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→‎अभिमत :: लेख सम्पादित किया
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==== बोझ कम करने के उपाय ====
 
==== बोझ कम करने के उपाय ====
 
विद्यालय और माता-पिता को मिलकर कुछ इस प्रकार उपाय करने चाहिये
 
विद्यालय और माता-पिता को मिलकर कुछ इस प्रकार उपाय करने चाहिये
* विद्यार्थियों को समझ में आये उस पद्धति से क्या लाना है और क्या नहीं लाना है, यह समय-समय पर सूचित किया जाना चाहिये । सूचना एक ही बार देने से काम नहीं चलेगा । आवश्यकता के अनुसार उसका पुनरावर्तन करना चाहिये |
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* विद्यार्थियों को समझ में आये उस पद्धति से क्या लाना है और क्या नहीं लाना है, यह समय-समय पर सूचित किया जाना चाहिये । सूचना एक ही बार देने से काम नहीं चलेगा । आवश्यकता के अनुसार उसका पुनरावर्तन करना चाहिये
 
* कौन सी सामग्री क्यों लाना है और क्यों नहीं लाना है, यह भी उचित समय पर समझाना चाहिये ।
 
* कौन सी सामग्री क्यों लाना है और क्यों नहीं लाना है, यह भी उचित समय पर समझाना चाहिये ।
 
* केवल सूचना देना पर्याप्त नहीं है । सबके पास अपनी अपनी कक्षा की समयसारिणी है कि नहीं, यह देखना चाहिये । सबके पास हो इसका आग्रह भी रखा जाना चाहिये ।
 
* केवल सूचना देना पर्याप्त नहीं है । सबके पास अपनी अपनी कक्षा की समयसारिणी है कि नहीं, यह देखना चाहिये । सबके पास हो इसका आग्रह भी रखा जाना चाहिये ।
* विद्यालय को स्वयं एक बार अच्छी तरह से निश्चित कर लेना चाहिये कि हर कक्षा के विद्यार्थी के पास अधिक से अधिक और कम से कम कितनी सामग्री हो सकती है, उसमें से सप्ताह में कब सबसे अधिक सामग्री लाने की आवश्यकता पड़ती है और वह कितनी है । साथ ही एक साथ अधिक सामग्री न लानी पड़े इस प्रकार से नियोजन भी करना चाहिये |
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* विद्यालय को स्वयं एक बार अच्छी तरह से निश्चित कर लेना चाहिये कि हर कक्षा के विद्यार्थी के पास अधिक से अधिक और कम से कम कितनी सामग्री हो सकती है, उसमें से सप्ताह में कब सबसे अधिक सामग्री लाने की आवश्यकता पड़ती है और वह कितनी है । साथ ही एक साथ अधिक सामग्री न लानी पड़े इस प्रकार से नियोजन भी करना चाहिये
* इसके बाद विद्यार्थियों को बस्ता कैसे जमाना यह भी प्रायोगिक पद्धति से सिखाना चाहिये । उत्तम पद्धति से बस्ता जमाना एक कुशलता है और सबको उसे प्राप्त करना ही चाहिये । विद्यार्थियों ने अपना बस्ता स्वयं जमाना चाहिये और स्वयं उठाना चाहिये । घर में माता-पिता ने इसका ध्यान रखना चाहिये |
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* इसके बाद विद्यार्थियों को बस्ता कैसे जमाना यह भी प्रायोगिक पद्धति से सिखाना चाहिये । उत्तम पद्धति से बस्ता जमाना एक कुशलता है और सबको उसे प्राप्त करना ही चाहिये । विद्यार्थियों ने अपना बस्ता स्वयं जमाना चाहिये और स्वयं उठाना चाहिये । घर में माता-पिता ने इसका ध्यान रखना चाहिये
 
* समय-समय पर विद्यार्थियों के बस्तों का निरीक्षण होना चाहिये । अनावश्यक और फालतू बातें नहीं लाने के लिए आग्रहपूर्वक समझाना चाहिये । यह स्वभाव फिर अन्य बातों में भी परिलक्षित होता है, जीवन में व्यवस्थितता आती है।  
 
* समय-समय पर विद्यार्थियों के बस्तों का निरीक्षण होना चाहिये । अनावश्यक और फालतू बातें नहीं लाने के लिए आग्रहपूर्वक समझाना चाहिये । यह स्वभाव फिर अन्य बातों में भी परिलक्षित होता है, जीवन में व्यवस्थितता आती है।  
 
* बस्ते का बोझ तो कम करना ही चाहिये, साथ में व्यवस्थितता भी आनी चाहिये । इसके अलावा अन्य छोटी बातें भी विचारणीय हैं।  
 
* बस्ते का बोझ तो कम करना ही चाहिये, साथ में व्यवस्थितता भी आनी चाहिये । इसके अलावा अन्य छोटी बातें भी विचारणीय हैं।  
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# आवश्यक साधनसामग्री के स्रोत कितने प्रकार के होते हैं ?
 
# आवश्यक साधनसामग्री के स्रोत कितने प्रकार के होते हैं ?
 
# साधनसामग्री निर्माण करने में किन किन लोगों का सहयोग प्राप्त हो सकता है ? कैसे ?
 
# साधनसामग्री निर्माण करने में किन किन लोगों का सहयोग प्राप्त हो सकता है ? कैसे ?
विद्यालय में प्रयुक्त साधन-सामग्री छात्र एवं आचार्य दोनों के लिए ही उपयोगी होती है, अतः यह प्रश्नावली थोडी बड़ी बनी है |
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विद्यालय में प्रयुक्त साधन-सामग्री छात्र एवं आचार्य दोनों के लिए ही उपयोगी होती है, अतः यह प्रश्नावली थोडी बड़ी बनी है
    
== छात्रों के लिए साधन सामग्री : प्राप्त उत्तर ==
 
== छात्रों के लिए साधन सामग्री : प्राप्त उत्तर ==
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अनेक शिक्षक ऐसे हैं, जिन्हें साधनों का प्रयोग करना आता ही नहीं । शब्दकोश से शब्द ढूँढना, पुस्तकों से सन्दर्भ ढूँढना, पृथ्वी के गोले पर देश ढूँढना उसके लिये अजनबी बात होती है । ऐसे विद्यालयों में सामग्री होना न होना एक ही बात है ।
 
