श्रेष्ठ समाज के मन में गौरव का भाव भी होता है । अत: सामाजिक अस्मिता भी आवश्यक अंग है । सामाजिक अस्मिता का अर्थ है समाज का स्वत्व । हर समाज की अपनी अपनी पहचान होती है । उदाहरण के लिये धर्मनिष्ठा अच्छे समाज की अस्मिता है । गाय अवध्य होना, भूमि माता होना, अन्न देवता होना धार्मिक समाज की अस्मिता है। ये तत्व नहीं रहे तो भारत भारत नहीं रहेगा । अनेक लोग कहते हैं कि ये तो हिन्दू समाज के मूल्य है, धार्मिक समाज के नहीं क्योंकि भारत में मुसलमान और ईसाई लोग भी रहते हैं और ये उनके मूल्य नहीं हैं । वास्तविकता यह है कि ये धार्मिक सामाजिक स्तरीय मूल्य है, किसी पंथ और सम्प्रदाय के नहीं । हिन्दू के लिये गाय यदि अवध्य है तो मुसलमान के लिये या ईसाई के लिये वध्य नहीं हो जाती, और फिर हिन्दू के धर्म का सम्मान करना धार्मिक मुसलमानों और ईसाइयों का भी तो धर्म अर्थात कर्तव्य है । | श्रेष्ठ समाज के मन में गौरव का भाव भी होता है । अत: सामाजिक अस्मिता भी आवश्यक अंग है । सामाजिक अस्मिता का अर्थ है समाज का स्वत्व । हर समाज की अपनी अपनी पहचान होती है । उदाहरण के लिये धर्मनिष्ठा अच्छे समाज की अस्मिता है । गाय अवध्य होना, भूमि माता होना, अन्न देवता होना धार्मिक समाज की अस्मिता है। ये तत्व नहीं रहे तो भारत भारत नहीं रहेगा । अनेक लोग कहते हैं कि ये तो हिन्दू समाज के मूल्य है, धार्मिक समाज के नहीं क्योंकि भारत में मुसलमान और ईसाई लोग भी रहते हैं और ये उनके मूल्य नहीं हैं । वास्तविकता यह है कि ये धार्मिक सामाजिक स्तरीय मूल्य है, किसी पंथ और सम्प्रदाय के नहीं । हिन्दू के लिये गाय यदि अवध्य है तो मुसलमान के लिये या ईसाई के लिये वध्य नहीं हो जाती, और फिर हिन्दू के धर्म का सम्मान करना धार्मिक मुसलमानों और ईसाइयों का भी तो धर्म अर्थात कर्तव्य है । |