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गोल मेज (Round Table) समुदाय की स्थापना सैसिल रहोड्स के द्वारा की गई थी। सैसिल रहोड्स वह व्यक्ति था जिसने युक्तिपूर्वक दक्षिण अफ्रीका के हीरे और सोने के भंडार पर कब्जा कर लिया। उस समय सैसिल रहोड्स (Cecil Rohodes) के नाम पर दक्षिण-आफ्रीका के उस क्षेत्र को रहोडेशिया नाम दिया गया था, जिसे आज जिम्बाब्वे कहते हैं। रहोड्स ने उस समय डी. बीयर्स कन्सोलिडेटेड माइन्स एण्ड कन्सोलीडेटेड गोल्ड फील्ड्स के नाम से व्यापारिक संस्थान कायम किया था। अपनी युक्ति से 'रहोड्स' केप कालोनी का प्राइम मिनिस्टर तथा १८९० में ब्रिटेन में पार्लियामेंट का मेम्बर भी हो गया था। उस समय रहोड्स की आमदनी दस लाख डालर प्रतिवर्ष होने लगी थी। 'रहोड्स' ने अपनी आमदनी का अधिकांश भाग गोल मेज समुदाय के उद्देश्यों को प्रभावी बनाने में खर्च किया। उसने दुनिया के विभिन्न देशों से तेजस्वी नौजवानों को पर्याप्त छात्रवृति देकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अध्ययन हेतु आकर्षित किया था, ताकि गोल मेज समुदाय की विचारधारा को इन प्रशिक्षित व्यक्तियों के द्वारा संसार में फैलाया जा सके।<ref>धार्मिक शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण धार्मिक शिक्षा (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ५): पर्व २: अध्याय २०, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>
 
गोल मेज (Round Table) समुदाय की स्थापना सैसिल रहोड्स के द्वारा की गई थी। सैसिल रहोड्स वह व्यक्ति था जिसने युक्तिपूर्वक दक्षिण अफ्रीका के हीरे और सोने के भंडार पर कब्जा कर लिया। उस समय सैसिल रहोड्स (Cecil Rohodes) के नाम पर दक्षिण-आफ्रीका के उस क्षेत्र को रहोडेशिया नाम दिया गया था, जिसे आज जिम्बाब्वे कहते हैं। रहोड्स ने उस समय डी. बीयर्स कन्सोलिडेटेड माइन्स एण्ड कन्सोलीडेटेड गोल्ड फील्ड्स के नाम से व्यापारिक संस्थान कायम किया था। अपनी युक्ति से 'रहोड्स' केप कालोनी का प्राइम मिनिस्टर तथा १८९० में ब्रिटेन में पार्लियामेंट का मेम्बर भी हो गया था। उस समय रहोड्स की आमदनी दस लाख डालर प्रतिवर्ष होने लगी थी। 'रहोड्स' ने अपनी आमदनी का अधिकांश भाग गोल मेज समुदाय के उद्देश्यों को प्रभावी बनाने में खर्च किया। उसने दुनिया के विभिन्न देशों से तेजस्वी नौजवानों को पर्याप्त छात्रवृति देकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अध्ययन हेतु आकर्षित किया था, ताकि गोल मेज समुदाय की विचारधारा को इन प्रशिक्षित व्यक्तियों के द्वारा संसार में फैलाया जा सके।<ref>धार्मिक शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण धार्मिक शिक्षा (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ५): पर्व २: अध्याय २०, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>
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गोल मेज समुदाय में सैसिल रहोड्स के साथ रौथचाइल्ड कारपोरेशन, कारनेगी यूनाइटेड किंगडम ट्रस्ट, रॉकफेलर फाउंडेशन, फोर्ड फाउंडेशन, जे. पी. मार्गन, हिटनी परिवार, लेजार्ड ब्रदर्स आदि इसके सदस्य बन गये थे। यू.एस.ए. में येल यूनिवर्सिटी की स्कल एंड बोन्स सोसायटी (Scul and bones Society) गोपनीय ढंग से गोल मेज समुदाय के लिये ही काम करती थी। १८९९ से १९०२ के मध्य दक्षिण अफ्रीका में बोअर युद्ध की व्यूह रचना भी रौथचाइल्ड द्वारा ही बनायी गयी थी। इस युद्ध का उद्देश्य दक्षिण अफ्रीका की प्राकृतिक सम्पदा पर अधिकार जमाना था । प्रथम विश्वयुद्ध तथा द्वितीय विश्वयुद्ध की योजनायें भी राउन्ड टेबिल समुदाय के द्वारा ही बनायी गयी थी। इस समुदाय के औद्योगिक घरानों ने युद्ध करने वाले दोनों पक्षों को पूरी आर्थिक मदद पहुँचाई, हथियार तथा युद्ध के अन्य खर्चों के लिए आर्थिक मदद देते समय कहा जाता था कि अभी जितना चाहे उतना धन ले लो, बाद में लौटा देना।
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गोल मेज समुदाय में सैसिल रहोड्स के साथ रौथचाइल्ड कारपोरेशन, कारनेगी यूनाइटेड किंगडम ट्रस्ट, रॉकफेलर फाउंडेशन, फोर्ड फाउंडेशन, जे. पी. मार्गन, हिटनी परिवार, लेजार्ड ब्रदर्स आदि इसके सदस्य बन गये थे। यू.एस.ए. में येल यूनिवर्सिटी की स्कल एंड बोन्स सोसायटी (Scul and bones Society) गोपनीय ढंग से गोल मेज समुदाय के लिये ही काम करती थी। १८९९ से १९०२ के मध्य दक्षिण अफ्रीका में बोअर युद्ध की व्यूह रचना भी रौथचाइल्ड द्वारा ही बनायी गयी थी। इस युद्ध का उद्देश्य दक्षिण अफ्रीका की प्राकृतिक सम्पदा पर अधिकार जमाना था । प्रथम विश्वयुद्ध तथा द्वितीय विश्वयुद्ध की योजनायें भी राउन्ड टेबिल समुदाय के द्वारा ही बनायी गयी थी। इस समुदाय के औद्योगिक घरानों ने युद्ध करने वाले दोनों पक्षों को पूरी आर्थिक सहायता पहुँचाई, हथियार तथा युद्ध के अन्य खर्चों के लिए आर्थिक सहायता देते समय कहा जाता था कि अभी जितना चाहे उतना धन ले लो, बाद में लौटा देना।
    
