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===== युरोपीय विचार वैश्विक और आधुनिक है =====
 
===== युरोपीय विचार वैश्विक और आधुनिक है =====
संचार माध्यम और यातायात की सुविधाओं के कारण से विश्व में अन्यान्य देशों के बीच की दूरियाँ बहुत कम हो गई हैं। इससे दैनन्दिन व्यावहारिक जीवन और वैचारिक जीवन बहुत ही प्रभावित हुआ है। सर्वत्र वैश्विकता की भाषा बोली जा रही है। परन्तु जिसे आज वैश्विक विचार कहा जाता है वह वास्तव में युरोपीय विचार है। पूरे विश्व की व्यवस्था को यूरोपीय जीवनदृष्टि के अनुसार ढालने का यूरोप अमेरिका का प्रयास चल रहा है । यूरोप अमेरिका के अलावा विश्व में जो देश हैं उनकी सांस्कृतिक पहचान समाप्त होने की संभावना पैदा हुई है। वैश्विक एकरूपता लाने का प्रयास हो रहा है। इसे ही विकास कहा जा रहा है, आधुनिकता कहा जा रहा है।
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संचार माध्यम और यातायात की सुविधाओं के कारण से विश्व में अन्यान्य देशों के मध्य की दूरियाँ बहुत कम हो गई हैं। इससे दैनन्दिन व्यावहारिक जीवन और वैचारिक जीवन बहुत ही प्रभावित हुआ है। सर्वत्र वैश्विकता की भाषा बोली जा रही है। परन्तु जिसे आज वैश्विक विचार कहा जाता है वह वास्तव में युरोपीय विचार है। पूरे विश्व की व्यवस्था को यूरोपीय जीवनदृष्टि के अनुसार ढालने का यूरोप अमेरिका का प्रयास चल रहा है । यूरोप अमेरिका के अलावा विश्व में जो देश हैं उनकी सांस्कृतिक पहचान समाप्त होने की संभावना पैदा हुई है। वैश्विक एकरूपता लाने का प्रयास हो रहा है। इसे ही विकास कहा जा रहा है, आधुनिकता कहा जा रहा है।
    
भारत में यह प्रयास कहीं अनवधान से और कहीं अवधानपूर्वक हो रहा है । युरोपीय जीवनदृष्टि और युरोपीय व्यवस्था भारत में अधिकृत, मुख्य प्रवाह की व्यवस्था बन गई है, भले ही इसे युरोपीय कहा न जाता हो । धार्मिकता की प्रतिष्ठा करने के लिये प्रयासरत समूह भी इस वैश्विकता की संकल्पना को एक गृहीत के रूप में स्वीकार कर ही चलते हैं। उनका प्रयास वैश्विक (अर्थात् युरोपीय) ढाँचे में धार्मिकता को समायोजित करने का होता है।  
 
भारत में यह प्रयास कहीं अनवधान से और कहीं अवधानपूर्वक हो रहा है । युरोपीय जीवनदृष्टि और युरोपीय व्यवस्था भारत में अधिकृत, मुख्य प्रवाह की व्यवस्था बन गई है, भले ही इसे युरोपीय कहा न जाता हो । धार्मिकता की प्रतिष्ठा करने के लिये प्रयासरत समूह भी इस वैश्विकता की संकल्पना को एक गृहीत के रूप में स्वीकार कर ही चलते हैं। उनका प्रयास वैश्विक (अर्थात् युरोपीय) ढाँचे में धार्मिकता को समायोजित करने का होता है।  
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मंत्र का अर्थ है विचार । विभिन्न विषयों में प्राथमिक, माध्यमिक, उच्चशिक्षा, अनुसंधान आदि विभिन्न स्तरों पर विषयवस्तु के रूप में जो सिखाया जाता है उससे व्यक्ति का मानस बनता है, विचार बनते हैं, दृष्टिकोण बनता है। विभिन्न विषयों का स्वरूप एवं संकल्पना जीवनदृष्टि पर आधारित होती है।
 
मंत्र का अर्थ है विचार । विभिन्न विषयों में प्राथमिक, माध्यमिक, उच्चशिक्षा, अनुसंधान आदि विभिन्न स्तरों पर विषयवस्तु के रूप में जो सिखाया जाता है उससे व्यक्ति का मानस बनता है, विचार बनते हैं, दृष्टिकोण बनता है। विभिन्न विषयों का स्वरूप एवं संकल्पना जीवनदृष्टि पर आधारित होती है।
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उदाहरण के लिये समाजशास्त्र में पढाया जाने वाला 'सामाजिक करार का सिद्धान्त' - 'social contract theory' यूरोप की समाजविषयक दृष्टि पर आधारित है। इसीको लागू करते हुए इस समाजशास्त्र में विवाह भी पति और पत्नी के बीच करार है। इसी प्रकार से सामाजिक जीवन के मालिक-नौकर, राजा-प्रजा, मातापिता-संतान, व्यापारी और ग्राहक, शिक्षक-छात्र जैसे 8 सारे सम्बन्ध भी करार ही होंगे। इस सिद्धान्त को लागू करने पर समाजव्यवस्था सर्वथा भिन्न प्रकार की होती है जबकि समाज एक जीवमान घटक है और उसका समाजपुरुष के रूप में स्वीकार किया जाता है तब सारे सम्बन्ध आत्मीयतापूर्ण होते हैं, यथा प्रजा राजा की सन्तान है और राजा प्रजापालक होता है, छात्र शिक्षक का मानसपुत्र होता है, पतिपत्नी दो नहीं एक ही व्यक्तित्व बन सर्वथा भिन्न बन जाती है। इन दो व्यवस्थाओं का अन्तर मूल विचार के अन्तर के परिणामस्वरूप होता है।
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उदाहरण के लिये समाजशास्त्र में पढाया जाने वाला 'सामाजिक करार का सिद्धान्त' - 'social contract theory' यूरोप की समाजविषयक दृष्टि पर आधारित है। इसीको लागू करते हुए इस समाजशास्त्र में विवाह भी पति और पत्नी के मध्य करार है। इसी प्रकार से सामाजिक जीवन के मालिक-नौकर, राजा-प्रजा, मातापिता-संतान, व्यापारी और ग्राहक, शिक्षक-छात्र जैसे 8 सारे सम्बन्ध भी करार ही होंगे। इस सिद्धान्त को लागू करने पर समाजव्यवस्था सर्वथा भिन्न प्रकार की होती है जबकि समाज एक जीवमान घटक है और उसका समाजपुरुष के रूप में स्वीकार किया जाता है तब सारे सम्बन्ध आत्मीयतापूर्ण होते हैं, यथा प्रजा राजा की सन्तान है और राजा प्रजापालक होता है, छात्र शिक्षक का मानसपुत्र होता है, पतिपत्नी दो नहीं एक ही व्यक्तित्व बन सर्वथा भिन्न बन जाती है। इन दो व्यवस्थाओं का अन्तर मूल विचार के अन्तर के परिणामस्वरूप होता है।
    
समाजशास्त्र की तरह अन्य सभी विषय भी मूल जीवनदृष्टि पर आधारित होते हैं।
 
समाजशास्त्र की तरह अन्य सभी विषय भी मूल जीवनदृष्टि पर आधारित होते हैं।

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