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→‎अनावश्यक सामग्री: लेख सम्पादित किया
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आवश्यक सामग्री किसे कहते हैं ? जिसके बिना पढ़ना सम्भव ही नहीं हो, वह अनिवार्य सामग्री है । शिक्षा का शास्त्र कहता है कि पढने के लिये शिक्षक और विद्यार्थी के अलावा और कुछ भी अनिवार्य नहीं है । दोनों को एक ही शब्द प्रयोग लागू करना है तो विद्यार्थी संज्ञा ही उपयुक्त है। पढाना भी पढ़ने का ही प्रगत रूप है । विद्या प्राप्त करने के लिये इच्छुक व्यक्ति विद्यार्थी है और शिक्षक भी अपने मूल रूप में विद्यार्थी ही है । विद्यार्थी को विद्या प्राप्त करने के लिये उपयोगी साधन उसे जन्मजात मिले हैं । वे हैं कर्मन्द्रियाँ, ज्ञानेन्द्रिया, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार । ये साधन प्राथमिक हैं, मुख्य हैं और अनिवार्य हैं । स्मृति, धारणा, ग्रहणशीलता, समझ, कौशल आदि इनके गुण हैं । इन मुख्य साधनों की सहायता के लिये उनके द्वारा उपयोग किये जाने के लिये जो सामग्री है, वह आवश्यक सामग्री है । प्राचीन काल में जब लेखन कला का आविष्कार नहीं हुआ था, तब तक पढ़ाई के लिये किसी भी प्रकार की सामग्री का प्रयोग नहीं करना पड़ता था । शिक्षक का बोलना और विद्यार्थी का सुनना ही पर्याप्त होता था । इससे भी अदूभुत बातों का उल्लेख मिलता है । पढाई के ईश्वरप्रदत्त साधन जब सर्वाधिक सक्षम होते हैं, तब बिना कहे भी बातें सुनी और समझी जाती हैं ।
 
