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# हमें स्वाधीनता के तुरन्त बाद उसे पूर्ण रूप से छोडने की आवश्यकता थी क्योंकि शिक्षा के माध्यम से जो यूरोपीय जीवनदृष्टि और जीवनशैली हम पर थोपी गई थी वही वास्तव में गुलामी थी। हमने राजकीय स्वाधीनता प्राप्त कर ली परन्तु सारी व्यवस्थायें वैसी ही रहीं। सत्तर वर्षों तक हम उसे ही कुछ आन्तरिक परिवर्तनों के साथ चला रहे हैं । सबसे पहली आवश्यकता इस व्यवस्था को बदलने की है।
 
# हमें स्वाधीनता के तुरन्त बाद उसे पूर्ण रूप से छोडने की आवश्यकता थी क्योंकि शिक्षा के माध्यम से जो यूरोपीय जीवनदृष्टि और जीवनशैली हम पर थोपी गई थी वही वास्तव में गुलामी थी। हमने राजकीय स्वाधीनता प्राप्त कर ली परन्तु सारी व्यवस्थायें वैसी ही रहीं। सत्तर वर्षों तक हम उसे ही कुछ आन्तरिक परिवर्तनों के साथ चला रहे हैं । सबसे पहली आवश्यकता इस व्यवस्था को बदलने की है।
 
# इसका एक हिस्सा है शिक्षा को सरकारी नियन्त्रण से मुक्त करना और शिक्षकों और समाज से आवाहन और निवेदन करना कि वे देश की शिक्षा को चलायें । शासन और प्रशासन उनके कार्य में सहयोगी और संरक्षक की भूमिका निभायेंगे, उनके मार्ग में आने वाले अवरोधों को दूर करेंगे।
 
# इसका एक हिस्सा है शिक्षा को सरकारी नियन्त्रण से मुक्त करना और शिक्षकों और समाज से आवाहन और निवेदन करना कि वे देश की शिक्षा को चलायें । शासन और प्रशासन उनके कार्य में सहयोगी और संरक्षक की भूमिका निभायेंगे, उनके मार्ग में आने वाले अवरोधों को दूर करेंगे।
इतनी बात तो पिछली बार हुई थी। अब मेरा दूसरा प्रस्ताव है आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना का। इसके सम्बन्ध में मेरा कुछ स्पष्टतापूर्वक बताने का मानस है। प्रशासक महोदय कह रहे थे कि संसद कानून पारित करके अनुमति देगी, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग मान्यता देगा और विश्वविद्यालय शुरू होगा। उसकी योजना में तो कोई आपत्ति नहीं है । परन्तु मेरा तात्पर्य अलग है।
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इतनी बात तो पिछली बार हुई थी। अब मेरा दूसरा प्रस्ताव है आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना का। इसके सम्बन्ध में मेरा कुछ स्पष्टतापूर्वक बताने का मानस है। प्रशासक महोदय कह रहे थे कि संसद कानून पारित करके अनुमति देगी, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग मान्यता देगा और विश्वविद्यालय आरम्भ होगा। उसकी योजना में तो कोई आपत्ति नहीं है । परन्तु मेरा तात्पर्य अलग है।
    
यह आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय सरकारी मान्यता से नहीं चलेगा। सरकारी नियन्त्रण से मुक्त शिक्षा का होगा।
 
यह आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय सरकारी मान्यता से नहीं चलेगा। सरकारी नियन्त्रण से मुक्त शिक्षा का होगा।
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धार्मिक जीवनदृष्टि पर आधारित शिक्षायोजना कहते ही धर्मनिरपेक्षता संकट में पड़ जायेगी और अनेक लोग करने ही नहीं देंगे । इसलिये मेरा सुझाव है कि शासन और प्रशासन की सहमति रहे परन्तु वे सक्रिय न रहें । अनेक बार लोग कहते हैं कि सरकार में परिवर्तन करने का साहस नहीं है। मैं कहता हूँ कि यह साहस का प्रश्न नहीं है, व्यावहारिकता का है। विरोध के लिये विरोध का उत्तर देते रहें और हमारा काम ही न हो ऐसा करने के स्थान पर सरकार इसमें सहभागी ही न हो यह बेहतर है। हम आपको व्यक्तिगत रूप से सहायता अवश्य करेंगे। आप हमारा भरोसा करें।
 