अनेक शिक्षक ऐसे हैं, जिन्हें साधनों का प्रयोग करना आता ही नहीं । शब्दकोश से शब्द ढूँढना, पुस्तकों से सन्दर्भ ढूँढना, पृथ्वी के गोले पर देश ढूँढना उसके लिये अजनबी बात होती है । ऐसे विद्यालयों में सामग्री होना न होना एक ही बात है ।
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सामग्री का उपयोग कैसे करना, यह विद्यार्थियों को सिखाना भी महत्वपूर्ण है । जब स्वयं को ही नहीं आता तो विद्यार्थियों को कैसे सिखायेंगे ? इसका कारण यह है कि ये शिक्षक जब विद्यार्थी होते थे, तब उन्होंने कभी साधनसामग्री को न देखा न छुआ था |
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सामग्री का उपयोग कैसे करना, यह विद्यार्थियों को सिखाना भी महत्वपूर्ण है । जब स्वयं को ही नहीं आता तो विद्यार्थियों को कैसे सिखायेंगे ? इसका कारण यह है कि ये शिक्षक जब विद्यार्थी होते थे, तब उन्होंने कभी साधनसामग्री को न देखा न छुआ था
    
===== केवल सामग्री पर निर्भर नहीं रहा जाता =====
 
===== केवल सामग्री पर निर्भर नहीं रहा जाता =====
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==== गृहकार्य कैसा हो ====
 
==== गृहकार्य कैसा हो ====
विद्यालय में गणित विषय के अन्तर्गत मापन करना सिखाया है तो घर पर गृहपाठ के रूप में घर के टेबल-कुर्सी की लम्बाई-चौड़ाई नापना, खिड़कियों व दरवाजों को नापना, साड़ी-धोती, चादर-नेपकिन आदि वस्त्रों की लम्बाई नापना । इसी प्रकार घर में उपलब्ध भौमितिक आकृतियों वाली वस्तुओं के नाम लिखना । बाजार से खरीदी हुई सामग्री पर छपी हुई कीमत व वजन की सूची बनाना और इस सूची के आधार पर गणित के सवाल बनाना । घर में किराणा के समान की सूची वजन सहित लिखना । दवाइयों की कीमत एवं एक्सपायरी डेट की जाँच करना । घर में आने वाले समाचार पत्र एवं दूध का हिसाब रखना और मासिक बिल बनाना । अपने घर का मानचित्र बनाना, घर से विद्यालय जाने का मार्ग दिग्दर्शित करना । अपने गाँव के नक्शे में महत्वपूर्ण स्थान यथा - मंदिर, विद्यालय, चिकित्सालय, तालाब आदि भरना । गाँव में स्थित मंदिरों का इतिहास जानना जैसे अनेक प्रकार के गृहकार्य दिये जा सकते हैं । ऐसे वैविध्यपूर्ण गृहकार्य छात्र उत्साह से करेंगे और सीखेंगे । घर एवं शाला दोनों शिक्षा के केन्द्र हैं । 'विद्यालय शास्त्रों के अध्ययन का केन्द्र है तो घर उस अध्ययन की प्रयोगशाला है ।' विधिवत सही पद्धति से सूर्यनमस्कार करना सिखाना विद्यालय का काम है, और सीखे हुए सूर्यनमस्कार को घर में प्रतिदिन करना, यह घर का काम है । स्वच्छता, पर्यावरण रक्षा, जल संरक्षण के नियम व सिद्धान्त विद्यालय में सिखाना और घर में उन्हें लागू करना ।
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विद्यालय में गणित विषय के अन्तर्गत मापन करना सिखाया है तो घर पर गृहपाठ के रूप में घर के टेबल-कुर्सी की लम्बाई-चौड़ाई नापना, खिड़कियों व दरवाजों को नापना, साड़ी-धोती, चादर-नेपकिन आदि वस्त्रों की लम्बाई नापना। इसी प्रकार घर में उपलब्ध भौमितिक आकृतियों वाली वस्तुओं के नाम लिखना । बाजार से खरीदी हुई सामग्री पर छपी हुई कीमत व वजन की सूची बनाना और इस सूची के आधार पर गणित के सवाल बनाना। घर में किराणा के समान की सूची वजन सहित लिखना। दवाइयों की कीमत एवं एक्सपायरी डेट की जाँच करना। घर में आने वाले समाचार पत्र एवं दूध का हिसाब रखना और मासिक बिल बनाना। अपने घर का मानचित्र बनाना, घर से विद्यालय जाने का मार्ग दिग्दर्शित करना। अपने गाँव के नक्शे में महत्वपूर्ण स्थान यथा - मंदिर, विद्यालय, चिकित्सालय, तालाब आदि भरना। गाँव में स्थित मंदिरों का इतिहास जानना जैसे अनेक प्रकार के गृहकार्य दिये जा सकते हैं। ऐसे वैविध्यपूर्ण गृहकार्य छात्र उत्साह से करेंगे और सीखेंगे। घर एवं शाला दोनों शिक्षा के केन्द्र हैं। विद्यालय शास्त्रों के अध्ययन का केन्द्र है तो घर उस अध्ययन की प्रयोगशाला है। विधिवत सही पद्धति से सूर्यनमस्कार करना सिखाना विद्यालय का काम है, और सीखे हुए सूर्यनमस्कार को घर में प्रतिदिन करना, यह घर का काम है । स्वच्छता, पर्यावरण रक्षा, जल संरक्षण के नियम व सिद्धान्त विद्यालय में सिखाना और घर में उन्हें लागू करना ।
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इस प्रकार का रुचिपूर्ण गृहकार्य देना शिक्षक की कल्पनाशीलता और हेतुपूर्णता पर निर्भर करता है । आज ऐसे कुशल आचार्यों का अभाव दिखाई देता है । आजकल अलग-अलग प्रोजेक्ट (उपक्रम) देने की पद्धति चल पड़ी है। परन्तु प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए नेट से सम्पूर्ण जानकारी लेना, झेरोक्स करवाना, साज सज्ञा करके फाइल बनाना और उसमें माता-पिता का पूर्ण सहयोग लेना आदि बातों का समावेश होता है । यांत्रिक एवं तांत्रिक कार्यों की यह दशा है । ज्ञानार्जन के लिए नहीं अपितु अंकार्जन के लिए यह सब किया जाता है । अतः हेतुपूर्वक सार्थक गृहकार्य देने पर और अधिक चिन्तन-मनन की आवश्यकता है । अध्ययन अध्यापन से ज्ञानार्जन हो और गृहकार्य उसमें सहयोगी बने, ऐसी योजना एवं रचना करनी चाहिए ।
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इस प्रकार का रुचिपूर्ण गृहकार्य देना शिक्षक की कल्पनाशीलता और हेतुपूर्णता पर निर्भर करता है । आज ऐसे कुशल आचार्यों का अभाव दिखाई देता है। आजकल अलग-अलग प्रोजेक्ट (उपक्रम) देने की पद्धति चल पड़ी है। परन्तु प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए नेट से सम्पूर्ण जानकारी लेना, झेरोक्स करवाना, साज सज्जा करके फाइल बनाना और उसमें माता-पिता का पूर्ण सहयोग लेना आदि बातों का समावेश होता है । यांत्रिक एवं तांत्रिक कार्यों की यह दशा है । ज्ञानार्जन के लिए नहीं अपितु अंकार्जन के लिए यह सब किया जाता है । अतः हेतुपूर्वक सार्थक गृहकार्य देने पर और अधिक चिन्तन-मनन की आवश्यकता है । अध्ययन अध्यापन से ज्ञानार्जन हो और गृहकार्य उसमें सहयोगी बने, ऐसी योजना एवं रचना करनी चाहिए ।
    
