३९. पतिपत्नी एक हैं इस नाते परिवार के सारे कार्य दोनों मिलकर करते हैं । यज्ञ, पूजा, अनुष्ठान, सन्तानों के विवाह अकेला पति या अकेली पत्नी नहीं कर सकते । समाज में भी दोनों एक साथ होते हैं । किसी का अमृतमहोत्सव मनाना है तो पतिपत्नी साथ ही होते हैं । पूर्व समय में राज्याभिषेक राजा और रानी दोनों का साथ ही होता था और अभिषिक्त रानी का तथा जब उसका पुत्र राजा बनता था तब राजामाता का मान्य पद होता था । परन्तु पश्चिमी व्यक्तिकेन्द्री व्यवस्था के परिणाम स्वरूप राष्ट्रपति या राज्यपाल सपत्नीक शपथ नहीं लेते, भारतरत्न जैसे पुरस्कार भी व्यक्तिगत होते हैं, पत्नी या पति के साथ मिलकर नहीं । इसका न किसी को आश्चर्य होता है न किसी के मन में प्रश्न उठता है । | ३९. पतिपत्नी एक हैं इस नाते परिवार के सारे कार्य दोनों मिलकर करते हैं । यज्ञ, पूजा, अनुष्ठान, सन्तानों के विवाह अकेला पति या अकेली पत्नी नहीं कर सकते । समाज में भी दोनों एक साथ होते हैं । किसी का अमृतमहोत्सव मनाना है तो पतिपत्नी साथ ही होते हैं । पूर्व समय में राज्याभिषेक राजा और रानी दोनों का साथ ही होता था और अभिषिक्त रानी का तथा जब उसका पुत्र राजा बनता था तब राजामाता का मान्य पद होता था । परन्तु पश्चिमी व्यक्तिकेन्द्री व्यवस्था के परिणाम स्वरूप राष्ट्रपति या राज्यपाल सपत्नीक शपथ नहीं लेते, भारतरत्न जैसे पुरस्कार भी व्यक्तिगत होते हैं, पत्नी या पति के साथ मिलकर नहीं । इसका न किसी को आश्चर्य होता है न किसी के मन में प्रश्न उठता है । |