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कावेरीमुख्यत: कर्नाटक और तमिलनाडुमें बहने वाली पवित्र नदी,जो कुर्ग में सह्याद्रि केदक्षिणी छोर से निकलकर पूर्वी समुद्र-तट पर गंगासागर में विलीन हो जाती है। इसके प्रवाह के बीच में तीन स्थानों पर क्रमश: आदिरंगम्, शिवसमुद्रम् तथा अन्तरंगम् नाम के तीन पवित्र द्वीप हैं जिन पर विष्णु-मन्दिर बने हैं। जो स्थान उत्तर भारत में गंगा- यमुना नदियों को प्राप्त है, वही स्थान दक्षिण भारत में कावेरी और ताम्रपणी को प्राप्त है। कावेरी से निकली नहरों ने तमिलनाडु प्रदेश को कृषि की समृद्धि प्रदान की है।  
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कावेरीमुख्यत: कर्नाटक और तमिलनाडुमें बहने वाली पवित्र नदी,जो कुर्ग में सह्याद्रि केदक्षिणी छोर से निकलकर पूर्वी समुद्र-तट पर गंगासागर में विलीन हो जाती है। इसके प्रवाह के मध्य में तीन स्थानों पर क्रमश: आदिरंगम्, शिवसमुद्रम् तथा अन्तरंगम् नाम के तीन पवित्र द्वीप हैं जिन पर विष्णु-मन्दिर बने हैं। जो स्थान उत्तर भारत में गंगा- यमुना नदियों को प्राप्त है, वही स्थान दक्षिण भारत में कावेरी और ताम्रपणी को प्राप्त है। कावेरी से निकली नहरों ने तमिलनाडु प्रदेश को कृषि की समृद्धि प्रदान की है।  
    
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'''<u><big>प्रह्लाद</big></u>'''
 
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श्रेष्ठ भगवद्भक्त प्रह्लाद दैत्य-सम्राट् हिरण्यकशिपु के पुत्र थे। भक्ति-मार्ग के विरोधी पिता ने पुत्र को ईश्वर-भक्ति से विमुख करने के उद्देश्य से नाना प्रकार के कष्ट दिये। किन्तु प्रह्लाद की ईश-भक्ति में आस्था अडिग रही। हिरण्यकशिपु की योजनासे प्रह्लाद की बुआ होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि-ज्वालाओं के बीच जा बैठी, पर भगवद्भक्ति के प्रताप से होलिका जल गयी और प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। पिता ने इन्हें आग में तपे लोहे से बँधवाया, पर इससे भी प्रह्लाद को क्षति नहीं पहुँची। अपने इस अविचल भक्त की रक्षा के लिए स्वयं भगवान् नृसिंह रूप में प्रकटहुए और हिरण्यकशिपु का वध किया।  
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श्रेष्ठ भगवद्भक्त प्रह्लाद दैत्य-सम्राट् हिरण्यकशिपु के पुत्र थे। भक्ति-मार्ग के विरोधी पिता ने पुत्र को ईश्वर-भक्ति से विमुख करने के उद्देश्य से नाना प्रकार के कष्ट दिये। किन्तु प्रह्लाद की ईश-भक्ति में आस्था अडिग रही। हिरण्यकशिपु की योजनासे प्रह्लाद की बुआ होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि-ज्वालाओं के मध्य जा बैठी, पर भगवद्भक्ति के प्रताप से होलिका जल गयी और प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। पिता ने इन्हें आग में तपे लोहे से बँधवाया, पर इससे भी प्रह्लाद को क्षति नहीं पहुँची। अपने इस अविचल भक्त की रक्षा के लिए स्वयं भगवान् नृसिंह रूप में प्रकटहुए और हिरण्यकशिपु का वध किया।  
    
'''<u><big>नारद</big></u>'''  
 
'''<u><big>नारद</big></u>'''  
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'''<u><big>वसिष्ठ</big></u>'''
 
'''<u><big>वसिष्ठ</big></u>'''
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ऋग्वेद के सप्तम मण्डल के द्रष्टाऋषि,जो यज्ञ प्रक्रिया के प्रथमज्ञाता थे। वसिष्ठसूर्यवंश के कुलगुरु थे। उन्होंने ब्रह्मा की आज्ञा सेइस वंश का पौरोहित्य स्वीकार किया था।अपने तपोबल से रघुवंश के चक्रवर्ती नरेशों-दिलीप, रघु, रामचन्द्र आदि की श्रीवृद्धि की और अनेक संकटो से सूर्यवंश की रक्षा की। बीच में एक बार कोई योग्य शासक न रहने पर उन्होंने राज्य-व्यव्स्था की भी स्वयं देखभाल की और उचित समय पर राज्य के उत्तराधिकारी को शासन सौंप दिया। वसिष्ठ के पास नन्दिनी नाम की एक कामधेनु थी जिसे हठात् बलपूर्वक प्राप्त करने के लिए विश्वामित्र ने वसिष्ठ से संघर्षकिया। विश्वामित्र ने क्षात्रतेज की तुलना में ब्रह्मतेज की श्रेष्ठता अनुभव की और राजपद त्याग कर तपस्या करके तपोबल से वसिष्ठको हराने का प्रयत्न बहुत समय तक करते रहे। किन्तु अन्तत: उन्होंने अपनी भूल स्वीकार कर ली। वसिष्ठ ब्राह्मणत्व के आदर्श हैं। विश्वामित्र के हाथों अपने सौपुत्रों के मारेजाने पर भी उनकेमनमें कोईविकारउत्पन्न नहीं हुआ। अरुन्धती वसिष्ठ जी की पत्नी हैं, जो उनके साथ सप्तर्षि—मंडल में स्थित हैं।  
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ऋग्वेद के सप्तम मण्डल के द्रष्टाऋषि,जो यज्ञ प्रक्रिया के प्रथमज्ञाता थे। वसिष्ठसूर्यवंश के कुलगुरु थे। उन्होंने ब्रह्मा की आज्ञा सेइस वंश का पौरोहित्य स्वीकार किया था।अपने तपोबल से रघुवंश के चक्रवर्ती नरेशों-दिलीप, रघु, रामचन्द्र आदि की श्रीवृद्धि की और अनेक संकटो से सूर्यवंश की रक्षा की। मध्य में एक बार कोई योग्य शासक न रहने पर उन्होंने राज्य-व्यव्स्था की भी स्वयं देखभाल की और उचित समय पर राज्य के उत्तराधिकारी को शासन सौंप दिया। वसिष्ठ के पास नन्दिनी नाम की एक कामधेनु थी जिसे हठात् बलपूर्वक प्राप्त करने के लिए विश्वामित्र ने वसिष्ठ से संघर्षकिया। विश्वामित्र ने क्षात्रतेज की तुलना में ब्रह्मतेज की श्रेष्ठता अनुभव की और राजपद त्याग कर तपस्या करके तपोबल से वसिष्ठको हराने का प्रयत्न बहुत समय तक करते रहे। किन्तु अन्तत: उन्होंने अपनी भूल स्वीकार कर ली। वसिष्ठ ब्राह्मणत्व के आदर्श हैं। विश्वामित्र के हाथों अपने सौपुत्रों के मारेजाने पर भी उनकेमनमें कोईविकारउत्पन्न नहीं हुआ। अरुन्धती वसिष्ठ जी की पत्नी हैं, जो उनके साथ सप्तर्षि—मंडल में स्थित हैं।  
    
'''<u><big>शुकदेव</big></u>'''  
 
'''<u><big>शुकदेव</big></u>'''  

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