==== कुछ विचारणीय बातें ====
 
==== कुछ विचारणीय बातें ====
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गृहकार्य का अर्थ है, घर का काम । घर में तो अनेक काम होते हैं। खाना, सोना, स्वच्छता करना, अतिथिसत्कार करना, अखबार पढ़ना, टीवी देखना आदि काम घर में ही होते हैं । हम जिसकी बात करते हैं अथवा गृहकार्य कहकर जो बात समझ में आती है वह ये सब काम नहीं हैं । विद्यालय में जो पढ़ाया जाता है उससे संबन्धित जो कार्य घर में किया जाना है, वह गृहकार्य है । गृहकार्य का अर्थ है घर में पढ़ाई ।  
 
गृहकार्य का अर्थ है, घर का काम । घर में तो अनेक काम होते हैं। खाना, सोना, स्वच्छता करना, अतिथिसत्कार करना, अखबार पढ़ना, टीवी देखना आदि काम घर में ही होते हैं । हम जिसकी बात करते हैं अथवा गृहकार्य कहकर जो बात समझ में आती है वह ये सब काम नहीं हैं । विद्यालय में जो पढ़ाया जाता है उससे संबन्धित जो कार्य घर में किया जाना है, वह गृहकार्य है । गृहकार्य का अर्थ है घर में पढ़ाई ।  
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सामान्य रूप से गृहकार्य ऊपर कहा वैसे प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में होता है, उच्चशिक्षा में नहीं । उन्चशिक्षा में सर्वथा नहीं होता है ऐसा तो नहीं है परन्तु बहुत कम मात्रा में होता है ।  
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सामान्य रूप से गृहकार्य, जैसा ऊपर वर्णित किया, वैसा प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में होता है, उच्चशिक्षा में नहीं। उच्चशिक्षा में सर्वथा नहीं होता है ऐसा तो नहीं है परन्तु बहुत कम मात्रा में होता है ।  
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सामान्य रूप से विद्यालयों में जो गृहकार्य दिया जाता है वह लिखित रूप में होता है। कोई भी विषय हो लिखना ही मुख्य काम है । भाषा, गणित, विज्ञान, इतिहास, भूगोल आदि सभी विषयों में लिखित कार्य ही करवाया जाता है । भाषा में वर्तनी, व्याकरण, वाक्य, प्रश्नों के उत्तर, निबन्ध आदि, गणित में सवाल, सूत्र, प्रमेय आदि, विज्ञान में प्रयोग, प्रश्नों के उत्तर, कुछ विषयों में कंठस्थीकरण आदि के रूप में गृहकार्य होता है ।
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सामान्य रूप से विद्यालयों में जो गृहकार्य दिया जाता है वह लिखित रूप में होता है। कोई भी विषय हो लिखना ही मुख्य काम है । भाषा, गणित, विज्ञान, इतिहास, भूगोल आदि सभी विषयों में लिखित कार्य ही करवाया जाता है। भाषा में वर्तनी, व्याकरण, वाक्य, प्रश्नों के उत्तर, निबन्ध आदि, गणित में सवाल, सूत्र, प्रमेय आदि, विज्ञान में प्रयोग, प्रश्नों के उत्तर, कुछ विषयों में कंठस्थीकरण आदि के रूप में गृहकार्य होता है।
    
सामान्य रूप में छोटी कक्षाओं में एक घण्टा और बड़ी में दो घण्टे का गृहकार्य होता है। भिन्न-भिन्न विद्यालयों में उसका समय भिन्न-भिन्न हो सकता है परन्तु औसत लगभग यही होता है ।
 
सामान्य रूप में छोटी कक्षाओं में एक घण्टा और बड़ी में दो घण्टे का गृहकार्य होता है। भिन्न-भिन्न विद्यालयों में उसका समय भिन्न-भिन्न हो सकता है परन्तु औसत लगभग यही होता है ।
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गृहकार्य जाँचे जाने के सम्बन्ध में दो प्रकार होते हैं । वह या तो जाँचा जाता है अथवा नहीं जांचा जाता । जाँचा जाता है वहाँ भी सुधार होता है कि नहीं, यह निश्चित नहीं है । सुधार के लिए उसे पुन: पुन: लिखने को कहा जाता है । गृहकार्य जाँचना शिक्षकों के लिए बहुत झंझट वाला काम होता है। इस विषय में अभिभावक और शिक्षक दोनों में वाद-विवाद होता ही रहता है । सामान्य विद्यालयों में अभिभावकों की बात सुनी-अनसुनी कर भी दी जाती है परन्तु ऊँचे शुल्क वाले विद्यालयों में अभिभावकों की बात सुननी ही पड़ती है।
 
