२५. विचारधाराओं का, मतमतान्तरों का, अपेक्षाओं का, आकांक्षाओं का संघर्ष चलता ही रहता है और आशान्ति और असुरक्षा का वातावरण बनता है । निश्चयात्मिका बुद्धि का अभाव दिखाई देता है। सम्पूर्ण देश मानो प्रवाह पतित बनकर घसीटा जा रहा है। गन्तव्य क्या है इसका भी पता नहीं, मार्ग कौनसा है इसकी भी निश्चिति नहीं । बिना नियमन के देश चल रहा है । | २५. विचारधाराओं का, मतमतान्तरों का, अपेक्षाओं का, आकांक्षाओं का संघर्ष चलता ही रहता है और आशान्ति और असुरक्षा का वातावरण बनता है । निश्चयात्मिका बुद्धि का अभाव दिखाई देता है। सम्पूर्ण देश मानो प्रवाह पतित बनकर घसीटा जा रहा है। गन्तव्य क्या है इसका भी पता नहीं, मार्ग कौनसा है इसकी भी निश्चिति नहीं । बिना नियमन के देश चल रहा है । |