आवश्यक सामग्री किसे कहते हैं ? जिसके बिना पढ़ना सम्भव ही नहीं हो, वह अनिवार्य सामग्री है । शिक्षा का शास्त्र कहता है कि पढने के लिये शिक्षक और विद्यार्थी के अलावा और कुछ भी अनिवार्य नहीं है । दोनों को एक ही शब्द प्रयोग लागू करना है तो विद्यार्थी संज्ञा ही उपयुक्त है। पढाना भी पढ़ने का ही प्रगत रूप है । विद्या प्राप्त करने के लिये इच्छुक व्यक्ति विद्यार्थी है और शिक्षक भी अपने मूल रूप में विद्यार्थी ही है । विद्यार्थी को विद्या प्राप्त करने के लिये उपयोगी साधन उसे जन्मजात मिले हैं । वे हैं कर्मन्द्रियाँ, ज्ञानेन्द्रिया, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार । ये साधन प्राथमिक हैं, मुख्य हैं और अनिवार्य हैं । स्मृति, धारणा, ग्रहणशीलता, समझ, कौशल आदि इनके गुण हैं । इन मुख्य साधनों की सहायता के लिये उनके द्वारा उपयोग किये जाने के लिये जो सामग्री है, वह आवश्यक सामग्री है । प्राचीन काल में जब लेखन कला का आविष्कार नहीं हुआ था, तब तक पढ़ाई के लिये किसी भी प्रकार की सामग्री का प्रयोग नहीं करना पड़ता था । शिक्षक का बोलना और विद्यार्थी का सुनना ही पर्याप्त होता था । इससे भी अदूभुत बातों का उल्लेख मिलता है । पढाई के ईश्वरप्रदत्त साधन जब सर्वाधिक सक्षम होते हैं, तब बिना कहे भी बातें सुनी और समझी जाती हैं ।
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दो उदाहरण देखें{{Citation needed}}:<blockquote>चित्रं वटतरोमूँले वृद्धा शिष्याः गुररु्युवा ।</blockquote><blockquote>गुरोइस्तु मौन॑ व्याख्यानं शिष्याइस्तु छिन्न संशया: ।।</blockquote><blockquote>अर्थात्‌ अहो, आश्चर्य है ! वटवृक्ष के नीचे वृद्ध शिष्य और युवा गुरु बैठे हैं । गुरु का मौन ही व्याख्यान है और शिष्यों के संशय दूर हो जाते हैं अर्थात्‌ पढ़ने के लिये उपयोगी ईश्वरप्रदत्त साधनों की क्षमता कितनी अधिक है इसका यहाँ वर्णन किया गया है । यह वर्णन काल्पनिक नहीं है, सत्य है ।</blockquote>गर्भावस्‍था में तथा सद्योजात, बहुत छोटे बच्चे, बड़ों के द्वारा अनकही बातें भी समझ जाते हैं, जिन्हें वे संस्कारों के रूप में ग्रहण करते हैं। ये उदाहरण बतलाते हैं कि पढ़ने के लिये ये साधन अनिवार्य हैं । इनके बिना अध्ययन सम्भव नहीं । हम इन साधनों की चर्चा यहाँ नहीं कर रहे हैं । इन साधनों द्वारा उपयोग में लिये जाने वाले साधन, आवश्यक साधन हैं ।
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दो उदाहरण देखें{{Citation needed}}:<blockquote>चित्रं वटतरोर्मूले वृद्धाः शिष्या गुरुर्युवा ।</blockquote><blockquote>गुरोस्तु मौनं व्याख्यानं शिष्यास्तु छिन्नसंशयाः ॥ </blockquote>अर्थात्‌ अहो, आश्चर्य यह है कि वटवृक्षके नीचे शिष्य वृद्ध हैं और गुरु युवा हैं। गुरु का व्याख्यान मौन भाषा में है, किंतु शिष्योंके संशय नष्ट हो गये हैं
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अर्थात्‌ पढ़ने के लिये उपयोगी ईश्वरप्रदत्त साधनों की क्षमता कितनी अधिक है इसका यहाँ वर्णन किया गया है । यह वर्णन काल्पनिक नहीं है, सत्य है ।
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गर्भावस्‍था में तथा सद्योजात, बहुत छोटे बच्चे, बड़ों के द्वारा अनकही बातें भी समझ जाते हैं, जिन्हें वे संस्कारों के रूप में ग्रहण करते हैं। ये उदाहरण बतलाते हैं कि पढ़ने के लिये ये साधन अनिवार्य हैं । इनके बिना अध्ययन सम्भव नहीं । हम इन साधनों की चर्चा यहाँ नहीं कर रहे हैं । इन साधनों द्वारा उपयोग में लिये जाने वाले साधन, आवश्यक साधन हैं ।
    
लेखन का आविष्कार हुआ है तब से लेखन से सम्बन्धित सारी सामग्री आवश्यक बन गई है । शर्त केवल यह है कि पढ़ाई के मुख्य साधनों की शक्ति में अवरोध रूप न बने और उनका काम सुकर बनाये, ऐसी सामग्री आवश्यक मानी जानी चाहिये । ईश्वर प्रदत्त साधनों पर हम अधिकाधिक निर्भर रह सर्के, उनकी क्षमता बढ़ाये, ऐसी सामग्री उपयोगी और आवश्यक मानी जानी चाहिये । कौन सी सामग्री कब कितनी आवश्यक है यह निश्चित करना शिक्षक के विवेक का काम है, उसके सर्व सामान्य नियम नहीं बनाये जा सकते ।
 