गृहकार्य जाँचे जाने के सम्बन्ध में दो प्रकार होते हैं । वह या तो जाँचा जाता है अथवा नहीं जांचा जाता । जाँचा जाता है वहाँ भी सुधार होता है कि नहीं, यह निश्चित नहीं है । सुधार के लिए उसे पुन: पुन: लिखने को कहा जाता है । गृहकार्य जाँचना शिक्षकों के लिए बहुत झंझट वाला काम होता है। इस विषय में अभिभावक और शिक्षक दोनों में वाद-विवाद होता ही रहता है । सामान्य विद्यालयों में अभिभावकों की बात सुनी-अनसुनी कर भी दी जाती है परन्तु ऊँचे शुल्क वाले विद्यालयों में अभिभावकों की बात सुननी ही पड़ती है।
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गृहकार्य कापी में किया जाता है । कभी पेंसिल से और कभी पेन से लिखा जाता है । प्रत्येक विषय की गृहकार्य की कापी अलग होती है । इन कापियों के कारण से ही बस्ते का बोझ कुछ मात्रा में बढ़ जाता है ।
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गृहकार्य कापी में किया जाता है। कभी पेंसिल से और कभी पेन से लिखा जाता है । प्रत्येक विषय की गृहकार्य की कापी अलग होती है । इन कापियों के कारण से ही बस्ते का बोझ कुछ मात्रा में बढ़ जाता है।
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गृहकार्य के सम्बन्ध में जो पुनर्विचार किया जाना चाहिए, उसका पहला बिंदु यह है कि शिक्षा की अन्य अनेक बातों की तरह गृहकार्य भी यांत्रिक हो गया है । शिक्षा के उद्देश्यों के साथ इसका सम्बन्ध है कि नहीं, इसका प्रायः विचार किए बिना ही एक कर्मकाण्ड की भाँति यह चलता है । कभी-कभी तो गृहकार्य देने से बच्चे घर में उधम नहीं मचाएँगे ऐसा भी माताओं को लगता है । वे गृहकार्य देने का आग्रह करती हैं ।
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गृहकार्य के सम्बन्ध में जो पुनर्विचार किया जाना चाहिए, उसका पहला बिंदु यह है कि शिक्षा की अन्य अनेक बातों की तरह गृहकार्य भी यांत्रिक हो गया है । शिक्षा के उद्देश्यों के साथ इसका सम्बन्ध है कि नहीं, इसका प्रायः विचार किए बिना ही एक कर्मकाण्ड की भाँति यह चलता है। कभी-कभी तो गृहकार्य देने से बच्चे घर में उधम नहीं मचाएँगे ऐसा भी माताओं को लगता है। वे गृहकार्य देने का आग्रह करती हैं।
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अधिक पढ़ने से अधिक अच्छा पढ़ा जाता है, ऐसी एक भ्रांत धारणा बन गई है । ऐसा नहीं है कि यह केवल अभिभावकों की ही धारणा है । जिन्हें शिक्षा के विषय में सही धारणा होनी चाहिए उन शिक्षकों की भी ऐसी धारणा बनती है । यह धारणा सर्वथा अनुचित है । अधिक समय पढ़ने से अधिक अच्छा पढ़ा जाता है ऐसा नियम नहीं है । जो पढ़ना चाहिए वह पढ़ने से और जिस पद्धति से पढ़ना चाहिए उस पद्धति से पढ़ने से अच्छा पढ़ा जाता है । यांत्रिक पद्धति से गृहकार्य देने से या करने से समय, शक्ति और धन का व्यर्थ व्यय ही होता है । अतः यांत्रिक रूप से किया जाय ऐसा गृहकार्य नहीं देना चाहिए |
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अधिक पढ़ने से अधिक अच्छा पढ़ा जाता है, ऐसी एक भ्रांत धारणा बन गई है। ऐसा नहीं है कि यह केवल अभिभावकों की ही धारणा है । जिन्हें शिक्षा के विषय में सही धारणा होनी चाहिए उन शिक्षकों की भी ऐसी धारणा बनती है। यह धारणा सर्वथा अनुचित है। अधिक समय पढ़ने से अधिक अच्छा पढ़ा जाता है ऐसा नियम नहीं है। जो पढ़ना चाहिए वह पढ़ने से और जिस पद्धति से पढ़ना चाहिए उस पद्धति से पढ़ने से अच्छा पढ़ा जाता है। यांत्रिक पद्धति से गृहकार्य देने से या करने से समय, शक्ति और धन का व्यर्थ व्यय ही होता है। अतः यांत्रिक रूप से किया जाय ऐसा गृहकार्य नहीं देना चाहिए
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दूसरा बिंदु यह है कि इस बात पर विचार किया जाय कि गृहकार्य हमेशा लिखित ही क्यों होना चाहिए । पढ़ाई केवल लिखकर नहीं होती है । पढ़ाई अनेक प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से होती है। अभिभावकों और शिक्षकों की यह भी पक्की धारणा बन गई है कि लिखना ही मुख्य कार्य है । ज्ञान कितना भी मौखिक रूप से अवगत हो तो भी जबतक लिखा नहीं जाता तबतक वह अधूरा है, ऐसा माना जाता है । यह धारणा सही नहीं है । कर्मन्द्रियों की कुशलता, आत्मविश्वास, व्यवहारदक्षता, सद्धावना, विचारशीलता और आकलनक्षमता लिखित रूप में व्यक्त ही नहीं हो सकते । लिखित रूप में गृहकार्य करने के लिए इन बातों की कोई आवश्यकता नहीं होती । तो भी गृहकार्य लिखित स्वरूप का दिया जाता है । इसके पीछे बड़ा विचित्र कारण सुनने को मिलता है । शिक्षक कहते हैं कि लिखित गृहकार्य नहीं दिया तो छात्र ने गृहकार्य किया कि नहीं इसका पता कैसे चलेगा । पढ़ने के लिए दिया तो वे नहीं करने पर भी किया है, ऐसा कहेंगे । अभिभावकों को भी लिखित कार्य ही प्रमाण लगता है । यह तो अविश्वास का मामला हुआ । शिक्षक को छात्र पर या अभिभावकों को शिक्षकों पर विश्वास नहीं होता कि वे सच बोलेंगे या जिसका प्रमाण नहीं देना पड़ता ऐसा भी निश्चित रूप से करेंगे ही । अतः गृहकार्य से कोई अर्थ साध्य न होता हो तो भी लिखित गृहकार्य देने का प्रचलन हो गया है । अब तो यह बात चुभने वाली भी नहीं रह गई है ।
