Changes

Jump to navigation Jump to search
m
no edit summary
Line 27: Line 27:  
शास्त्रा अनुसार एवं शास्त्र अनुरूप  सम्पूर्ण कार्यो को करना सदाचार है। संयम, ब्रह्मचर्य का पालन, ज्ञान अर्जित करना , माता-पिता-आचार्य एवं गुरुजनों की सेवा एवं ईश्वर की आराधना इत्यादि सभी शास्त्र अंतर्गत होने के कारण सदाचार के अन्तर्गत आ जाते हैं। इसलिये बालकों के हित के विस्तार पर अलग-अलग विचार किया जाता है और  भी बहुत-सी बातें बालको के लिये उपयोगी हैं, जिनमेंसे यहाँ सदाचार के भाव से कुछ बताई जाती हैं। बालकों को प्रथम आचार की ओर ध्यान देना चाहिये,क्योंकि आचार से ही सारे धर्मो की उत्पत्ति होती है।
 
शास्त्रा अनुसार एवं शास्त्र अनुरूप  सम्पूर्ण कार्यो को करना सदाचार है। संयम, ब्रह्मचर्य का पालन, ज्ञान अर्जित करना , माता-पिता-आचार्य एवं गुरुजनों की सेवा एवं ईश्वर की आराधना इत्यादि सभी शास्त्र अंतर्गत होने के कारण सदाचार के अन्तर्गत आ जाते हैं। इसलिये बालकों के हित के विस्तार पर अलग-अलग विचार किया जाता है और  भी बहुत-सी बातें बालको के लिये उपयोगी हैं, जिनमेंसे यहाँ सदाचार के भाव से कुछ बताई जाती हैं। बालकों को प्रथम आचार की ओर ध्यान देना चाहिये,क्योंकि आचार से ही सारे धर्मो की उत्पत्ति होती है।
   −
महाभारतअनुशासन पर्व के अध्याय १४९में भीष्मजीने कहा है-<blockquote>सर्वागमानामाचारः प्रथम परिकल्पते।</blockquote><blockquote>आचारप्रभवो धर्मो धर्मस्य प्रभुरच्युतः ।|</blockquote>'सब शास्त्रों में सबसे पहले आचार की ही कल्पना की जाती है, आचार से ही धर्म उत्पन्न होता है और धर्म के प्रभु श्री सचिदानंद भगवान् हैं।'इस आचारके मुख्य दो भेद हैं-शौचाचार और सदाचार। जल और मिट्टी आदि से शरीर को तथा भोजन,
+
महाभारतअनुशासन पर्व के अध्याय १४९में भीष्मजीने कहा है-<blockquote>सर्वागमानामाचारः प्रथम परिकल्पते।</blockquote><blockquote>आचारप्रभवो धर्मो धर्मस्य प्रभुरच्युतः ।|</blockquote>सभी शास्त्रों के अनुसार सबसे पहले आचार के बारे में प्रमुख रूप से बताया जाता है | आचार से ही धर्म की उत्पत्ति होती है और धर्म के प्रभु श्री सचिदानंद भगवान् हैं।'इस आचार के मुख्य दो रूप हैं-शौचाचार और सदाचार। जल और मिट्टी आदि से शरीर को तथा भोजन,
1,192

edits

Navigation menu