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अमेरिका को आज नम्बर वन कहा जाता है। परन्तु इसे नम्बर वन कौन कहते हैं ? यह स्वयं ही और अपने जसे हीनता बोध से पीड़ित भोले व अज्ञानी लोग। वास्तव में अमेरिका जैसा निर्दयी, लोभी और हिंसक देश दुनियाँ में दूसरा नहीं है। शोषण, लूट, हिंसा, भ्रष्टाचार, अनीति, कामुकता, पशुता, असुरता - ऐसी एक भी बात नहीं है जिसमें अमेरिका का व्यवहार देखकर हमें कँपकँपी न छूट आये, और हम भयभीत न हो जाये। दुनियाँ को लूटने का अमेरिका ने एक ऐसा जाल बुना है जिसमें पढ़े लिखे और विद्वान लोग, धनवान लोग, आतंकवादी और सत्ताधीश भी शामिल हैं। यह सारी हिंसक और घातक गतिविधियों को उसने सुनहरा रूप और सुनहरे नाम दिये हैं जिनसे वह दुनियाँ को ठगता है। इस घातक गतिविधि में शामिल एक आर्थिक हत्यारे जोन परकीन्स की लिखी हुई पुस्तक के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं, जिसका भावानुवाद राजकोट के उद्योगपति श्री वेलजीभाई देसाई ने किया है।
 
अमेरिका को आज नम्बर वन कहा जाता है। परन्तु इसे नम्बर वन कौन कहते हैं ? यह स्वयं ही और अपने जसे हीनता बोध से पीड़ित भोले व अज्ञानी लोग। वास्तव में अमेरिका जैसा निर्दयी, लोभी और हिंसक देश दुनियाँ में दूसरा नहीं है। शोषण, लूट, हिंसा, भ्रष्टाचार, अनीति, कामुकता, पशुता, असुरता - ऐसी एक भी बात नहीं है जिसमें अमेरिका का व्यवहार देखकर हमें कँपकँपी न छूट आये, और हम भयभीत न हो जाये। दुनियाँ को लूटने का अमेरिका ने एक ऐसा जाल बुना है जिसमें पढ़े लिखे और विद्वान लोग, धनवान लोग, आतंकवादी और सत्ताधीश भी शामिल हैं। यह सारी हिंसक और घातक गतिविधियों को उसने सुनहरा रूप और सुनहरे नाम दिये हैं जिनसे वह दुनियाँ को ठगता है। इस घातक गतिविधि में शामिल एक आर्थिक हत्यारे जोन परकीन्स की लिखी हुई पुस्तक के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं, जिसका भावानुवाद राजकोट के उद्योगपति श्री वेलजीभाई देसाई ने किया है।
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आर्थिक हत्यारे उच्च वेतन पाने वाले लोग होते हैं । वे सारी दुनियाँ का शोषण कर हजारों अरब डॉलर की लूट करते हैं । विश्व बैंक, अन्तरराष्ट्रीय विकास के लिए बनी यु.एस. एजेन्सी और विदेशी ‘मदद' के लिए स्थापित संस्थाओं में से सम्पूर्ण धन वे आर्थिक हत्यारे पृथ्वी की प्राकृतिक सम्पत्ति का अंकुश जिनके हाथों में है ऐसे विशाल कोर्पोरेशनों की तिजोरियों में और कुछ अरबपति कुटुम्बों की जेबों में ले जाते हैं । ये आर्थिक हत्यारे पैसे के हिसाब की रिपोर्ट तैयार करके चुनावों में प्रपंच रच कर हारजीत करवाते हैं, बहुत बड़ी रकम रिश्वत में देकर, जोर-जबरदस्ती करके, सेक्स के लिए स्त्रियों का उपयोग करके तथा आवश्यकता पड़ने पर हत्या करवाकर भी अपनी गतिविधियाँ करते रहते हैं । पुराने समय में साम्रज्य जो जो गन्दी चालें चला करते थे, उनसे भी अधिक आज के वैश्विकरण के युग में ये गन्दी चालें, जिनकी हम तो कल्पना भी नहीं कर सकते, भयानक मात्रा में बढ़ गई हैं।<blockquote>"मैं ऐसा ही एक आर्थिक हत्यारा था ।" - जोन परकीन्स</blockquote>ईक्वाडॉर देश के प्रमुख जेइम रोल्दोस और पनामा के प्रमुख जोमार टोरीजोस ये दोनों विमान में आग लगने से मरे । उनकी मृत्यु अकस्मात नहीं हुई थी। उन्हें मरवाया गया था । क्यों कि वैश्विक साम्राज्य स्थापित करना चाहने वाले कोर्पोरेशन, अमेरिकन सरकार और बैंकों के उच्च अधिकारियों को साथ देने का इन्होंने विरोध किया था । रोल्दोस और टोरीजोस को सीधा करने के प्रयास जो आर्थिक हत्यारों ने किये थे, वे विफल हुए। इसलिए अमेरिकन जासूसी संस्था (CIA) के अधिकृत गुण्डों ने यह काम हाथ में लिया था।
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आर्थिक हत्यारे उच्च वेतन पाने वाले लोग होते हैं । वे सारी दुनियाँ का शोषण कर हजारों अरब डॉलर की लूट करते हैं । विश्व बैंक, अन्तरराष्ट्रीय विकास के लिए बनी यु.एस. एजेन्सी और विदेशी ‘मदद' के लिए स्थापित संस्थाओं में से सम्पूर्ण धन वे आर्थिक हत्यारे पृथ्वी की प्राकृतिक सम्पत्ति का अंकुश जिनके हाथों में है ऐसे विशाल कोर्पोरेशनों की तिजोरियों में और कुछ अरबपति कुटुम्बों की जेबों में ले जाते हैं । ये आर्थिक हत्यारे पैसे के हिसाब की रिपोर्ट तैयार करके चुनावों में प्रपंच रच कर हारजीत करवाते हैं, बहुत बड़ी रकम रिश्वत में देकर, जोर-जबरदस्ती करके, सेक्स के लिए स्त्रियों का उपयोग करके तथा आवश्यकता पड़ने पर हत्या करवाकर भी अपनी गतिविधियाँ करते रहते हैं । पुराने समय में साम्रज्य जो जो गन्दी चालें चला करते थे, उनसे भी अधिक आज के वैश्विकरण के युग में ये गन्दी चालें, जिनकी हम तो कल्पना भी नहीं कर सकते, भयानक मात्रा में बढ़ गई हैं।<blockquote>"मैं ऐसा ही एक आर्थिक हत्यारा था ।" - जोन परकीन्स</blockquote>ईक्वाडॉर देश के प्रमुख जेइम रोल्दोस और पनामा के प्रमुख जोमार टोरीजोस ये दोनों विमान में आग लगने से मरे । उनकी मृत्यु अकस्मात नहीं हुई थी। उन्हें मरवाया गया था । क्यों कि वैश्विक साम्राज्य स्थापित करना चाहने वाले कोर्पोरेशन, अमेरिकन सरकार और बैंकों के उच्च अधिकारियों को साथ देने का इन्होंने विरोध किया था । रोल्दोस और टोरीजोस को सीधा करने के प्रयास जो आर्थिक हत्यारों ने किये थे, वे विफल हुए। अतः अमेरिकन जासूसी संस्था (CIA) के अधिकृत गुण्डों ने यह काम हाथ में लिया था।
    