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दूसरा बिंदु यह है कि इस बात पर विचार किया जाय कि गृहकार्य हमेशा लिखित ही क्यों होना चाहिए । पढ़ाई केवल लिखकर नहीं होती है । पढ़ाई अनेक प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से होती है। अभिभावकों और शिक्षकों की यह भी पक्की धारणा बन गई है कि लिखना ही मुख्य कार्य है। ज्ञान कितना भी मौखिक रूप से अवगत हो तो भी जब तक लिखा नहीं जाता तब तक वह अधूरा है, ऐसा माना जाता है। यह धारणा सही नहीं है । कर्मन्द्रियों की कुशलता, आत्मविश्वास, व्यवहारदक्षता, सद्धावना, विचारशीलता और आकलनक्षमता लिखित रूप में व्यक्त ही नहीं हो सकते। लिखित रूप में गृहकार्य करने के लिए इन बातों की कोई आवश्यकता नहीं होती । तो भी गृहकार्य लिखित स्वरूप का दिया जाता है। इसके पीछे बड़ा विचित्र कारण सुनने को मिलता है। शिक्षक कहते हैं कि लिखित गृहकार्य नहीं दिया तो छात्र ने गृहकार्य किया कि नहीं इसका पता कैसे चलेगा। पढ़ने के लिए दिया तो वे नहीं करने पर भी किया है, ऐसा कहेंगे। अभिभावकों को भी लिखित कार्य ही प्रमाण लगता है। यह तो अविश्वास का मामला हुआ। शिक्षक को छात्र पर या अभिभावकों को शिक्षकों पर विश्वास नहीं होता कि वे सच बोलेंगे या जिसका प्रमाण नहीं देना पड़ता ऐसा भी निश्चित रूप से करेंगे ही। अतः गृहकार्य से कोई अर्थ साध्य न होता हो तो भी लिखित गृहकार्य देने का प्रचलन हो गया है । अब तो यह बात चुभने वाली भी नहीं रह गई है।
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यह ठीक तो नहीं है । इस विषय में विद्यालय ने अभिभावकों के साथ विश्वास का सम्बन्ध बनाना चाहिए । दोनों को यह ध्यान में लेना चाहिए की छात्र को ज्ञान प्राप्त होना महत्वपूर्ण है, कापी में लिखना नहीं । अतः पहली बात अविश्वास से और लिखित गृहकार्य से मुक्त होना है । इसका अर्थ यह नहीं है की लिखना सर्वथा निषिद्ध है । जहाँ आवश्यक है वहाँ लिखित अवश्य होना चाहिए । उदाहरण के लिए सुलेख ही पक्का करना हो तो लिखना ही चाहिए । वर्तनी सीखना हो तो लिखना ही चाहिए । लिखित अभिव्यक्ति लिखकर ही हो सकती है । गणित के कुछ सवाल लिखकर ही किये जाएंगे । अत: तात्पर्य समझकर लिखित गृहकार्य का प्रयोग कर सकते हैं ।
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यह ठीक तो नहीं है। इस विषय में विद्यालय ने अभिभावकों के साथ विश्वास का सम्बन्ध बनाना चाहिए। दोनों को यह ध्यान में लेना चाहिए की छात्र को ज्ञान प्राप्त होना महत्वपूर्ण है, कापी में लिखना नहीं। अतः पहली बात अविश्वास से और लिखित गृहकार्य से मुक्त होना है। इसका अर्थ यह नहीं है कि लिखना सर्वथा निषिद्ध है । जहाँ आवश्यक है वहाँ लिखित अवश्य होना चाहिए। उदाहरण के लिए सुलेख ही पक्का करना हो तो लिखना ही चाहिए। वर्तनी सीखना हो तो लिखना ही चाहिए । लिखित अभिव्यक्ति लिखकर ही हो सकती है । गणित के कुछ सवाल लिखकर ही किये जाएंगे । अत: तात्पर्य समझकर लिखित गृहकार्य का प्रयोग कर सकते हैं ।
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इसी प्रकार से यह भी विचार करने लायक तथ्य है कि गृहकार्य आखिर दिया क्यों जाता है । कया विद्यालय में पढ़ाई करना पर्याप्त नहीं है ? यदि पर्याप्त नहीं है तो विद्यालय का समय ही क्यों नहीं बढ़ाया जाना चाहिए ? घर वापस आने के बाद पुनः पढ़ाई क्यों करनी चाहिए ? इसके विविध कारण हो सकते हैं । एक कारण यह हो सकता है कि अभी जो चलता है उतने समय से अधिक विद्यालय चलाना संभव नहीं है । इसके कई व्यावहारिक कारण हैं । छात्रों को एकसाथ इतना समय पढ़ाई करना सुविधाजनक नहीं होता । शारीरिक रूप से थकान हो जाना भी सम्भव है । भोजन की सुविधा विद्यालय में सम्भव नहीं होती है । अतः विद्यालय की पढ़ाई पाँच घंटे से अधिक नहीं हो सकती । बारह वर्ष से अधिक आयु के छात्रों के लिए छः घंटे की पढ़ाई भी हो सकती है परन्तु उससे अधिक नहीं ।
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इसी प्रकार से यह भी विचार करने लायक तथ्य है कि गृहकार्य आखिर दिया क्यों जाता है। क्या विद्यालय में पढ़ाई करना पर्याप्त नहीं है ? यदि पर्याप्त नहीं है तो विद्यालय का समय ही क्यों नहीं बढ़ाया जाना चाहिए ? घर वापस आने के बाद पुनः पढ़ाई क्यों करनी चाहिए ? इसके विविध कारण हो सकते हैं । एक कारण यह हो सकता है कि अभी जो चलता है उतने समय से अधिक विद्यालय चलाना संभव नहीं है । इसके कई व्यावहारिक कारण हैं । छात्रों को एकसाथ इतना समय पढ़ाई करना सुविधाजनक नहीं होता । शारीरिक रूप से थकान हो जाना भी सम्भव है । भोजन की सुविधा विद्यालय में सम्भव नहीं होती है । अतः विद्यालय की पढ़ाई पाँच घंटे से अधिक नहीं हो सकती । बारह वर्ष से अधिक आयु के छात्रों के लिए छः घंटे की पढ़ाई भी हो सकती है परन्तु उससे अधिक नहीं ।
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अधिक महत्वपूर्ण विषय यह है कि विद्यालय के समय के अतिरिक्त औपचारिक पढ़ाई की आवश्यकता ही नहीं होनी चाहिए । वास्तव में दिन के चौबीस घंटों में औपचारिक पढ़ाई के साथ-साथ बहुत कुछ और भी करना होता है । व्यायाम, खेल, घर के काम, घर से बाहर के काम, दिनचर्या के आवश्यक कार्य आदि बहुत सारी बातों के लिए समय मिलना चाहिए । शिक्षा केवल विद्यालय की औपचारिक पढ़ाई में ही सीमित नहीं होती है । जीवन-व्यवहार के अन्य कार्य भी शिक्षा के ही अंग हैं । अत: पहले तो गृहकार्य के नाम पर औपचारिक पढ़ाई का ही समय बढ़ाना नहीं चाहिए । इस दृष्टि से गृहकार्य का स्वरूप बदलने की नितान्त आवश्यकता है |
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अधिक महत्वपूर्ण विषय यह है कि विद्यालय के समय के अतिरिक्त औपचारिक पढ़ाई की आवश्यकता ही नहीं होनी चाहिए। वास्तव में दिन के चौबीस घंटों में औपचारिक पढ़ाई के साथ-साथ बहुत कुछ और भी करना होता है । व्यायाम, खेल, घर के काम, घर से बाहर के काम, दिनचर्या के आवश्यक कार्य आदि बहुत सारी बातों के लिए समय मिलना चाहिए । शिक्षा केवल विद्यालय की औपचारिक पढ़ाई में ही सीमित नहीं होती है । जीवन-व्यवहार के अन्य कार्य भी शिक्षा के ही अंग हैं । अत: पहले तो गृहकार्य के नाम पर औपचारिक पढ़ाई का ही समय बढ़ाना नहीं चाहिए । इस दृष्टि से गृहकार्य का स्वरूप बदलने की नितान्त आवश्यकता है
    