धार्मिक जीवनदृष्टि पर आधारित शिक्षायोजना कहते ही धर्मनिरपेक्षता संकट में पड़ जायेगी और अनेक लोग करने ही नहीं देंगे । इसलिये मेरा सुझाव है कि शासन और प्रशासन की सहमति रहे परन्तु वे सक्रिय न रहें । अनेक बार लोग कहते हैं कि सरकार में परिवर्तन करने का साहस नहीं है। मैं कहता हूँ कि यह साहस का प्रश्न नहीं है, व्यावहारिकता का है। विरोध के लिये विरोध का उत्तर देते रहें और हमारा काम ही न हो ऐसा करने के स्थान पर सरकार इसमें सहभागी ही न हो यह बेहतर है। हम आपको व्यक्तिगत रूप से सहायता अवश्य करेंगे। आप हमारा भरोसा करें।
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'''शिक्षक''' : मैं आपकी कठिनाई समझता हूँ परन्तु साहस करने की आवश्यकता भी देखता हूँ। मैं देखता हूँ कि स्पष्टता के अभाव में हम कई प्रश्न सुलझाने का प्रयास ही नहीं कर रहे हैं। भारत में शिक्षा धार्मिक होनी चाहिये ऐसा सूत्र प्रस्तुत करना और उस पर चर्चा आमन्त्रित करना तो प्रारम्भ है । इसमें हमें संकोच क्यों करना चाहिये ? धर्म, अध्यात्म, राष्ट्र आदि संकल्पनाओं को हम जितना जल्दी ठीक करें उतना अच्छा है । 'धार्मिक शिक्षा' कोई संविधान के विरोध की बात तो है नहीं। अतः मेरा आग्रह है कि हम अपनी बात दृढतापूर्वक रखें । स्वाधीनता प्राप्ति के बाद बहुत समय बीत चुका है। हम उल्टी दिशा में ही जा रहे हैं । देशवासियों में इसका भान जगे ऐसा प्रयास सरकार को भी करना चाहिये । प्रशासन में तो अब उच्चशिक्षित लोग होते हैं। वे यद्यपि उल्टा पढे हैं परन्तु उल्टा क्या और सीधा क्या इतना समझने की बुद्धि उनमें अवश्य है। सरकार संकल्प करे और प्रजा उस संकल्प को अपना ले तो काम शुरू हो सकता है। हमारे जैसे शैक्षिक संगठन सक्रिय होंगे तो कार्य को गति भी मिल सकती है।
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'''शिक्षक''' : मैं आपकी कठिनाई समझता हूँ परन्तु साहस करने की आवश्यकता भी देखता हूँ। मैं देखता हूँ कि स्पष्टता के अभाव में हम कई प्रश्न सुलझाने का प्रयास ही नहीं कर रहे हैं। भारत में शिक्षा धार्मिक होनी चाहिये ऐसा सूत्र प्रस्तुत करना और उस पर चर्चा आमन्त्रित करना तो प्रारम्भ है । इसमें हमें संकोच क्यों करना चाहिये ? धर्म, अध्यात्म, राष्ट्र आदि संकल्पनाओं को हम जितना जल्दी ठीक करें उतना अच्छा है । 'धार्मिक शिक्षा' कोई संविधान के विरोध की बात तो है नहीं। अतः मेरा आग्रह है कि हम अपनी बात दृढतापूर्वक रखें । स्वाधीनता प्राप्ति के बाद बहुत समय बीत चुका है। हम उल्टी दिशा में ही जा रहे हैं । देशवासियों में इसका भान जगे ऐसा प्रयास सरकार को भी करना चाहिये । प्रशासन में तो अब उच्चशिक्षित लोग होते हैं। वे यद्यपि उल्टा पढे हैं परन्तु उल्टा क्या और सीधा क्या इतना समझने की बुद्धि उनमें अवश्य है। सरकार संकल्प करे और प्रजा उस संकल्प को अपना ले तो काम आरम्भ हो सकता है। हमारे जैसे शैक्षिक संगठन सक्रिय होंगे तो कार्य को गति भी मिल सकती है।
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भारत में शिक्षा धार्मिक होनी चाहिये ऐसा स्पष्ट रूप से कहने में क्या आपत्ति है ? यदि सरकार संविधान की धाराओं को मध्य में लाये बिना धार्मिक की व्याख्या करना शुरू करती है तो बात सुलझती जायेगी। धार्मिकता की बात करना अपराध तो नहीं है। विश्व के अनेक मनीषियों ने धार्मिक ज्ञान और संस्कृति की प्रतिष्ठा की है। हम अपने गौरव को क्यों न मानें और उसे स्थापित करने का प्रयास क्यों न करें ?
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भारत में शिक्षा धार्मिक होनी चाहिये ऐसा स्पष्ट रूप से कहने में क्या आपत्ति है ? यदि सरकार संविधान की धाराओं को मध्य में लाये बिना धार्मिक की व्याख्या करना आरम्भ करती है तो बात सुलझती जायेगी। धार्मिकता की बात करना अपराध तो नहीं है। विश्व के अनेक मनीषियों ने धार्मिक ज्ञान और संस्कृति की प्रतिष्ठा की है। हम अपने गौरव को क्यों न मानें और उसे स्थापित करने का प्रयास क्यों न करें ?
    
अतः मेरा आग्रह पूर्वक कहना है कि हम विधायक बातों को सामने लायें और परिवर्तन का प्रारम्भ करें ।
 
अतः मेरा आग्रह पूर्वक कहना है कि हम विधायक बातों को सामने लायें और परिवर्तन का प्रारम्भ करें ।

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