दुनिया को धोखे में रखने के लिये इस धनी समुदाय ने ३० मई १९१९ को होटल मैजेस्टिक पैरिस में 'वैसिली पीस कान्फ्रेंस' के नाम से एक 'वैश्विक नाटक' किया। इस नाटक के द्वारा शान्ति के नाम पर वैश्विक स्तर पर व्यापक संगठन बनाये गये । ये संगठन ऊपर से देखने में तो लोक हितकारी जैसे लगते हैं परन्तु इन संगठनों के माध्यम से गोलमेज समुदाय दुनिया पर अपनी सत्ता जमाने के स्वप्न देखता रहता है। शान्ति स्थापना के नाम पर बनाये गये संगठन - विश्व बैंक, यूनाइटेड नेशंस, एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट कमीशन आदि तथा एन.जी.ओ. के नाम से बनी संस्थाओं पर अरबों डालर खर्च करके, मानव समाज में पाये जाने वाले विरोधाभासों को बढ़ाने तथा सरकार परस्ती बढ़ाकर आम आदमी के कर्तृत्व आधारित अभिक्रमण को अर्थ, शिक्षा, संस्कृति, धर्म, अध्यात्म, राजनीति आदि क्षेत्रों में विनष्ट करने का कार्य कर रहे हैं।
 
दुनिया को धोखे में रखने के लिये इस धनी समुदाय ने ३० मई १९१९ को होटल मैजेस्टिक पैरिस में 'वैसिली पीस कान्फ्रेंस' के नाम से एक 'वैश्विक नाटक' किया। इस नाटक के द्वारा शान्ति के नाम पर वैश्विक स्तर पर व्यापक संगठन बनाये गये । ये संगठन ऊपर से देखने में तो लोक हितकारी जैसे लगते हैं परन्तु इन संगठनों के माध्यम से गोलमेज समुदाय दुनिया पर अपनी सत्ता जमाने के स्वप्न देखता रहता है। शान्ति स्थापना के नाम पर बनाये गये संगठन - विश्व बैंक, यूनाइटेड नेशंस, एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट कमीशन आदि तथा एन.जी.ओ. के नाम से बनी संस्थाओं पर अरबों डालर खर्च करके, मानव समाज में पाये जाने वाले विरोधाभासों को बढ़ाने तथा सरकार परस्ती बढ़ाकर आम आदमी के कर्तृत्व आधारित अभिक्रमण को अर्थ, शिक्षा, संस्कृति, धर्म, अध्यात्म, राजनीति आदि क्षेत्रों में विनष्ट करने का कार्य कर रहे हैं।
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विकासशील और अर्द्धविकसित तथा गरीब देशों को IMF तथा विश्व बैंक से जो कर्ज या सहायता मिलती है उसमें राजीनतिक नेता तो भ्रष्ट होते ही हैं, तथा बड़े बाँध, विदेशी प्रभाव, विदेशी नशीले शीतल पेय, आयोडीन नमक, उद्योगों के लिए भूमि अधिग्रहण, औषधियों के विषैले प्रभाव आदि के विरुद्ध जन आन्दोलन कराने में भी गोलमेज समुदाय की कोई न कोई संस्था परोक्ष रूप से सहायता देती रहती है। इतना नहीं, गोलमेज समुदाय के सदस्य धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक बिन्दु पर आतंक फैलाने वालों को हथियारों और धन से सहायता करते हैं तथा इनको दबाने वाली सरकारी शक्तियों को भी शस्त्रास्त्र बिक्री करती हैं।
 
