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धार्मिक (धार्मिक) सम्प्रदाय सामान्यत: वेद को माननेवाले ही हैं। भारत के हजारों वर्षों के इतिहास में कई ऐसे राजा थे जो किसी सम्प्रदाय को मानते थे। किन्तु एक बौद्ध मत को माननेवाले सम्राट अशोक को छोड़ दें तो उन्होंने कभी भी अपनी प्रजा में सम्प्रदाय के आधार पर किसी को प्रताड़ित नहीं किया। उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया। हिन्दूओं की मान्यता है – एकं सत् विप्र: बहुधा वदन्ति ।   
 
धार्मिक (धार्मिक) सम्प्रदाय सामान्यत: वेद को माननेवाले ही हैं। भारत के हजारों वर्षों के इतिहास में कई ऐसे राजा थे जो किसी सम्प्रदाय को मानते थे। किन्तु एक बौद्ध मत को माननेवाले सम्राट अशोक को छोड़ दें तो उन्होंने कभी भी अपनी प्रजा में सम्प्रदाय के आधार पर किसी को प्रताड़ित नहीं किया। उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया। हिन्दूओं की मान्यता है – एकं सत् विप्र: बहुधा वदन्ति ।   
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सम्प्रदायों के विस्तार का प्रारम्भ बौद्ध मत से शुरू हुआ। बौध सम्प्रदाय यह भारत का पहला प्रचारक सम्प्रदाय था। भिन्न विचार तो लोगों के हुआ करते थे। कम अधिक संख्या में उनके अनुयायी भी हुआ करते थे। लेकिन प्रचार के माध्यम से अपने सम्प्रदाय को माननेवालों की संख्या बढाने के प्रयास नहीं होते थे।   
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सम्प्रदायों के विस्तार का प्रारम्भ बौद्ध मत से आरम्भ हुआ। बौध सम्प्रदाय यह भारत का पहला प्रचारक सम्प्रदाय था। भिन्न विचार तो लोगों के हुआ करते थे। कम अधिक संख्या में उनके अनुयायी भी हुआ करते थे। लेकिन प्रचार के माध्यम से अपने सम्प्रदाय को माननेवालों की संख्या बढाने के प्रयास नहीं होते थे।   
    
भारत में भी कई मत, पंथ या संप्रदाय हैं। किन्तु सामान्यत: वे असहिष्णू नहीं हैं। इन संप्रदायों ने अपने संप्रदायों के प्रचार प्रसार के लिये सामान्यत: हिंसा का मार्ग नहीं अपनाया। हिन्दू समाज ने कभी भी छल, बल, कपट का उपयोग संख्या बढाने के लिए नहीं किया है। ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ याने पूरे विश्व को आर्य बनाने की अभिलाषा तो हिन्दुओं की भी है। आर्य का सरल अर्थ है ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ (चराचर - सब सुखी हों) में विश्वास रखने वाला और वैसा व्यवहार करनेवाला। लेकिन इस के तरीके के रूप में हिन्दुओं का विश्वास छल, बल, कपट पर नहीं है।   
 
