Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "हमेशा" to "सदा"
Line 31: Line 31:  
तीसरा आयाम है दोहन का । प्रकृति से सबकुछ प्राप्त होता है। परन्तु मनुष्य को उतना ही लेना चाहिये जितना उसके लिये आवश्यक है। भारत के सभी नीतिशास्त्र कहते हैं कि अपनी आवश्यकता से अधिक लेता है वह चोर है। मनुष्य को प्रकृति पर अधिकार धन, बल, सत्ता, बुद्धि आदि से प्राप्त नहीं होता है, केवल आवश्यकता के अनुपात में ही प्राप्त होता है। इसे दोहन का सिद्धान्त कहते हैं। अधिकार जमा कर आवश्यकता से अधिक लेने को शोषण कहते हैं। प्रकृति का शोषण करने से सर्वत्र दुःख फैलता है और अभाव निर्माण होता है। दोहन करने से सबकी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है और सुख मिलता है। आज पश्चिम अपने स्वामित्वभाव से प्रेरित होकर प्रकृति का शोषण करता है, उसे दुःखी करता है और स्वयं भी दुःखी होता है। पश्चिम के ऐसे व्यवहार से गैरपश्चिमी जगत को भी दुःखी होना पडता है। शोषण बन्द नहीं करना अपितु अन्य उपाय ही करते रहना कदापि परिणामकारी होने वाला नहीं है। पश्चिम को यही मान्य नहीं है।
 
तीसरा आयाम है दोहन का । प्रकृति से सबकुछ प्राप्त होता है। परन्तु मनुष्य को उतना ही लेना चाहिये जितना उसके लिये आवश्यक है। भारत के सभी नीतिशास्त्र कहते हैं कि अपनी आवश्यकता से अधिक लेता है वह चोर है। मनुष्य को प्रकृति पर अधिकार धन, बल, सत्ता, बुद्धि आदि से प्राप्त नहीं होता है, केवल आवश्यकता के अनुपात में ही प्राप्त होता है। इसे दोहन का सिद्धान्त कहते हैं। अधिकार जमा कर आवश्यकता से अधिक लेने को शोषण कहते हैं। प्रकृति का शोषण करने से सर्वत्र दुःख फैलता है और अभाव निर्माण होता है। दोहन करने से सबकी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है और सुख मिलता है। आज पश्चिम अपने स्वामित्वभाव से प्रेरित होकर प्रकृति का शोषण करता है, उसे दुःखी करता है और स्वयं भी दुःखी होता है। पश्चिम के ऐसे व्यवहार से गैरपश्चिमी जगत को भी दुःखी होना पडता है। शोषण बन्द नहीं करना अपितु अन्य उपाय ही करते रहना कदापि परिणामकारी होने वाला नहीं है। पश्चिम को यही मान्य नहीं है।
   −
चौथा आयाम है रक्षण करना । भारत का कहना है कि अपने से छोटे हैं उनका बडों ने रक्षण करना चाहिये । उनका रक्षण नहीं किया तो वे हमेशा भय और आशंका से ग्रस्त रहेंगे। इससे उनके मनोभावों का असन्तुलन होगा। प्रकृति भी यदि भयभीत और आशंकित रहती है तो सिकुड जाती है। उससे प्राप्त होने वाले पदार्थों की गुणवत्ता कम हो जाती है, उनकी पोषकता, सुख देने की क्षमता, उनका रस कम हो जाता है । मनुष्य को उपभोग के बाद भी आनन्द और तृप्ति का अनुभव नहीं होता इसका कारण भी यही है।  
+
चौथा आयाम है रक्षण करना । भारत का कहना है कि अपने से छोटे हैं उनका बडों ने रक्षण करना चाहिये । उनका रक्षण नहीं किया तो वे सदा भय और आशंका से ग्रस्त रहेंगे। इससे उनके मनोभावों का असन्तुलन होगा। प्रकृति भी यदि भयभीत और आशंकित रहती है तो सिकुड जाती है। उससे प्राप्त होने वाले पदार्थों की गुणवत्ता कम हो जाती है, उनकी पोषकता, सुख देने की क्षमता, उनका रस कम हो जाता है । मनुष्य को उपभोग के बाद भी आनन्द और तृप्ति का अनुभव नहीं होता इसका कारण भी यही है।  
    
परन्तु जीवन को भौतिक दृष्टि से ही देखने के कारण पश्चिम को प्रकृति को  आत्मतत्त्व का ही आविष्कार मानने की कल्पना भी नहीं आती। जब तक यह मूल बात में परिवर्तन होता नहीं तब तक दुःख और अभाव दूर नहीं हो सकते यह बात पश्चिम को भारत से ही सीखनी होगी। अपनी पश्चिमाभिमुखता दर कर भारत को भी शिक्षक की भूमिका अपनानी होगी।
 
परन्तु जीवन को भौतिक दृष्टि से ही देखने के कारण पश्चिम को प्रकृति को  आत्मतत्त्व का ही आविष्कार मानने की कल्पना भी नहीं आती। जब तक यह मूल बात में परिवर्तन होता नहीं तब तक दुःख और अभाव दूर नहीं हो सकते यह बात पश्चिम को भारत से ही सीखनी होगी। अपनी पश्चिमाभिमुखता दर कर भारत को भी शिक्षक की भूमिका अपनानी होगी।

Navigation menu