हम देख सकते हैं कि इन तर्कों में खास कोई वजूद नहीं है, केवल अंग्रेजी का मोह ही है। ऐसा नहीं है कि देश बिना अंग्रेजी के चल नहीं सकता, उल्टे लोगों को अंग्रेजी से भी संस्कृत सीखना अधिक सुविधाजनक है। हमें इस बात का कष्ट नहीं है कि संस्कृत नहीं आने के कारण हम अपने ही देश के कितने मूल्यवान ज्ञान से वंचित रह जाते हैं। देश की सम्पर्कभाषा बहुत सरलता से हिन्दी हो जायेगी। | हम देख सकते हैं कि इन तर्कों में खास कोई वजूद नहीं है, केवल अंग्रेजी का मोह ही है। ऐसा नहीं है कि देश बिना अंग्रेजी के चल नहीं सकता, उल्टे लोगों को अंग्रेजी से भी संस्कृत सीखना अधिक सुविधाजनक है। हमें इस बात का कष्ट नहीं है कि संस्कृत नहीं आने के कारण हम अपने ही देश के कितने मूल्यवान ज्ञान से वंचित रह जाते हैं। देश की सम्पर्कभाषा बहुत सरलता से हिन्दी हो जायेगी। |