लेखन का आविष्कार हुआ है तब से लेखन से सम्बन्धित सारी सामग्री आवश्यक बन गई है । शर्त केवल यह है कि पढ़ाई के मुख्य साधनों की शक्ति में अवरोध रूप न बने और उनका काम सुकर बनाये, ऐसी सामग्री आवश्यक मानी जानी चाहिये । ईश्वर प्रदत्त साधनों पर हम अधिकाधिक निर्भर रह सर्के, उनकी क्षमता बढ़ाये, ऐसी सामग्री उपयोगी और आवश्यक मानी जानी चाहिये । कौन सी सामग्री कब कितनी आवश्यक है यह निश्चित करना शिक्षक के विवेक का काम है, उसके सर्व सामान्य नियम नहीं बनाये जा सकते ।
    
===== अनावश्यक सामग्री =====
 
===== अनावश्यक सामग्री =====
शैक्षिक दृष्टि से जिससे न लाभ होता न हानि होती है परन्तु आर्थिक दृष्टि से हानि होती है और जिसका निर्र्थक बोझ उठाना पड़ता है, वह अनावश्यक सामग्री है । लिखने के लिये स्लेट के स्थान पर कागज का प्रयोग करना अनावश्यक है । एक पेन्सिल पर्याप्त है तब दो तीन साथ में लाना अनावश्यक है, सस्ती सामग्री से काम होता है तब महँगी लाना अनावश्यक है । पेन्सिल से लिखा हुआ मिटाने के लिये जो रबड़ होता है वह सुगन्धित हो यह अनावश्यक है, विभिन्न आकृतियों की कम्पास पेटिका होना अनावश्यक है। आकर्षक परन्तु महँगे बस्ते अनावश्यक हैं । कौन सी सामग्री कब अनावश्यक है, इसका विवेक शिक्षक को करना चाहिये । विद्यार्थियों को प्रथम अनावश्यक, अतिरिक्त सामग्री रखने से परावृत्त करना चाहिये । सामग्री का संयमित उपयोग करना भी एक सदगुण है, मूल्य है । उसके बाद सामग्री कम करते जाना शैक्षिक विकास है, यह बात अभिभावकों, विद्यार्थियों और समाज को सिखानी चाहिये ।
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शैक्षिक दृष्टि से जिससे न लाभ होता न हानि होती है परन्तु आर्थिक दृष्टि से हानि होती है और जिसका निर्र्थक बोझ उठाना पड़ता है, वह अनावश्यक सामग्री है । लिखने के लिये स्लेट के स्थान पर कागज का प्रयोग करना अनावश्यक है । एक पेन्सिल पर्याप्त है तब दो तीन साथ में लाना अनावश्यक है, सस्ती सामग्री से काम होता है तब महँगी लाना अनावश्यक है। पेन्सिल से लिखा हुआ मिटाने के लिये जो रबड़ होता है वह सुगन्धित हो यह अनावश्यक है, विभिन्न आकृतियों की कम्पास पेटिका होना अनावश्यक है। आकर्षक परन्तु महँगे बस्ते अनावश्यक हैं । कौन सी सामग्री कब अनावश्यक है, इसका विवेक शिक्षक को करना चाहिये । विद्यार्थियों को प्रथम अनावश्यक, अतिरिक्त सामग्री रखने से परावृत्त करना चाहिये । सामग्री का संयमित उपयोग करना भी एक सदगुण है, मूल्य है । उसके बाद सामग्री कम करते जाना शैक्षिक विकास है, यह बात अभिभावकों, विद्यार्थियों और समाज को सिखानी चाहिये ।
    
===== निरर्थक और अनर्थक सामग्री =====
 
===== निरर्थक और अनर्थक सामग्री =====
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सी.डी., संगणक आदि अनर्थक होते हैं क्योंकि उनसे स्मरणशक्ति कम होती है, आँख-कान की शक्ति क्षीण होती है और ज्ञान का रक्षण करने के प्रति लापरवाह बनाते हैं । नसों-नाडियों को भी उनसे नुकसान होता है ।
 
