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− | कुम्हार जब मिट्टी से घड़ा बनाता है तब अच्छी तरह से गुँधी हुई गीली मिट्टी के पिण्ड को चाक पर चढ़ाता है, चाक को घुमाता है और उस पिण्ड को जैसा चाहिये वैसा आकार देता है<ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १): पर्व ५, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। इस समय मिट्टी गीली होती है इसलिये | + | कुम्हार जब मिट्टी से घड़ा बनाता है तब अच्छी तरह से गुँधी हुई गीली मिट्टी के पिण्ड को चाक पर चढ़ाता है, चाक को घुमाता है और उस पिण्ड को जैसा चाहिये वैसा आकार देता है<ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १): पर्व ५, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। इस समय मिट्टी गीली होती है इसलिये उसे जोर से दबाता नहीं है, जोर जोर से थपेडे मारता नहीं है, उसके साथ कठोर व्यवहार करता नहीं है। फिर भी जैसा बन जाय वैसा पात्र बनाता नहीं है । उसे जैसा चाहिए वैसा ही बनाता है । इसी प्रकार से शिशु पाँच वर्ष का होता है तब तक की मातापिता की भूमिका होती है। उसे लाडप्यार, सुरक्षा, सम्मान सबकुछ देना, उसकी इच्छाओं की पूर्ति करना, उसके अनुकूल बनना मातापिता के लिये करणीय कार्य है परन्तु शिशु जैसा बन जाय वैसा बन जाय ऐसा नहीं होता, व्यक्तित्वविकास तो जैसा होना चाहिये वैसा ही करना । यही मातापिता की कुशलता है । |
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− | उसे जोर से दबाता नहीं है, जोर जोर से थपेडे मारता नहीं | + | परन्तु कुम्हार जब चाक से घड़ा उतारता है तब घड़े को लाड प्यार नहीं देता । वह उसे भट्टी में ही डालता है । उस समय यदि कुम्हार को घड़े पर दया आती है और वह उसे भट्टी में नहीं डालता तो घड़ा कच्चा रह जाता है पानी भरने के काम में नहीं आता, रंग लगाकर शोभा के लिये भले रखा जाय । भट्टी में पकना घड़े की आवश्यकता है। उसी प्रकार शिशु पाँच वर्ष पूर्ण करने के बाद जब बाल अवस्था में प्रवेश करता है तो जीवन के अगले दस वर्ष वह ताडन का अधिकारी बनता है । उसके विकास के लिये यह आवश्यक है। |
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− | है, उसके साथ कठोर व्यवहार करता नहीं है। फिर भी | + | ताडन का अर्थ क्या है ? ताडन का शाब्दिक अर्थ है मारना या पीटना । परन्तु यहाँ शब्दार्थ अभिप्रेत नहीं है । यहाँ उसका लक्षणार्थ अभिप्रेत है । यहाँ ताडन का अर्थ है संयम, अनुशासन, नियम आज्ञाकारिता, परिश्रम, तितिक्षा आदि । बाल और किशोर अवस्था चरित्रगठन की आयु है, घड़ा पकने की आयु है, उसे ताडन रूपी अग्नि में पकने की आवश्यकता है । जो मातापिता ताडन करते हैं वे वास्तव में बालक का भला चाहते हैं जो नहीं करते उनकी दया आभासी प्रेम है । |
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− | जैसा बन जाय वैसा पात्र बनाता नहीं है । उसे जैसा चाहिए
| + | परन्तु मातापिता ताडन करने के अधिकारी बनें यह आवश्यक है । ताडन बालक की आवश्यकता है यह बात सही है परन्तु मातापिता यदि संयम खोकर, उत्तेजनावश, अपने स्वार्थ के लिये अपना काम निपटाने के लिये, झुँझलाकर, बिना समझे, बिना आवश्यकता के ताडन करते हैं तो वह गलत है । बालक पर उसका विपरीत प्रभाव पड़ता है, मातापिता को इसका दोष लगता है । हृदय में प्रेम यथावत् रखकर, आवश्यकता के अनुसार, सोचविचार कर, बिना झँझुलाये, उपचार की तरह ताडन किया जाता है तब वह परिणामकारी बनता है । |
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− | वैसा ही बनाता है । इसी प्रकार से शिशु पाँच वर्ष का होता
| + | मातापिता को भी यह सीखने की आवश्यकता होती है । ताडन की आवश्यकता होने पर नहीं करना और आवश्यकता नहीं होने पर भी करना गलत है, अपराध है, परिणामकारी नहीं है, उल्टे विपरीत परिणाम देनेवाला बन जाता है । पाँच वर्ष की आयु समाप्त होने पर बालक विद्यालय जाने लगता है । अब उसकी शिक्षा के दो केन्द्र हैं। एक है घर और दूसरा है विद्यालय । घर में मातापिता शिक्षक है जबकि विद्यालय में स्वयं शिक्षक ही है जो विद्यार्थी के मानस पिता की भूमिका निभाता है । अब बालक घर में पुत्र है (या पुत्री है) और विद्यालय में विद्यार्थी । घर में पुत्र के रूप में शिक्षा होती है, विद्यालय में विद्यार्थी के रूप में । घर में पाँच वर्ष की आयु तक माता की भूमिका मुख्य थी और पिता उसके सहयोगी थे, अब पिता की भूमिका प्रमुख है और माता उसकी सहयोगी है ।घर और विद्यालय की शिक्षा में कुछ बातें समान हो सकती हैं परन्तु अनेक बातें ऐसी हैं जो स्वतन्त्र हैं। |
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− | है तब तक की मातापिता की भूमिका होती है। उसे
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− | इच्छाओं की पूर्ति करना, उसके अनुकूल बनना मातापिता
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− | के लिये करणीय कार्य है परन्तु शिशु जैसा बन जाय वैसा
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− | व्यक्तित्वविकास तो जैसा होना चाहिये वैसा ही करना ।
