Line 21: |
Line 21: |
| * अपनों के लिये त्याग करना भी वे बड़ों से ही सीखते हैं । नैतिक शिक्षा या मूल्यों की शिक्षा अलग से देनी नहीं पड़ती । | | * अपनों के लिये त्याग करना भी वे बड़ों से ही सीखते हैं । नैतिक शिक्षा या मूल्यों की शिक्षा अलग से देनी नहीं पड़ती । |
| * दान करना, व्रत पालन करना, उत्सवों का आयोजन सीखना, विवाह जैसे समारोहों का आयोजन करना, घर में ही सीखा जाता है । इष्ट देवता और कुलदेवता की पूजा, धार्मिक समारोह, मन्त्र, स्तोत्र, धार्मिक ग्रंथों का पठन आदि सब घर में दैनंदिन व्यवहार का भाग बनकर सीखे जाते हैं । सेवा और परिचर्या, वस्तुयें परखने की कुशलता, लोगों को भी परखने की कुशलता घर में ही सीखी जाती है । | | * दान करना, व्रत पालन करना, उत्सवों का आयोजन सीखना, विवाह जैसे समारोहों का आयोजन करना, घर में ही सीखा जाता है । इष्ट देवता और कुलदेवता की पूजा, धार्मिक समारोह, मन्त्र, स्तोत्र, धार्मिक ग्रंथों का पठन आदि सब घर में दैनंदिन व्यवहार का भाग बनकर सीखे जाते हैं । सेवा और परिचर्या, वस्तुयें परखने की कुशलता, लोगों को भी परखने की कुशलता घर में ही सीखी जाती है । |
− | * घर में जो सबसे बड़ी बात सीखी जाती है वह है गृहस्थधर्म । घर सांस्कृतिक | + | * घर में जो सबसे बड़ी बात सीखी जाती है वह है गृहस्थधर्म । घर सांस्कृतिक परम्परा बनाये रखने का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। उसे बनाये रखना गृहस्थ का कर्तव्य है। यह बहुत कुशलता से सीखना होता है । कई वर्षों तक यह प्रक्रिया चलती है । इस कारण से अधिक से अधिक समय घर में रहना आवश्यक माना गया है । जीवन के लिये उपयोगी सारी बातें घर में सीखने की भी इसी कारण से व्यवस्था की जाती रही है । ऐसा नहीं है कि कोई किसी कारण से घर से बाहर जाता ही नहीं था । हुनर सीखने के लिये, व्यापार करने के लिये, विद्याध्ययन के लिये, तीर्थयात्रा करने के लिये अनेक लोग घर से बाहर जाते थे । फिर भी जहां रहते थे घर के समान ही रहते थे । गुरुगृहवास करते थे तो गुरु के घर के जैसा ही व्यवहार करते थे । हुनर सीखने के लिये जिसके घर जाते थे उसके घर के जैसा व्यवहार करते थे । तीर्थयात्रा के लिये जाते थे तो घर की रीतिनीति का पूरा ध्यान रखते थे । व्यापार के लिये जाते थे तो भी घर का घरपना सम्हालकर रखते थे । |
− | परम्परा बनाये रखने का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। उसे | + | * व्यवहार का पूरा का पूरा ज्ञान घर में प्राप्त होता है । केवल शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त करने के लिये व्यक्ति को गुरुकुल में जाना होता है । सबके सब शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त करना चाहते ही हैं ऐसा तो होता नहीं है । कुछ जिज्ञासु लोग ही शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक होते हैं । उनके लिये व्यवस्था हो जाती है । |
− | | + | * बालिका को स्त्री, गृहिणी, पत्नी और माता बनाना है और बालक को पुरुष, पति, गृहस्थ और पिता बनाना है इसका ध्यान रखना कुट़्म्ब में ही सम्भव होता है। इस दृष्टि से यौनशिक्षा, पतिपत्नी के सम्बन्ध की शिक्षा, शिशु संगोपन की शिक्षा, गर्भिणी की, शिशु की, रूण की और वृद्धों की परिचर्या करने की शिक्षा, व्यावहारिक समस्याओं का समाधान करने की शिक्षा, संकटों का सामना करने की शिक्षा, विपरीत परिस्थितियों में समता बनाये रखने की शिक्षा, कष्ट सहने की शिक्षा घर में ही मिलती है । |
