३२. जाहिर है कि शास्त्रों का अध्ययन ज्ञान का सांस्कृतिक पक्ष है और व्यवसाय का प्रगत ज्ञान भौतिक पक्ष । स्वाभाविक है कि भौतिक पक्ष का चयन करने वालों की संख्या अधिक होगी, सांस्कृतिक की कम । यह अपेक्षित भी है । शास्त्रों के अध्ययन और अनुसन्धान के लिये तेजस्वी, कुशाग्र और विशाल बुद्धि के साथ साथ सादगी, संयम, लोकहित की कामना और तपश्चर्या की आवश्यकता रहेगी । भौतिक पक्ष के अध्ययन हेतु व्यावहारिक बुद्धि, धर्माचरण की तत्परता और समाजेसवा की भावना अपेक्षित है । दोनों की समाज को आवश्यकता है । स्वाभाविक रूप से ही शास्त्रों के अध्ययन हेतु दस से बीस प्रतिशत और भौतिक पक्ष के अध्ययन हेतु शेष विद्यार्थी उपलब्ध होंगे । | ३२. जाहिर है कि शास्त्रों का अध्ययन ज्ञान का सांस्कृतिक पक्ष है और व्यवसाय का प्रगत ज्ञान भौतिक पक्ष । स्वाभाविक है कि भौतिक पक्ष का चयन करने वालों की संख्या अधिक होगी, सांस्कृतिक की कम । यह अपेक्षित भी है । शास्त्रों के अध्ययन और अनुसन्धान के लिये तेजस्वी, कुशाग्र और विशाल बुद्धि के साथ साथ सादगी, संयम, लोकहित की कामना और तपश्चर्या की आवश्यकता रहेगी । भौतिक पक्ष के अध्ययन हेतु व्यावहारिक बुद्धि, धर्माचरण की तत्परता और समाजेसवा की भावना अपेक्षित है । दोनों की समाज को आवश्यकता है । स्वाभाविक रूप से ही शास्त्रों के अध्ययन हेतु दस से बीस प्रतिशत और भौतिक पक्ष के अध्ययन हेतु शेष विद्यार्थी उपलब्ध होंगे । |