Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "बीच" to "मध्य"
Line 64: Line 64:     
=== सामाजिक उत्सवों एवं पर्वों के बारे में जानना ===
 
=== सामाजिक उत्सवों एवं पर्वों के बारे में जानना ===
समाज के सभी सदस्यों का सहजीवन आनंदपूर्ण बने; सबके बीच आत्मीयता एवं स्नेहभाव बना रहे, निर्बल-सबल सभी एकदूसरे के सहारे जीवन जीते रहें, किसीकी असुरक्षा की समस्या का निर्माण न हो, 'पंच की लकड़ी एक का बोझ' के नाते सबका पोषण हो इस दृष्टि से हमारी समाजव्यवस्था की परंपरा में उत्सवों एवं पर्यों का आयोजन होता आया है। इस उत्सव परंपरा को बनाए रखना चाहिए; उसका सामाजिक एवं वैज्ञानिक रूप जानना चाहिए एवं उसी तरह मनाना भी चाहिए।  
+
समाज के सभी सदस्यों का सहजीवन आनंदपूर्ण बने; सबके मध्य आत्मीयता एवं स्नेहभाव बना रहे, निर्बल-सबल सभी एकदूसरे के सहारे जीवन जीते रहें, किसीकी असुरक्षा की समस्या का निर्माण न हो, 'पंच की लकड़ी एक का बोझ' के नाते सबका पोषण हो इस दृष्टि से हमारी समाजव्यवस्था की परंपरा में उत्सवों एवं पर्यों का आयोजन होता आया है। इस उत्सव परंपरा को बनाए रखना चाहिए; उसका सामाजिक एवं वैज्ञानिक रूप जानना चाहिए एवं उसी तरह मनाना भी चाहिए।  
    
पूर्व में बताए गए अनुसार नृत्य, गीत, संगीत इत्यादि स्वयं में संस्कृति नहीं हैं अपितु संस्कृति के अंग के समान हैं। इसलिए संस्कृति के विषय में उनका समावेश स्वाभाविक है। नृत्य, गीत, संगीत इत्यादि उत्सव पर्व, अच्छे शुभ प्रसंग का एक अहम् हिस्सा बन जाता हैं। इसलिए ऐसे सभी कार्यक्रमों का आयोजन करके उसमें सभी को सहभागी बनाना चाहिए। ये सभी कार्यक्रम विकृत न बन जाएँ एवं उनमें भद्दापन प्रदर्शित न हो इसकी सावधानी रखना आवश्यक है। उन सभी का शुद्ध सांस्कृतिक रूप बनाए रखना, उन्हें सुरूचिपूर्ण बनाना, वर्तमान समय में प्रयासपूर्वक करनेवाली बात बन चुकी है। आज के दूरदर्शन के प्रभाव के कारण ही यह खतरा पैदा हुआ है। उसके सामने हमें अपनी नई पीढ़ी के संस्कार एवं मानसिकता का जतन करने की एक बहुत बड़ी चुनौती पैदा हुई है। इसे खूब अहमियत देकर घर घर में एवं विद्यालय में करने की आवश्यकता है। इस संदर्भ का ध्यान में रखकर ही ये क्रियाकलाप करने चाहिए।  
 
पूर्व में बताए गए अनुसार नृत्य, गीत, संगीत इत्यादि स्वयं में संस्कृति नहीं हैं अपितु संस्कृति के अंग के समान हैं। इसलिए संस्कृति के विषय में उनका समावेश स्वाभाविक है। नृत्य, गीत, संगीत इत्यादि उत्सव पर्व, अच्छे शुभ प्रसंग का एक अहम् हिस्सा बन जाता हैं। इसलिए ऐसे सभी कार्यक्रमों का आयोजन करके उसमें सभी को सहभागी बनाना चाहिए। ये सभी कार्यक्रम विकृत न बन जाएँ एवं उनमें भद्दापन प्रदर्शित न हो इसकी सावधानी रखना आवश्यक है। उन सभी का शुद्ध सांस्कृतिक रूप बनाए रखना, उन्हें सुरूचिपूर्ण बनाना, वर्तमान समय में प्रयासपूर्वक करनेवाली बात बन चुकी है। आज के दूरदर्शन के प्रभाव के कारण ही यह खतरा पैदा हुआ है। उसके सामने हमें अपनी नई पीढ़ी के संस्कार एवं मानसिकता का जतन करने की एक बहुत बड़ी चुनौती पैदा हुई है। इसे खूब अहमियत देकर घर घर में एवं विद्यालय में करने की आवश्यकता है। इस संदर्भ का ध्यान में रखकर ही ये क्रियाकलाप करने चाहिए।  

Navigation menu