मुझे यह पुस्तक न लिखने के लिए समझाया गया । गत २० वर्षों में मैंने यह पुस्तक चार बार लिखने का प्रयत्न किया, परन्तु धमकियों अथवा रिश्वत की बहुत बड़ी रकम के कारण पुस्तक लिखना बन्द करने की बात मैं मान गया था। जब मैंने यह पुस्तक लिख दी तो एक भी प्रकाशक ने इसे छापने की हिम्मत नहीं दिखाई। उन्होंने मुझे सुझाया कि इसे मैं उपन्यास के रूप में लिख दूँ तो वे छाप देंगे । किन्तु मैंने उन्हें कहा कि ये कोई उपन्यास नहीं हैं, मेरे जीवन की यह सत्य घटना है । मैं आज जिस स्थिति में हूँ, वहाँ आर्थिक हत्यारे की भाँति काम करके किस प्रकार पहुँचा, इसकी सत्य घटना है, जिसका कोई हल न निकाल सके, ऐसी आपात स्थिति में यह दुनिया कैसे आ गई, उसकी सत्य घटनाएं हैं। इस दुनिया में प्रतिदिन भूख से २४,००० लोग मर जाते हैं। ऐसा क्यों होता है इसकी वास्तविकताएँ इसमें हैं । दुनियाँ के इतिहास में पहली बार ही ऐसा हुआ है कि एक ही देश के पास में दुनिया को जैसे नचाना हो वैसे नचा सके ऐसी शक्ति, सत्ता और धन आ गया है । यह देश है युनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका, जहाँ मैं जन्मा हूँ और जहाँ आर्थिक हत्यारे के पद पर मैंने काम किया है।
 
मुझे यह पुस्तक न लिखने के लिए समझाया गया । गत २० वर्षों में मैंने यह पुस्तक चार बार लिखने का प्रयत्न किया, परन्तु धमकियों अथवा रिश्वत की बहुत बड़ी रकम के कारण पुस्तक लिखना बन्द करने की बात मैं मान गया था। जब मैंने यह पुस्तक लिख दी तो एक भी प्रकाशक ने इसे छापने की हिम्मत नहीं दिखाई। उन्होंने मुझे सुझाया कि इसे मैं उपन्यास के रूप में लिख दूँ तो वे छाप देंगे । किन्तु मैंने उन्हें कहा कि ये कोई उपन्यास नहीं हैं, मेरे जीवन की यह सत्य घटना है । मैं आज जिस स्थिति में हूँ, वहाँ आर्थिक हत्यारे की भाँति काम करके किस प्रकार पहुँचा, इसकी सत्य घटना है, जिसका कोई हल न निकाल सके, ऐसी आपात स्थिति में यह दुनिया कैसे आ गई, उसकी सत्य घटनाएं हैं। इस दुनिया में प्रतिदिन भूख से २४,००० लोग मर जाते हैं। ऐसा क्यों होता है इसकी वास्तविकताएँ इसमें हैं । दुनियाँ के इतिहास में पहली बार ही ऐसा हुआ है कि एक ही देश के पास में दुनिया को जैसे नचाना हो वैसे नचा सके ऐसी शक्ति, सत्ता और धन आ गया है । यह देश है युनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका, जहाँ मैं जन्मा हूँ और जहाँ आर्थिक हत्यारे के पद पर मैंने काम किया है।
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वैश्विक साम्राज्य खड़ा करने के पागलपन में कोर्पोरेशन, बैंक और सरकार (ये सब मिल कर कोर्पोरेटोक्रेसी) स्वयं आर्थिक और राजकीय प्रभाव और दबाव को उपयोग में लेकर जैसा ऊपर बताया है, वह गलत सिद्धान्त और उसमें से फलित होने वाले उपसिद्धान्त को ही अपने स्कूलों में पढ़ाया जाये, व्यापार में यही प्रचलित रहे और मीडिया में भी इसी के गुणगान गाये जायें, इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। यह कोर्पोरेटोक्रेसी अर्थात् कम्पनीशाही को हम खींच कर इस स्तर पर ले आये हैं कि हमारी वैश्विक संस्कृति एक राक्षसी मशीन बन गई है, जो हमेशा अधिक से अधिक ईंधन माँगती है, यहाँ तक कि वह सारी वस्तुएँ खा जायें और हमारा ही नाश करे । यह कोर्पोरेटोक्रेसी का सबसे महत्त्वपूर्ण काम इस पद्धति को लगातार मजबूत करते रहना और उसको फैलाना है। इस काम के लिए मेरे जैसे आर्थिक हत्यारों को कल्पना से भी परे भारी वेतन दिया जाता है । यह सब होते हुए भी हम जहाँ कमजोर पड़ते हैं, वहाँ सच में खूनी गुण्डों को काम सौंप देते हैं और वे भी अगर काम न कर पायें तो सेना द्वारा आक्रमण करवा दिया जाता है।
 