विकासशील और अर्द्धविकसित तथा गरीब देशों को IMF तथा विश्व बैंक से जो कर्ज या सहायता मिलती है उसमें राजीनतिक नेता तो भ्रष्ट होते ही हैं, तथा बड़े बाँध, विदेशी प्रभाव, विदेशी नशीले शीतल पेय, आयोडीन नमक, उद्योगों के लिए भूमि अधिग्रहण, औषधियों के विषैले प्रभाव आदि के विरुद्ध जन आन्दोलन कराने में भी गोलमेज समुदाय की कोई न कोई संस्था परोक्ष रूप से सहायता देती रहती है। इतना नहीं, गोलमेज समुदाय के सदस्य धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक बिन्दु पर आतंक फैलाने वालों को हथियारों और धन से सहायता करते हैं तथा इनको दबाने वाली सरकारी शक्तियों को भी शस्त्रास्त्र बिक्री करती हैं।
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'दि प्रिजन' के लेखक ने पृष्ठ २३५ पर लिखा है -<blockquote>The International Monetary Fund (I.M.F.) is there to intervene, when poor countries in Africa, Asia and the rest of the developing world get into Elite (Round table group) engineered financial trouble. The idea has been to encourage and bribe the politicians in these countries into relinquishing self-sufficiency in food and into opening their lands to the multinational food and chocolate giants. These countries began to export luxury cash crops to the rich nations and to use that money to pay for imported food from those same rich countries. Also the developing nations would export natural resources to the rich nations at knock-down prices and then buy-back (at inflated prices) the luxury products of the industrialised countries made with those natural resources. However, these luxury goods only go to the tiny, corrupt, political and economic clique in these developing countries. The majority of the population go hungry because the food growing land is occupied by the multinational corporation. The Elite policy was to submerge the poor countries in debt and take them over in the same way that had with the multinationals and the industrialised nations. When these governments find themselves in financial troubles and unable to meet their debt repayments they go to the IMF to restructure the repayments or offer more loans to pay the interest on the previous ones. But in return for imposing more debt the IMF insists that its (Elite) economic policies are followed. These involve cutting of food, health and education subsidies and the exporting of more resources and cash crops. The IMF tells all the developing countries to do this and thus create a glut on the world market for these commodities and the price collapses.</blockquote>इस प्रकार से IMF की मदद विकासशील देशों को आर्थिक दृष्टि से कमजोर बनाने का परोक्ष षड़यंत्र करने में सक्रिय है।
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'दि प्रिजन' के लेखक ने पृष्ठ २३५ पर लिखा है -<blockquote>The International Monetary Fund (I.M.F.) is there to intervene, when poor countries in Africa, Asia and the rest of the developing world get into Elite (Round table group) engineered financial trouble. The idea has been to encourage and bribe the politicians in these countries into relinquishing self-sufficiency in food and into opening their lands to the multinational food and chocolate giants. These countries began to export luxury cash crops to the rich nations and to use that money to pay for imported food from those same rich countries. Also the developing nations would export natural resources to the rich nations at knock-down prices and then buy-back (at inflated prices) the luxury products of the industrialised countries made with those natural resources. However, these luxury goods only go to the tiny, corrupt, political and economic clique in these developing countries. The majority of the population go hungry because the food growing land is occupied by the multinational corporation. The Elite policy was to submerge the poor countries in debt and take them over in the same way that had with the multinationals and the industrialised nations. When these governments find themselves in financial troubles and unable to meet their debt repayments they go to the IMF to restructure the repayments or offer more loans to pay the interest on the previous ones. But in return for imposing more debt the IMF insists that its (Elite) economic policies are followed. These involve cutting of food, health and education subsidies and the exporting of more resources and cash crops. The IMF tells all the developing countries to do this and thus create a glut on the world market for these commodities and the price collapses.</blockquote>इस प्रकार से IMF की सहायता विकासशील देशों को आर्थिक दृष्टि से कमजोर बनाने का परोक्ष षड़यंत्र करने में सक्रिय है।
    