सी.डी., संगणक आदि अनर्थक होते हैं क्योंकि उनसे स्मरणशक्ति कम होती है, आँख-कान की शक्ति क्षीण होती है और ज्ञान का रक्षण करने के प्रति लापरवाह बनाते हैं । नसों-नाडियों को भी उनसे नुकसान होता है ।
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संगणक के उपयोग से लेखन कौशल कम होता है । कहानी की फिल्म देखने से कल्पनाशक्ति कम होती है, कल्पनाशक्ति कम होने से सृजनशीलता भी कम होती है
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संगणक के उपयोग से लेखन कौशल कम होता है। कहानी की फिल्म देखने से कल्पनाशक्ति कम होती है, कल्पनाशक्ति कम होने से सृजनशीलता भी कम होती है ।अन्तर्जाल (इण्टरनेट) से सामग्री इकट्टी करने के अभ्यास से पुस्तक पढ़ने का आनन्द अदृश्य होता है, स्वाध्याय कम होता है, जानकारी को ही हम ज्ञान मानने लगते हैं ।संगणक, मोबाइल, अन्तर्जाल आदि अपने अन्य माध्यमों - खेल, चित्र, फिल्म आदि से हमारे मन को भटका देते हैं, अनेक प्रकार की उत्तेजनाओं से मन को अशान्त बना देते हैं । इसका परिणाम बुद्धि की शक्तियों का हास होने में ही होता है। पढ़ाई अत्यन्त सतही और अल्पजीवी हो जाती है ।
 
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अन्तर्जाल (इण्टरनेट) से सामग्री इकट्टी करने के अभ्यास से पुस्तक पढ़ने का आनन्द अदृश्य होता है, स्वाध्याय कम होता है, जानकारी को ही हम ज्ञान मानने लगते हैं
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संगणक, मोबाइल, अन्तर्जाल आदि अपने अन्य माध्यमों - खेल, चित्र, फिल्म आदि से हमारे मन को भटका देते हैं, अनेक प्रकार की उत्तेजनाओं से मन को अशान्त बना देते हैं । इसका परिणाम बुद्धि की शक्तियों का हास होने में ही होता है। पढ़ाई अत्यन्त सतही और अल्पजीवी हो जाती है ।
      
ये महान अनर्थ हैं ।
 
ये महान अनर्थ हैं ।
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===== शिक्षक के पास पर्याप्त सामग्री होना =====
 
===== शिक्षक के पास पर्याप्त सामग्री होना =====
विभिन्न विषयों का अध्यापन प्रभावी ढंग से करने के लिये विद्यालय में विभिन्न प्रकार की सामग्री चाहिये । परन्तु अनेक विद्यालयों में ऐसी सामग्री होती ही नहीं । पुस्तकालय, प्रयोगशाला, क्रीडांगण आदि के लिये पैसे खर्च नहीं किये जाते हैं । न तो सामग्री होती है, न उसे रखने की व्यवस्था । पढ़ाई केवल कक्षाकक्षों में बैठकर बोलकर, सुनकर, पढ़कर, लिखकर ही होती है। यहाँ तक कि संगीत भी बिना हास्मोनियम - तबला के सिखाया जाता है, भूगोल बिना नक्शे के सिखाई जाती है ।
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विभिन्न विषयों का अध्यापन प्रभावी ढंग से करने के लिये विद्यालय में विभिन्न प्रकार की सामग्री चाहिये । परन्तु अनेक विद्यालयों में ऐसी सामग्री होती ही नहीं। पुस्तकालय, प्रयोगशाला, क्रीडांगण आदि के लिये पैसे खर्च नहीं किये जाते हैं। न तो सामग्री होती है, न उसे रखने की व्यवस्था। पढ़ाई केवल कक्षाकक्षों में बैठकर बोलकर, सुनकर, पढ़कर, लिखकर ही होती है। यहाँ तक कि संगीत भी बिना हार्मोनियम-तबला के सिखाया जाता है, भूगोल बिना नक्शे के सिखाई जाती है। यदि सामग्री होती भी है तो वह उत्तम गुणवत्ता की और पर्याप्त नहीं होती। उदाहरण के लिये हार्मोनियम बेसूरा और तबला उतरा हुआ रहता है। पुस्तकें सबके हाथ में जा सकें इतनी नहीं होतीं। नक्शे आदि भी पर्याप्त नहीं होते। यही बात शब्दकोश, विज्ञान के प्रयोग के साधनों की है ।
 