− | बनाये रखना गृहस्थ का कर्तव्य है। यह बहुत | + | यह सब पाठ्यक्रम बनाकर, विधिवत कक्षायें लगाकर, समयसारिणी बनाकर नहीं होता, सहजता से होता जाता है । |
− | | |
− | कुशलता से सीखना होता है । कई वर्षों तक यह | |
− | | |
− | प्रक्रिया चलती है । इस कारण से अधिक से अधिक | |
− | | |
− | समय घर में रहना आवश्यक माना गया है । जीवन | |
− | | |
− | के लिये उपयोगी सारी बातें घर में सीखने की भी | |
− | | |
− | इसी कारण से व्यवस्था की जाती रही है । | |
− | | |
− | ऐसा नहीं है कि कोई किसी कारण से घर से बाहर | |
− | | |
− | जाता ही नहीं था । हुनर सीखने के लिये, व्यापार | |
− | | |
− | करने के लिये, विद्याध्ययन के लिये, तीर्थयात्रा करने | |
− | | |
− | के लिये अनेक लोग घर से बाहर जाते थे । फिर भी | |
− | | |
− | जहां रहते थे घर के समान ही रहते थे । गुरुगृहवास | |
− | | |
− | करते थे तो गुरु के घर के जैसा ही व्यवहार करते | |
− | | |
− | थे । हुनर सीखने के लिये जिसके घर जाते थे उसके | |
− | | |
− | घर के जैसा व्यवहार करते थे । तीर्थयात्रा के लिये | |
− | | |
− | जाते थे तो घर की रीतिनीति का पूरा ध्यान रखते | |
− | | |
− | थे । व्यापार के लिये जाते थे तो भी घर का घरपना | |
− | | |
− | सम्हालकर रखते थे । | |
− | | |
− | व्यवहार का पूरा का पूरा ज्ञान घर में प्राप्त होता है । | |
− | | |
− | केवल शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त करने के लिये व्यक्ति को | |
− | | |
− | गुरुकुल में जाना होता है । सबके सब शास्त्रीय ज्ञान | |
− | | |
− | प्राप्त करना चाहते ही हैं ऐसा तो होता नहीं है । कुछ | |
− | | |
− | जिज्ञासु लोग ही शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक | |
− | | |
− | होते हैं । उनके लिये व्यवस्था हो जाती है । | |
− | | |
− | बालिका को स्त्री, गृहिणी, पत्नी और माता बनाना है | |
− | | |
− | और बालक को पुरुष, पति, गृहस्थ और पिता | |
− | | |
− | बनाना है इसका ध्यान रखना कुट़्म्ब में ही सम्भव | |
− | | |
− | होता है। इस दृष्टि से यौनशिक्षा, पतिपत्नी के | |
− | | |
− | सम्बन्ध की शिक्षा, शिशु संगोपन की शिक्षा, गर्भिणी | |
− | | |
− | की, शिशु की, रूण की और वृद्धों की परिचर्या करने | |
− | | |
− | की शिक्षा, व्यावहारिक समस्याओं का समाधान करने | |
− | | |
− | की शिक्षा, संकटों का सामना करने की शिक्षा, | |
− | | |
− | विपरीत परिस्थितियों में समता बनाये रखने की | |
− | | |
− | १८६
| |
− | | |
− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
| |
− | | |
− | शिक्षा, कष्ट सहने की शिक्षा घर में ही मिलती है । | |
− | | |
− | यह सब पाठ्यक्रम बनाकर, विधिवत कक्षायें | |
− | | |
− | लगाकर, समयसारिणी बनाकर नहीं होता, सहजता से | |
− | | |
− | होता जाता है । | |
| | | |
| == समाजव्यवस्था व्यक्ति केन्द्री बन गई है == | | == समाजव्यवस्था व्यक्ति केन्द्री बन गई है == |
− | इस प्रकार जीवन की अनेक बातें ऐसी हैं जो घर में | + | इस प्रकार जीवन की अनेक बातें ऐसी हैं जो घर में सीखी जाती हैं । आज भी ऐसा हो सकता है । परन्तु आज |
− | | |
− | सीखी जाती हैं । आज भी ऐसा हो सकता है । परन्तु आज | |
| | | |
| स्थिति बहुत बदल गई है । विगत दोसौ वर्षों में हमारी | | स्थिति बहुत बदल गई है । विगत दोसौ वर्षों में हमारी |