आर्थिक नीतियों के साथ मुक्त व्यवसाय (Free trade) भी कमजोर राष्ट्रों के लिये खतरे की घंटी है । मुक्त व्यापार का नियंत्रण वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन (W.T.O) के द्वारा होता है । इसका कार्यालय स्विट्जरलैंड में है । GAAT (जनरल एग्रीमेन्ट ऑन एंड टैरिफ) के माध्यम से जो मुक्त व्यवसाय चल रहा है इसमें शक्तिशाली देशों को कमजोर देशों का शोषण करने की छूट मिल जाती है।
 
आर्थिक नीतियों के साथ मुक्त व्यवसाय (Free trade) भी कमजोर राष्ट्रों के लिये खतरे की घंटी है । मुक्त व्यापार का नियंत्रण वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन (W.T.O) के द्वारा होता है । इसका कार्यालय स्विट्जरलैंड में है । GAAT (जनरल एग्रीमेन्ट ऑन एंड टैरिफ) के माध्यम से जो मुक्त व्यवसाय चल रहा है इसमें शक्तिशाली देशों को कमजोर देशों का शोषण करने की छूट मिल जाती है।
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जुलाई १९९० में लंकास्टर हाउस लंडन में एक बैठक NATO के सेक्रेटरी मनफर्ड वौरनर की अध्यक्षता में बुलाई गयी । मनफर्ड वौरनर (बिल्डरवर्ग) राउन्ड टेबिल का अन्तरंग सदस्य है। इस बैठक में 'लंदन डिक्लेरेशन' के अन्तर्गत यह निर्णय हुआ ताकि विश्व सेना की भूमिका बन सके।
 
जुलाई १९९० में लंकास्टर हाउस लंडन में एक बैठक NATO के सेक्रेटरी मनफर्ड वौरनर की अध्यक्षता में बुलाई गयी । मनफर्ड वौरनर (बिल्डरवर्ग) राउन्ड टेबिल का अन्तरंग सदस्य है। इस बैठक में 'लंदन डिक्लेरेशन' के अन्तर्गत यह निर्णय हुआ ताकि विश्व सेना की भूमिका बन सके।
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सद्दाम हुसैन और जार्ज बुश की गहरी मित्रता थी। CIA की मदद से बाथ पार्टी (BAATH PARTY) को सहायता देकर १९६८ में सद्दाम हुसैन को ईराक का डिक्टेटर बनवाया था। उसी बुश ने सद्दाम हुसैन को फाँसी के तख्ते पर लटकवा कर मरवा डाला। इन घटनाओं से सिद्ध होता है कि गोलमेज समुदाय विश्व में अशान्ति फैलाकर अपनी डिक्टेटरशिप कायम करना चाहता है।
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सद्दाम हुसैन और जार्ज बुश की गहरी मित्रता थी। CIA की सहायता से बाथ पार्टी (BAATH PARTY) को सहायता देकर १९६८ में सद्दाम हुसैन को ईराक का डिक्टेटर बनवाया था। उसी बुश ने सद्दाम हुसैन को फाँसी के तख्ते पर लटकवा कर मरवा डाला। इन घटनाओं से सिद्ध होता है कि गोलमेज समुदाय विश्व में अशान्ति फैलाकर अपनी डिक्टेटरशिप कायम करना चाहता है।
    
गोलमेज समुदाय जिसे अब बिल्डरवर्ग समुदाय के नाम से जाना जाता है, यह समुदाय वैश्विक स्तर पर युद्धों और अपराधों को बढ़ावा देकर विश्व सरकार की कल्पना को साकार करना चाहता है। इस समुदाय में यू.एस. तथा ब्रिटेन मुख्य हैं । इस समुदाय ने इरान-इराक युद्ध, बोस्निया संघर्ष, इराक-कुवैत युद्ध कराया तथा पाकिस्तान और भारत दोनों को युद्ध सामग्री देता है । इस समुदाय की मान्यता यह है कि युद्ध और अपराधों से जो आतंक पैदा होगा, उसके समाधान के लिये सेना, पुलिस तथा हथियारों के लिये आम जनता की मानसिकता अनुकूल होती जायेगी। परिणाम स्वरूप राज्य के आश्रय की मांग बढ़ेगी तथा डिक्टेटरशिप के लिये समर्थन मिलेगा।
 
