Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "शुरू" to "आरम्भ"
Line 27: Line 27:  
# स्वामी विवेकानंद कहते थे कि उनकी माता और पिता ने अच्छे बच्चे की प्राप्ति के लिए बहुत तप किया था। उनके काल में कई घरों में माता पिता श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति के लिए ऐसा तप करते थे। अब हालत यह है कि सामान्यत: बच्चे अपघात से पैदा हो रहे हैं। माता पिता का परिवार नियोजन चल रहा होता है। बच्चे की कोई चाहत होती नहीं है। लेकिन प्रकृति काम करती रहती है। किसी असावधानी के क्षण के कारण गर्भ ठहर जाता है। ऐसे माता पिताओं से और उनके द्वारा अपघात से पैदा हुए बच्चों से संस्कारों की अपेक्षा करना व्यर्थ है।
 
# स्वामी विवेकानंद कहते थे कि उनकी माता और पिता ने अच्छे बच्चे की प्राप्ति के लिए बहुत तप किया था। उनके काल में कई घरों में माता पिता श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति के लिए ऐसा तप करते थे। अब हालत यह है कि सामान्यत: बच्चे अपघात से पैदा हो रहे हैं। माता पिता का परिवार नियोजन चल रहा होता है। बच्चे की कोई चाहत होती नहीं है। लेकिन प्रकृति काम करती रहती है। किसी असावधानी के क्षण के कारण गर्भ ठहर जाता है। ऐसे माता पिताओं से और उनके द्वारा अपघात से पैदा हुए बच्चों से संस्कारों की अपेक्षा करना व्यर्थ है।
 
# सामाजिक दृष्टि से सम्मान की बात आती है तब भी माता का क्रम सबसे पहले आता है। तैत्तिरीय उपनिषद् में जो समावर्तन संस्कार के समय दिया जानेवाला उपदेश और आदेश है उसमें कहा गया है: मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचार्यदेवो भव , माता का स्थान पिता से और गुरु से भी ऊपर का माना गया है।   
 
# सामाजिक दृष्टि से सम्मान की बात आती है तब भी माता का क्रम सबसे पहले आता है। तैत्तिरीय उपनिषद् में जो समावर्तन संस्कार के समय दिया जानेवाला उपदेश और आदेश है उसमें कहा गया है: मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचार्यदेवो भव , माता का स्थान पिता से और गुरु से भी ऊपर का माना गया है।   
# प्राचीन धार्मिक (धार्मिक) आख्यायिका के अनुसार मूलत: विवाह का चलन ही स्त्री की सुरक्षा के लिए शुरू हुआ था। एक तेजस्वी बालक था। नाम था श्वेतकेतु। उस की माता का विरोध होते हुए भी कुछ बलवान पुरुष उसकी माता का विनय भंग करने लगे। पुत्र से यह देखा नहीं गया। लेकिन वह छोटा था। दुर्बल था। इस स्थिति को बदलने का उसने प्रण किया। उसने सार्वत्रिक जागृति कर विवाह की प्रथा को जन्म दिया। स्त्रियों को यानि समाज के ५० % घटकों को इससे सुरक्षा प्राप्त होने के कारण, सुविधा होने के कारण विवाह संस्था सर्वमान्य हो गई। अभी तक इससे श्रेष्ठ अन्य व्यवस्था कोई निर्माण नहीं कर पाया है।  
+
# प्राचीन धार्मिक (धार्मिक) आख्यायिका के अनुसार मूलत: विवाह का चलन ही स्त्री की सुरक्षा के लिए आरम्भ हुआ था। एक तेजस्वी बालक था। नाम था श्वेतकेतु। उस की माता का विरोध होते हुए भी कुछ बलवान पुरुष उसकी माता का विनय भंग करने लगे। पुत्र से यह देखा नहीं गया। लेकिन वह छोटा था। दुर्बल था। इस स्थिति को बदलने का उसने प्रण किया। उसने सार्वत्रिक जागृति कर विवाह की प्रथा को जन्म दिया। स्त्रियों को यानि समाज के ५० % घटकों को इससे सुरक्षा प्राप्त होने के कारण, सुविधा होने के कारण विवाह संस्था सर्वमान्य हो गई। अभी तक इससे श्रेष्ठ अन्य व्यवस्था कोई निर्माण नहीं कर पाया है।  
 
# समाज में धर्म का अनुपालन करनेवाले लोगों की संख्या ९०-९५ % तक लाने का काम शिक्षा का है। बचे हुए  ५-१० % लोगों के लिए ही शासन व्यवस्था होती है। जब तक शिक्षा अक्षम होती है अर्थात् शिक्षा समाज में धर्म का पालन करने वाले लोगों की संख्या को ९०-९५ % तक नहीं ले जाती, शासन ठीक से काम नहीं कर सकता। इसलिए वर्तमान परिस्थितियों का अचूक आकलन और पूर्वजों का मार्गदर्शन इन दोनों के प्रकाश में हमें वर्तमान की स्त्रियों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की समस्या का हल निकालना होगा।
 
