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| २. आईएएस कक्षा के शिक्षा विभाग का अधिकारी प्रामाणिकता से कहता है कि अंग्रेज भारत में आये तब भारत में शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी, अंग्रेजों ने ही शिक्षा का विस्तार और विकास किया । महात्मा गाँधी और धर्मपाल जैसे बीसवीं शताब्दी के जानकारों ने अठारहवीं शताब्दी में भारत में बहुत अच्छी शिक्षा थी और बहुत अधिक संख्या में विद्यालय थे इसके प्रमाण दिये हैं उसकी भी जानकारी देश चलाने वालों के पास नहीं है । बीसवीं शताब्दी में दी गई जानकारी भी नहीं है तो दो सौ वर्ष पूर्व की, पाँच सौ या पाँच हजार वर्ष पूर्व की अधिकृत जानकारी होने की तो सम्भावना ही नहीं है । | | २. आईएएस कक्षा के शिक्षा विभाग का अधिकारी प्रामाणिकता से कहता है कि अंग्रेज भारत में आये तब भारत में शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी, अंग्रेजों ने ही शिक्षा का विस्तार और विकास किया । महात्मा गाँधी और धर्मपाल जैसे बीसवीं शताब्दी के जानकारों ने अठारहवीं शताब्दी में भारत में बहुत अच्छी शिक्षा थी और बहुत अधिक संख्या में विद्यालय थे इसके प्रमाण दिये हैं उसकी भी जानकारी देश चलाने वालों के पास नहीं है । बीसवीं शताब्दी में दी गई जानकारी भी नहीं है तो दो सौ वर्ष पूर्व की, पाँच सौ या पाँच हजार वर्ष पूर्व की अधिकृत जानकारी होने की तो सम्भावना ही नहीं है । |
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− | ३. देश के बौद्धिकों में वेद, उपनिषद्, गीता आदि ग्रन्थों को खोले बिना या देखे बिना ही उसकी आलोचना करने की प्रवृत्ति दिखाई देती है। इन ग्रन्थों में वास्तव में क्या है इसकी लेशमात्र भी जानकारी पढ़े लिखे लोगों को नहीं होती है । | + | ३. देश के बौद्धिकों में वेद, उपनिषद्, गीता आदि ग्रन्थों को खोले बिना या देखे बिना ही उसकी आलोचना करने की प्रवृत्ति दिखाई देती है। इन ग्रन्थों में वास्तव में क्या है इसकी लेशमात्र भी जानकारी पढ़े लिखे लोगोंं को नहीं होती है । |
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| ४. भारत के इतिहास के विषय में ऐसा ही अज्ञान है । कौन पाँच हजार वर्ष पूर्व का, कौन तीन हजार वर्ष पूर्व का, कौन एक हजार और कौन तीन सौ वर्ष पूर्व का है इसका कोई पता नहीं । पाँच हजार और पाँच सौ वर्षों के अन्तर का कोई अहेसास नहीं, वर्तमान युग का उससे कुछ नाता है इससे कुछ लेनादेना नहीं और हमारा अपना उनसे कोई सम्बन्ध है इसकी कोई अनुभूति नहीं । इसे अज्ञान की परिसीमा ही मानना चाहिये । | | ४. भारत के इतिहास के विषय में ऐसा ही अज्ञान है । कौन पाँच हजार वर्ष पूर्व का, कौन तीन हजार वर्ष पूर्व का, कौन एक हजार और कौन तीन सौ वर्ष पूर्व का है इसका कोई पता नहीं । पाँच हजार और पाँच सौ वर्षों के अन्तर का कोई अहेसास नहीं, वर्तमान युग का उससे कुछ नाता है इससे कुछ लेनादेना नहीं और हमारा अपना उनसे कोई सम्बन्ध है इसकी कोई अनुभूति नहीं । इसे अज्ञान की परिसीमा ही मानना चाहिये । |
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| ९. प्रश्न यह उठ सकता है कि ब्रिटीशों ने भारत की प्रजा को भारत के विषय में अज्ञान रखना अपना स्वार्थ समझा यह समझ में आता है परन्तु स्वतन्त्र भारत में इसमें परिवर्तन क्यों नहीं किया गया ? यह कितना विचित्र है कि भारत के विश्वविद्यालय दुनिया का ज्ञान तो देते हैं परन्तु भारत का नहीं देते । भारत विषयक जानकारी भी धार्मिक नहीं है ऐसे लोग ही देते हैं । | | ९. प्रश्न यह उठ सकता है कि ब्रिटीशों ने भारत की प्रजा को भारत के विषय में अज्ञान रखना अपना स्वार्थ समझा यह समझ में आता है परन्तु स्वतन्त्र भारत में इसमें परिवर्तन क्यों नहीं किया गया ? यह कितना विचित्र है कि भारत के विश्वविद्यालय दुनिया का ज्ञान तो देते हैं परन्तु भारत का नहीं देते । भारत विषयक जानकारी भी धार्मिक नहीं है ऐसे लोग ही देते हैं । |