गोलमेज समुदाय जिसे अब बिल्डरवर्ग समुदाय के नाम से जाना जाता है, यह समुदाय वैश्विक स्तर पर युद्धों और अपराधों को बढ़ावा देकर विश्व सरकार की कल्पना को साकार करना चाहता है। इस समुदाय में यू.एस. तथा ब्रिटेन मुख्य हैं । इस समुदाय ने इरान-इराक युद्ध, बोस्निया संघर्ष, इराक-कुवैत युद्ध कराया तथा पाकिस्तान और भारत दोनों को युद्ध सामग्री देता है । इस समुदाय की मान्यता यह है कि युद्ध और अपराधों से जो आतंक पैदा होगा, उसके समाधान के लिये सेना, पुलिस तथा हथियारों के लिये आम जनता की मानसिकता अनुकूल होती जायेगी। परिणाम स्वरूप राज्य के आश्रय की मांग बढ़ेगी तथा डिक्टेटरशिप के लिये समर्थन मिलेगा।
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यूनाइटेड नेशंस की इस सेना के कार्य के विषय में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह सेना विश्व शांति स्थापित करने में सभी राष्ट्रों का सहयोग करेगी। साथ ही विश्व सरकार की नीतियों, केन्द्रीय बैंक, केन्द्रीय मुद्रा और केन्द्रीय शासन सत्ता आदि का विरोध करने वाले राष्ट्रों को नियंत्रण में रखकर सहयोग करने के लिये तैयार करेगी ताकि सेना के खर्चों में उनकी हिस्सेदारी भी रहे । इसका रिहर्सल गल्फ युद्ध में हो चुका है।
 
यूनाइटेड नेशंस की इस सेना के कार्य के विषय में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह सेना विश्व शांति स्थापित करने में सभी राष्ट्रों का सहयोग करेगी। साथ ही विश्व सरकार की नीतियों, केन्द्रीय बैंक, केन्द्रीय मुद्रा और केन्द्रीय शासन सत्ता आदि का विरोध करने वाले राष्ट्रों को नियंत्रण में रखकर सहयोग करने के लिये तैयार करेगी ताकि सेना के खर्चों में उनकी हिस्सेदारी भी रहे । इसका रिहर्सल गल्फ युद्ध में हो चुका है।
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विश्व सेना की मदद के लिए फैडरल एमरजेन्सी मैनेजमेंट एजेन्सी (FEMA) की रचना की गयी है। ट्राइलेटरल कमीशन के प्रथम श्रेणी के व्यक्ति प्रेसीडेंट जिमी कार्टर ने इसकी घोषणा करके यूनाइटेड स्टेट्स के लिये सुरक्षा का शस्त्र दिया।
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विश्व सेना की सहायता के लिए फैडरल एमरजेन्सी मैनेजमेंट एजेन्सी (FEMA) की रचना की गयी है। ट्राइलेटरल कमीशन के प्रथम श्रेणी के व्यक्ति प्रेसीडेंट जिमी कार्टर ने इसकी घोषणा करके यूनाइटेड स्टेट्स के लिये सुरक्षा का शस्त्र दिया।
    
५ दिसेम्बर १९९४ के 'The Spotlight' के अनुसार UN-NATO संयुक्त तत्वावधान में 'एलाइट रेपिड रिएक्शन कॉर्प' (ARRC) का निर्माण करके चार बहुराष्ट्रीय डिवीजन संगठित किये गये, इसमें ८०,००० (अस्सी हजार) ट्रूप्स भर्ती किये गये । इस ट्रूप्स के कमांडर इन चीफ 'सर जेरीमि मैकेन्जी' (Sir Jeremy Mackenz (जो कि ब्रिटिश सेना में लेफ्टिनेंट जनरल थे) को नियुक्त किया गया । इस प्रकार राउड टेबिल समुदाय ने विश्व समुदाय की बुनियाद डाल दी है।
 
५ दिसेम्बर १९९४ के 'The Spotlight' के अनुसार UN-NATO संयुक्त तत्वावधान में 'एलाइट रेपिड रिएक्शन कॉर्प' (ARRC) का निर्माण करके चार बहुराष्ट्रीय डिवीजन संगठित किये गये, इसमें ८०,००० (अस्सी हजार) ट्रूप्स भर्ती किये गये । इस ट्रूप्स के कमांडर इन चीफ 'सर जेरीमि मैकेन्जी' (Sir Jeremy Mackenz (जो कि ब्रिटिश सेना में लेफ्टिनेंट जनरल थे) को नियुक्त किया गया । इस प्रकार राउड टेबिल समुदाय ने विश्व समुदाय की बुनियाद डाल दी है।
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भारत में कर्तव्य आधारित, पारस्परिकता से सिंचित, निर्भय, निष्पक्ष, निर्लोभता के वातावरण में संयमित जीवन दर्शन की छाया में, परमार्थ मूलक, सहकारी साझेदारी की विश्व बन्धुत्व स्थापित करने की नीति का व्यवहार मानव जीवन को सुखी और समृद्ध बनाने की दिशा में प्रगति कर रहा था । इस समृद्धशाली जीवन दर्शन को गोलमेज समुदाय के विशिष्ट महापुरुषों ने विकृत करने का षडयंत्र रचा है।
 
