीय सम्पत्ति का २०% गरीबों पर खर्च होता था, वह घटकर ६% रह गया ! ३५ वर्ष पहले शुद्ध नदी, शुद्ध पानी आदि था वह गन्दे गटर में बदल गया, क्योंकि ऑयल कम्पनियाँ प्रतिदिन ४० लाख गेलन गन्दा, तेल वाला और केन्सरयुक्त पानी इन स्वच्छ नदियों में डालती थीं। इन कम्पनियों ने ३५० खदानें खोदकर खुली छोड़ दीं, जिनमें मनुष्य और पशु गिरकर मरते रहते हैं।   
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अकेले ईक्वाडोर की यह दशा नहीं है। हम आर्थिक हत्यारों ने जिन जिन देशों को अमेरिकन वैश्विक साम्राज्य का गुलाम बना दिया है उन सभी देशों का यही हाल है। तीसरे विश्व का कर्ज बढ़कर २५०० अरब डॉलर पहुँच गया है। और कर्ज का ब्याज प्रति वर्ष ३७५ अरब डॉलर होता है उसमें से यह ब्याज की रकम २० गुणा है ! अभी (२००४) दुनिया की आधी बस्ती दैनिक दो डॉलर से भी कम ही कमाती है। इतनी कमाई तो १९७० में भी थी। परन्तु अभी तीसरे विश्व के केवल एक प्रतिशत लोग अपने देश की कुल वित्तीय समृद्धि तथा सम्पत्तियों का ७० से ९०% हिस्सा रखते हैं।  
 
अकेले ईक्वाडोर की यह दशा नहीं है। हम आर्थिक हत्यारों ने जिन जिन देशों को अमेरिकन वैश्विक साम्राज्य का गुलाम बना दिया है उन सभी देशों का यही हाल है। तीसरे विश्व का कर्ज बढ़कर २५०० अरब डॉलर पहुँच गया है। और कर्ज का ब्याज प्रति वर्ष ३७५ अरब डॉलर होता है उसमें से यह ब्याज की रकम २० गुणा है ! अभी (२००४) दुनिया की आधी बस्ती दैनिक दो डॉलर से भी कम ही कमाती है। इतनी कमाई तो १९७० में भी थी। परन्तु अभी तीसरे विश्व के केवल एक प्रतिशत लोग अपने देश की कुल वित्तीय समृद्धि तथा सम्पत्तियों का ७० से ९०% हिस्सा रखते हैं।  
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हम (२००४ में) सुन्दर नदी के किनारे प्रवास कर रहे थे, वहाँ नदी के मध्य में राक्षसी दिवार के रूप में खड़ा हुआ बाँध आया । इस बाँध के पानी से १५६ मेगावट का हाइड्रोलेक्ट्रिक पॉवर प्रोजेक्ट चलता था। इस की बिजली बड़े उद्योगों में उपयोग ली जाती थी। जिनसे ईक्वाडोर के मुठ्ठी भर मनुष्य समृद्ध होते थे और नदी के किनारे बसे हुए किसान और स्थानीय लोगों के अकथ्य दुःखों का कारण यह बाँध था । यह हाइड्रोलेक्ट्रिक प्लान्ट और ऐसे दूसरे अनेक प्रोजेक्ट मेरे और मेरे जैसे आर्थिक हत्यारों के प्रयत्नों से विकसित हुए थे। ऐसे प्रोजेक्टों के कारण ही अमेरिकी वैश्विक साम्राज्य में ईक्वाडोर हस्तक बना है। इसके कारण ही स्थानीय प्रजाएँ हमारी तेल कम्पनियों के सामने युद्ध छेड़ने की धमकियाँ देती हैं ।  
