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जामिया मिढ्ठिया की स्थापना २९ अक्टूबर, १९२० को अलीगढ़ में हुई । पं. जवाहरलाल नहेरु के शब्दो में - “यह असहयोग आंदोलन का स्वस्थ बच्चा था ।' गांधीजी मौलाना मुहम्मद अली और शौकत अली के साथ देश का भ्रमण करते हुए अलीगढ़ कॉलेज पहुँचे और वहाँ के छात्रों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने को प्रेरित किया । इन छात्रों के लिए वैकल्पिक शिक्षा की व्यवस्था हेतु जामिया की स्थापना हुई। हकीम अजमल खाँ इसके प्रथम कुलाधिपति तथा मौलाना मुहम्मद अली इसके कुलपति बनाए गए । डॉ. मुक्थार अहमद अंसारी इसके अवैतनिक सचिव नियुक्त हुए । जामिया के व्यय का भार केंद्रीय खिलाफत कमेटी के ऊपर डाला गया । मुसलमानों की धार्मिक शिक्षा के प्रबंध का भी निश्चय किया गया । २२ नवंबर, १९२० के फाउंडेशन कमेटी के प्रथम उत्सव के अवसर पर १९ सदस्यों की एक समिति नियुक्त हुई, जिसमें पं, जवाहरलाल नहेरू एवं डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नाम भी थे । सन्‌ १९२१ में जामिया मिडिया का प्रथम दीक्षांत समारोह हुआ । इस अवसर पर हकीम अजमल खाँने अपने अध्यक्षीय भाषण में जामिया मिढट्डिया के पाँच सिद्धांत बताए |
 
जामिया मिढ्ठिया की स्थापना २९ अक्टूबर, १९२० को अलीगढ़ में हुई । पं. जवाहरलाल नहेरु के शब्दो में - “यह असहयोग आंदोलन का स्वस्थ बच्चा था ।' गांधीजी मौलाना मुहम्मद अली और शौकत अली के साथ देश का भ्रमण करते हुए अलीगढ़ कॉलेज पहुँचे और वहाँ के छात्रों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने को प्रेरित किया । इन छात्रों के लिए वैकल्पिक शिक्षा की व्यवस्था हेतु जामिया की स्थापना हुई। हकीम अजमल खाँ इसके प्रथम कुलाधिपति तथा मौलाना मुहम्मद अली इसके कुलपति बनाए गए । डॉ. मुक्थार अहमद अंसारी इसके अवैतनिक सचिव नियुक्त हुए । जामिया के व्यय का भार केंद्रीय खिलाफत कमेटी के ऊपर डाला गया । मुसलमानों की धार्मिक शिक्षा के प्रबंध का भी निश्चय किया गया । २२ नवंबर, १९२० के फाउंडेशन कमेटी के प्रथम उत्सव के अवसर पर १९ सदस्यों की एक समिति नियुक्त हुई, जिसमें पं, जवाहरलाल नहेरू एवं डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नाम भी थे । सन्‌ १९२१ में जामिया मिडिया का प्रथम दीक्षांत समारोह हुआ । इस अवसर पर हकीम अजमल खाँने अपने अध्यक्षीय भाषण में जामिया मिढट्डिया के पाँच सिद्धांत बताए |
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प्रथम सिद्दांत था धर्म की कुंजी से दुनिया के दरवाजे खोलो ।' उन्होंने आगे कहा, “अगरचे हमने तमाम आधुनिक शास्त्रों को अपनी शिक्षा में जगह दी है, लेकिन कुरान और इस्लाम को मुख्य और उन्हें गौण बनाया है ।' दूसरा सिद्धांत इस्लाम के इतिहास से संबद्ध था । इस्लामी इतिहास को जामिया की शिक्षा में अनिवार्य बनाया गया था, क्योंकि उनका खयाल था कि यह मुसलिम कौम की परंपरा को एकसूत्र में पिरोने के लिए स्मरण रखनेवाली चीज है । तीसरा सिद्धांत था - मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा और चौथा सिद्दांत था - रोजगार और दस्तकारी की शिक्षा को अनिवार्य बनाना । पाँचवाँ सिद्धांत बताया गया कि जामिया में मिलीजुली राष्ट्रीता का विकास होगा । हकीम साहब ने फरमाया था, “चुनांचे इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखा गया है कि यहाँ हिंदू तालिब इल्मों के लिए इस्लाम की बहुत सी बातों का ज्ञान प्राप्त करना जरूरी है, वहाँ मुसलमान विद्यार्थी भी हिंदू रीति-रिवाजों और हिंदू सभ्यता से अपरिचित नहीं रहेंगे ।'
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प्रथम सिद्दांत था धर्म की कुंजी से दुनिया के दरवाजे खोलो ।' उन्होंने आगे कहा, “अगरचे हमने तमाम आधुनिक शास्त्रों को अपनी शिक्षा में जगह दी है, लेकिन कुरान और इस्लाम को मुख्य और उन्हें गौण बनाया है ।' दूसरा सिद्धांत इस्लाम के इतिहास से संबद्ध था । इस्लामी इतिहास को जामिया की शिक्षा में अनिवार्य बनाया गया था, क्योंकि उनका खयाल था कि यह मुसलिम कौम की परंपरा को एकसूत्र में पिरोने के लिए स्मरण रखनेवाली चीज है । तीसरा सिद्धांत था - मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा और चौथा सिद्दांत था - रोजगार और दस्तकारी की शिक्षा को अनिवार्य बनाना । पाँचवाँ सिद्धांत बताया गया कि जामिया में मिलीजुली राष्ट्रीता का विकास होगा । हकीम साहब ने फरमाया था, “चुनांचे इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखा गया है कि यहाँ हिंदू तालिब इल्मों के लिए इस्लाम की बहुत सी बातों का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है, वहाँ मुसलमान विद्यार्थी भी हिंदू रीति-रिवाजों और हिंदू सभ्यता से अपरिचित नहीं रहेंगे ।'
    
दो वर्ष बाद जामिया पर आर्थिक संकट आ गया । राष्ट्रीयता का जोश कुछ ठंडा होने लगा । उस समय गांधीजी इसके “विजिटर' थे । उन्होंने हकीम साहब को हिम्मत दिलाई और उनकी प्रेरणा से सन्‌ १९२४ में जामिया को अलीगढ़ से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया । कुछ समय पश्चात्‌ इसके कुलपति के रूप में डॉ. जाकिर हुसैन का आगमन हुआ और यह संस्था दिनानुदिन विकसित होती गई ।
 
दो वर्ष बाद जामिया पर आर्थिक संकट आ गया । राष्ट्रीयता का जोश कुछ ठंडा होने लगा । उस समय गांधीजी इसके “विजिटर' थे । उन्होंने हकीम साहब को हिम्मत दिलाई और उनकी प्रेरणा से सन्‌ १९२४ में जामिया को अलीगढ़ से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया । कुछ समय पश्चात्‌ इसके कुलपति के रूप में डॉ. जाकिर हुसैन का आगमन हुआ और यह संस्था दिनानुदिन विकसित होती गई ।

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