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हम देख सकते हैं कि इन तर्कों में खास कोई वजूद नहीं है, केवल अंग्रेजी का मोह ही है। ऐसा नहीं है कि देश बिना अंग्रेजी के चल नहीं सकता, उल्टे लोगों को अंग्रेजी से भी संस्कृत सीखना अधिक सुविधाजनक है। हमें इस बात का कष्ट नहीं है कि संस्कृत नहीं आने के कारण हम अपने ही देश के कितने मूल्यवान ज्ञान से वंचित रह जाते हैं। देश की सम्पर्कभाषा बहुत सरलता से हिन्दी हो जायेगी।
 
हम देख सकते हैं कि इन तर्कों में खास कोई वजूद नहीं है, केवल अंग्रेजी का मोह ही है। ऐसा नहीं है कि देश बिना अंग्रेजी के चल नहीं सकता, उल्टे लोगों को अंग्रेजी से भी संस्कृत सीखना अधिक सुविधाजनक है। हमें इस बात का कष्ट नहीं है कि संस्कृत नहीं आने के कारण हम अपने ही देश के कितने मूल्यवान ज्ञान से वंचित रह जाते हैं। देश की सम्पर्कभाषा बहुत सरलता से हिन्दी हो जायेगी।
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भारत के लोग यदि अंग्रेजी छोडकर हिन्दी और संस्कृत बोलना प्रारम्भ करेंगे, अंग्रेजी नहीं बोलेंगे ऐसा दृढतापूर्वक कहेंगे तो तुरन्त अमेरिका के विश्वविद्यालयों में हिन्दी और संस्कृत का अध्यापन शुरू हो जायेगा क्योंकि विश्व को भारत के साथ सम्पर्क बनाये रखने की आवश्यकता है।
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भारत के लोग यदि अंग्रेजी छोडकर हिन्दी और संस्कृत बोलना प्रारम्भ करेंगे, अंग्रेजी नहीं बोलेंगे ऐसा दृढतापूर्वक कहेंगे तो तुरन्त अमेरिका के विश्वविद्यालयों में हिन्दी और संस्कृत का अध्यापन आरम्भ हो जायेगा क्योंकि विश्व को भारत के साथ सम्पर्क बनाये रखने की आवश्यकता है।
    
सरकारी कामकाज तो वैसे भी हिन्दी अथवा प्रादेशिक भाषा में ही होना चाहिये, वैसा नहीं करना ही अंग्रेजी नहीं जाननेवालों के प्रति अपराध है अतः वे सब उच्च पदस्थ अधिकारी अपराध करने से बच जायेंगे ।
 
सरकारी कामकाज तो वैसे भी हिन्दी अथवा प्रादेशिक भाषा में ही होना चाहिये, वैसा नहीं करना ही अंग्रेजी नहीं जाननेवालों के प्रति अपराध है अतः वे सब उच्च पदस्थ अधिकारी अपराध करने से बच जायेंगे ।

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