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हम (२००४ में) सुन्दर नदी के किनारे प्रवास कर रहे थे, वहाँ नदी के मध्य में राक्षसी दिवार के रूप में खड़ा हुआ बाँध आया । इस बाँध के पानी से १५६ मेगावट का हाइड्रोलेक्ट्रिक पॉवर प्रोजेक्ट चलता था। इस की बिजली बड़े उद्योगों में उपयोग ली जाती थी। जिनसे ईक्वाडोर के मुठ्ठी भर मनुष्य समृद्ध होते थे और नदी के किनारे बसे हुए किसान और स्थानीय लोगोंं के अकथ्य दुःखों का कारण यह बाँध था । यह हाइड्रोलेक्ट्रिक प्लान्ट और ऐसे दूसरे अनेक प्रोजेक्ट मेरे और मेरे जैसे आर्थिक हत्यारों के प्रयत्नों से विकसित हुए थे। ऐसे प्रोजेक्टों के कारण ही अमेरिकी वैश्विक साम्राज्य में ईक्वाडोर हस्तक बना है। इसके कारण ही स्थानीय प्रजाएँ हमारी तेल कम्पनियों के सामने युद्ध छेड़ने की धमकियाँ देती हैं ।  
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आर्थिक हत्यारों के द्वारा स्थापित प्रोजेक्टों के कारण आज ईक्वाडोर विदेशी कर्ज में नष्ट हो गया है। परिणाम स्वरूप उसके राष्ट्रीय बजट का अधिकांश भाग कर्ज चुकता करने में ही चला जाता है। और अपने देश में भयानक गरीबी में लिपटे हुए करोड़ों लोगों के लिए उपयोग करने के स्थान पर कर्ज की भरपाई करने में ही सारा राष्ट्रीय बजट चला जाता है । ईक्वाडोर के लिए अब एक मात्र मार्ग यह है कि कर्ज के बदले में तेल कम्पनियों को प्राकृतिक जंगल ही बेच दिये जाये, वास्तव में आर्थिक हत्यारों की ईक्वाडोर पर सबसे पहली नजर पड़ी उसका मुख्य कारण यही था कि एमेजोन प्रदेश के नीचे तेल का समृद्ध भंडार पड़ा हुआ है, वह अरब राष्ट्रों के तेल भंडारों जितना ही है, उसे हड़प लेना ही मुख्य उद्देश्य था । दुनिया भर में ईक्वाडोर में से प्रति १०० डॉलर के तेल में से ७५ डॉलर तो तेल कम्पनियाँ ही ले जाती हैं। शेष बचे २५ डॉलर में से विदेशी कर्ज की भरपाई करने में १९ डॉलर चले जाते हैं । बाकी बचे ६ डॉलर में से फौज और सरकारी खर्च निकालने के बाद बेचारे गरीब मनुष्य की प्रगति, स्वास्थ्य एवं शिक्षा के लिए केवल ढाई डॉलर मुश्किल से बचता है । इस तरह प्रति १०० डॉलर का तेल ईक्वाडोर में से निकाल लेने में जिसे पैसों की सख्त जरुरत है, जिसकी जिन्दगी बाँध के कारण, तेल के लिये खुदाई के कारण तथा पाइपलाइन के कारण बर्बाद हुई है और जो पर्याप्त भोजन और स्वच्छ पानी के बिना मर रहे हैं, उनके लिए मुश्किल से ढाई डॉलर रकम बचती है।
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आर्थिक हत्यारों के द्वारा स्थापित प्रोजेक्टों के कारण आज ईक्वाडोर विदेशी कर्ज में नष्ट हो गया है। परिणाम स्वरूप उसके राष्ट्रीय बजट का अधिकांश भाग कर्ज चुकता करने में ही चला जाता है। और अपने देश में भयानक गरीबी में लिपटे हुए करोड़ों लोगोंं के लिए उपयोग करने के स्थान पर कर्ज की भरपाई करने में ही सारा राष्ट्रीय बजट चला जाता है । ईक्वाडोर के लिए अब एक मात्र मार्ग यह है कि कर्ज के बदले में तेल कम्पनियों को प्राकृतिक जंगल ही बेच दिये जाये, वास्तव में आर्थिक हत्यारों की ईक्वाडोर पर सबसे पहली नजर पड़ी उसका मुख्य कारण यही था कि एमेजोन प्रदेश के नीचे तेल का समृद्ध भंडार पड़ा हुआ है, वह अरब राष्ट्रों के तेल भंडारों जितना ही है, उसे हड़प लेना ही मुख्य उद्देश्य था । दुनिया भर में ईक्वाडोर