Line 30: |
Line 30: |
| | | |
| == शिक्षा पदार्थ नहीं है == | | == शिक्षा पदार्थ नहीं है == |
− | शिक्षा को आज भौतिक पदार्थ की तरह क्रयविक्रय का पदार्थ माना जाता है और उसका बाजारीकरण हुआ है, इसीलिए यह मुद्दा बताने की आवश्यकता होती है । शिक्षा का उपभोग भौतिक पदार्थ की तरह ज्ञानेन्ट्रियों से नहीं किया जाता । वह अन्न की तरह शरीर को पोषण नहीं देती, वह वस्त्र की तरह शरीर का रक्षण नहीं करती और अपने रंगो और आकारों के कारण आँखों और मन को सुख नहीं देती । वह कामनापूर्ति का आनंद भी नहीं देती। वह धन का संग्रह करते हैं उस प्रकार संग्रह में रखने लायक भी नहीं है । वह सुविधाओं के कारण सुलभ नहीं होती । वह किसीकी प्रशंसा करके प्राप्त नहीं की जाती । वह धनी माता पिता के घर में जन्म लेने के कारण सुलभ नहीं होती । वह किसी से छीनी नहीं जाती । वह छिपाकर रखी नहीं जाती । उसे तो बुद्धि, मन और हृदय से अर्जित करनी होती है । वह स्वप्रयास से ही प्राप्त होती है । वह साधना का विषय है, वह साधनों से प्राप्त नहीं होती । तात्पर्य यह है कि वह अपने अन्दर होती है, अपने साथ होती है, अपने ही प्रयासों से अपने में से ही प्रकट होती है । इसलिए शिक्षा का स्वरूप भौतिक नहीं है । उसका क्रय विक्रय नहीं हो सकता । उसका बाजार नहीं हो सकता | यहाँ शिक्षा ज्ञान के पर्याय के रूप में बताई गई है । इसलिए शिक्षा के तन्त्र में धन, मान, प्रतिष्ठा, सत्ता, सुविधा, भय, दण्ड आदि का कोई स्थान नहीं है । वह स्वेच्छा, स्वतन्त्रता और स्वपुरुषार्थ से ही प्राप्त होती है । | + | शिक्षा को आज भौतिक पदार्थ की तरह क्रयविक्रय का पदार्थ माना जाता है और उसका बाजारीकरण हुआ है, इसीलिए यह मुद्दा बताने की आवश्यकता होती है । शिक्षा का उपभोग भौतिक पदार्थ की तरह ज्ञानेन्ट्रियों से नहीं किया जाता । वह अन्न की तरह शरीर को पोषण नहीं देती, वह वस्त्र की तरह शरीर का रक्षण नहीं करती और अपने रंगो और आकारों के कारण आँखों और मन को सुख नहीं देती । वह कामनापूर्ति का आनंद भी नहीं देती। वह धन का संग्रह करते हैं उस प्रकार संग्रह में रखने लायक भी नहीं है । वह सुविधाओं के कारण सुलभ नहीं होती । वह किसीकी प्रशंसा करके प्राप्त नहीं की जाती । वह धनी माता पिता के घर में जन्म लेने के कारण सुलभ नहीं होती । वह किसी से छीनी नहीं जाती । वह छिपाकर रखी नहीं जाती । उसे तो बुद्धि, मन और हृदय से अर्जित करनी होती है । वह स्वप्रयास से ही प्राप्त होती है । वह साधना का विषय है, वह साधनों से प्राप्त नहीं होती । तात्पर्य यह है कि वह अपने अन्दर होती है, अपने साथ होती है, अपने ही प्रयासों से अपने में से ही प्रकट होती है । अतः शिक्षा का स्वरूप भौतिक नहीं है । उसका क्रय विक्रय नहीं हो सकता । उसका बाजार नहीं हो सकता | यहाँ शिक्षा ज्ञान के पर्याय के रूप में बताई गई है । अतः शिक्षा के तन्त्र में धन, मान, प्रतिष्ठा, सत्ता, सुविधा, भय, दण्ड आदि का कोई स्थान नहीं है । वह स्वेच्छा, स्वतन्त्रता और स्वपुरुषार्थ से ही प्राप्त होती है । |
| | | |
| == मनुष्य को मनुष्य बनाने के लिए शिक्षा होती है == | | == मनुष्य को मनुष्य बनाने के लिए शिक्षा होती है == |
Line 75: |
Line 75: |
| # ये पाँच उसका व्यक्त स्वरूप दर्शाते हैं । इस व्यक्त स्वरूप के पीछे उसका एक अव्यक्त स्वरूप है । वह अव्यक्त स्वरूप है आत्मा । | | # ये पाँच उसका व्यक्त स्वरूप दर्शाते हैं । इस व्यक्त स्वरूप के पीछे उसका एक अव्यक्त स्वरूप है । वह अव्यक्त स्वरूप है आत्मा । |
| # यह अव्यक्त स्वरूप ही उसका सत्य स्वरूप है, मूल स्वरूप है । | | # यह अव्यक्त स्वरूप ही उसका सत्य स्वरूप है, मूल स्वरूप है । |