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यदि सामग्री होती भी है तो वह उत्तम गुणवत्ता की और पर्याप्त नहीं होती । उदाहरण के लिये हार्मोनियम बेसूरा और तबला उतरा हुआ रहता है।
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पुस्तकें सबके हाथ में जा सकें इतनी नहीं होतीं । नक्शे आदि भी पर्याप्त नहीं होते । यही बात शब्दकोश, विज्ञान के प्रयोग के साधनों की है ।
      
===== शिक्षकों द्वारा सामग्री का समुचित उपयोग =====
 
===== शिक्षकों द्वारा सामग्री का समुचित उपयोग =====
अनेक बार ऐसा होता है कि विद्यालय में अनेक प्रकार की साधन सामग्री खरीदी जाती है, परन्तु शिक्षक उसे देखते तक नहीं । पुस्तकों के गट्ढे बिना खोले, प्रयोग के साधनों के बक्से बिना खोले रहते हैं । शब्दकोश, नक्शे, पुस्तकें नये नये ओर कोरे ही रहते हैं। कोई भी बात शिक्षकों को इनका उपयोग करने के लिये प्रेरित नहीं कर सकती ।
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अनेक बार ऐसा होता है कि विद्यालय में अनेक प्रकार की साधन सामग्री खरीदी जाती है, परन्तु शिक्षक उसे देखते तक नहीं । पुस्तकों के गट्ढे बिना खोले, प्रयोग के साधनों के बक्से बिना खोले रहते हैं । शब्दकोश, नक्शे, पुस्तकें नये नये ओर कोरे ही रहते हैं। कोई भी बात शिक्षकों को इनका उपयोग करने के लिये प्रेरित नहीं कर सकती ।  
    
अनेक शिक्षक ऐसे हैं, जिन्हें साधनों का प्रयोग करना आता ही नहीं । शब्दकोश से शब्द ढूँढना, पुस्तकों से सन्दर्भ ढूँढना, पृथ्वी के गोले पर देश ढूँढना उसके लिये अजनबी बात होती है । ऐसे विद्यालयों में सामग्री होना न होना एक ही बात है ।
 
अनेक शिक्षक ऐसे हैं, जिन्हें साधनों का प्रयोग करना आता ही नहीं । शब्दकोश से शब्द ढूँढना, पुस्तकों से सन्दर्भ ढूँढना, पृथ्वी के गोले पर देश ढूँढना उसके लिये अजनबी बात होती है । ऐसे विद्यालयों में सामग्री होना न होना एक ही बात है ।
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===== सामग्री से शिक्षक का महत्व अधिक होना =====
 
===== सामग्री से शिक्षक का महत्व अधिक होना =====
सामग्री का समुचित उपयोग वही शिक्षक कर सकता है जब शिक्षक विषय को अच्छी तरह जानता है, उसे विषय में, अध्यापन में और विद्यार्थियों में रुचि होती है । शिक्षा सामग्री से नहीं होती है, शिक्षक से होती है । विद्वान, जानकार, कुशल, सहदयी, कल्पनाशील शिक्षक ही सामग्री का समुचित उपयोग कर सकता है। इसलिये अच्छा शिक्षक विद्यालय की प्रथम आवश्यकता है । अतः विद्यालयों को चाहिये कि प्रथम शिक्षकों की ओर ध्यान दें बाद में सामग्री की ओर । शिक्षक अच्छा हो और सामग्री पर्याप्त हो तो शिक्षा अच्छी होती है ।
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सामग्री का समुचित उपयोग वही शिक्षक कर सकता है जब शिक्षक विषय को अच्छी तरह जानता है, उसे विषय में, अध्यापन में और विद्यार्थियों में रुचि होती है । शिक्षा सामग्री से नहीं होती है, शिक्षक से होती है। विद्वान, जानकार, कुशल, सहदयी, कल्पनाशील शिक्षक ही सामग्री का समुचित उपयोग कर सकता है। इसलिये अच्छा शिक्षक विद्यालय की प्रथम आवश्यकता है। अतः विद्यालयों को चाहिये कि प्रथम शिक्षकों की ओर ध्यान दें बाद में सामग्री की ओर। शिक्षक अच्छा हो और सामग्री पर्याप्त हो तो शिक्षा अच्छी होती है।
    