में से प्रति १०० डॉलर के तेल में से ७५ डॉलर तो तेल कम्पनियाँ ही ले जाती हैं। शेष बचे २५ डॉलर में से विदेशी कर्ज की भरपाई करने में १९ डॉलर चले जाते हैं । बाकी बचे ६ डॉलर में से फौज और सरकारी खर्च निकालने के बाद बेचारे गरीब मनुष्य की प्रगति, स्वास्थ्य एवं शिक्षा के लिए केवल ढाई डॉलर मुश्किल से बचता है । इस तरह प्रति १०० डॉलर का तेल ईक्वाडोर में से निकाल लेने में जिसे पैसों की सख्त जरुरत है, जिसकी जिन्दगी बाँध के कारण, तेल के लिये खुदाई के कारण तथा पाइपलाइन के कारण बर्बाद हुई है और जो पर्याप्त भोजन और स्वच्छ पानी के बिना मर रहे हैं, उनके लिए मुश्किल से ढाई डॉलर रकम बचती है।
    
ये सभी लोग - ईक्वाडोर में लाखों और पूरी दुनियाँ में करोड़ों लोग - संभावित आतंकवादी हैं। ये कोई साम्यवादी नहीं हैं या अराजकवादी नहीं हैं और मूल रुपसे अनिष्ट लोग नहीं है, परन्तु वे अन्याय से पूर्णतया हताश हो चुके हैं।
 
ये सभी लोग - ईक्वाडोर में लाखों और पूरी दुनियाँ में करोड़ों लोग - संभावित आतंकवादी हैं। ये कोई साम्यवादी नहीं हैं या अराजकवादी नहीं हैं और मूल रुपसे अनिष्ट लोग नहीं है, परन्तु वे अन्याय से पूर्णतया हताश हो चुके हैं।
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हम इण्डोनेशिया में काम करते थे, तब हमें इण्डोनेशिया की प्रजा का भला करने के लिए नहीं अपितु उनका धन लूट लेने के लोभ में भेजा जाता था । मेरे साथी प्रोफेसर आदि को मेक्रो इकोनोमिक्स (जंगी प्रोजेक्ट आदि) का वास्तविक परिणाम क्या आता है, इसका विशेष ज्ञान नहीं था। अनेक किस्सों में जंगी प्रोजेक्टों के अमल के कारण समाज में आर्थिक पिरामिड में जो उसकी नोंक पर बैठा है वह सबसे अधिक धनवान बनता है। और जो नीचे तल में बैठा है, उसे और अधिक दबाने का काम ही वह करता है। इस वास्तविकता का ख्याल मेरे साथियों को नहीं था । मैं विचार करता रहता था कि किसी दिन तो मैं यह सारा षड़यन्त्र खोल कर रख दूँगा।
 
हम इण्डोनेशिया में काम करते थे, तब हमें इण्डोनेशिया की प्रजा का भला करने के लिए नहीं अपितु उनका धन लूट लेने के लोभ में भेजा जाता था । मेरे साथी प्रोफेसर आदि को मेक्रो इकोनोमिक्स (जंगी प्रोजेक्ट आदि) का वास्तविक परिणाम क्या आता है, इसका विशेष ज्ञान नहीं था। अनेक किस्सों में जंगी प्रोजेक्टों के अमल के कारण समाज में आर्थिक पिरामिड में जो उसकी नोंक पर बैठा है वह सबसे अधिक धनवान बनता है। और जो नीचे तल में बैठा है, उसे और अधिक दबाने का काम ही वह करता है। इस वास्तविकता का ख्याल मेरे साथियों को नहीं था । मैं विचार करता रहता था कि किसी दिन तो मैं यह सारा षड़यन्त्र खोल कर रख दूँगा।
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दुनियाँ का चित्र बदल डालने का निर्णय जो लोग लेते थे ऐसे बड़े बड़े लोगों के सम्पर्क में, मैं जैसे जैसे आया वैसे वैसे उनकी शक्ति और उनके ध्येय के विषय में मैं नास्तिक और निराशा वादी बनता गया ।
