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११. बात यहाँ तक जाती है कि पुरुष यदि सिगरेट या शराब पीता है तो स्त्री क्यों नहीं पी सकती, पुरुष अकेला रहता है तो ख्त्री भी रहेगी । पुरुष यदि शर्ट और पैण्ट पहनता है तो ख्त्री भी पहनेगी । उसे जो ठीक लगे वह सब करने की उसे स्वतन्त्रता है, अधिकार है ।
 
११. बात यहाँ तक जाती है कि पुरुष यदि सिगरेट या शराब पीता है तो स्त्री क्यों नहीं पी सकती, पुरुष अकेला रहता है तो ख्त्री भी रहेगी । पुरुष यदि शर्ट और पैण्ट पहनता है तो ख्त्री भी पहनेगी । उसे जो ठीक लगे वह सब करने की उसे स्वतन्त्रता है, अधिकार है ।
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१२. पुरुष के जैसी ही शिक्षा, व्यवसाय, मालिकी होना स्त्री के लिये विकास का लक्षण बन गया है । इसे करिअर कहा जाता है । अब गृहिणी होना करिअर नहीं है, अथर्जिन करना करिअर है। यह बात मस्तिष्क में इतनी स्थापित हो गई है कि स्त्री को यदि पूछा जाय कि तुम क्या करती हो तो ख्त्री यदि अआथर्जिन नहीं करती है और गृहिणी बनकर घर को देखती है तो वह कहती है कि मैं कुछ नहीं करती, केवल हाउसवाईफ हूँ । पूछने वाला भी नौकरी और अथर्जिन के सम्बन्ध में ही पूछ रहा होता है और उत्तर देने वाला उसी सन्दर्भ में उत्तर देता है ।
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१२. पुरुष के जैसी ही शिक्षा, व्यवसाय, मालिकी होना स्त्री के लिये विकास का लक्षण बन गया है । इसे करिअर कहा जाता है । अब गृहिणी होना करिअर नहीं है, अर्थार्जन करना करिअर है। यह बात मस्तिष्क में इतनी स्थापित हो गई है कि स्त्री को यदि पूछा जाय कि तुम क्या करती हो तो ख्त्री यदि अआथर्जिन नहीं करती है और गृहिणी बनकर घर को देखती है तो वह कहती है कि मैं कुछ नहीं करती, केवल हाउसवाईफ हूँ । पूछने वाला भी नौकरी और अर्थार्जन के सम्बन्ध में ही पूछ रहा होता है और उत्तर देने वाला उसी सन्दर्भ में उत्तर देता है ।
    
१३. स्त्री को यदि पुरुष जैसा बनना है तो पहली बात है घर से लगाव छोडना । घर तो स्त्री का होता है, स्त्री से चलता है । पुरुष घर के कामों में रुचि नहीं लेता । उसका वह विषय नहीं है । पुरुष रुचि नहीं लेता तो स्त्री को रुचि क्‍यों लेना चाहिये ऐसा सवाल पूछा जाता है । फिर खाना बनाना, घर के काम करना, घर चलाना गौण बन जाता है और नोकरी करना, पैसा कमाना, स्वतन्त्र रूप से पैसा खर्च करना, समाज में अपना स्वतन्त्र स्थान निर्माण करना मुख्य बन जाता है यही विकास का पर्याय है ।
 
१३. स्त्री को यदि पुरुष जैसा बनना है तो पहली बात है घर से लगाव छोडना । घर तो स्त्री का होता है, स्त्री से चलता है । पुरुष घर के कामों में रुचि नहीं लेता । उसका वह विषय नहीं है । पुरुष रुचि नहीं लेता तो स्त्री को रुचि क्‍यों लेना चाहिये ऐसा सवाल पूछा जाता है । फिर खाना बनाना, घर के काम करना, घर चलाना गौण बन जाता है और नोकरी करना, पैसा कमाना, स्वतन्त्र रूप से पैसा खर्च करना, समाज में अपना स्वतन्त्र स्थान निर्माण करना मुख्य बन जाता है यही विकास का पर्याय है ।

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