===== आवश्यक सामग्री का निर्माण कर लेना =====
 
===== आवश्यक सामग्री का निर्माण कर लेना =====
सामग्री आवश्यक है, वह अनेक कठिन बातों को सरल बनाती है, परन्तु उसके प्रयोग में कुशलता और मौलिकता होने की आवश्यकता है । यान्त्रिक या भौतिक, गाणितिक विषयों के लिये कदाचित बनी बनाई सामग्री चल जाती है परन्तु तात्त्विक, संकल्पनात्मक विषयों के लिये मौलिकता की आवश्यकता होती है । भौतिक बातों के लिये भी मौलिकता उपकारक होती है ।
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सामग्री आवश्यक है, वह अनेक कठिन बातों को सरल बनाती है, परन्तु उसके प्रयोग में कुशलता और मौलिकता होने की आवश्यकता है। यान्त्रिक या भौतिक, गाणितिक विषयों के लिये कदाचित बनी बनाई सामग्री चल जाती है परन्तु तात्त्विक, संकल्पनात्मक विषयों के लिये मौलिकता की आवश्यकता होती है । भौतिक बातों के लिये भी मौलिकता उपकारक होती है ।
    
दो उदाहरण देखने लायक हैं:
 
दो उदाहरण देखने लायक हैं:
# जॉर्ज वॉर्शिंग्टन कार्वर नामक एक महान नीग्रो कृषितज्ञ एक ऐसे संस्थान में नियुक्त हुए जिसकी आर्थिक स्थिति अत्यन्त विकट थी । विज्ञान की कोई प्रयोगशाला ही नहीं थी । बिना प्रयोग किये कोई अनुसन्धान कैसे हो सकता है ? डॉ. कार्वर ने पहले ही दिन अपने विद्यार्थियों को साथ लेकर नगर भ्रमण किया और लोगों द्वारा कूडे में फेंके हुए डिब्बे, शीशियाँ आदि इकट्टे कर, उन्हें साफ कर प्रयोगशाला के सारे साधन बनाये और प्रयोगशाला सज्ज की । आज भी वह प्रयोगशाला “कार्वर्स म्यूजियम' के रूप में हम देख सकते हैं ।
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# जॉर्ज वॉर्शिंग्टन कार्वर नामक एक महान नीग्रो कृषितज्ञ एक ऐसे संस्थान में नियुक्त हुए जिसकी आर्थिक स्थिति अत्यन्त विकट थी । विज्ञान की कोई प्रयोगशाला ही नहीं थी । बिना प्रयोग किये कोई अनुसन्धान कैसे हो सकता है ? डॉ. कार्वर ने पहले ही दिन अपने विद्यार्थियों को साथ लेकर नगर भ्रमण किया और लोगों द्वारा कूडे में फेंके हुए डिब्बे, शीशियाँ आदि इकट्टे कर, उन्हें साफ कर प्रयोगशाला के सारे साधन बनाये और प्रयोगशाला सज्ज की। आज भी वह प्रयोगशाला “कार्वर्स म्यूजियम' के रूप में हम देख सकते हैं ।