# समाज में धर्म का अनुपालन करनेवाले लोगों की संख्या ९०-९५ % तक लाने का काम शिक्षा का है। बचे हुए  ५-१० % लोगों के लिए ही शासन व्यवस्था होती है। जब तक शिक्षा अक्षम होती है अर्थात् शिक्षा समाज में धर्म का पालन करने वाले लोगों की संख्या को ९०-९५ % तक नहीं ले जाती, शासन ठीक से काम नहीं कर सकता। इसलिए वर्तमान परिस्थितियों का अचूक आकलन और पूर्वजों का मार्गदर्शन इन दोनों के प्रकाश में हमें वर्तमान की स्त्रियों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की समस्या का हल निकालना होगा।
   Line 46: Line 46:  
== माता प्रथमो गुरु: पिता द्वितीयो ==
 
== माता प्रथमो गुरु: पिता द्वितीयो ==
 
बर्बर आक्रमण, गुलामी और वर्तमान जीवन के अधार्मिक (अधार्मिक) प्रतिमान के कारण तथा गत १० पीढ़ियों से चल रही विपरीत शिक्षा के कारण श्रेष्ठ संतान कैसे निर्माण की जाती है यह बात वर्तमान में स्त्री भूल गई है। वर्तमान में स्त्रियों की स्थिति को सुधारने कि दृष्टि से स्त्रियों के लिए माता प्रथमो गुरु: का अर्थ समझ लेना हितकारी है :
 
बर्बर आक्रमण, गुलामी और वर्तमान जीवन के अधार्मिक (अधार्मिक) प्रतिमान के कारण तथा गत १० पीढ़ियों से चल रही विपरीत शिक्षा के कारण श्रेष्ठ संतान कैसे निर्माण की जाती है यह बात वर्तमान में स्त्री भूल गई है। वर्तमान में स्त्रियों की स्थिति को सुधारने कि दृष्टि से स्त्रियों के लिए माता प्रथमो गुरु: का अर्थ समझ लेना हितकारी है :
# गर्भपूर्व संस्कार : माता प्रथमो गुरु: बनने की तैयारी तो गर्भ धारणा से बहुत पहले से शुरू करनी होती है। वैसे तो यह तैयारी बाल्यावस्था में और कौमार्यावस्था में माँ कराए यह आवश्यक है। लेकिन जिन लड़कियों के बारे में उनकी माँ ने ऐसी तैयारी नहीं कराई है उन्हें अपने से ही और वह विवाहपूर्व जिस भी आयु की अवस्था में है उस  अवस्था से इसे करना होगा। संयुक्त परिवारों में ज्येष्ठ और अनुभवी महिला इसमें बालिकाओं और युवतियों का मार्गदर्शन किया करती थीं। विभक्त परिवारों में तो यह जिम्मेदारी माता की ही है। इसमें निम्न बिन्दुओं का समावेश होगा। ये सभी बातें होनेवाले पिता (द्वितीयो गुरु:) के लिए भी आवश्यक है :
+
# गर्भपूर्व संस्कार : माता प्रथमो गुरु: बनने की तैयारी तो गर्भ धारणा से बहुत पहले से आरम्भ करनी होती है। वैसे तो यह तैयारी बाल्यावस्था में और कौमार्यावस्था में माँ कराए यह आवश्यक है। लेकिन जिन लड़कियों के बारे में उनकी माँ ने ऐसी तैयारी नहीं कराई है उन्हें अपने से ही और वह विवाहपूर्व जिस भी आयु की अवस्था में है उस  अवस्था से इसे करना होगा। संयुक्त परिवारों में ज्येष्ठ और अनुभवी महिला इसमें बालिकाओं और युवतियों का मार्गदर्शन किया करती थीं। विभक्त परिवारों में तो यह जिम्मेदारी माता की ही है। इसमें निम्न बिन्दुओं का समावेश होगा। ये सभी बातें होनेवाले पिता (द्वितीयो गुरु:) के लिए भी आवश्यक है :
 
## ब्रह्मचर्य का पालन करना। अर्थात् मनपर संयम रखना। पति के रूप में पुरुष का चिन्तन नहीं करना। यह बहुत कठिन है  लेकिन करना तो आवश्यक ही है। शायद इसीलिए बाल विवाह की प्रथा चली होगी? इससे मन श्रेष्ठ बनता है।
 
## ब्रह्मचर्य का पालन करना। अर्थात् मनपर संयम रखना। पति के रूप में पुरुष का चिन्तन नहीं करना। यह बहुत कठिन है  लेकिन करना तो आवश्यक ही है। शायद इसीलिए बाल विवाह की प्रथा चली होगी? इससे मन श्रेष्ठ बनता है।
 
