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अति प्राचीन काल से भौतिक शक्ति का केन्द्रीकरण करना, यूरोप की संस्कृति का मुख्य लक्ष्य रहा है। इसी लक्ष्य के आधार पर सदियों से यूरोप की समग्र रचना बनी है। इसी लक्ष्य के आधार पर मनुष्य से व्यवहार करने की पद्धति का निर्माण हुआ है। जिस प्रकार यूरोप अन्य देशों के साथ व्यवहार करता है वैसा ही व्यवहार उसने अपने देश के नागरिकों के साथ भी किया है। इंग्लैंड में तो ऐसा बहुत ही बड़े पैमाने पर हुआ है। ऐसा व्यवहार अमेरिका की खोज या यूरोप समुद्रमार्ग से एशिया के देशो में पहुँचा उससे पूर्व का है। यूरोप तो बहुत ही प्राचीनकाल से स्वतन्त्रता, बंधुता एवं समानता में यकीन करता है यह उन्नीसवीं शताब्दी में रेडिकल एवं लिबरल हलचलों द्वारा पैदा की गई बहुत बड़ी भ्रान्ति है।
 
अति प्राचीन काल से भौतिक शक्ति का केन्द्रीकरण करना, यूरोप की संस्कृति का मुख्य लक्ष्य रहा है। इसी लक्ष्य के आधार पर सदियों से यूरोप की समग्र रचना बनी है। इसी लक्ष्य के आधार पर मनुष्य से व्यवहार करने की पद्धति का निर्माण हुआ है। जिस प्रकार यूरोप अन्य देशों के साथ व्यवहार करता है वैसा ही व्यवहार उसने अपने देश के नागरिकों के साथ भी किया है। इंग्लैंड में तो ऐसा बहुत ही बड़े पैमाने पर हुआ है। ऐसा व्यवहार अमेरिका की खोज या यूरोप समुद्रमार्ग से एशिया के देशो में पहुँचा उससे पूर्व का है। यूरोप तो बहुत ही प्राचीनकाल से स्वतन्त्रता, बंधुता एवं समानता में यकीन करता है यह उन्नीसवीं शताब्दी में रेडिकल एवं लिबरल हलचलों द्वारा पैदा की गई बहुत बड़ी भ्रान्ति है।
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इतिहास को देखते हुए ऐसा लगता है कि भिन्न भिन्न सभ्यताँए अपनी समकालीन सभ्यताओं से अलिप्त ही रही हैं। केवल अन्य सभ्यताओं की ही नहीं तो अपनी सभ्यता में भी मनुष्य की तो उन्होंने कभी परवाह ही नहीं की है। सैनिकी विजय के फलस्वरूप या अन्य किसी भी रूप में लोगों को गुलाम बनाने की प्रक्रिया हमेशा से अस्तित्व में रही है।
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इतिहास को देखते हुए ऐसा लगता है कि भिन्न भिन्न सभ्यताँए अपनी समकालीन सभ्यताओं से अलिप्त ही रही हैं। केवल अन्य सभ्यताओं की ही नहीं तो अपनी सभ्यता में भी मनुष्य की तो उन्होंने कभी परवाह ही नहीं की है। सैनिकी विजय के फलस्वरूप या अन्य किसी भी रूप में लोगों को गुलाम बनाने की प्रक्रिया सदा से अस्तित्व में रही है।
    
बहुत बड़े पैमाने पर मनुष्य को गुलाम बनाने की प्रवृत्ति यूरोपीय सभ्यता का प्रमुख लक्षण है। बहुत ही विशाल पैमाने पर लोगों को गुलाम बनाया जाता था। सोलहवीं, सत्रहवीं, एवं अठाहरवीं शताब्दी में गुलामों का व्यापार होता था, केवल उसी को याद करना पर्याप्त है। इससे भी पूर्व ग्रीक एवं रोमन साम्राज्य के काल में भी इसी प्रकार होता था यह बात समझने की आवश्यकता है। आफ्रिका से गुलाम के रूप में लाखों लोगों को पकड़कर लाया जाता था। उसे 'शाही व्यापार' की संज्ञा फर्नाड ब्रोडेल ने दी है। प्लेटो ने गुलामों के साथ किए जानेवाले कठोर व्यवहार की निंदा की है, परन्तु एक वर्ग के रूप में गुलामों का तिरस्कार भी किया है, एवं गुलामी की व्यवस्था का उसने स्वीकार भी किया है। एथेन्स सहित समग्र ग्रीस में, लोकतांत्रिक ग्रीस में गुलाम ही शारीरिक या कारीगरी की मजदूरी करते थे।
 