# मुनि उद्दालक अपने पुत्र श्वेतकेतु को बता रहे थे कि ब्रह्म है और इस सृष्टि में सर्वत्र है । श्वेतकेतुने कहा कि कैसे मानें, ब्रह्म तो दिखाई नहीं देता । पिताने उसे पानी से भरा हुआ लोटा और नमक लाने को कहा । श्वेतकेतु दोनों वस्तुयें लेकर आया, पिताने उसे नमक को पानी में डालने के लिये और पानी को हिलाने के लिये कहा । पुत्र ने वैसा ही किया । पिता ने पूछा कि नमक कहाँ है । पुत्र ने पानी में है ऐसा कहा । पिता ने कहा कि कैसे पता चलता है, जरा चख कर देखो । पुत्रने कहा कि नमक पानी में है यद्यपि वह दिखाई नहीं देता । पिता ने पुत्र को पानी को ऊपर से, मध्य से और नीचे से चखने को कहा । श्वेतकेतु ने चखकर कहा कि नमक पानी में है और सर्वत्र है । पिता ने कहा कि उसी प्रकार से ब्रह्म भी सृष्टि में है और सर्वत्र है ।
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# मुनि उद्दालक अपने पुत्र श्वेतकेतु को बता रहे थे कि ब्रह्म है और इस सृष्टि में सर्वत्र है। श्वेतकेतु ने कहा कि कैसे मानें, ब्रह्म तो दिखाई नहीं देता। पिता ने उसे पानी से भरा हुआ लोटा और नमक लाने को कहा। श्वेतकेतु दोनों वस्तुयें लेकर आया, पिता ने उसे नमक को पानी में डालने के लिये और पानी को हिलाने के लिये कहा । पुत्र ने वैसा ही किया । पिता ने पूछा कि नमक कहाँ है । पुत्र ने कहा - पानी में है। पिता ने कहा कि कैसे पता चलता है, जरा चख कर देखो । पुत्र ने कहा कि नमक पानी में है यद्यपि वह दिखाई नहीं देता । पिता ने पुत्र को पानी को ऊपर से, मध्य से और नीचे से चखने को कहा । श्वेतकेतु ने चखकर कहा कि नमक पानी में है और सर्वत्र है । पिता ने कहा कि उसी प्रकार से ब्रह्म भी सृष्टि में है और सर्वत्र है।
 
यह संकल्पना सबके ट्वारा सबको सदा-सर्वदा एक ही तरीके से नहीं सिखाई जाती । स्थान, समय, शिक्षक, विद्यार्थी, परिस्थिति के सन्दर्भ में वह विशेष रूप से सिखाई जाती है । तात्पर्य यह है कि सामग्री नहीं शिक्षक ही अधिक महत्वपूर्ण होता है ।
 
यह संकल्पना सबके ट्वारा सबको सदा-सर्वदा एक ही तरीके से नहीं सिखाई जाती । स्थान, समय, शिक्षक, विद्यार्थी, परिस्थिति के सन्दर्भ में वह विशेष रूप से सिखाई जाती है । तात्पर्य यह है कि सामग्री नहीं शिक्षक ही अधिक महत्वपूर्ण होता है ।
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# गृहकार्य कितने प्रकार का हो सकता है ?
 
# गृहकार्य कितने प्रकार का हो सकता है ?
 
# गृहकार्य के लाभालाभ कौनसे हैं ?
 
# गृहकार्य के लाभालाभ कौनसे हैं ?
# गुृहकार्य की जांच किसने करनी चाहिये ?
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# गुृहकार्य की जांच किसको करनी चाहिये ?
 