वैश्विक साम्राज्य खड़ा करने के पागलपन में कोर्पोरेशन, बैंक और सरकार (ये सब मिल कर कोर्पोरेटोक्रेसी) स्वयं आर्थिक और राजकीय प्रभाव और दबाव को उपयोग में लेकर जैसा ऊपर बताया है, वह गलत सिद्धान्त और उसमें से फलित होने वाले उपसिद्धान्त को ही अपने स्कूलों में पढ़ाया जाये, व्यापार में यही प्रचलित रहे और मीडिया में भी इसी के गुणगान गाये जायें, इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। यह कोर्पोरेटोक्रेसी अर्थात् कम्पनीशाही को हम खींच कर इस स्तर पर ले आये हैं कि हमारी वैश्विक संस्कृति एक राक्षसी मशीन बन गई है, जो हमेशा अधिक से अधिक ईंधन माँगती है, यहाँ तक कि वह सारी वस्तुएँ खा जायें और हमारा ही नाश करे । यह कोर्पोरेटोक्रेसी का सबसे महत्त्वपूर्ण काम इस पद्धति को लगातार मजबूत करते रहना और उसको फैलाना है। इस काम के लिए मेरे जैसे आर्थिक हत्यारों को कल्पना से भी परे भारी वेतन दिया जाता है । यह सब होते हुए भी हम जहाँ कमजोर पड़ते हैं, वहाँ सच में खूनी गुण्डों को काम सौंप देते हैं और वे भी अगर काम न कर पायें तो सेना द्वारा आक्रमण करवा दिया जाता है।
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मैं जब आर्थिक हत्यारे के रूप में काम करता था, तब मेरे जैसे लोग संख्या में बहुत कम थे। अब तो आर्थिक हत्यारे बहुत बड़ी संख्या में रखे जाते हैं । बड़े बड़े छलना भरे पदों के नाम बहुत सुन्दर सुन्दर रखे जाते हैं। और वे मोनसेन्टो, जनरल इलेक्ट्रीक, नाइके, जनरल मोटर्स, वोलमार्ट जैसी लगभग दुनियाँ की सभी विशाल कम्पनियों में काम करते हैं । “आर्थिक हत्यारे की स्वीकारोक्ति" की यह पुस्तक मुझ पर जितनी लागू होती है, उतनी ही उन सभी कम्पनियों में काम करने वाले आर्थिक हत्यारों को भी लागू  होती है। यह सच्ची वास्तविकता है। यह सब तुम्हें भी लागू होता है । क्यों कि तुम्हारा शोषण करके ही अमेरिका का वैश्विक साम्राज्य बना है। इतिहास हमें कहता है कि अगर इसे हम बदलेंगे नहीं तो इतना पक्का मानना कि बहुत ही खतरनाक परिणाम आने वाले हैं। ऐसे साम्राज्य स्थायी रुप से कभी नहीं रहते । प्रत्येक ऐसे साम्राज्य को बहुत बुरी तरह से बर्बाद किया गया है । हर ऐसा साम्राज्य बहुत बुरे ढंग से नष्ट हुआ है। अपने साम्राज्यवाद का विस्तार करने के प्रायसों में वे अनेक संस्कृतियों का नाश करते हैं और अन्त में उनका स्वयं का भी पतन होता है। दूसरे सभी देशों का शोषण करके मात्र एक ही देश आबाद नहीं रह सकता। मुझे तो यह लगता है कि हम सब निश्चित ही इतना तो समझते ही होंगे कि यह आर्थिक तंत्र हमें किस तरह लूट रहे हैं और प्राकृतिक सम्पत्तियों को लूटने का कभी सन्तोष न हो, ऐसी बड़ी भूख उत्पन्न करते हैं। और अन्त में उसमें से गुलामी को मजबूत करते हैं, इसलिए हमें इसे नहीं चलाना चाहिए। जिस व्यवस्था में थोड़े लोग ही समृद्धि मे लोटते हों और अरबों मनुष्य गरीबी, प्रदूषण और हिंसा में डूब कर मर रहे हों, उस व्यवस्था में हमें क्या करना चाहिए इसकी समीक्षा हम अवश्य करें ।
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मैं जब आर्थिक हत्यारे के रूप में काम करता था, तब मेरे जैसे लोग संख्या में बहुत कम थे। अब तो आर्थिक हत्यारे बहुत बड़ी संख्या में रखे जाते हैं । बड़े बड़े छलना भरे पदों के नाम बहुत सुन्दर सुन्दर रखे जाते हैं। और वे मोनसेन्टो, जनरल इलेक्ट्रीक, नाइके, जनरल मोटर्स, वोलमार्ट जैसी लगभग दुनियाँ की सभी विशाल कम्पनियों में काम करते हैं । “आर्थिक हत्यारे की स्वीकारोक्ति" की यह पुस्तक मुझ पर जितनी लागू होती है, उतनी ही उन सभी कम्पनियों में काम करने वाले आर्थिक हत्यारों को भी लागू  होती है। यह सच्ची वास्तविकता है। यह सब तुम्हें भी लागू होता है । क्यों कि तुम्हारा शोषण करके ही अमेरिका का वैश्विक साम्राज्य बना है। इतिहास हमें कहता है कि अगर इसे हम बदलेंगे नहीं तो इतना पक्का मानना कि बहुत ही खतरनाक परिणाम आने वाले हैं। ऐसे साम्राज्य स्थायी रुप से कभी नहीं रहते । प्रत्येक ऐसे साम्राज्य को बहुत बुरी तरह से बर्बाद किया गया है । हर ऐसा साम्राज्य बहुत बुरे ढंग से नष्ट हुआ है। अपने साम्राज्यवाद का विस्तार करने के प्रायसों में वे अनेक संस्कृतियों का नाश करते हैं और अन्त में उनका स्वयं का भी पतन होता है। दूसरे सभी देशों का शोषण करके मात्र एक ही देश आबाद नहीं रह सकता। मुझे तो यह लगता है कि हम सब निश्चित ही इतना तो समझते ही होंगे कि यह आर्थिक तंत्र हमें किस तरह लूट रहे हैं और प्राकृतिक सम्पत्तियों को लूटने का कभी सन्तोष न हो, ऐसी बड़ी भूख उत्पन्न करते हैं। और अन्त में उसमें से गुलामी को मजबूत करते हैं, अतः हमें इसे नहीं चलाना चाहिए। जिस व्यवस्था में थोड़े लोग ही समृद्धि मे लोटते हों और अरबों मनुष्य गरीबी, प्रदूषण और हिंसा में डूब कर मर रहे हों, उस व्यवस्था में हमें क्या करना चाहिए इसकी समीक्षा हम अवश्य करें ।
    