भारत में कर्तव्य आधारित, पारस्परिकता से सिंचित, निर्भय, निष्पक्ष, निर्लोभता के वातावरण में संयमित जीवन दर्शन की छाया में, परमार्थ मूलक, सहकारी साझेदारी की विश्व बन्धुत्व स्थापित करने की नीति का व्यवहार मानव जीवन को सुखी और समृद्ध बनाने की दिशा में प्रगति कर रहा था । इस समृद्धशाली जीवन दर्शन को गोलमेज समुदाय के विशिष्ट महापुरुषों ने विकृत करने का षडयंत्र रचा है।
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राउन्ड टेबिल समुदाय के लिये धार्मिक जीवन दर्शन की बुनियाद चुनौती बनी हुई थी। इस समृद्ध जीवन दर्शन की बुनियाद में सहज, स्वाभाविक, परस्परता, स्वयंसेवा, आत्मनिर्भरता, स्वावलम्बन, सहकारी साझेदारी की कर्तृत्व आधारित व्यवस्था प्रगति कर रही थी। भारत की प्रसिद्धि सोने की चिड़िया के रूप में होती रही थी, अतः अनेक लुटेरे भारत में आये । भारत कभी किसी देश को लूटने नहीं गया । ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने फूट डालो और राज करो की नीति का अनुसरण करके सारी दुनिया में अपने राजनीतिक उपनिवेशों के रूप में साम्राज्य स्थापित किया था। एक समय ऐसा आया कि जब राजनीतिक उपनिवेश रखना कठिन हो गया था, तो योरोप और अमेरिका के कुछ विशिष्ट धनी व्यक्तियों ने राजनीतिक उपनिवेश समाप्त करके आर्थिक साम्राज्य के द्वारा विश्व सरकार की योजना बनाई। आर्थिक साम्राज्यवादियों की निगाहें समूचे पूर्व में भारत की स्थिति को रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्व का मानती रही थी। अतः ब्रिटिश साम्राज्य ने अपनी राजसत्ता समेटने के साथ-साथ भारत को अनेक राजनीति हिस्सों में विभाजित करके भारत को कमजोर करने का षड़यंत्र रचाया । सत्ता हस्तान्तरण के साथ-साथ विभाजित भारत को इंडिया बना दिया । स्वतंत्र भारत में नागरिकों के मध्य देश के पुनर्निर्माण का अभिक्रम जाग रहा था, इस स्वाभाविक लोक अभिक्रम को समाप्त करने के लिये इंडियन गवर्नवमेंट को विकास और निर्माण का लालच देकर १९४८ में ही ट्मैन के द्वारा चार सूत्री कृषि मिशन की स्थापना कर दी गई। कृषि मिशन के अन्तर्गत अमरीकी कृषि विशेषज्ञ अलबर्ट मायर द्वारा ग्रामीण पुनर्निर्माण के नाम पर उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में पायलैट प्रोजेक्ट प्रारम्भ किया। इस योजना के लिये फोर्ड फाउंडेशन के तत्कालीन अध्यक्ष पाल हाफमैनने भारत में अमरीकि राजदूत चेस्टर बोवेल्स की देखरेख में दो अरब अमरीकी डालर खर्च करने का लक्ष्य बनाया । इसके बाद फोर्ड फाउंडेशन की मदद से २ अक्टूबर १९५२ को सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा भारत सेवक समाज की स्थापना की गयी। स्वतंत्रता के प्रथम उत्साह में राष्ट्र निर्माण हेतु जो लोक अभिक्रम जग रहा था, फोर्ड फाउडेंशन के धन ने उसकी भ्रूण हत्या ही कर दी, साम्राज्यवादी विदेशी ताकतें यही चाहती थीं।
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राउन्ड टेबिल समुदाय के लिये धार्मिक जीवन दर्शन की बुनियाद चुनौती बनी हुई थी। इस समृद्ध जीवन दर्शन की बुनियाद में सहज, स्वाभाविक, परस्परता, स्वयंसेवा, आत्मनिर्भरता, स्वावलम्बन, सहकारी साझेदारी की कर्तृत्व आधारित व्यवस्था प्रगति कर रही थी। भारत की प्रसिद्धि सोने की चिड़िया के रूप में होती रही थी, अतः अनेक लुटेरे भारत में आये । भारत कभी किसी देश को लूटने नहीं गया । ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने फूट डालो और राज करो की नीति का अनुसरण करके सारी दुनिया में अपने राजनीतिक उपनिवेशों के रूप में साम्राज्य स्थापित किया था। एक समय ऐसा आया कि जब राजनीतिक उपनिवेश रखना कठिन हो गया था, तो योरोप और अमेरिका के कुछ विशिष्ट धनी व्यक्तियों ने राजनीतिक उपनिवेश समाप्त करके आर्थिक साम्राज्य के द्वारा विश्व सरकार की योजना बनाई। आर्थिक साम्राज्यवादियों की निगाहें समूचे पूर्व में भारत की स्थिति को रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्व का मानती रही थी। अतः ब्रिटिश साम्राज्य ने अपनी राजसत्ता समेटने के साथ-साथ भारत को अनेक राजनीति हिस्सों में विभाजित करके भारत को कमजोर करने का षड़यंत्र रचाया । सत्ता हस्तान्तरण के साथ-साथ विभाजित भारत को इंडिया बना दिया । स्वतंत्र भारत में नागरिकों के मध्य देश के पुनर्निर्माण का अभिक्रम जाग रहा था, इस स्वाभाविक लोक अभिक्रम को समाप्त करने के लिये इंडियन गवर्नवमेंट को विकास और निर्माण का लालच देकर १९४८ में ही ट्मैन के द्वारा चार सूत्री कृषि मिशन की स्थापना कर दी गई। कृषि मिशन के अन्तर्गत अमरीकी कृषि विशेषज्ञ अलबर्ट मायर द्वारा ग्रामीण पुनर्निर्माण के नाम पर उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में पायलैट प्रोजेक्ट प्रारम्भ किया। इस योजना के लिये फोर्ड फाउंडेशन के तत्कालीन अध्यक्ष पाल हाफमैनने भारत में अमरीकि राजदूत चेस्टर बोवेल्स की देखरेख में दो अरब अमरीकी डालर खर्च करने का लक्ष्य बनाया । इसके बाद फोर्ड फाउंडेशन की सहायता से २ अक्टूबर १९५२ को सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा भारत सेवक समाज की स्थापना की गयी। स्वतंत्रता के प्रथम उत्साह में राष्ट्र निर्माण हेतु जो लोक अभिक्रम जग रहा था, फोर्ड फाउडेंशन के धन ने उसकी भ्रूण हत्या ही कर दी, साम्राज्यवादी विदेशी ताकतें यही चाहती थीं।
    