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− | यही मातापिता की कुशलता है ।
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− | परन्तु कुम्हार जब चाक से घड़ा उतारता है तब घड़े
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− | को लाड प्यार नहीं देता । वह उसे भट्टी में ही डालता है ।
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− | उस समय यदि कुम्हार को घड़े पर दया आती है और वह
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− | उसे भट्टी में नहीं डालता तो घड़ा कच्चा रह जाता है पानी
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− | भले रखा जाय । भट्टी में पकना घड़े की आवश्यकता है ।
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− | उसी प्रकार शिशु पाँच वर्ष पूर्ण करने के बाद जब
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− | बाल अवस्था में प्रवेश करता है तो जीवन के अगले दस
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− | वर्ष वह ताडन का अधिकारी बनता है । उसके विकास के
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− | लिये यह आवश्यक है ।
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− | ताडन का अर्थ क्या है ? ताडन का शाब्दिक अर्थ है
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− | मारना या पीटना । परन्तु यहाँ शब्दार्थ अभिप्रेत नहीं है ।
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− | यहाँ उसका लक्षणार्थ अभिप्रेत है । यहाँ ताडन का अर्थ है
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− | संयम, अनुशासन, नियम आज्ञाकारिता, परिश्रम, तितिक्षा
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− | आदि । बाल और किशोर अवस्था चरित्रगठन की आयु है,
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− | आवश्यकता है । जो मातापिता ताडन करते हैं वे वास्तव में
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− | बालक का भला चाहते हैं जो नहीं करते उनकी दया
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− | आभासी प्रेम है ।
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− | आवश्यक है । ताडन बालक की आवश्यकता है यह बात
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− | सही है परन्तु मातापिता यदि संयम खोकर, उत्तेजनावश,
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− | अपने स्वार्थ के लिये अपना काम निपटाने के लिये,
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− | पड़ता है, मातापिता को इसका दोष लगता है । हृदय में प्रेम
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− | यथावत्ू रखकर, आवश्यकता के अनुसार, सोचविचार कर,
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− | बिना झँझुलाये, उपचार की तरह ताडन किया जाता है तब
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− | वह परिणामकारी बनता है । मातापिता को भी यह सीखने
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− | है, अपराध है, परिणामकारी नहीं है, उल्टे विपरीत परिणाम | |
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− | पाँच वर्ष की आयु समाप्त होने पर बालक विद्यालय | |
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− | जाने लगता है । अब उसकी शिक्षा के दो केन्द्र हैं । एक है | |
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− | घर और दूसरा है विद्यालय । घर में मातापिता शिक्षक है | |
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− | जबकि विद्यालय में स्वयं शिक्षक ही है जो विद्यार्थी के | |
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− | मानस पिता की भूमिका निभाता है । अब बालक घर में | |
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− | पुत्र है (या पुत्री है) और विद्यालय में विद्यार्थी । घर में पुत्र | |
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− | के रूप में शिक्षा होती है, विद्यालय में विद्यार्थी के रूप में । | |
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− | घर में पाँच वर्ष की आयु तक माता की भूमिका मुख्य थी | |
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− | और पिता उसके सहयोगी थे, अब पिता की भूमिका प्रमुख | |
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− | है और माता उसकी सहयोगी है । | |
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− | घर और विद्यालय की शिक्षा में कुछ बातें समान हो
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− | सकती हैं परन्तु अनेक बातें ऐसी हैं जो स्वतन्त्र हैं। | |
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− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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| विद्यालय में होता है वह घर में नहीं हो. आयाम हैं । | | विद्यालय में होता है वह घर में नहीं हो. आयाम हैं । |