हम 'आर्थिक हत्यारे' वैश्विक साम्राज्य खड़ा करते हैं। हम सब बहुत सज्जन स्त्री-पुरुष हैं, जो सब अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं का उपयोग करके दूसरे देशों के लिए ऐसी कठिन स्थिति पैदा करते हैं कि उसमें दूसरे देश  हमारी कोर्पोरेटोक्रेसी अर्थात् विशाल कम्पनियों, बैंको और हमारी सरकार के गुलाम बन जाय । हमारे माफिया सहभागीदारों की तरह हमें आर्थिक हत्यारे लालच देते हैं । देश में विकास के नाम पर बिजली के केन्द्र, हाइवे, मार्ग, बन्दरगाह, एयरपोर्ट और औद्योगिक क्षेत्रों को विकसित करने के लिए ऋण देते हैं । इन सभी ऋणों के साथ शर्त होती है कि केवल हमारे देश की इंजिनीयरिंग और निर्माण कार्य करने वाली कम्पनियों को ही वह ठेका देना होगा, अर्थात् जो ऋण देंगे उसके अधिकांश भाग की राशि अमेरिका से बाहर कभी नहीं जाती। लोगों के ये पैसे वाशिंग्टन की बैंकों में से न्यूयार्क, हस्टन और सान्फ्रान्सीस्को की इंजिनीयरिंग ऑफिसों में मात्र ट्रान्सफर होते है । परन्तु ऋण लेने वाले देश तो ऋण की सारी रकम तथा उस पर लगने वाला व्याज भी चुकाने को बाध्य हो जाते हैं, और इस प्रकार कर्ज में डूब जाते हैं। अगर आर्थिक हत्यारा पूर्ण रूप से सफल होता है तो उस देश को इतना बड़ा ऋण दे दिया जाता है कि लेने वाला देश इतनी बड़ी राशि कभी भी चुका न सके और कुछ वर्षों के बाद ही ऋण और ब्याज की किश्त अदा न कर पाये इस स्थिति में आ जाता है। ऐसी लाचार स्थिति में माफियों की तरह हम पूरा लाभ उठाते हैं। बाद में हम उस देश में पुलिस थाना स्थापित करने की माँग करते हैं जिससे तुम्हारी प्राकृतिक सम्पदा-पेट्रोलियम, खनिज आदि ले सकें। और वह कर्ज तो वैसा का वैसा खड़ा ही रहता है। इस तरह देश को गुलाम बनाते हैं और हमारा वैश्विक साम्राज्य बढ़ता हैं।
 
हम 'आर्थिक हत्यारे' वैश्विक साम्राज्य खड़ा करते हैं। हम सब बहुत सज्जन स्त्री-पुरुष हैं, जो सब अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं का उपयोग करके दूसरे देशों के लिए ऐसी कठिन स्थिति पैदा करते हैं कि उसमें दूसरे देश  हमारी कोर्पोरेटोक्रेसी अर्थात् विशाल कम्पनियों, बैंको और हमारी सरकार के गुलाम बन जाय । हमारे माफिया सहभागीदारों की तरह हमें आर्थिक हत्यारे लालच देते हैं । देश में विकास के नाम पर बिजली के केन्द्र, हाइवे, मार्ग, बन्दरगाह, एयरपोर्ट और औद्योगिक क्षेत्रों को विकसित करने के लिए ऋण देते हैं । इन सभी ऋणों के साथ शर्त होती है कि केवल हमारे देश की इंजिनीयरिंग और निर्माण कार्य करने वाली कम्पनियों को ही वह ठेका देना होगा, अर्थात् जो ऋण देंगे उसके अधिकांश भाग की राशि अमेरिका से बाहर कभी नहीं जाती। लोगों के ये पैसे वाशिंग्टन की बैंकों में से न्यूयार्क, हस्टन और सान्फ्रान्सीस्को की इंजिनीयरिंग ऑफिसों में मात्र ट्रान्सफर होते है । परन्तु ऋण लेने वाले देश तो ऋण की सारी रकम तथा उस पर लगने वाला व्याज भी चुकाने को बाध्य हो जाते हैं, और इस प्रकार कर्ज में डूब जाते हैं। अगर आर्थिक हत्यारा पूर्ण रूप से सफल होता है तो उस देश को इतना बड़ा ऋण दे दिया जाता है कि लेने वाला देश इतनी बड़ी राशि कभी भी चुका न सके और कुछ वर्षों के बाद ही ऋण और ब्याज की किश्त अदा न कर पाये इस स्थिति में आ जाता है। ऐसी लाचार स्थिति में माफियों की तरह हम पूरा लाभ उठाते हैं। बाद में हम उस देश में पुलिस थाना स्थापित करने की माँग करते हैं जिससे तुम्हारी प्राकृतिक सम्पदा-पेट्रोलियम, खनिज आदि ले सकें। और वह कर्ज तो वैसा का वैसा खड़ा ही रहता है। इस तरह देश को गुलाम बनाते हैं और हमारा वैश्विक साम्राज्य बढ़ता हैं।
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ये सभी लोग - ईक्वाडोर में लाखों और पूरी दुनियाँ में करोड़ों लोग - संभावित आतंकवादी हैं। ये कोई साम्यवादी नहीं हैं या अराजकवादी नहीं हैं और मूल रुपसे अनिष्ट लोग नहीं है, परन्तु वे अन्याय से पूर्णतया हताश हो चुके हैं।
 