# गृहकार्य की जांच कैसे करनी चाहिये ?
 
# गृहकार्य की जांच कैसे करनी चाहिये ?
 
# गृहकार्य की जांच करने के लिये कितना समय लगाना चाहिये ?
 
# गृहकार्य की जांच करने के लिये कितना समय लगाना चाहिये ?
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=== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ===
 
=== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ===
 
गृहकार्य विषयक यह प्रश्नावली भुसावल (महाराष्ट्र) के महाविद्यालय के अरुण महाजन ने ४९ शिक्षकों, अभिभावकों एवं प्राध्यापकों से भरवाकर भेजी है ।
 
गृहकार्य विषयक यह प्रश्नावली भुसावल (महाराष्ट्र) के महाविद्यालय के अरुण महाजन ने ४९ शिक्षकों, अभिभावकों एवं प्राध्यापकों से भरवाकर भेजी है ।
# विद्यालय में पढ़ाये हुए पाठ को दूढ करने हेतु गृहकार्य की आवश्यकता होती है, ऐसा सबका मत है ।
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# विद्यालय में पढ़ाये हुए पाठ को दृढ़ करने हेतु गृहकार्य की आवश्यकता होती है, ऐसा सबका मत है ।
 
# गृहकार्य की जाँच करना विषय शिक्षक एवं अभिभावकों की जिम्मेदारी है, ऐसा सबने माना है ।  
 
# गृहकार्य की जाँच करना विषय शिक्षक एवं अभिभावकों की जिम्मेदारी है, ऐसा सबने माना है ।  
# गृहकार्य कितना और किस प्रकार का हो ? इस प्रश्न के उत्तर में सबने लिखा है कि विद्यार्थी कर सके उतना एवं विविध प्रकार का होना चाहिए । गृहकार्य की विविधता के सम्बन्ध में किसी ने भी स्पष्टता नहीं की । शिक्षकों द्वारा गृहकार्य देने का प्रकार जैसे : पाठ ३ के प्रश्न २, ५ व ९ करना । ऐसा ही रहता है । इस यान्त्रिकता के कारण विविधता का लोप हो जाता है । शिक्षक में कल्पनाशीलता के अभाव के कारण रोचकता नहीं आ पाती । विविध प्रकार के गृहकार्य देने के लाभालाभ क्या होते हैं जैसे प्रश्न अनुत्तरित रहे । मिला हुआ गृहकार्य कैसे भी पूरा करने की छात्रों की वृत्ति होती है, जबकि अभिभावक चाहते हैं कि छात्र उत्साह व जिज्ञासा से गृहकार्य पूर्ण करे । अनेक बार अत्यधिक दिया गया गृहकार्य सहानुभूति पूर्वक अभिभावक स्वयं ही पूरा कर देते हैं । गृहकार्य पूरा नहीं किया तो सजा मिलेगी, अतः उसे मात्र पूरा करने का उद्देश्य छात्रों का रहता है ।
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# गृहकार्य कितना और किस प्रकार का हो? इस प्रश्न के उत्तर में सबने लिखा है कि विद्यार्थी कर सके उतना एवं विविध प्रकार का होना चाहिए । गृहकार्य की विविधता के सम्बन्ध में किसी ने भी स्पष्टता नहीं की । शिक्षकों द्वारा गृहकार्य देने का प्रकार जैसे : पाठ ३ के प्रश्न २, ५ व ९ करना । ऐसा ही रहता है । इस यान्त्रिकता के कारण विविधता का लोप हो जाता है । शिक्षक में कल्पनाशीलता के अभाव के कारण रोचकता नहीं आ पाती । विविध प्रकार के गृहकार्य देने के लाभालाभ क्या होते हैं - जैसे प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं छात्रों की वृत्ति होती है - मिला हुआ गृहकार्य कैसे भी पूरा करने की, जबकि अभिभावक चाहते हैं कि छात्र उत्साह व जिज्ञासा से गृहकार्य पूर्ण करे । अनेक बार अत्यधिक दिया गया गृहकार्य सहानुभूति पूर्वक अभिभावक स्वयं ही पूरा कर देते हैं । गृहकार्य पूरा नहीं किया तो सजा मिलेगी, अतः उसे मात्र पूरा करने का उद्देश्य छात्रों का रहता है ।
    
=== अभिमत : ===
 
=== अभिमत : ===

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