भारत में भी कई मत, पंथ या संप्रदाय हैं। किन्तु सामान्यत: वे असहिष्णू नहीं हैं। इन संप्रदायों ने अपने संप्रदायों के प्रचार प्रसार के लिये सामान्यत: हिंसा का मार्ग नहीं अपनाया। हिन्दू समाज ने कभी भी छल, बल, कपट का उपयोग संख्या बढाने के लिए नहीं किया है। ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ याने पूरे विश्व को आर्य बनाने की अभिलाषा तो हिन्दुओं की भी है। आर्य का सरल अर्थ है ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ (चराचर - सब सुखी हों) में विश्वास रखने वाला और वैसा व्यवहार करनेवाला। लेकिन इस के तरीके के रूप में हिन्दुओं का विश्वास छल, बल, कपट पर नहीं है।   
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उनका विश्वास है ‘स्वं स्वं चरित्रम् शिक्षेरन्’ पर। स्वं स्वं चरित्रम् शिक्षेरन् का अर्थ है अपने श्रेष्ठ व्यवहार से लोगों को इतना प्रभावित करना कि उन्हें लगने लगे कि हिन्दू बनाना गौरव की बात है। हिन्दुओं की समूचे विश्व को आर्य बनाने की आकांक्षा बुद्धियुक्त भी है। यदि केवल हम ही सर्वे भवन्तु सुखिन: में विश्वास रखेंगे और विश्व के अन्य समाज बर्बर और आक्रामक बने रहेंगे तो वे हमें भी सुख से जीने नहीं देंगे। इतिहास बताता है कि कृण्वन्तो विश्वमार्यम् की आकांक्षा हिन्दू समाज में जब तक रही, उस दृष्टि से आर्यत्व के विस्तार के प्रयास होते रहे तब तक भारतभूमि पर कोई आक्रमण नहीं हुए। लेकिन यह आकांक्षा जैसे ही कम हुई या नष्ट हुई भारतभूमि पर बर्बर समाजों ने आक्रमण शुरू कर दिए।  
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उनका विश्वास है ‘स्वं स्वं चरित्रम् शिक्षेरन्’ पर। स्वं स्वं चरित्रम् शिक्षेरन् का अर्थ है अपने श्रेष्ठ व्यवहार से लोगों को इतना प्रभावित करना कि उन्हें लगने लगे कि हिन्दू बनाना गौरव की बात है। हिन्दुओं की समूचे विश्व को आर्य बनाने की आकांक्षा बुद्धियुक्त भी है। यदि केवल हम ही सर्वे भवन्तु सुखिन: में विश्वास रखेंगे और विश्व के अन्य समाज बर्बर और आक्रामक बने रहेंगे तो वे हमें भी सुख से जीने नहीं देंगे। इतिहास बताता है कि कृण्वन्तो विश्वमार्यम् की आकांक्षा हिन्दू समाज में जब तक रही, उस दृष्टि से आर्यत्व के विस्तार के प्रयास होते रहे तब तक भारतभूमि पर कोई आक्रमण नहीं हुए। लेकिन यह आकांक्षा जैसे ही कम हुई या नष्ट हुई भारतभूमि पर बर्बर समाजों ने आक्रमण आरम्भ कर दिए।  
    
हमारे राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम ने एक बार युवकों से प्रश्न पूछा था कि विचार करिए कि हमारे पूर्वजों ने (हिन्दुओं ने) कभी अन्य समाजों पर आक्रमण क्यों नहीं किये? यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि विश्व में जो भी समाज बलवान बने उन्होंने अन्यों पर आक्रमण किये। केवल हिन्दू ही इसके लिए अपवाद है। अब्दुल कलामजी के कहने का तात्पर्य शायद इस सत्य को स्पष्ट करने से रहा होगा कि जो बर्बर, दुष्ट, स्वार्थी, पापी होते हैं वही अन्यों पर आक्रमण करते हैं। सदाचारी एकात्मतावादी कभी किसीपर आक्रमण नहीं करते। यही हमारी परम्परा है। फिर भी यदि कृण्वन्तो विश्वमार्यम् यह हमारा प्रकृति प्रदत्त कर्तव्य है तो यह हम कैसे निभा सकेंगे। इन में तो विरोधाभास दिखाई देता है।
 
हमारे राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम ने एक बार युवकों से प्रश्न पूछा था कि विचार करिए कि हमारे पूर्वजों ने (हिन्दुओं ने) कभी अन्य समाजों पर आक्रमण क्यों नहीं किये? यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि विश्व में जो भी समाज बलवान बने उन्होंने अन्यों पर आक्रमण किये। केवल हिन्दू ही इसके लिए अपवाद है। अब्दुल कलामजी के कहने का तात्पर्य शायद इस सत्य को स्पष्ट करने से रहा होगा कि जो बर्बर, दुष्ट, स्वार्थी, पापी होते हैं वही अन्यों पर आक्रमण करते हैं। सदाचारी एकात्मतावादी कभी किसीपर आक्रमण नहीं करते। यही हमारी परम्परा है। फिर भी यदि कृण्वन्तो विश्वमार्यम् यह हमारा प्रकृति प्रदत्त कर्तव्य है तो यह हम कैसे निभा सकेंगे। इन में तो विरोधाभास दिखाई देता है।

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