ये सभी लोग - ईक्वाडोर में लाखों और पूरी दुनियाँ में करोड़ों लोग - संभावित आतंकवादी हैं। ये कोई साम्यवादी नहीं हैं या अराजकवादी नहीं हैं और मूल रुपसे अनिष्ट लोग नहीं है, परन्तु वे अन्याय से पूर्णतया हताश हो चुके हैं।
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हम आर्थिक हत्यारे षडयंत्र करने वाले शठ मनुष्य होते हैं । हम इतिहास से सीखे हुए हैं । इसलिए हम तलवार नहीं रखते, हम कवच भी नहीं पहनते, जिससे हम अलग रूप में दिखें । ईक्वेडोर, इण्डोनेशिया और नाइजिरीया जैसे देशों में हम दुकानदार या शिक्षक के जैसा पहनावा पहनते हैं। वॉशिंगटन और पेरिस में हम सरकारी अधिकारियों और बैंक अधिकारियों जैसे दिखाई देते हैं । हम प्रोजेक्ट साइट की जानकारी लेते हैं और गरीबी में डूबे गाँव में भी चक्कर लगा लेते हैं। हम परोपकार और परमार्थ की वकालत करते हैं । और स्थानीय अखबारों के साथ हम आश्चर्यजनक रूप से मानवतावादी कामकाज करते रहने का वचन देते हैं। सरकारी समितियों की कॉन्फरन्स टेबल पर बड़े बड़े कागजों पर बनाये हुए धन्धों के चमत्कारिक परिणाम के बारे में हार्वर्ड बिजनस स्कूल में भाषण देते हैं । दस्तावेजों पर खुल्लम खुल्ला हमारा नाम होता है। हम इस तरह अपने आपको आर्थिक विकास के निष्णात के रुप में प्रस्तुत करते हैं और बड़े निष्णात के रूप में लोक हमारा स्वीकार करते हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण पद्धति काम करती है। हम लगभग कभी गैरकानूनी काम नहीं करते हैं । क्यों कि सम्पूर्ण पद्धति ही कानून सम्मत है और समस्त पद्धतियाँ शोषण के लिए ही बनाई हुई हैं । ऐसा होते हुए भी अगर हम आर्थिक हत्यारे के रूप में विफल होते हैं तो अधिक पापी, गुंडे लोग काम को अपने हाथ में लेते हैं, जिन्हें हम आर्थिक हत्यारे 'जेकल' (अर्थात् खूनी) कहते हैं । ये लोग पुराने साम्राज्य के काले कारनामे करने वालों के वारिस ही माने जाते हैं । ये सभी जेकल, हमारे पीछे हमारी छाया की तरह सदैव खड़े मिलते हैं। जब ये चित्र में आते हैं, तब देश के जो प्रमुख होते हैं उन्हें भी सत्ता से उखाड़ फेंक दिया जाता हैं । अथवा वे हिंसक दुर्घटना में मारे जाते हैं। और कदाचित जेकल भी विफल हो जाय तो पुराने तरीके आजमाने पड़ते हैं । अर्थात् युद्ध किया जाता है, जिसमें युवा अमेरिकनों को मारने या मरने के लिए भेजा जाता है।
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हम आर्थिक हत्यारे षडयंत्र करने वाले शठ मनुष्य होते हैं । हम इतिहास से सीखे हुए हैं । अतः हम तलवार नहीं रखते, हम कवच भी नहीं पहनते, जिससे हम अलग रूप में दिखें । ईक्वेडोर, इण्डोनेशिया और नाइजिरीया जैसे देशों में हम दुकानदार या शिक्षक के जैसा पहनावा पहनते हैं। वॉशिंगटन और पेरिस में हम सरकारी अधिकारियों और बैंक अधिकारियों जैसे दिखाई देते हैं । हम प्रोजेक्ट साइट की जानकारी लेते हैं और गरीबी में डूबे गाँव में भी चक्कर लगा लेते हैं। हम परोपकार और परमार्थ की वकालत करते हैं । और स्थानीय अखबारों के साथ हम आश्चर्यजनक रूप से मानवतावादी कामकाज करते रहने का वचन देते हैं। सरकारी समितियों की कॉन्फरन्स टेबल पर बड़े बड़े कागजों पर बनाये हुए धन्धों के चमत्कारिक परिणाम के बारे में हार्वर्ड बिजनस स्कूल में भाषण देते हैं । दस्तावेजों पर खुल्लम खुल्ला हमारा नाम होता है। हम इस तरह अपने आपको आर्थिक विकास के निष्णात के रुप में प्रस्तुत करते हैं और बड़े निष्णात के रूप में लोक हमारा स्वीकार करते हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण पद्धति काम करती है। हम लगभग कभी गैरकानूनी काम नहीं करते हैं । क्यों कि सम्पूर्ण पद्धति ही कानून सम्मत है और समस्त पद्धतियाँ शोषण के लिए ही बनाई हुई हैं । ऐसा होते हुए भी अगर हम आर्थिक हत्यारे के रूप में विफल होते हैं तो अधिक पापी, गुंडे लोग काम को अपने हाथ में लेते हैं, जिन्हें हम आर्थिक हत्यारे 'जेकल' (अर्थात् खूनी) कहते हैं । ये लोग पुराने साम्राज्य के काले कारनामे करने वालों के वारिस ही माने जाते हैं । ये सभी जेकल, हमारे पीछे हमारी छाया की तरह सदैव खड़े मिलते हैं। जब ये चित्र में आते हैं, तब देश के जो प्रमुख होते हैं उन्हें भी सत्ता से उखाड़ फेंक दिया जाता हैं । अथवा वे हिंसक दुर्घटना में मारे जाते हैं। और कदाचित जेकल भी विफल हो जाय तो पुराने तरीके आजमाने पड़ते हैं । अर्थात् युद्ध किया जाता है, जिसमें युवा अमेरिकनों को मारने या मरने के लिए भेजा जाता है।
    
मैं जिस कम्पनी में आर्थिक हत्यारे के रूप में नौकरी करता था, उसमें अधिकांश लोग तो इंजिनयीर थे। परन्तु हमारे पास निर्माण कार्य के लिए कुछ भी साधन नहीं थे । हमने कभी भी कोई छत भी बाँधी नहीं थी। मैंने जब नौकरी में प्रवेश लिया तब कुछ महिनों तक तो समझ ही नहीं सका कि मेरी कम्पनी काम क्या करती है। हमें सभी बातें अत्यन्त गुप्त रखनी होती थीं। एक दिन मुझे मेरी अधिकारी महिला ने समझाया कि उसका काम मुझे आर्थिक हत्यारा बनाने का है। उसने मुझे समझाया कि हम कहीं ढूँढने से भी न मिले, ऐसे वंश के लोग हैं । हमें बहुत सारे खराब काम करने हैं और उसकी जानकारी कभी भी किसी को नहीं होनी चाहिए। तुम्हारी पत्नी को भी नहीं । तुम इस काम में आये हो वह अब पूरी जिंदगी के लिए है।
 