− | # शास्त्र कहते हैं कि अव्यक्त स्वरूप ही व्यक्त हुआ है। इसलिए व्यक्त और अव्यक्त ऐसे दो भेद नहीं हैं। अव्यक्त आत्मा ही शरीर, प्राण आदि में व्यक्त हुआ है । व्यक्त स्वरूप के मूल अव्यक्त स्वरूप की अनुभूति करना और उस अनुभूति के आधार पर इस जगत में व्यवहार करना यह ज्ञान है । सर्व शिक्षा का लक्ष्य इस ज्ञान को प्राप्त करना है । इस ज्ञान को ब्रह्मज्ञान कहते हैं । ज्ञान का अर्थ ही ब्रह्मज्ञान है। ब्रह्मज्ञान आत्मस्वरूप है। जिस प्रकार आत्मा शरीर, प्राण, मन, बुद्धि, चित्त आदि के रूप में व्यक्त हुई है, उस प्रकार ब्रह्मज्ञान विभिन्न स्तरों पर जानकारी, विचार, भावना, विवेक आदि के रूप में प्रकट होता है । ज्ञान प्रकट होता है इसका अर्थ है ज्ञान प्राप्त होता है । अर्थात् जगत का सर्व ज्ञान भी आत्मज्ञान अथवा ब्रह्मज्ञान का ही स्वरूप है । | + | # शास्त्र कहते हैं कि अव्यक्त स्वरूप ही व्यक्त हुआ है। अतः व्यक्त और अव्यक्त ऐसे दो भेद नहीं हैं। अव्यक्त आत्मा ही शरीर, प्राण आदि में व्यक्त हुआ है । व्यक्त स्वरूप के मूल अव्यक्त स्वरूप की अनुभूति करना और उस अनुभूति के आधार पर इस जगत में व्यवहार करना यह ज्ञान है । सर्व शिक्षा का लक्ष्य इस ज्ञान को प्राप्त करना है । इस ज्ञान को ब्रह्मज्ञान कहते हैं । ज्ञान का अर्थ ही ब्रह्मज्ञान है। ब्रह्मज्ञान आत्मस्वरूप है। जिस प्रकार आत्मा शरीर, प्राण, मन, बुद्धि, चित्त आदि के रूप में व्यक्त हुई है, उस प्रकार ब्रह्मज्ञान विभिन्न स्तरों पर जानकारी, विचार, भावना, विवेक आदि के रूप में प्रकट होता है । ज्ञान प्रकट होता है इसका अर्थ है ज्ञान प्राप्त होता है । अर्थात् जगत का सर्व ज्ञान भी आत्मज्ञान अथवा ब्रह्मज्ञान का ही स्वरूप है । |
| # धार्मिक जीवनदृष्टि का और धार्मिक शिक्षा का यह मूल सिद्धांत है । इसे ठीक से जानना धार्मिक शिक्षा के स्वरूप को जानने के लिये समुचित प्रस्थान है । अब हम मनुष्य के अव्यक्त और व्यक्त रूप को जानने का प्रयास करेंगे । | | # धार्मिक जीवनदृष्टि का और धार्मिक शिक्षा का यह मूल सिद्धांत है । इसे ठीक से जानना धार्मिक शिक्षा के स्वरूप को जानने के लिये समुचित प्रस्थान है । अब हम मनुष्य के अव्यक्त और व्यक्त रूप को जानने का प्रयास करेंगे । |
| | | |
Line 177: |
Line 177: |
| | | |
| === पूर्वजन्म के संस्कार === | | === पूर्वजन्म के संस्कार === |
− | संस्कार सूक्ष्म शरीर में रहते हैं । मृत्यु के बाद स्थूल शरीर छूट जाता है, किन्तु सूक्ष्म शरीर दूसरे जन्म में भी जीव के साथ ही रहता है । इसलिए संस्कार भी एक जन्म से दूसरे जन्म में सूक्ष्म शरीर के साथ ही जाते हैं । संस्कार कर्मफल निःशेष भोगने पर लुप्त हो जाते हैं परन्तु कर्मफल भोगते समय ही नये संस्कार बनते रहते हैं । इस प्रकार संस्कार परंपरा तो बनी ही रहती है । संस्कार अनुरूप निमित्त मिलते ही प्रकट होते रहते हैं । केवल निर्विकल्प समाधि से ही इन संस्कारों का पूर्ण लोप होता है ।एक बार बने हुए संस्कार बदल नहीं सकते । | + | संस्कार सूक्ष्म शरीर में रहते हैं । मृत्यु के बाद स्थूल शरीर छूट जाता है, किन्तु सूक्ष्म शरीर दूसरे जन्म में भी जीव के साथ ही रहता है । अतः संस्कार भी एक जन्म से दूसरे जन्म में सूक्ष्म शरीर के साथ ही जाते हैं । संस्कार कर्मफल निःशेष भोगने पर लुप्त हो जाते हैं परन्तु कर्मफल भोगते समय ही नये संस्कार बनते रहते हैं । इस प्रकार संस्कार परंपरा तो बनी ही रहती है । संस्कार अनुरूप निमित्त मिलते ही प्रकट होते रहते हैं । केवल निर्विकल्प समाधि से ही इन संस्कारों का पूर्ण लोप होता है ।एक बार बने हुए संस्कार बदल नहीं सकते । |
| | | |
| === आनुवंशिक संस्कार === | | === आनुवंशिक संस्कार === |