फोर्ड फाउंडेशन के अलावा अमरीकी तेल सम्राट रॉकफेलर फाउंडेशन, स्टील सम्राट कारनेगी फाउंडेशन आदि ने भारत को अपना निशाना बनाकर स्वयंसेवी संस्थाओं के मार्फत भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थाओं को प्रदूषित करके आर्थिक साम्राज्यवाद को जनजीवन में प्रवेश करने का जाल बुनना प्रारम्भ कर दिया । भारत में आन्तरिक कलह पैदा करने के लिये नागालैंड में माइकल स्कॉट के द्वारा बैपटिस्ट मिशन स्थापित किया गया । १९६४ में नागालैंड पीस मिशन की स्थापना हुई। इन दोनों संस्थाओं के माध्यम से CIAने ऑपरेशन ब्रह्मपुत्र प्रारम्भ किया । परिणाम स्वरूप स्वतंत्र नागालैण्ड की माँग पैदा हो गयी। इतना ही नहीं सीआईए इटली के मार्फत भारत में सक्रिय थी। बड़ी कुशलता से भारत के प्रधानमंत्री के घर में स्थाई रूप से एक सी.आई.ए. के एजेन्ट को स्थापित कर दिया गया।
 
फोर्ड फाउंडेशन के अलावा अमरीकी तेल सम्राट रॉकफेलर फाउंडेशन, स्टील सम्राट कारनेगी फाउंडेशन आदि ने भारत को अपना निशाना बनाकर स्वयंसेवी संस्थाओं के मार्फत भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थाओं को प्रदूषित करके आर्थिक साम्राज्यवाद को जनजीवन में प्रवेश करने का जाल बुनना प्रारम्भ कर दिया । भारत में आन्तरिक कलह पैदा करने के लिये नागालैंड में माइकल स्कॉट के द्वारा बैपटिस्ट मिशन स्थापित किया गया । १९६४ में नागालैंड पीस मिशन की स्थापना हुई। इन दोनों संस्थाओं के माध्यम से CIAने ऑपरेशन ब्रह्मपुत्र प्रारम्भ किया । परिणाम स्वरूप स्वतंत्र नागालैण्ड की माँग पैदा हो गयी। इतना ही नहीं सीआईए इटली के मार्फत भारत में सक्रिय थी। बड़ी कुशलता से भारत के प्रधानमंत्री के घर में स्थाई रूप से एक सी.आई.ए. के एजेन्ट को स्थापित कर दिया गया।
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फोर्ड और रॉकफैलर फाउंडेशन ने १९६० तक भारत के पचास करोड़ अमरीकन डॉलर खर्च करके स्वास्थ्य, शिक्षा तथा सांस्कृतिक संस्थाओं में केन्द्रीय सरकार के केन्द्रीय नियंत्रण हेतु मूक समर्थन प्राप्त किया।
 