बहुत बड़े पैमाने पर मनुष्य को गुलाम बनाने की प्रवृत्ति यूरोपीय सभ्यता का प्रमुख लक्षण है। बहुत ही विशाल पैमाने पर लोगों को गुलाम बनाया जाता था। सोलहवीं, सत्रहवीं, एवं अठाहरवीं शताब्दी में गुलामों का व्यापार होता था, केवल उसी को याद करना पर्याप्त है। इससे भी पूर्व ग्रीक एवं रोमन साम्राज्य के काल में भी इसी प्रकार होता था यह बात समझने की आवश्यकता है। आफ्रिका से गुलाम के रूप में लाखों लोगों को पकड़कर लाया जाता था। उसे 'शाही व्यापार' की संज्ञा फर्नाड ब्रोडेल ने दी है। प्लेटो ने गुलामों के साथ किए जानेवाले कठोर व्यवहार की निंदा की है, परन्तु एक वर्ग के रूप में गुलामों का तिरस्कार भी किया है, एवं गुलामी की व्यवस्था का उसने स्वीकार भी किया है। एथेन्स सहित समग्र ग्रीस में, लोकतांत्रिक ग्रीस में गुलाम ही शारीरिक या कारीगरी की मजदूरी करते थे।
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समय बीतने पर गुलामी निरस्त हुई एवं उमरावशाही ने उसका स्थान लिया। उमरावशाही की जड़ें अनेक हैं, वे सभी विवाद का विषय भी हैं। इंग्लैंड में तो ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य में नोर्मन विजय के बाद उमरावशाही प्रस्थापित हुई। अन्य देशों में उसके प्रस्थापित होने के अनेक कारण हैं। कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एन्जल्स, एवं अन्यों के मतानुसार टेक्नोलोजी में होनेवाला बड़ा परिवर्तन भी एक कारण है। अब तक गुलामों की जो स्थिति थी वही अब सर्फ एवं विलियन्स के रूप में पहचाने जानेवाले विशाल संख्या के लोगों की थी। जिनकी संपत्ति में वृद्धि हुई उनकी सत्ता में भी वृद्धि हुई। सत्ता एवं संपत्ति ने मिलकर यूरोप में विशाल भवन एवं जहाजों का निर्माण करके और अधिक संपत्ति प्राप्त करने का जतन किया।
 
समय बीतने पर गुलामी निरस्त हुई एवं उमरावशाही ने उसका स्थान लिया। उमरावशाही की जड़ें अनेक हैं, वे सभी विवाद का विषय भी हैं। इंग्लैंड में तो ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य में नोर्मन विजय के बाद उमरावशाही प्रस्थापित हुई। अन्य देशों में उसके प्रस्थापित होने के अनेक कारण हैं। कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एन्जल्स, एवं अन्यों के मतानुसार टेक्नोलोजी में होनेवाला बड़ा परिवर्तन भी एक कारण है। अब तक गुलामों की जो स्थिति थी वही अब सर्फ एवं विलियन्स के रूप में पहचाने जानेवाले विशाल संख्या के लोगों की थी। जिनकी संपत्ति में वृद्धि हुई उनकी सत्ता में भी वृद्धि हुई। सत्ता एवं संपत्ति ने मिलकर यूरोप में विशाल भवन एवं जहाजों का निर्माण करके और अधिक संपत्ति प्राप्त करने का जतन किया।
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यूरोप ने विश्वविजय के परिणाम स्वरूप औद्योगिकरण किया। अठारहवीं शताब्दी के अंत में आरम्भ हुआ औद्योगिकरण ऐसे विजय के बिना संभव ही नहीं था। यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि विजय के फलस्वरूप नई खोजें, नई टेक्नोलोजी की आवश्यकता का निर्माण हुआ। जो हमेशा कहा जाता है कि युद्धों के कारण विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान को गति प्राप्त होती है वह यूरोप के अंतिम कुछ शताब्दियों के अनुभवों का ही परिणाम है।
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यूरोप ने विश्वविजय के परिणाम स्वरूप औद्योगिकरण किया। अठारहवीं शताब्दी के अंत में आरम्भ हुआ औद्योगिकरण ऐसे विजय के बिना संभव ही नहीं था। यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि विजय के फलस्वरूप नई खोजें, नई टेक्नोलोजी की आवश्यकता का निर्माण हुआ। जो सदा कहा जाता है कि युद्धों के कारण विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान को गति प्राप्त होती है वह यूरोप के अंतिम कुछ शताब्दियों के अनुभवों का ही परिणाम है।
    