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दुनियाँ का चित्र बदल डालने का निर्णय जो लोग लेते थे ऐसे बड़े बड़े लोगोंं के सम्पर्क में, मैं जैसे जैसे आया वैसे वैसे उनकी शक्ति और उनके ध्येय के विषय में मैं नास्तिक और निराशा वादी बनता गया ।
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युद्धों के लिए शस्त्रों के थोक उत्पादन से किसे लाभ होता है। नदियों के ऊपर बाँध बनाने से या देश का पर्यावरण और संस्कृति का नाश करने से किसे लाभ होता है इस विषय में मुझे आश्चर्य होने लगा । आधा-अधूरा खाने के लिए, प्रदूषित पानी और समाप्त न होने वाले रोगों से लाखों - लाखों लोगों की मृत्यु होती है। इससे किसको लाभ होता है, इसका भी मुझे आश्चर्य लगने लगा । धीरे धीरे मुझे समझ में आने लगा कि लम्बी अवधि में तो किसी को लाभ नहीं, परन्तु अल्प अवधि में पिरामिड़ के शिखर पर बैठे मेरे जैसे अथवा मेरे बोस को लाभ जरुर होता है।
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युद्धों के लिए शस्त्रों के थोक उत्पादन से किसे लाभ होता है। नदियों के ऊपर बाँध बनाने से या देश का पर्यावरण और संस्कृति का नाश करने से किसे लाभ होता है इस विषय में मुझे आश्चर्य होने लगा । आधा-अधूरा खाने के लिए, प्रदूषित पानी और समाप्त न होने वाले रोगों से लाखों - लाखों लोगोंं की मृत्यु होती है। इससे किसको लाभ होता है, इसका भी मुझे आश्चर्य लगने लगा । धीरे धीरे मुझे समझ में आने लगा कि लम्बी अवधि में तो किसी को लाभ नहीं, परन्तु अल्प अवधि में पिरामिड़ के शिखर पर बैठे मेरे जैसे अथवा मेरे बोस को लाभ जरुर होता है।
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जहाँ जहाँ पूँजीवादी पद्धतियाँ सफल होती हैं, वहाँ एक प्रकार की नौकरशाही काम करती है, जिनमें सबसे ऊपर बैठे हुए मुठ्ठीभर लोग अपने नीचे काम करने वाले लोगों से सख्त आदेशों के द्वारा निश्चित काम करवाते हैं, और वे, उनके नीचे काम करने वालों से, ऐसा करते करते बिल्कुल नीचे तल में बैठे लाखों, जिन्हें आर्थिक गुलाम कह सकें ऐसे काम करने वालों की जंगी फौज को नियन्त्रण में रखते हैं । आखिर मुझे पक्का विश्वास हो गया कि हम इस पद्धति को ही प्रोत्साहन देते हैं। और पूँजीवादी पिरामिड़ के शिखर पर अपने लोगों को बिठाकर यह सम्पूर्ण पद्धति इस पूरी दुनिया में लागू करते हैं । यह साम्राज्यवादी अभियान ही अधिकांश युद्ध, भूखमरी, प्रदूषण और प्रजा का निकन्दन आदि का मुख्य कारण है।
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जहाँ जहाँ पूँजीवादी पद्धतियाँ सफल होती हैं, वहाँ एक प्रकार की नौकरशाही काम करती है, जिनमें सबसे ऊपर बैठे हुए मुठ्ठीभर लोग अपने नीचे काम करने वाले लोगोंं से सख्त आदेशों के द्वारा निश्चित काम करवाते हैं, और वे, उनके नीचे काम करने वालों से, ऐसा करते करते बिल्कुल नीचे तल में बैठे लाखों, जिन्हें आर्थिक गुलाम कह सकें ऐसे काम करने वालों की जंगी फौज को नियन्त्रण में रखते हैं । आखिर मुझे पक्का विश्वास हो गया कि हम इस पद्धति को ही प्रोत्साहन देते हैं। और पूँजीवादी पिरामिड़ के शिखर पर अपने लोगोंं को बिठाकर यह सम्पूर्ण पद्धति इस पूरी दुनिया में लागू करते हैं । यह साम्राज्यवादी अभियान ही अधिकांश युद्ध, भूखमरी, प्रदूषण और प्रजा का निकन्दन आदि का मुख्य कारण है।
    