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विद्यालय की औपचारिक पढ़ाई को व्यावहारिक जीवन के साथ जोड़कर सार्थक बनाने वाले गृहकार्य के विषय में विचार करना चाहिए । यह गृहकार्य केवल लिखित नहीं हो सकता यह स्वाभाविक है । यदि लिखित नहीं तो यह कैसा होगा इसके कुछ उदाहरण यहाँ दिये जा सकते हैं ।
 
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विद्यालय की औपचारिक पढ़ाई को व्यावहारिक जीवन के साथ जोड़कर सार्थक बनाने वाले गृहकार्य के विषय में विचार करना चाहिए । यह गृहकार्य केवल लिखित नहीं हो सकता यह स्वाभाविक है । यदि लिखित नहीं तो यह कैसा होगा इसके कुछ उदाहरण यहाँ दिये जा सकते हैं ।
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पाँचवीं के छात्रों को विद्यालय से घर जाते समय रास्ते में पड़ने वाली दुकानों के फ़लक अपनी कापी में लिखो । घर जाकर उनकी भाषा शुद्ध है कि नहीं यह जाँचो । यदि शुद्ध है तो दुकानदारों को अभिनन्दनपरक पत्र लिखो । यदि उनमें कोई अशुद्धि है तो उसे दूर कर शुद्ध करो और दुकानदार को उसकी उचित भाषा में सूचना दो । इस कार्य में समय जायेगा, सम्पर्क करना होगा, शब्दकोश देखना होगा, व्याकरण के नियम याद करने होंगे, पत्रलेखन करना होगा । कई बार ऐसे कामों को प्रोजेक्ट कहा जाता है । यदि विद्यालय में किया तो वह प्रोजेक्ट है, घर में किया तो गृहकार्य । इस प्रकार के गृहकार्य में भाषा का व्यावहारिक और शैक्षिक पक्ष समाविष्ट हो जाता है , केवल भाषाज्ञान के साथ-साथ अन्य व्यावहारिक पक्ष भी समझ में आते हैं ।
 
पाँचवीं के छात्रों को विद्यालय से घर जाते समय रास्ते में पड़ने वाली दुकानों के फ़लक अपनी कापी में लिखो । घर जाकर उनकी भाषा शुद्ध है कि नहीं यह जाँचो । यदि शुद्ध है तो दुकानदारों को अभिनन्दनपरक पत्र लिखो । यदि उनमें कोई अशुद्धि है तो उसे दूर कर शुद्ध करो और दुकानदार को उसकी उचित भाषा में सूचना दो । इस कार्य में समय जायेगा, सम्पर्क करना होगा, शब्दकोश देखना होगा, व्याकरण के नियम याद करने होंगे, पत्रलेखन करना होगा । कई बार ऐसे कामों को प्रोजेक्ट कहा जाता है । यदि विद्यालय में किया तो वह प्रोजेक्ट है, घर में किया तो गृहकार्य । इस प्रकार के गृहकार्य में भाषा का व्यावहारिक और शैक्षिक पक्ष समाविष्ट हो जाता है , केवल भाषाज्ञान के साथ-साथ अन्य व्यावहारिक पक्ष भी समझ में आते हैं ।
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घर के सभी कमरों का नाप निकालकर प्रत्येक का क्षेत्रफल कितना है, इसकी तालिका बनाने का गृहकार्य दे सकते हैं । इसी पद्धति से भूमिति विद्यालय में भी पढ़ाई जा सकती है ।
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घर के सभी कमरों का नाप निकालकर प्रत्येक का क्षेत्रफल कितना है, इसकी तालिका बनाने का गृहकार्य दे सकते हैं । इसी पद्धति से भूमिति विद्यालय में भी पढ़ाई जा सकती है । घर का तीन या सात दिन का खर्च लिखकर उसका जोड़ करने का गणित गृहकार्य के रूप में दिया जा सकता है । हमारे घर में कौन-कौन क्या-क्या काम करता है और घर के सभी सदस्यों का एक दिन कैसे बीतता है, इसका वर्णन कर निबंध लिखने को बता सकते हैं । एक सप्ताह का अल्पाहार स्वयं बनाकर ले आने का गृहकार्य भी हो सकता है । उस पदार्थ का वर्णन, उसमें कया क्या सामाग्री प्रयुक्त हुई है और उसका पोषक मूल्य तथा सात्त्विकता कैसी है, इसका वर्णन करने को कहा जा सकता है । कोई गीत, संवाद, सूत्र आदि कंठस्थ करने का गृहकार्य भी दिया जा सकता है । यह सूची शिक्षक की मौलिकता से बहुत बड़ी हो सकती है । तात्पर्य यह है कि पढ़ी हुई, सीखी हुई बातों को व्यवहार में लागू करना आए, इस दृष्टि से गृहकार्य का स्वरूप बनाना चाहिए । विद्यार्थी की जीवनचर्या का मुख्य कार्य अध्ययन करना है इस लिए उसकी सम्पूर्ण जीवनचर्या को अध्ययन के विषयों के अनुसार ढालना चाहिए । इस बात को ध्यान में रखकर गृहकार्य की योजना करनी चाहिए ।
 
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घर का तीन या सात दिन का खर्च लिखकर उसका जोड़ करने का गणित गृहकार्य के रूप में दिया जा सकता है ।
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हमारे घर में कौन-कौन क्या-क्या काम करता है और घर के सभी सदस्यों का एक दिन कैसे बीतता है, इसका वर्णन कर निबंध लिखने को बता सकते हैं ।
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एक सप्ताह का अल्पाहार स्वयं बनाकर ले आने का गृहकार्य भी हो सकता है । उस पदार्थ का वर्णन, उसमें कया क्या सामाग्री प्रयुक्त हुई है और उसका पोषक मूल्य तथा सात्त्विकता कैसी है, इसका वर्णन करने को कहा जा सकता है । कोई गीत, संवाद, सूत्र आदि कंठस्थ करने का गृहकार्य भी दिया जा सकता है । यह सूची शिक्षक की मौलिकता से बहुत बड़ी हो सकती है । तात्पर्य यह है कि पढ़ी हुई, सीखी हुई बातों को व्यवहार में लागू करना आए, इस दृष्टि से गृहकार्य का स्वरूप बनाना चाहिए ।
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विद्यार्थी की जीवनचर्या का मुख्य कार्य अध्ययन करना है इस लिए उसकी सम्पूर्ण जीवनचर्या को अध्ययन के विषयों के अनुसार ढालना चाहिए । इस बात को ध्यान में रखकर गृहकार्य की योजना करनी चाहिए ।
      
==== गृहकार्य की जाँच कैसे करें ====
 
==== गृहकार्य की जाँच कैसे करें ====
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===== प्रार्थना =====
 