अर्थात् आधुनिक विज्ञान गुलामी प्रथा, उमरावशाही, विश्वविजय एवं अत्याचार तथा आधिपत्य की ही उपज है। इनके लक्षण समान हैं। पिछले २००० वर्षों की अपेक्षा आज के यूरोप का चेहरा एकदम भिन्न लगता हो तो भी उसकी असलियत वही है। महात्मा गांधी को एक बार कहा गया था कि 'प्रत्येक अमेरिकन के पास ३६ गुलाम हैं क्यों कि उसके पास जो यंत्र है वह ३६ गुलामों के बराबर काम करता है।' प्राचीन यूरोप की अपेक्षा यह बहुत प्रगतिशील स्थिति मानी जाएगी क्यों कि एक ग्रीक नागरिक की आवश्यकता १६ गुलामों की थी। १९३० के दशक में लगभग प्रत्येक अमेरिकन नागरिक अधिकारों से सज्ज था एवं प्राचीन ग्रीस में नागरिक को जो सुविधाएँ प्राप्त होती थीं उससे कहीं अधिक सुविधाएँ उसे प्राप्त थीं। अमेरिका में मनुष्य के रूप में तो गुलामी निरस्त हो गई, परन्तु गुलामी का विचार निरस्त नहीं हुआ, इतना ही नहीं उसने अधिक आकर्षक रूप धारण किया। महात्मा गांधी को जब उपरोक्त वाक्य कहा गया तब उनका उत्तर था कि 'ठीक है, अमेरिकनों को गुलामों की आवश्यकता होगी, हमें नहीं। हम मानवता को गुलाम बनानेवाला औद्योगिकरण कर ही नहीं सकते।'
 
अर्थात् आधुनिक विज्ञान गुलामी प्रथा, उमरावशाही, विश्वविजय एवं अत्याचार तथा आधिपत्य की ही उपज है। इनके लक्षण समान हैं। पिछले २००० वर्षों की अपेक्षा आज के यूरोप का चेहरा एकदम भिन्न लगता हो तो भी उसकी असलियत वही है। महात्मा गांधी को एक बार कहा गया था कि 'प्रत्येक अमेरिकन के पास ३६ गुलाम हैं क्यों कि उसके पास जो यंत्र है वह ३६ गुलामों के बराबर काम करता है।' प्राचीन यूरोप की अपेक्षा यह बहुत प्रगतिशील स्थिति मानी जाएगी क्यों कि एक ग्रीक नागरिक की आवश्यकता १६ गुलामों की थी। १९३० के दशक में लगभग प्रत्येक अमेरिकन नागरिक अधिकारों से सज्ज था एवं प्राचीन ग्रीस में नागरिक को जो सुविधाएँ प्राप्त होती थीं उससे कहीं अधिक सुविधाएँ उसे प्राप्त थीं। अमेरिका में मनुष्य के रूप में तो गुलामी निरस्त हो गई, परन्तु गुलामी का विचार निरस्त नहीं हुआ, इतना ही नहीं उसने अधिक आकर्षक रूप धारण किया। महात्मा गांधी को जब उपरोक्त वाक्य कहा गया तब उनका उत्तर था कि 'ठीक है, अमेरिकनों को गुलामों की आवश्यकता होगी, हमें नहीं। हम मानवता को गुलाम बनानेवाला औद्योगिकरण कर ही नहीं सकते।'

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