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विश्व के हर जीव में लाखो/करोड़ों पेशियाँ होतीं हैं। उनमें से हजारों की संख्या में हर क्षण मरती रहती हैं। मल मूत्र के साथ शरीर के बाहर फेंकी जाती हैं। इसी तरह से शरीर द्वारा ग्रहण किये अन्न, जल और हवा के कारण हर क्षण हजारों पेशियाँ नई निर्माण होती रहती हैं। इसे चयापचय प्रक्रिया कहते हैं। जब तक तो मरनेवाली पेशियों की संख्या निर्माण होनेवाली पेशियों से कम होती है जीव की क्षमताओं में वृद्धि होती है। लेकिन जैसे ही मरनेवाली पेशियों की संख्या निर्माण होनेवाली पेशियों से अधिक हो जाती है वह जीव वृद्धावस्था की ओर आगे बढ़ने लगता है। मृत्यू की ओर आगे बढ़ने लगता है। सामान्यत: मरनेवाली और निर्माण होनेवाली पेशियों की संख्या में संतुलन अधिक दिनों तक बना नहीं रह पाता। प्रकृति के नियम के अनुसार तो वृद्धावस्था की ओर बढ़ना स्वाभाविक ही होता है। योग या संयमित जीवन से यौवन कुछ आगे बढ़ाया जा सकता है। लेकिन वृद्धावस्था को पूरी तरह से टालना तब ही संभव होता है जब “योगविद्या” का सहारा लिया जाता है। (जैसे ज्ञानेश्वर महाराज से जब मिलने आए थे तब चांगदेव १४०० वर्ष की आयु के थे)  
 
विश्व के हर जीव में लाखो/करोड़ों पेशियाँ होतीं हैं। उनमें से हजारों की संख्या में हर क्षण मरती रहती हैं। मल मूत्र के साथ शरीर के बाहर फेंकी जाती हैं। इसी तरह से शरीर द्वारा ग्रहण किये अन्न, जल और हवा के कारण हर क्षण हजारों पेशियाँ नई निर्माण होती रहती हैं। इसे चयापचय प्रक्रिया कहते हैं। जब तक तो मरनेवाली पेशियों की संख्या निर्माण होनेवाली पेशियों से कम होती है जीव की क्षमताओं में वृद्धि होती है। लेकिन जैसे ही मरनेवाली पेशियों की संख्या निर्माण होनेवाली पेशियों से अधिक हो जाती है वह जीव वृद्धावस्था की ओर आगे बढ़ने लगता है। मृत्यू की ओर आगे बढ़ने लगता है। सामान्यत: मरनेवाली और निर्माण होनेवाली पेशियों की संख्या में संतुलन अधिक दिनों तक बना नहीं रह पाता। प्रकृति के नियम के अनुसार तो वृद्धावस्था की ओर बढ़ना स्वाभाविक ही होता है। योग या संयमित जीवन से यौवन कुछ आगे बढ़ाया जा सकता है। लेकिन वृद्धावस्था को पूरी तरह से टालना तब ही संभव होता है जब “योगविद्या” का सहारा लिया जाता है। (जैसे ज्ञानेश्वर महाराज से जब मिलने आए थे तब चांगदेव १४०० वर्ष की आयु के थे)  
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चिरंजीवी बनने का अर्थ है निरंतर (निर्माण होनेवाली अतिरिक्त पेशियों के कारण) वर्धिष्णु रहना। यह तो हुआ मनुष्य के विषय में चिरंजीविता की पूर्वशर्त। समाज या राष्ट्र भी एक जीवंत इकाई होते हैं। इनमें भी ये जबतक बढ़ाते रहते हैं, वर्धिष्णु रहते हैं तबतक जीते हैं। घटना शुरू हुआ कि ये नष्ट होने की दिशा में आगे बढ़ने लगते हैं। इसलिए किसी भी जीव की चिरंजीविता की यह आवश्यक शर्त है कि वह बढ़ता रहे, वर्धिष्णु रहे। भारत का इतिहास भी यही बताता है कि भारत जब तक वर्धिष्णु था भारत पर बाहर से आक्रमण नहीं हुए। और जैसे ही भारत ने अपनी वर्धिष्णुता खोई इसका आकुंचन शुरू हो गया। भारत अब भी कुछ जीवित है इसका एकमात्र कारण है कि भारत विस्तार करते करते विश्वमय हो गया था इसीलिये अन्य समाजों जैसा यह नष्ट नहीं हो सका। लेकिन यह जिस आकुंचन के दौर में जी रहा है यह उसे मृत्यू की याने नष्ट होने की दिशा में ही ले जा रहा है।   
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चिरंजीवी बनने का अर्थ है निरंतर (निर्माण होनेवाली अतिरिक्त पेशियों के कारण) वर्धिष्णु रहना। यह तो हुआ मनुष्य के विषय में चिरंजीविता की पूर्वशर्त। समाज या राष्ट्र भी एक जीवंत इकाई होते हैं। इनमें भी ये जबतक बढ़ाते रहते हैं, वर्धिष्णु रहते हैं तबतक जीते हैं। घटना आरम्भ हुआ कि ये नष्ट होने की दिशा में आगे बढ़ने लगते हैं। इसलिए किसी भी जीव की चिरंजीविता की यह आवश्यक शर्त है कि वह बढ़ता रहे, वर्धिष्णु रहे। भारत का इतिहास भी यही बताता है कि भारत जब तक वर्धिष्णु था भारत पर बाहर से आक्रमण नहीं हुए। और जैसे ही भारत ने अपनी वर्धिष्णुता खोई इसका आकुंचन आरम्भ हो गया। भारत अब भी कुछ जीवित है इसका एकमात्र कारण है कि भारत विस्तार करते करते विश्वमय हो गया था इसीलिये अन्य समाजों जैसा यह नष्ट नहीं हो सका। लेकिन यह जिस आकुंचन के दौर में जी रहा है यह उसे मृत्यू की याने नष्ट होने की दिशा में ही ले जा रहा है।   
    
वैसे तो भारत की चिरंजीविता को चुनौती कई बार मिली है। लेकिन हमारे पूर्वजों ने उन चुनौतियों पर मात कर भारत को चिरंजीवी बनाए रखा। वर्तमान में जो चुनौती हमारे सम्मुख है वह शायद अभीतक की चुनौतियों में सबसे गंभीर चुनौती है। यह चुनौती जीवन के पूरे प्रतिमान को, जो वर्तमान में अधार्मिक (अधार्मिक) बन गया है, उसे धार्मिक (धार्मिक) बनाने की है। पूरे प्रतिमान को ठीक करने की चुनौती का सामना आज तक कभी भारत ने नहीं किया है। इसलिए इससे निपटने का पूर्वानुभव भी हमारे पास नहीं है।  
 
वैसे तो भारत की चिरंजीविता को चुनौती कई बार मिली है। लेकिन हमारे पूर्वजों ने उन चुनौतियों पर मात कर भारत को चिरंजीवी बनाए रखा। वर्तमान में जो चुनौती हमारे सम्मुख है वह शायद अभीतक की चुनौतियों में सबसे गंभीर चुनौती है। यह चुनौती जीवन के पूरे प्रतिमान को, जो वर्तमान में अधार्मिक (अधार्मिक) बन गया है, उसे धार्मिक (धार्मिक) बनाने की है। पूरे प्रतिमान को ठीक करने की चुनौती का सामना आज तक कभी भारत ने नहीं किया है। इसलिए इससे निपटने का पूर्वानुभव भी हमारे पास नहीं है।  

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