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− | १०. सामान्य बुद्धि को विचित्र लगने वाली बातें और उठने वालें प्रश्नों का उत्तर यह है कि सन १९४७ में जब सत्ता का हस्तान्तरण हुआ और ब्रिटीशों ने भारत की सत्ता भारत के लोगों के हाथ में सौंपी तब सत्ता का केवल हस्तान्तरण हुआ । देश को चलाने वाला तन्त्र ब्रिटीश ही रहा । लोग बदले व्यवस्था नहीं । अतः विश्वविद्यालय वही रहे, संचालन वही रहा, स्कूलों कोलेजों में पाठ्यपुस्तक वही रहे, जानकारी वही रही । विश्वविद्यालयों से लेकर प्राथमिक विद्यालयों तक की संख्या बढी, शिक्षा तो वही रही । | + | १०. सामान्य बुद्धि को विचित्र लगने वाली बातें और उठने वालें प्रश्नों का उत्तर यह है कि सन १९४७ में जब सत्ता का हस्तान्तरण हुआ और ब्रिटीशों ने भारत की सत्ता भारत के लोगोंं के हाथ में सौंपी तब सत्ता का केवल हस्तान्तरण हुआ । देश को चलाने वाला तन्त्र ब्रिटीश ही रहा । लोग बदले व्यवस्था नहीं । अतः विश्वविद्यालय वही रहे, संचालन वही रहा, स्कूलों कोलेजों में पाठ्यपुस्तक वही रहे, जानकारी वही रही । विश्वविद्यालयों से लेकर प्राथमिक विद्यालयों तक की संख्या बढी, शिक्षा तो वही रही । |
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| ११. अंग्रेज जो सिखाते थे, उनसे शिक्षा प्राप्त किये हुए धार्मिक भी वही सिखाते थे । सत्ता के हस्तान्तरण से इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ । अंग्रेजी शिक्षा का यह वटवृक्ष बहुत फैला है, उसकी शाखायें भूमि में जाकर नये वृक्ष के रूप में पनप रही हैं । उस वृक्ष का जीवनरस युरोप है । फिर उसमें वेद उपनिषद आदि कैसे आयेंगे ? | | ११. अंग्रेज जो सिखाते थे, उनसे शिक्षा प्राप्त किये हुए धार्मिक भी वही सिखाते थे । सत्ता के हस्तान्तरण से इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ । अंग्रेजी शिक्षा का यह वटवृक्ष बहुत फैला है, उसकी शाखायें भूमि में जाकर नये वृक्ष के रूप में पनप रही हैं । उस वृक्ष का जीवनरस युरोप है । फिर उसमें वेद उपनिषद आदि कैसे आयेंगे ? |
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− | १२. सत्ता प्राप्त किये हुए धार्मिकों ने पर-तन्त्र छोडकर शिक्षा में अपना तन्त्र क्यों नहीं अपनाया ? इसलिये कि भारत के पढेलिखे लोग मानते थे कि युरोपीय ज्ञान से ही देश का विकास हो सकता है । जब सरकार ही ऐसा मानती है तब शिक्षा अपने qa वाली अर्थात् धार्मिक कैसे बनेगी । फिर भारत के लोगों को भारत का ज्ञान कैसे मिलेगा ? | + | १२. सत्ता प्राप्त किये हुए धार्मिकों ने पर-तन्त्र छोडकर शिक्षा में अपना तन्त्र क्यों नहीं अपनाया ? इसलिये कि भारत के पढेलिखे लोग मानते थे कि युरोपीय ज्ञान से ही देश का विकास हो सकता है । जब सरकार ही ऐसा मानती है तब शिक्षा अपने qa वाली अर्थात् धार्मिक कैसे बनेगी । फिर भारत के लोगोंं को भारत का ज्ञान कैसे मिलेगा ? |
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− | १३. तथ्य तो यह है कि आज दुनिया के पास जितना ज्ञान है उतना तो भारत के पास था ही और आज भी ग्रन्थों में और कुछ लोगों के मस्तिष्क में और हृदय में है ही, परन्तु दुनिया के पास नहीं है वह भी भारत के पास है । केवल उसे सिखाने की आवश्यकता है । सिखाने लगें तो बहुत अल्प समय में खोई हुई अस्मिता पुनः वापस प्राप्त कर लेंगे । सरकार, देशभक्तों और बौद्धिकों को यह करने की आवश्यकता है । | + | १३. तथ्य तो यह है कि आज दुनिया के पास जितना ज्ञान है उतना तो भारत के पास था ही और आज भी ग्रन्थों में और कुछ लोगोंं के मस्तिष्क में और हृदय में है ही, परन्तु दुनिया के पास नहीं है वह भी भारत के पास है । केवल उसे सिखाने की आवश्यकता है । सिखाने लगें तो बहुत अल्प समय में खोई हुई अस्मिता पुनः वापस प्राप्त कर लेंगे । सरकार, देशभक्तों और बौद्धिकों को यह करने की आवश्यकता है । |
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| === 'विजातीय पदार्थों की खिचडी का प्रयास === | | === 'विजातीय पदार्थों की खिचडी का प्रयास === |