===== प्रार्थना =====
प्रार्थना से किसी भी शुभ कार्य का प्रारम्भ होना भारत में केवल स्वाभाविक ही नहीं तो अनिवार्य माना गया है । हमने कल्याणकारी सभी बातों को देवता का स्वरूप दिया है। यहाँ तक की पानी को जलदेवता अथवा वरुण देवता, अग्नि को अग्थिदेवता, वायु को वायुदेवता, पृथ्वी को पृथ्वीदेवता कहा है | पृथ्वी को तो हम माता ही कहते हैं। तब विद्या को, ज्ञान को हम देवता न मानें ऐसा हो ही नहीं सकता । विद्या की, वाणी की, कला की, संगीत की देवता सरस्वती विद्यालयों की अधिष्ठात्री देवी है । अध्ययन अध्यापन के रूप में हम उसकी उपासना करते हैं। ज्ञान के सभी लक्षणों को साकार रूप देकर हमने सरस्वती की प्रतिमा बनाई है । इस देवता की प्रार्थना से प्रारम्भ करना नितान्त आवश्यक है । परन्तु इसमें केवल कर्मकाण्ड नहीं चलेगा । कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं....
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प्रार्थना से किसी भी शुभ कार्य का प्रारम्भ होना भारत में केवल स्वाभाविक ही नहीं तो अनिवार्य माना गया है । हमने कल्याणकारी सभी बातों को देवता का स्वरूप दिया है। यहाँ तक की पानी को जलदेवता अथवा वरुण देवता, अग्नि को अग्थिदेवता, वायु को वायुदेवता, पृथ्वी को पृथ्वीदेवता कहा है पृथ्वी को तो हम माता ही कहते हैं। तब विद्या को, ज्ञान को हम देवता न मानें ऐसा हो ही नहीं सकता । विद्या की, वाणी की, कला की, संगीत की देवता सरस्वती विद्यालयों की अधिष्ठात्री देवी है । अध्ययन अध्यापन के रूप में हम उसकी उपासना करते हैं। ज्ञान के सभी लक्षणों को साकार रूप देकर हमने सरस्वती की प्रतिमा बनाई है । इस देवता की प्रार्थना से प्रारम्भ करना नितान्त आवश्यक है । परन्तु इसमें केवल कर्मकाण्ड नहीं चलेगा । कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं....
 
* जो भी करें शास्त्रशुद्ध करें । विद्याकेन्द्रों में अशास्त्रीय नहीं चलता । सुशोभन अवश्य करना चाहिये और वह पर्यावरण और सौन्दर्य दृष्टि को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिये।
 
* जो भी करें शास्त्रशुद्ध करें । विद्याकेन्द्रों में अशास्त्रीय नहीं चलता । सुशोभन अवश्य करना चाहिये और वह पर्यावरण और सौन्दर्य दृष्टि को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिये।
 
* फूल, दीप और अगरबत्ती का प्रयोग यदि करते हैं तो ध्यान में रखें कि अगरबत्ती सिन्थेटिक न हो, दीप जर्सी के घी का न हो और फूल कृत्रिम न हों । इस निमित्त से विद्यालय में अन्यान्य चित्रों पर जो प्लास्टिक के फूलों की मालायें चढ़ाई जाती हैं वे उतार दी जाय । सरस्वती को यह मान्य नहीं है ।
 
* फूल, दीप और अगरबत्ती का प्रयोग यदि करते हैं तो ध्यान में रखें कि अगरबत्ती सिन्थेटिक न हो, दीप जर्सी के घी का न हो और फूल कृत्रिम न हों । इस निमित्त से विद्यालय में अन्यान्य चित्रों पर जो प्लास्टिक के फूलों की मालायें चढ़ाई जाती हैं वे उतार दी जाय । सरस्वती को यह मान्य नहीं है ।
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* विद्यालय में भोजन करने का स्थान निश्चित किया जाय । यह बड़े हॉल जैसा कक्ष भी हो सकता है जहाँ सब एक साथ बैठें या अपने अपने कक्षाकक्ष के बाहर का बरामदा हो जहाँ छोटे समूहों में बैठा जाय या मैदानमें वृक्ष के नीचे भी हो जहाँ फिर छोटे समूहों में बैठा जाय । मैदान में या वृक्ष के नीचे गोबर से लीपी भूमि स्वास्थ्य और स्वच्छता की दृष्टि से बहुत लाभदायी होती है ।
 
* विद्यालय में भोजन करने का स्थान निश्चित किया जाय । यह बड़े हॉल जैसा कक्ष भी हो सकता है जहाँ सब एक साथ बैठें या अपने अपने कक्षाकक्ष के बाहर का बरामदा हो जहाँ छोटे समूहों में बैठा जाय या मैदानमें वृक्ष के नीचे भी हो जहाँ फिर छोटे समूहों में बैठा जाय । मैदान में या वृक्ष के नीचे गोबर से लीपी भूमि स्वास्थ्य और स्वच्छता की दृष्टि से बहुत लाभदायी होती है ।
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* भोजन से पूर्व हाथ पैर धोने का रिवाज बनाया जाय |
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* भोजन से पूर्व हाथ पैर धोने का रिवाज बनाया जाय
 
* भोजन सीधे डिब्बे से नहीं अपितु छोटी थाली में किया जाय । भोजन के पात्र विद्यालय में ही रखे जा सकते हैं ।
 
* भोजन सीधे डिब्बे से नहीं अपितु छोटी थाली में किया जाय । भोजन के पात्र विद्यालय में ही रखे जा सकते हैं ।
 
* गोबर से लीपी भूमि पर सीधा बिना आसन के बैठा जा सकता है परन्तु अन्यत्र बिना आसन के नहीं बैठने का आग्रह होना चाहिये।
 
* गोबर से लीपी भूमि पर सीधा बिना आसन के बैठा जा सकता है परन्तु अन्यत्र बिना आसन के नहीं बैठने का आग्रह होना चाहिये।
 
* भोजनमन्त्र बोलकर ही भोजन किया जाय ।
 
* भोजनमन्त्र बोलकर ही भोजन किया जाय ।
 
* गोग्रास निकालकर ही भोजन किया जाय ।
 
* गोग्रास निकालकर ही भोजन किया जाय ।
* आसपास के लोगों के साथ बाँटकर भोजन किया जाय |
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* आसपास के लोगों के साथ बाँटकर भोजन किया जाय
 
* थाली में जूठन नहीं छोड़ना अनिवार्य बनाया जाय । भोजन के बाद हाथ धोना, कुछ्ला करना, भोजन के स्थान की सफाई करना, भोजन के पात्र साफ करना और पोछकर  व्यवस्थित रखना सिखाया जाय । अधिक चर्चा इसी ग्रन्थ में अन्यत्र की गई है ।
 
* थाली में जूठन नहीं छोड़ना अनिवार्य बनाया जाय । भोजन के बाद हाथ धोना, कुछ्ला करना, भोजन के स्थान की सफाई करना, भोजन के पात्र साफ करना और पोछकर  व्यवस्थित रखना सिखाया जाय । अधिक चर्चा इसी ग्रन्थ में अन्यत्र की गई है ।
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महाविद्यालयों में पुस्तकालय समृद्ध होना चाहिए कारण वहाँ अध्यापन की अपेक्षा धार्मिक भाषाओं में अध्यात्म, दर्शन, धर्म-संस्कृति, राष्ट्र, विभिन्न विचारधारायें, इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि की पुस्तकें, कोष, एटलस, बालसाहित्य, दृश्य-श्राव्य सामग्री आदि सभी प्रकार की पुस्तकें आवश्यक होंगी । पुस्तकालय में बैठकर पढ़ सके इस प्रकार की पुस्तकालय की व्यवस्था होनी चाहिये । छात्र शिक्षक सभी आराम से पढ़ सके ऐसी स्वना व स्थान हो तो अच्छा । दैनिक वृत्तपत्र पाक्षिक मासिक शैक्षिक पत्रिका्ें पर्याप्त मात्रा मे उपलब्ध हो । पुस्तकालयों में वेद उपनिषद आदि साहित्य अवश्य हो । पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं है अपितु हमारी संस्कृति का दर्शन है । इनका दर्शन छात्र इस आयु में करेंगे तो आगे जाकर इनका अध्ययन भी होगा । विषय के शिक्षक छात्रों को अपने विषय की संदर्भ पुस्तकों के नाम बताए और उन्हें पढने के लिए प्रेरित करे । एक विद्यालय के ग्रंथपाल स्वयं सभी विषयों का अध्ययन करते थे और वर्गशः उपयुक्त संदर्भ साहित्य से छात्रों को परिचित करवाते थे । वाचनालय में खरिदी हुई नवीन पुस्तकों के परिचय सूचना फलक पर लिखते और छात्रों को वाचन हेतु प्रेरित व आकर्षित करते थे ।
 