फोर्ड और रॉकफैलर फाउंडेशन ने १९६० तक भारत के पचास करोड़ अमरीकन डॉलर खर्च करके स्वास्थ्य, शिक्षा तथा सांस्कृतिक संस्थाओं में केन्द्रीय सरकार के केन्द्रीय नियंत्रण हेतु मूक समर्थन प्राप्त किया।
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भारत में विभिन्न प्रकार के मतभेदों तथा विरोधाभासों को बढ़ाने के लिये अवार्ड, मर्यादा, बिल्ड, इंडियन सोशियल इंस्टीट्यूट, लोकायन आदि को इस्तेमाल करके रॉकफेलर फाउंडेशन जैसी अनेक संस्थाओं को आर्थिक मदद ने लोक अभिक्रमण को समाप्त करके सरकार तथा विदेशी धन का आश्रित बनाया है। इसके साथ ही स्वयंसेवी संस्थाओं (NGO) में लगे भावनाशील व्यक्तियों को भौतिक सुविधायें देकर पुरुषार्थहीन और आत्मविश्वासहीन बना दिया है।  
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भारत में विभिन्न प्रकार के मतभेदों तथा विरोधाभासों को बढ़ाने के लिये अवार्ड, मर्यादा, बिल्ड, इंडियन सोशियल इंस्टीट्यूट, लोकायन आदि को इस्तेमाल करके रॉकफेलर फाउंडेशन जैसी अनेक संस्थाओं को आर्थिक सहायता ने लोक अभिक्रमण को समाप्त करके सरकार तथा विदेशी धन का आश्रित बनाया है। इसके साथ ही स्वयंसेवी संस्थाओं (NGO) में लगे भावनाशील व्यक्तियों को भौतिक सुविधायें देकर पुरुषार्थहीन और आत्मविश्वासहीन बना दिया है।  
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फोर्ड फाउंडेशन की मदद से जो सामुदायिक विकास तथा भारत सेवक समाज की योजनायें प्रारम्भ की गयी थीं उनकी असफलताओं का पता लगाने के लिए फोर्ड फाउंडेशन के अनुरोध पर श्री बलवन्तराय मेहता समिति का गठन किया था । जब पता चला कि जनता की भागीदारी नहीं होने से योजनायें असफल हुईं तो फोर्ड फाउन्डेशन को बड़ा समाधान हुआ क्योंकि मदद देने का उनका उद्देश्य जनता के अभिक्रम को समाप्त करने का  ही था।
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फोर्ड फाउंडेशन की सहायता से जो सामुदायिक विकास तथा भारत सेवक समाज की योजनायें प्रारम्भ की गयी थीं उनकी असफलताओं का पता लगाने के लिए फोर्ड फाउंडेशन के अनुरोध पर श्री बलवन्तराय मेहता समिति का गठन किया था । जब पता चला कि जनता की भागीदारी नहीं होने से योजनायें असफल हुईं तो फोर्ड फाउन्डेशन को बड़ा समाधान हुआ क्योंकि सहायता देने का उनका उद्देश्य जनता के अभिक्रम को समाप्त करने का  ही था।
    
१९९१ में उदारीकरण की नीति तथा गैट आदि व्यापारिक समझौतों से भारत में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का आक्रमण बढ़ गया है। खेती, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के प्रवेश ने बेरोजगारी, गरीबी और अनैतिक भ्रष्टाचार को बढ़ाया ही है, साथ ही विलासिता की जीवनदृष्टि को बढ़ाने में चार चाँद लगाये है ।
 
१९९१ में उदारीकरण की नीति तथा गैट आदि व्यापारिक समझौतों से भारत में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का आक्रमण बढ़ गया है। खेती, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के प्रवेश ने बेरोजगारी, गरीबी और अनैतिक भ्रष्टाचार को बढ़ाया ही है, साथ ही विलासिता की जीवनदृष्टि को बढ़ाने में चार चाँद लगाये है ।

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