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==== क्या शिक्षा 'राष्ट्रीय' हो सकती है ? ====
==== क्या शिक्षा 'राष्ट्रीय' हो सकती है ? ====
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अब श्री अरविंद के सामने प्रश्न खड़ा हो जाता है कि यदि सबकुछ नया ही बनाना है, आधुनिकतम ज्ञान-विज्ञान को भी शिक्षा में समाविष्ट करना है तो नई शिक्षा-पद्धति में “राष्ट्रीय क्या रह जाता है ? इससे भी अगला प्रश्न खड़ा होता है कि क्या “शिक्षा' का कोई राष्ट्रीय संस्करण हो सकता है ? राष्ट्रीय शिक्षा के अब तक के प्रयोगों की असफलता से हताश व धार्मिक बुद्धिजीवी वर्ग अब तक तर्क का आश्रय लेने लगा था कि “राष्ट्रीय शिक्षा की अवधारणा ही मिथ्या है और संकीर्ण देशप्रेम का एक ऐसे क्षेत्र में अवांछनीय, अहितकर व अनधिकार प्रवेश है, जहाँ उसके लिए कोई वैध स्थान नहीं । यहां देश-प्रेम का बस इतना ही स्थान हो सकता है कि अच्छे नागरिक होने की शिक्षा दी जाए । और इस उद्देश्य के लिए अलग-अलग प्रकार की शिक्षा देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अच्छा नागरिक बनाने के शिक्षा के मूल तत्त्व सभी जगह एक से होंगे, चाहे वह पूर्व हो या पश्चिम, इंग्लैंड हो या जर्मनी, जापान हो या हिंदुस्तान ।'
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अब श्री अरविंद के सामने प्रश्न खड़ा हो जाता है कि यदि सबकुछ नया ही बनाना है, आधुनिकतम ज्ञान-विज्ञान को भी शिक्षा में समाविष्ट करना है तो नई शिक्षा-पद्धति में “राष्ट्रीय क्या रह जाता है ? इससे भी अगला प्रश्न खड़ा होता है कि क्या “शिक्षा' का कोई राष्ट्रीय संस्करण हो सकता है ? राष्ट्रीय शिक्षा के अब तक के प्रयोगों की असफलता से हताश व धार्मिक बुद्धिजीवी वर्ग अब तक तर्क का आश्रय लेने लगा था कि “राष्ट्रीय शिक्षा की अवधारणा ही मिथ्या है और संकीर्ण देशप्रेम का एक ऐसे क्षेत्र में अवांछनीय, अहितकर व अनधिकार प्रवेश है, जहाँ उसके लिए कोई वैध स्थान नहीं । यहां देश-प्रेम का बस इतना ही स्थान हो सकता है कि अच्छे नागरिक होने की शिक्षा दी जाए । और इस उद्देश्य के लिए अलग-अलग प्रकार की शिक्षा देने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि अच्छा नागरिक बनाने के शिक्षा के मूल तत्त्व सभी जगह एक से होंगे, चाहे वह पूर्व हो या पश्चिम, इंग्लैंड हो या जर्मनी, जापान हो या हिंदुस्तान ।'
राष्ट्रीय शिक्षा की अवधारणा के विरुद्ध दूसरा तर्क यह दिया गया कि “मानव जाति और उसकी आवश्यकताएँ सब जगह एक हैं । सत्य और ज्ञान एक ही है, उनका कोई देश नहीं होता । अतः ज्ञान देने का साधन होने के कारण शिक्षा भी सार्वभौम होनी चाहिए, जिसकी कोई राष्ट्रीयता न हो, कोई सीमों न हों । उदाहरणार्थ, भौतिक विज्ञान में राष्ट्रीय शिक्षा का भला क्या अर्थ हो सकता है !'
राष्ट्रीय शिक्षा की अवधारणा के विरुद्ध दूसरा तर्क यह दिया गया कि “मानव जाति और उसकी आवश्यकताएँ सब जगह एक हैं । सत्य और ज्ञान एक ही है, उनका कोई देश नहीं होता । अतः ज्ञान देने का साधन होने के कारण शिक्षा भी सार्वभौम होनी चाहिए, जिसकी कोई राष्ट्रीयता न हो, कोई सीमों न हों । उदाहरणार्थ, भौतिक विज्ञान में राष्ट्रीय शिक्षा का भला क्या अर्थ हो सकता है !'