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| | {{One source|date=August 2020}} | | {{One source|date=August 2020}} |
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| − | परमात्माने विश्वरूप धारण किया । विश्व में मनुष्य को
| + | परमात्मा ने विश्वरूप धारण किया<ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १): पर्व ५, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। विश्व में मनुष्य को उसने अपने प्रतिरूप में निर्माण किया । उस मनुष्य को अपने परमात्मा स्वरूप का साक्षात्कार होने की सम्भावना बनाई, साथ ही इस स्वरूप की प्राप्ति हेतु प्रयत्नशील होने की प्रेरणा भी उसके अन्तःकरण में स्थापित की । अपनी सृजनशीलता, निर्माणक्षमता, व्यवस्थाशक्ति को भी मनुष्य के अन्तःकरण में संक्रान्त किया । |
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| − | उसने अपने प्रतिरूप में निर्माण किया । उस मनुष्य को
| + | भारत के मनीषियों ने कुट्म्ब की संकल्पना को साकार कर परमात्मा की इस कृति का प्रमाण दिया है । कुटुम्ब के विषय में ज्ञानात्मक रूप में आकलन करने का प्रयास करते हैं तब यह बात हमारे ध्यान में आती है । भारतीय कुटुम्बव्यवस्था के मूल तत्त्वों को इस दृष्टि से ही समझने का प्रयास करेंगे । |
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| − | अपने परमात्मा स्वरूप का साक्षात्कार होने की सम्भावना
| + | == कुटुम्ब एकात्मता का प्रारम्भ बिन्दु == |
| − | | + | परमात्मा ने जब विश्वरूप धारण किया तब सर्वप्रथम वह स्त्रीधारा और पुरुषधारा में विभाजित हुआ । इस |
| − | बनाई, साथ ही इस स्वरूप की प्राप्ति हेतु प्रयत्नशील होने
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| − | की प्रेरणा भी उसके अन्तःकरण में स्थापित की । अपनी
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| − | सृजनशीलता, निर्माणक्षमता, व्यवस्थाशक्ति को भी मनुष्य
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| − | के अन्तःकरण में संक्रान्त किया ।
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| − | भारत के मनीषियों ने कुट्म्ब की संकल्पना को
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| − | साकार कर परमात्मा की इस कृति का प्रमाण दिया है ।
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| − | aera के विषय में ज्ञानात्मक रूप में आकलन करने का
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| − | प्रयास करते हैं तब यह बात हमारे ध्यान में आती है ।
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| − | भारतीय कुटुम्बव्यवस्था के मूल तत्त्वों को इस दृष्टि से ही
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| − | समझने का प्रयास करेंगे ।
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| − | १. कुटुम्ब एकात्मता का प्रारम्भ बिन्दु
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| − | परमात्मा ने जब विश्वरूप धारण किया तब सर्वप्रथम | |
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| − | वह स्त्रीधारा और पुरुषधारा में विभाजित हुआ । इस | |
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| | स्त्रीधारा और पुरुषधारा का युग्म बना । दोनों साथ मिलकर | | स्त्रीधारा और पुरुषधारा का युग्म बना । दोनों साथ मिलकर |
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| | है । परन्तु सर्व प्रकार से रक्षा करने लायक यह तत्त्व है । | | है । परन्तु सर्व प्रकार से रक्षा करने लायक यह तत्त्व है । |
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| − | 2. Hera की धुरी स्त्री है
| + | == कुटुम्ब की धुरी स्त्री है == |
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| | ‘a We गृहमित्याहु: गृहिणी गृहमुच्यते' यह कथन | | ‘a We गृहमित्याहु: गृहिणी गृहमुच्यते' यह कथन |
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| | गहरे हुए हैं । | | गहरे हुए हैं । |
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| − | ३. समाजव्यवस्था की मूल इकाई कुटुम्ब
| + | == समाजव्यवस्था की मूल इकाई कुटुम्ब == |
| − | | |
| | समाज की एकात्म रचना के अन्तर्गत व्यक्ति को नहीं | | समाज की एकात्म रचना के अन्तर्गत व्यक्ति को नहीं |
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| | पड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है । | | पड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है । |
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| − | ४. स्वायत्त कुटुम्ब स्वायत्त समाज बनाता है
| + | == स्वायत्त कुटुम्ब स्वायत्त समाज बनाता है == |
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| | भारतीय कुट्म्ब स्वायत्त है। स्वायत्त Hers a | | भारतीय कुट्म्ब स्वायत्त है। स्वायत्त Hers a |
