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३७.. यहाँ सबको अपना अपना निर्णय लेने का अधिकार है, कोई किसी के लिये निर्णय नहीं कर सकता और यदि करता भी है तो उसे मान्य नहीं रखा जाता । सबके अधिकार होते हैं और उस अधिकार की रक्षा के लिये कानून होता है ।
 
३७.. यहाँ सबको अपना अपना निर्णय लेने का अधिकार है, कोई किसी के लिये निर्णय नहीं कर सकता और यदि करता भी है तो उसे मान्य नहीं रखा जाता । सबके अधिकार होते हैं और उस अधिकार की रक्षा के लिये कानून होता है ।
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३८. धार्मिक समाजरचना में पति और पत्नी के बीच में झगडे में तीसरा व्यक्ति पडता नहीं है क्योंकि सब जानते हैं कि वे एक ही है । पति पत्नी के और पत्नी पति के विरुद्ध शिकायत तीसरे व्यक्ति के पास नहीं करते क्योंकि यह एकत्व का भंग है । परिवार का झगडा परिवार से बाहर नहीं ले जाया जाता है क्योंकि वह अन्दर का मामला है । समुदाय का, जाति का विवाद समुदाय या जाति में ही निपटाया जाता है । ब्रिटीशों ने यह सारी व्यवस्था नष्ट कर दी और सारे विवादों के लिये उच्चतम न्यायालय के मार्ग खुले कर दिये ।
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३८. धार्मिक समाजरचना में पति और पत्नी के मध्य में झगडे में तीसरा व्यक्ति पडता नहीं है क्योंकि सब जानते हैं कि वे एक ही है । पति पत्नी के और पत्नी पति के विरुद्ध शिकायत तीसरे व्यक्ति के पास नहीं करते क्योंकि यह एकत्व का भंग है । परिवार का झगडा परिवार से बाहर नहीं ले जाया जाता है क्योंकि वह अन्दर का मामला है । समुदाय का, जाति का विवाद समुदाय या जाति में ही निपटाया जाता है । ब्रिटीशों ने यह सारी व्यवस्था नष्ट कर दी और सारे विवादों के लिये उच्चतम न्यायालय के मार्ग खुले कर दिये ।
    
३९. पतिपत्नी एक हैं इस नाते परिवार के सारे कार्य दोनों मिलकर करते हैं । यज्ञ, पूजा, अनुष्ठान, सन्तानों के विवाह अकेला पति या अकेली पत्नी नहीं कर सकते । समाज में भी दोनों एक साथ होते हैं । किसी का अमृतमहोत्सव मनाना है तो पतिपत्नी साथ ही होते हैं । पूर्व समय में राज्याभिषेक राजा और रानी दोनों का साथ ही होता था और अभिषिक्त रानी का तथा जब उसका पुत्र राजा बनता था तब राजामाता का मान्य पद होता था । परन्तु पश्चिमी व्यक्तिकेन्द्री व्यवस्था के परिणाम स्वरूप राष्ट्रपति या राज्यपाल सपत्नीक शपथ नहीं लेते, भारतरत्न जैसे पुरस्कार भी व्यक्तिगत होते हैं, पत्नी या पति के साथ मिलकर नहीं । इसका न किसी को आश्चर्य होता है न किसी के मन में प्रश्न उठता है ।
 
३९. पतिपत्नी एक हैं इस नाते परिवार के सारे कार्य दोनों मिलकर करते हैं । यज्ञ, पूजा, अनुष्ठान, सन्तानों के विवाह अकेला पति या अकेली पत्नी नहीं कर सकते । समाज में भी दोनों एक साथ होते हैं । किसी का अमृतमहोत्सव मनाना है तो पतिपत्नी साथ ही होते हैं । पूर्व समय में राज्याभिषेक राजा और रानी दोनों का साथ ही होता था और अभिषिक्त रानी का तथा जब उसका पुत्र राजा बनता था तब राजामाता का मान्य पद होता था । परन्तु पश्चिमी व्यक्तिकेन्द्री व्यवस्था के परिणाम स्वरूप राष्ट्रपति या राज्यपाल सपत्नीक शपथ नहीं लेते, भारतरत्न जैसे पुरस्कार भी व्यक्तिगत होते हैं, पत्नी या पति के साथ मिलकर नहीं । इसका न किसी को आश्चर्य होता है न किसी के मन में प्रश्न उठता है ।

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