## अपनी आहार विहार और व्यायाम की आदतों को श्रेष्ठ रखना। स्वास्थ्य अच्छा रहे यह सुनिश्चित करना।
 
## अपनी आहार विहार और व्यायाम की आदतों को श्रेष्ठ रखना। स्वास्थ्य अच्छा रहे यह सुनिश्चित करना।
Line 70: Line 70:     
== उपसंहार ==
 
== उपसंहार ==
उपर्युक्त सभी बिंदु श्रेष्ठ मानव निर्माण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। महत्व क्रम की दृष्टि से माता की जिम्मेदारी अन्य सभी घटकों द्वारा प्रभावित होती है। उसी प्रकार से माता की जिम्मेदारी अन्य सभी बिन्दुओं को भी प्रभावित करती है। इसलिए पहले सुधार कहाँ से शुरू हो यह समस्या खड़ी हो जाती है। पहले मुर्गी या पहले अंडा जैसी पहेली से भी अधिक यह पहेली बन जाती है। इस पहेली का उत्तर पहले अंडा यह है। मुर्गी को पकड़ना अति कठिन काम है। अंडे को पकड़ना सरल है। इसलिए बुद्धिमान लोग अंडे से शुरू करते हैं। स्त्रियों की दृष्टि से जो काम वे स्वत: कर सकतीं हैं वह उन्हें करना शुरू कर देना चाहिए। शासन, पुलिस, अत्याचारी, बलात्कारी आदि अन्यों की ओर उंगली बताना सरल है। योग्य भी है। किन्तु इसकी अपेक्षा तो अपना कर्तव्य निभाने के बाद ही की जा सकती है। विद्वानों का कहना है – उद्धरेदात्मनात्मानम्।  
+
उपर्युक्त सभी बिंदु श्रेष्ठ मानव निर्माण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। महत्व क्रम की दृष्टि से माता की जिम्मेदारी अन्य सभी घटकों द्वारा प्रभावित होती है। उसी प्रकार से माता की जिम्मेदारी अन्य सभी बिन्दुओं को भी प्रभावित करती है। इसलिए पहले सुधार कहाँ से आरम्भ हो यह समस्या खड़ी हो जाती है। पहले मुर्गी या पहले अंडा जैसी पहेली से भी अधिक यह पहेली बन जाती है। इस पहेली का उत्तर पहले अंडा यह है। मुर्गी को पकड़ना अति कठिन काम है। अंडे को पकड़ना सरल है। इसलिए बुद्धिमान लोग अंडे से आरम्भ करते हैं। स्त्रियों की दृष्टि से जो काम वे स्वत: कर सकतीं हैं वह उन्हें करना आरम्भ कर देना चाहिए। शासन, पुलिस, अत्याचारी, बलात्कारी आदि अन्यों की ओर उंगली बताना सरल है। योग्य भी है। किन्तु इसकी अपेक्षा तो अपना कर्तव्य निभाने के बाद ही की जा सकती है। विद्वानों का कहना है – उद्धरेदात्मनात्मानम्।  
    
अर्थ है मेरा उद्धार मैं ही कर सकता हूँ कोई अन्य नहीं। जो चाहता है कि उसका उद्धार हो, उसे ही उद्धार के लिए तप करना होता है। वर्तमान में स्त्री ही भुक्तभोगी होने के कारण स्त्री इसमें पहल करे यह उचित होगा। जो चाहता है कि मेरा उद्धार हो, उसे ही उद्धार के लिए पहल और कृति करनी होती है। इस दृष्टि से भी स्त्री को अत्याचारों से छुटकारा पाना है तो पहल और कृति स्त्री करे यह तो स्वाभाविक ही कहा जाएगा। वीरमाता जीजाबाई के देश में ‘मातृवत् परदारेषु’ यानि ‘पराई स्त्री माता के समान होती है’ इसका संस्कार अपने बच्चों पर करना यह कठिन बात नहीं है। बस ! माताएं मन में ठान लें।
 
अर्थ है मेरा उद्धार मैं ही कर सकता हूँ कोई अन्य नहीं। जो चाहता है कि उसका उद्धार हो, उसे ही उद्धार के लिए तप करना होता है। वर्तमान में स्त्री ही भुक्तभोगी होने के कारण स्त्री इसमें पहल करे यह उचित होगा। जो चाहता है कि मेरा उद्धार हो, उसे ही उद्धार के लिए पहल और कृति करनी होती है। इस दृष्टि से भी स्त्री को अत्याचारों से छुटकारा पाना है तो पहल और कृति स्त्री करे यह तो स्वाभाविक ही कहा जाएगा। वीरमाता जीजाबाई के देश में ‘मातृवत् परदारेषु’ यानि ‘पराई स्त्री माता के समान होती है’ इसका संस्कार अपने बच्चों पर करना यह कठिन बात नहीं है। बस ! माताएं मन में ठान लें।

Navigation menu