मैं जिस कम्पनी में आर्थिक हत्यारे के रूप में नौकरी करता था, उसमें अधिकांश लोग तो इंजिनयीर थे। परन्तु हमारे पास निर्माण कार्य के लिए कुछ भी साधन नहीं थे । हमने कभी भी कोई छत भी बाँधी नहीं थी। मैंने जब नौकरी में प्रवेश लिया तब कुछ महिनों तक तो समझ ही नहीं सका कि मेरी कम्पनी काम क्या करती है। हमें सभी बातें अत्यन्त गुप्त रखनी होती थीं। एक दिन मुझे मेरी अधिकारी महिला ने समझाया कि उसका काम मुझे आर्थिक हत्यारा बनाने का है। उसने मुझे समझाया कि हम कहीं ढूँढने से भी न मिले, ऐसे वंश के लोग हैं । हमें बहुत सारे खराब काम करने हैं और उसकी जानकारी कभी भी किसी को नहीं होनी चाहिए। तुम्हारी पत्नी को भी नहीं । तुम इस काम में आये हो वह अब पूरी जिंदगी के लिए है।
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मेरा काम विशाल अन्तरराष्ट्रीय ऋणों को उचित ठहराना था । उस ऋण की रकम बेथेल, हलीबर्टन, स्टोन एण्ड वेबस्टर, ब्राउन एण्ड रुट, प्रोजेक्ट के द्वारा मिलने वाली थी। साथ ही यह भी देखना था कि जो देश ये ऋण लेंगे वे हमारा ऋण तो उतार दें परन्तु उसके बाद दिवालिया हो जाने चाहिए। जिससे वे हमेशा के  लिए हमसे दबकर रहें। और हम इनका मनमाना उपयोग अपना हित साधने के लिए कर सकें । ऋणों को उचित ठहराने के लिए मुझे आँकड़ों की गणना के द्वारा यह समझाना होता था कि इससे कितना विकास होगा। इसमें सबसे मुख्य आँकड़ा अर्थात् ग्रोस नेशनल प्रोडक्ट की गणना कर बताना होता था। जिस प्रोजेक्ट में जीएनपी सबसे अधिक बढ़ती है, वह प्रोजेक्ट जीत जाता है। मेरा रेल्वे लाइन डालने का प्रोजेक्ट, दूर संचार (टेली कोम्युनिकेशन) का जाल बिछाने का प्रोजेक्ट, हाइवे, बन्दरगाह, एयरपोर्ट के निर्माण कार्य के प्रोजेक्ट आदि के लिए ऋण लें, यह समझाने का काम था। जिस किसी प्रोजेक्ट को उचित ठहराना हो, तो उससे जीएनपी बहुत बढ़ेगी यह समझाना ताकि वह प्रोजेक्ट स्वीकृत हो जाय । ऐसे प्रत्येक प्रोजेक्ट के विषय में अन्दर की बिल्कुल छिपी बात यह थी कि हमारे देश की ठेका लेने वाली (कोन्ट्राक्टर) कम्पनियों को जंगी नफा जमा कर देने का उद्देश्य था, और ऋण लेने वाले देश के मुट्ठी भर धनवान लोग और प्रभावी परिवार ही अति सुखी होंगे, यह भी हम छिपाकर रखते थे। साथ ही हम यह निश्चितता भी करते रहते थे कि लम्बी अवधि में वित्तीय मजबूरियों में देश अवश्य फँस जायेगा । जिससे हम उस देश को अपना राजकीय मोहरा बना सकें । इसलिए ऋण जितने जंगी होते थे, उतना ही अच्छा रहता था। जिस किसी देश पर लादे गये कर्ज के पहाड़ से उस देश के गरीब से गरीब मनुष्यों को मिलने वाली आरोग्य, शिक्षा और अन्य सामाजिक सेवायें दशकों तक बन्द हो जायेगी, इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया जाता था । क्यों कि हम तो उसे गुप्त रखते थे।
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मेरा काम विशाल अन्तरराष्ट्रीय ऋणों को उचित ठहराना था । उस ऋण की रकम बेथेल, हलीबर्टन, स्टोन एण्ड वेबस्टर, ब्राउन एण्ड रुट, प्रोजेक्ट के द्वारा मिलने वाली थी। साथ ही यह भी देखना था कि जो देश ये ऋण लेंगे वे हमारा ऋण तो उतार दें परन्तु उसके बाद दिवालिया हो जाने चाहिए। जिससे वे हमेशा के  लिए हमसे दबकर रहें। और हम इनका मनमाना उपयोग अपना हित साधने के लिए कर सकें । ऋणों को उचित ठहराने के लिए मुझे आँकड़ों की गणना के द्वारा यह समझाना होता था कि इससे कितना विकास होगा। इसमें सबसे मुख्य आँकड़ा अर्थात् ग्रोस नेशनल प्रोडक्ट की गणना कर बताना होता था। जिस प्रोजेक्ट में जीएनपी सबसे अधिक बढ़ती है, वह प्रोजेक्ट जीत जाता है। मेरा रेल्वे लाइन डालने का प्रोजेक्ट, दूर संचार (टेली कोम्युनिकेशन) का जाल बिछाने का प्रोजेक्ट, हाइवे, बन्दरगाह, एयरपोर्ट के निर्माण कार्य के प्रोजेक्ट आदि के लिए ऋण लें, यह समझाने का काम था। जिस किसी प्रोजेक्ट को उचित ठहराना हो, तो उससे जीएनपी बहुत बढ़ेगी यह समझाना ताकि वह प्रोजेक्ट स्वीकृत हो जाय । ऐसे प्रत्येक प्रोजेक्ट के विषय में अन्दर की बिल्कुल छिपी बात यह थी कि हमारे देश की ठेका लेने वाली (कोन्ट्राक्टर) कम्पनियों को जंगी नफा जमा कर देने का उद्देश्य था, और ऋण लेने वाले देश के मुट्ठी भर धनवान लोग और प्रभावी परिवार ही अति सुखी होंगे, यह भी हम छिपाकर रखते थे। साथ ही हम यह निश्चितता भी करते रहते थे कि लम्बी अवधि में वित्तीय मजबूरियों में देश अवश्य फँस जायेगा । जिससे हम उस देश को अपना राजकीय मोहरा बना सकें । अतः ऋण जितने जंगी होते थे, उतना ही अच्छा रहता था। जिस किसी देश पर लादे गये कर्ज के पहाड़ से उस देश के गरीब से गरीब मनुष्यों को मिलने वाली आरोग्य, शिक्षा और अन्य सामाजिक सेवायें दशकों तक बन्द हो जायेगी, इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया जाता था । क्यों कि हम तो उसे गुप्त रखते थे।
    