महाविद्यालयों में पुस्तकालय समृद्ध होना चाहिए कारण वहाँ अध्यापन की अपेक्षा धार्मिक भाषाओं में अध्यात्म, दर्शन, धर्म-संस्कृति, राष्ट्र, विभिन्न विचारधारायें, इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि की पुस्तकें, कोष, एटलस, बालसाहित्य, दृश्य-श्राव्य सामग्री आदि सभी प्रकार की पुस्तकें आवश्यक होंगी । पुस्तकालय में बैठकर पढ़ सके इस प्रकार की पुस्तकालय की व्यवस्था होनी चाहिये । छात्र शिक्षक सभी आराम से पढ़ सके ऐसी स्वना व स्थान हो तो अच्छा । दैनिक वृत्तपत्र पाक्षिक मासिक शैक्षिक पत्रिका्ें पर्याप्त मात्रा मे उपलब्ध हो । पुस्तकालयों में वेद उपनिषद आदि साहित्य अवश्य हो । पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं है अपितु हमारी संस्कृति का दर्शन है । इनका दर्शन छात्र इस आयु में करेंगे तो आगे जाकर इनका अध्ययन भी होगा । विषय के शिक्षक छात्रों को अपने विषय की संदर्भ पुस्तकों के नाम बताए और उन्हें पढने के लिए प्रेरित करे । एक विद्यालय के ग्रंथपाल स्वयं सभी विषयों का अध्ययन करते थे और वर्गशः उपयुक्त संदर्भ साहित्य से छात्रों को परिचित करवाते थे । वाचनालय में खरिदी हुई नवीन पुस्तकों के परिचय सूचना फलक पर लिखते और छात्रों को वाचन हेतु प्रेरित व आकर्षित करते थे ।
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पुस्तकों को कब्हर चढाना, पुस्तकालय की स्वच्छता एवं पुर्नरचना करना, पुस्तकों की मरम्मत करना आदि कार्यों में बड़े छात्रों का सहयोग लेने से उनकी वाचन की ओर उत्कंठा जाग्रत होती है । ज्ञान प्राप्ति की भूख निर्माण होती है । कक्षाकक्ष का स्वतंत्र पुस्तकालय हो ऐसी भी व्यवस्था कर सकते हैं । अतः चरित्र, कहानी, काव्य आदि प्रकार की पुस्तकें घर घर से भेंट रूप में छात्र प्राप्त कर और अपनी कक्षा का वर्ग पुस्तकालय तैयार करे । अपने जन्मदिन पर कुछ पुस्तकें भेंट दें । बड़े बड़े शहरों में बड़े बड़े पुस्तकालय होते हैं । वहाँ वाचक वर्ग अत्यधिक कम है । उनसे सहयोग लेकर हम वर्गपुस्तकालय के लिए छात्रों के लायक पुस्तकें लाना और वर्ष के बाद पुनः लौटाना ऐसा करने से विद्यालय का वर्ग पुस्तकालय नित्यनूतन रहेगा । एक विद्यालय ने यह प्रयोग बहुत सफलता पूर्वक किया | पुस्तकों के साथ साथ सी.डी., इ लर्निंग सेवा भी हो सकती है। गाँव के वाचनालयों का स्थान पुनर्जीवित करने हेतु ग्रंथयात्रा, ग्रंथप्रदर्शनी, लेखकों से प्रत्यक्ष वार्तालाप जैसे प्रकट कार्यक्रमों का आयोजन करें ।
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पुस्तकों को कब्हर चढाना, पुस्तकालय की स्वच्छता एवं पुर्नरचना करना, पुस्तकों की मरम्मत करना आदि कार्यों में बड़े छात्रों का सहयोग लेने से उनकी वाचन की ओर उत्कंठा जाग्रत होती है । ज्ञान प्राप्ति की भूख निर्माण होती है । कक्षाकक्ष का स्वतंत्र पुस्तकालय हो ऐसी भी व्यवस्था कर सकते हैं । अतः चरित्र, कहानी, काव्य आदि प्रकार की पुस्तकें घर घर से भेंट रूप में छात्र प्राप्त कर और अपनी कक्षा का वर्ग पुस्तकालय तैयार करे । अपने जन्मदिन पर कुछ पुस्तकें भेंट दें । बड़े बड़े शहरों में बड़े बड़े पुस्तकालय होते हैं । वहाँ वाचक वर्ग अत्यधिक कम है । उनसे सहयोग लेकर हम वर्गपुस्तकालय के लिए छात्रों के लायक पुस्तकें लाना और वर्ष के बाद पुनः लौटाना ऐसा करने से विद्यालय का वर्ग पुस्तकालय नित्यनूतन रहेगा । एक विद्यालय ने यह प्रयोग बहुत सफलता पूर्वक किया पुस्तकों के साथ साथ सी.डी., इ लर्निंग सेवा भी हो सकती है। गाँव के वाचनालयों का स्थान पुनर्जीवित करने हेतु ग्रंथयात्रा, ग्रंथप्रदर्शनी, लेखकों से प्रत्यक्ष वार्तालाप जैसे प्रकट कार्यक्रमों का आयोजन करें ।
    
ज्ञान प्रबोधिनी निगडी के विद्यालय में छात्रों के लिए समृद्ध एवं चैतन्यमय वाचनालय है । छात्रों के लिए वह निःशुल्क है और नगरवासियों के लिए सायंकाल के समय सशुल्क वाचनालय चलता है । यह एक यशस्वी प्रयोग है ।
 
ज्ञान प्रबोधिनी निगडी के विद्यालय में छात्रों के लिए समृद्ध एवं चैतन्यमय वाचनालय है । छात्रों के लिए वह निःशुल्क है और नगरवासियों के लिए सायंकाल के समय सशुल्क वाचनालय चलता है । यह एक यशस्वी प्रयोग है ।

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