Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "शाख्र" to "शास्त्र"
Line 79: Line 79:  
३०. सोलह वर्ष के होते होते हर तरुण का उत्पादन और अधथर्जिन शुरु हो जाना लगभग अनिवार्य बनाना चाहिये । इन विद्यालयों ने आर्थिक स्वावलम्बन, स्वमान, स्वगौरव आदि से युक्त युवा निर्माण करने चाहिये जो स्वतन्त्र व्यवसाय करें और नौकरी की सुरक्षा का विचार न करें ।
 
३०. सोलह वर्ष के होते होते हर तरुण का उत्पादन और अधथर्जिन शुरु हो जाना लगभग अनिवार्य बनाना चाहिये । इन विद्यालयों ने आर्थिक स्वावलम्बन, स्वमान, स्वगौरव आदि से युक्त युवा निर्माण करने चाहिये जो स्वतन्त्र व्यवसाय करें और नौकरी की सुरक्षा का विचार न करें ।
   −
३१. सोलह से पचीस वर्ष की आयु में दो तीन प्रकार से विचार किया जाना चाहिये । इसमें गृहस्थाश्रम की शिक्षा सबके लिये प्रमुख विषय है । इसके साथ जुड़कर समाजशास्त्र, संस्कृति, धर्म, इतिहास, अर्थशास्त्र, राजशास्त्र आदि सभी बातों का समावेश होगा । दूसरा आयाम है शाख्रों का अध्ययन और अनुसन्धान । तीसरा विषय है व्यवसाय का प्रगत ज्ञान । तीन में गृहस्थाश्रम की शिक्षा अनिवार्य है । शेष दो में चयन की स्वतन्त्रता भी हो सकती है ।
+
३१. सोलह से पचीस वर्ष की आयु में दो तीन प्रकार से विचार किया जाना चाहिये । इसमें गृहस्थाश्रम की शिक्षा सबके लिये प्रमुख विषय है । इसके साथ जुड़कर समाजशास्त्र, संस्कृति, धर्म, इतिहास, अर्थशास्त्र, राजशास्त्र आदि सभी बातों का समावेश होगा । दूसरा आयाम है शास्त्रों का अध्ययन और अनुसन्धान । तीसरा विषय है व्यवसाय का प्रगत ज्ञान । तीन में गृहस्थाश्रम की शिक्षा अनिवार्य है । शेष दो में चयन की स्वतन्त्रता भी हो सकती है ।
    
३२. जाहिर है कि शास्त्रों का अध्ययन ज्ञान का सांस्कृतिक पक्ष है और व्यवसाय का प्रगत ज्ञान भौतिक पक्ष । स्वाभाविक है कि भौतिक पक्ष का चयन करने वालों की संख्या अधिक होगी, सांस्कृतिक की कम । यह अपेक्षित भी है । शास्त्रों के अध्ययन और अनुसन्धान के लिये तेजस्वी, कुशाग्र और विशाल बुद्धि के साथ साथ सादगी, संयम, लोकहित की कामना और तपश्चर्या की आवश्यकता रहेगी । भौतिक पक्ष के अध्ययन हेतु व्यावहारिक बुद्धि, धर्माचरण की तत्परता और समाजेसवा की भावना अपेक्षित है । दोनों की समाज को आवश्यकता है । स्वाभाविक रूप से ही शास्त्रों के अध्ययन हेतु दस से बीस प्रतिशत और भौतिक पक्ष के अध्ययन हेतु शेष विद्यार्थी उपलब्ध होंगे ।
 
३२. जाहिर है कि शास्त्रों का अध्ययन ज्ञान का सांस्कृतिक पक्ष है और व्यवसाय का प्रगत ज्ञान भौतिक पक्ष । स्वाभाविक है कि भौतिक पक्ष का चयन करने वालों की संख्या अधिक होगी, सांस्कृतिक की कम । यह अपेक्षित भी है । शास्त्रों के अध्ययन और अनुसन्धान के लिये तेजस्वी, कुशाग्र और विशाल बुद्धि के साथ साथ सादगी, संयम, लोकहित की कामना और तपश्चर्या की आवश्यकता रहेगी । भौतिक पक्ष के अध्ययन हेतु व्यावहारिक बुद्धि, धर्माचरण की तत्परता और समाजेसवा की भावना अपेक्षित है । दोनों की समाज को आवश्यकता है । स्वाभाविक रूप से ही शास्त्रों के अध्ययन हेतु दस से बीस प्रतिशत और भौतिक पक्ष के अध्ययन हेतु शेष विद्यार्थी उपलब्ध होंगे ।

Navigation menu