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| | के अविरोधी बनकर जीना है । | | के अविरोधी बनकर जीना है । |
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| − | ५. सुखी कुटुम्ब से सुखी समाज बनाने के कुछ सूत्र
| + | == सुखी कुटुम्ब से सुखी समाज बनाने के कुछ सूत्र == |
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| | १, अपना काम स्वयं करना, किसी का काम करना | | १, अपना काम स्वयं करना, किसी का काम करना |
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| | होता है । | | होता है । |
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| − | ६. परम्परा खण्डित नहीं होने देना प्रत्येक कुटुम्ब का
| + | == परम्परा खण्डित नहीं होने देना प्रत्येक कुटुम्ब का महत् कर्तव्य है == |
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| − | महत् कर्तव्य है । | |
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| | पितूकऋण और उससे उक्रण होने की संकल्पना को | | पितूकऋण और उससे उक्रण होने की संकल्पना को |
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| − | पर्व ५ : कुटुम्बशिक्षा एवं लोकशिक्षा | + | ''पर्व ५ : कुटुम्बशिक्षा एवं लोकशिक्षा'' |
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| − | संस्कार का यह प्रथम प्रयोजन है । नई पीढ़ी को जन्म देकर. व्यवस्था के छास के लिये वर्तमान | + | ''संस्कार का यह प्रथम प्रयोजन है । नई पीढ़ी को जन्म देकर. व्यवस्था के छास के लिये वर्तमान'' |
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| − | पूर्वजों से जो मिला है वह सब उसे सौंपने का काम करना... शिक्षा जिम्मेदार है। विगत दो सौ वर्षों से भारतीय | + | ''पूर्वजों से जो मिला है वह सब उसे सौंपने का काम करना... शिक्षा जिम्मेदार है। विगत दो सौ वर्षों से भारतीय'' |
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| − | है । धरोहर को स्वीकार कर सके इस लायक नई पीढ़ी को... समाजव्यवस्था को पिछडेपन का लेबल लगा दिया गया | + | ''है । धरोहर को स्वीकार कर सके इस लायक नई पीढ़ी को... समाजव्यवस्था को पिछडेपन का लेबल लगा दिया गया'' |
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| − | बनाना है । साथ ही धरोहर को परिष्कृत और समृद्ध करते. है । हर रीति, हर परम्परा, हर प्रथा खराब है, हर व्यवस्था | + | ''बनाना है । साथ ही धरोहर को परिष्कृत और समृद्ध करते. है । हर रीति, हर परम्परा, हर प्रथा खराब है, हर व्यवस्था'' |
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| − | रहना है । पितृऋण से मुक्त तभी हुआ जाता है जब नई... पुरातन है, सारा मानस अन्धश्रद्धा से भरा हुआ है, ऐसा | + | ''रहना है । पितृऋण से मुक्त तभी हुआ जाता है जब नई... पुरातन है, सारा मानस अन्धश्रद्धा से भरा हुआ है, ऐसा'' |
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| − | पीढ़ी को यह सब देकर उसे ऋणी बना दें । कहकर पाठ्यपुस्तकों में इसकी निन््दा की गई है । इसे | + | ''पीढ़ी को यह सब देकर उसे ऋणी बना दें । कहकर पाठ्यपुस्तकों में इसकी निन््दा की गई है । इसे'' |
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| − | इसी निमित्त से श्राद्ध, पुण्यतिथि और पूर्वजों के... तोड़ने हेतु कानून बनाये गये हैं । इनके विरोध में आन्दोलन | + | ''इसी निमित्त से श्राद्ध, पुण्यतिथि और पूर्वजों के... तोड़ने हेतु कानून बनाये गये हैं । इनके विरोध में आन्दोलन'' |
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| − | स्मरणार्थ चलने वाले सभी प्रकल्पों का आयोजन होता है।.... किये गये हैं । एक और अज्ञान और दूसरी ओर विरोध की | + | ''स्मरणार्थ चलने वाले सभी प्रकल्पों का आयोजन होता है।.... किये गये हैं । एक और अज्ञान और दूसरी ओर विरोध की'' |
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| − | चपेट में आकर आज कुट्म्ब और समाज संकटग्रस्त हो गये | + | ''चपेट में आकर आज कुट्म्ब और समाज संकटग्रस्त हो गये'' |
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| − | ७. कुट्म्ब की इस रचना ने भारतीय समाज को हैं । व्यवस्थायें बिखर गई हैं और समाज तूफान में बिना | + | ''७. कुट्म्ब की इस रचना ने भारतीय समाज को हैं । व्यवस्थायें बिखर गई हैं और समाज तूफान में बिना'' |
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| − | चिरजीविता प्रदान की है । पतवार की नौका के समान भटक रहा है । इस संकट से | + | ''चिरजीविता प्रदान की है । पतवार की नौका के समान भटक रहा है । इस संकट से'' |
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| − | इसीके चलते रीतिरिवाजों का प्रचलन हुआ है इस. उसे मुक्त करने की चुनौती शिक्षा को स्वीकार करनी है । | + | ''इसीके चलते रीतिरिवाजों का प्रचलन हुआ है इस. उसे मुक्त करने की चुनौती शिक्षा को स्वीकार करनी है ।'' |
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| | ==References== | | ==References== |