मेरी उच्च महिला अधिकारी “क्लाउडीन" और मैं खुली चर्चा करते कि यह जीएनपी (ग्रोस नेशनल प्रोजेक्ट) का आँकड़ा कितना छलावा करने वाला है। उदाहरण के लिए एक भी व्यक्ति अरबपति बनता है तो भी जीएनपी तो बढ़ती ही है। कोई अरबपति व्यक्ति बिजली की कम्पनी का मालिक हो और वह ढ़ेरों धन कमावे और सारा देश कर्ज में डूब जाय तब भी जीएनपी का आँकड़ा तो बढ़ता ही है और वह विकास माना जाता है। गरीब अधिक गरीब होता है और धनवान अधिक धनी होता जाता है तब भी जीएनपी बढ़ता है और आर्थिक विकास हुआ, यह माना जाता है।
 
मेरी उच्च महिला अधिकारी “क्लाउडीन" और मैं खुली चर्चा करते कि यह जीएनपी (ग्रोस नेशनल प्रोजेक्ट) का आँकड़ा कितना छलावा करने वाला है। उदाहरण के लिए एक भी व्यक्ति अरबपति बनता है तो भी जीएनपी तो बढ़ती ही है। कोई अरबपति व्यक्ति बिजली की कम्पनी का मालिक हो और वह ढ़ेरों धन कमावे और सारा देश कर्ज में डूब जाय तब भी जीएनपी का आँकड़ा तो बढ़ता ही है और वह विकास माना जाता है। गरीब अधिक गरीब होता है और धनवान अधिक धनी होता जाता है तब भी जीएनपी बढ़ता है और आर्थिक विकास हुआ, यह माना जाता है।
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हमने यह निश्चित किया कि साउदी अरब में राक्षसी कद के विशाल उद्योग विकसित किया जाय और उसके रण में पेट्रोलियम रिफाइनरियाँ स्थापित करके पेट्रोलियम का एक्सपोर्ट किया जाय । उसके लिए जंगी औद्योगिक क्षेत्रों को बसाना, उनके लिए हजारों मेगावाट के विद्युत केन्द्र खड़े करना, उनकी ट्रान्समिशन लाइनें डालना, हाइवे, पाइपलाइन, दूरसंचार के नेटवर्क, ट्रान्सपोर्ट, नये एयरपोर्ट स्थापित करना, बन्दरगाह विकसित करना, अनेक प्रकार की सेवा उद्योग श्रेणी और यह सब चालू रखने के लिए जरुरी आधारभूत ढाँचा खड़ा किया जाय । हमें बहुत ऊँची आशा थी कि ऐसा एक मॉडल खड़ा हो तो शेष दुनिया को दिखाकर साउदी हमारा गुणगान करेंगे । अनेक देश के नेताओं को आमंत्रण देकर हमारा किया हुआ जादुई विकास बतायेंगे और दूसरे देश के नेता अपने देश में ऐसा ही करने के लिए हमें विनती करेंगे । और जहाँ पेट्रोलियम नहीं निकलता ऐसे देश विश्व बैंक से लोन लेकर ऐसा करने के लिए ललचायेंगे । इतने लोन देकर उन्हें कर्ज में डूबो देने की हमारी नीति जीतेगी और अमेरिका वैश्विक साम्राज्य स्थापित करने में सफल होगा ।
 