सन् १९३० में राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने युद्ध जहाज भेज कर पनामा के ऊपर चढ़ाई की, अपनी फौज उतारी । पनामा के लोकप्रिय कमाण्डर को पकड़ा और मार डाला और पनामा को स्वतन्त्र देश घोषित किया। फिर वहाँ पर एक कठपूतली सरकार बिठा दी और उसके साथ पनामा नहर का करार किया । उसके अनुसार नहर के दोनों और का प्रदेश अमेरिकन प्रदेश घोषित करवाया गया। अमेरिकन सेना की उपस्थिति वैध मानी गई । और इस प्रकार स्वतन्त्र करवाये गये पनामा देश के ऊपर वाशिंग्टन का सम्पूर्ण अंकुश स्थापित हो गया । विशेष बात यह है कि इस करार के ऊपर अमेरिका के सेक्रेटरी के हस्ताक्षर किये गये और दूसरे पक्ष में एक फ्रेंच इंजिनीयर के हस्ताक्षर करवाये गये । पनामा के किसी भी नागरिक के हस्ताक्षर इस करार पर नहीं थे । संक्षेप में, अमेरिका का हित साधने के लिए पनामा को कोलम्बिया से बिल्कुल अलग थलग कर दिया गया । पचास वर्ष से भी अधिक समय तक वोशिंग्टन के साथ प्रगाढ़ सम्बन्ध रखने वाले धनवान परिवारों ने पनामा पर राज्य चलाया । अमेरिका के हितों को ही प्रोत्साहन मिलता रहे, इसके लिए जो कुछ भी करना पड़े, वह करने वाले स्वयं सत्ताधीशों ने पनामा पर राज्य किया।
 
सन् १९३० में राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने युद्ध जहाज भेज कर पनामा के ऊपर चढ़ाई की, अपनी फौज उतारी । पनामा के लोकप्रिय कमाण्डर को पकड़ा और मार डाला और पनामा को स्वतन्त्र देश घोषित किया। फिर वहाँ पर एक कठपूतली सरकार बिठा दी और उसके साथ पनामा नहर का करार किया । उसके अनुसार नहर के दोनों और का प्रदेश अमेरिकन प्रदेश घोषित करवाया गया। अमेरिकन सेना की उपस्थिति वैध मानी गई । और इस प्रकार स्वतन्त्र करवाये गये पनामा देश के ऊपर वाशिंग्टन का सम्पूर्ण अंकुश स्थापित हो गया । विशेष बात यह है कि इस करार के ऊपर अमेरिका के सेक्रेटरी के हस्ताक्षर किये गये और दूसरे पक्ष में एक फ्रेंच इंजिनीयर के हस्ताक्षर करवाये गये । पनामा के किसी भी नागरिक के हस्ताक्षर इस करार पर नहीं थे । संक्षेप में, अमेरिका का हित साधने के लिए पनामा को कोलम्बिया से बिल्कुल अलग थलग कर दिया गया । पचास वर्ष से भी अधिक समय तक वोशिंग्टन के साथ प्रगाढ़ सम्बन्ध रखने वाले धनवान परिवारों ने पनामा पर राज्य चलाया । अमेरिका के हितों को ही प्रोत्साहन मिलता रहे, इसके लिए जो कुछ भी करना पड़े, वह करने वाले स्वयं सत्ताधीशों ने पनामा पर राज्य किया।

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