हमने यह निश्चित किया कि साउदी अरब में राक्षसी कद के विशाल उद्योग विकसित किया जाय और उसके रण में पेट्रोलियम रिफाइनरियाँ स्थापित करके पेट्रोलियम का एक्सपोर्ट किया जाय । उसके लिए जंगी औद्योगिक क्षेत्रों को बसाना, उनके लिए हजारों मेगावाट के विद्युत केन्द्र खड़े करना, उनकी ट्रान्समिशन लाइनें डालना, हाइवे, पाइपलाइन, दूरसंचार के नेटवर्क, ट्रान्सपोर्ट, नये एयरपोर्ट स्थापित करना, बन्दरगाह विकसित करना, अनेक प्रकार की सेवा उद्योग श्रेणी और यह सब चालू रखने के लिए जरुरी आधारभूत ढाँचा खड़ा किया जाय । हमें बहुत ऊँची आशा थी कि ऐसा एक मॉडल खड़ा हो तो शेष दुनिया को दिखाकर साउदी हमारा गुणगान करेंगे । अनेक देश के नेताओं को आमंत्रण देकर हमारा किया हुआ जादुई विकास बतायेंगे और दूसरे देश के नेता अपने देश में ऐसा ही करने के लिए हमें विनती करेंगे । और जहाँ पेट्रोलियम नहीं निकलता ऐसे देश विश्व बैंक से लोन लेकर ऐसा करने के लिए ललचायेंगे । इतने लोन देकर उन्हें कर्ज में डूबो देने की हमारी नीति जीतेगी और अमेरिका वैश्विक साम्राज्य स्थापित करने में सफल होगा ।
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इस विकास में से फिर और अधिक विकास के अवसर मिले। मजदूरों के लिए घर चाहिए, उनके लिए मकान निर्माण कार्य के संकुल चाहिए, उनके लिए बाजारों के शोपिंग सेन्टर या मॉल, अस्पताल, फायर स्टेशन से लेकर पुलिस चौकियाँ तक के भवन, पानी के स्रोत तथा गन्दा पानी निकास के प्लान्ट, बिजली, सन्देश-व्यवहार, ट्रान्सपोर्टेशन का मायाजाल, ऐसे पूरे के पूरे आधुनिक शहर ही खड़े करने होंगे । फिर यह सब पूरे रण में खड़ा करना होगा। समुद्र के खारे पानी को मीठा पानी बनाने के प्लान्ट, स्वास्थ्य सेवाओं के संकुल, कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी आदि जेसे जंगी अवसर मिलेंगे । इतिहास में कभी न हुआ हो ऐसे जंगी अवसर । फिर इनके पास पेट्रोलियम का अनाप-शनाप पैसा है ही। हमारा मुख्य हेतु उनका धन अमेरिका में आ जाय और साउदी अरब हम पर निर्भर बन जाय, यह था । हम मात्र निर्माण काम ही खड़ा करके दे देंगे, इतना ही नहीं अपितु सभी तंत्र चलाते रहने का रखरखाव का ठेका भी ले लिया । अर्थात् ऐसा आयोजन किया कि मेइन, बेचेल, ब्राउन और रुट, हली बर्टन, स्टोन एण्ड वेबस्टर जैसी अनेक कम्पनियों की आने वाले दशकों तक कमाई के ठाटबाट हो जाय । फिर इस में से एक नई बात निकली कि सउदी अरब का विकास हो यह रुढ़िवादी मुस्लिमों को पसन्द नहीं आयेगा । इजराइल और पड़ौसी देशों को धमकी के रूप में लगेगा । इसमें से युद्ध के भय के कारण मिलिट्री के बड़े बड़े ठेके मिलेंगे और इन कामों के रख रखाव के ठेके भी मिलेंगे। इसमें से पुलिसथाना, मिसाइल की जगह एयरपोर्ट और सेना के साथ जुड़े हुए ढाँचागत व्यवस्थाओं के ठेके आदि । साउदी अरब को विकास के नाम पर लूट लेने की इस सम्पूर्ण योजना को हमने SAMA नाम दिया । SAMA अर्थात् “साउदी अरब मनी लोण्डरिंग अफेर” । यह हमारा गुप्त नाम था । परन्तु “साउदी अरब मोनेटरी एजेन्सी” | अर्थात SAMA नाम वहाँ पर था ही। संक्षेप में हमें लगता था कि हम सभी निवृत्त हो जायेंगे, तबतक इस गाय को दुहते ही रहना है। इसलिए १९७३ में जो तेल का संकट पैदा हुआ, वह हमारे लिए अकल्पनीय आशीर्वाद बन गया जो अन्त में हमें वैश्विक साम्राज्य की ओर ले गया ।
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इस विकास में से फिर और अधिक विकास के अवसर मिले। मजदूरों के लिए घर चाहिए, उनके लिए मकान निर्माण कार्य के संकुल चाहिए, उनके लिए बाजारों के शोपिंग सेन्टर या मॉल, अस्पताल, फायर स्टेशन से लेकर पुलिस चौकियाँ तक के भवन, पानी के स्रोत तथा गन्दा पानी निकास के प्लान्ट, बिजली, सन्देश-व्यवहार, ट्रान्सपोर्टेशन का मायाजाल, ऐसे पूरे के पूरे आधुनिक शहर ही खड़े करने होंगे । फिर यह सब पूरे रण में खड़ा करना होगा। समुद्र के खारे पानी को मीठा पानी बनाने के प्लान्ट, स्वास्थ्य सेवाओं के संकुल, कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी आदि जेसे जंगी अवसर मिलेंगे । इतिहास में कभी न हुआ हो ऐसे जंगी अवसर । फिर इनके पास पेट्रोलियम का अनाप-शनाप पैसा है ही। हमारा मुख्य हेतु उनका धन अमेरिका में आ जाय और साउदी अरब हम पर निर्भर बन जाय, यह था । हम मात्र निर्माण काम ही खड़ा करके दे देंगे, इतना ही नहीं अपितु सभी तंत्र चलाते रहने का रखरखाव का ठेका भी ले लिया । अर्थात् ऐसा आयोजन किया कि मेइन, बेचेल, ब्राउन और रुट, हली बर्टन, स्टोन एण्ड वेबस्टर जैसी अनेक कम्पनियों की आने वाले दशकों तक कमाई के ठाटबाट हो जाय । फिर इस में से एक नई बात निकली कि सउदी अरब का विकास हो यह रुढ़िवादी मुस्लिमों को पसन्द नहीं आयेगा । इजराइल और पड़ौसी देशों को धमकी के रूप में लगेगा । इसमें से युद्ध के भय के कारण मिलिट्री के बड़े बड़े ठेके मिलेंगे और इन कामों के रख रखाव के ठेके भी मिलेंगे। इसमें से पुलिसथाना, मिसाइल की जगह एयरपोर्ट और सेना के साथ जुड़े हुए ढाँचागत व्यवस्थाओं के ठेके आदि । साउदी अरब को विकास के नाम पर लूट लेने की इस सम्पूर्ण योजना को हमने SAMA नाम दिया । SAMA अर्थात् “साउदी अरब मनी लोण्डरिंग अफेर” । यह हमारा गुप्त नाम था । परन्तु “साउदी अरब मोनेटरी एजेन्सी” | अर्थात SAMA नाम वहाँ पर था ही। संक्षेप में हमें लगता था कि हम सभी निवृत्त हो जायेंगे, तबतक इस गाय को दुहते ही रहना है। अतः १९७३ में जो तेल का संकट पैदा हुआ, वह हमारे लिए अकल्पनीय आशीर्वाद बन गया जो अन्त में हमें वैश्विक साम्राज्य की ओर ले गया ।
    
राष्ट्रपति बुश, साउदी अरब का मुख्य घर और ओसामा बिन लादेन के व्यापारिक सम्बन्धों के बारे में जो बात प्रकट हुई, उससे मुझे तनिक भी आश्चर्य नहीं लगा। मुझे तो उनके सम्बन्ध ठेठ १९७८ से हैं अर्थात् पुराने हैं. इसकी जानकारी थी।
 
राष्ट्रपति बुश, साउदी अरब का मुख्य घर और ओसामा बिन लादेन के व्यापारिक सम्बन्धों के बारे में जो बात प्रकट हुई, उससे मुझे तनिक भी आश्चर्य नहीं लगा। मुझे तो उनके सम्बन्ध ठेठ १९७८ से हैं अर्थात् पुराने हैं. इसकी जानकारी थी।

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