शास्त्रों ने भी कहा है, “माता प्रथमो गुरु: । कुटुम्ब में मिलने वाली शिक्षा आजीवन चलती है । सिखाते सिखाते सीखना और सीखते सीखते सिखाना कुटुम्ब में सम्भव होता है । यदि कुटुम्ब में शिक्षा नहीं मिलती है तो विद्याकेन्द्र की शिक्षा भी ठीक से नहीं होती । कुटुम्ब में मिलने वाली शिक्षा का कोई पर्याय नहीं है । आज कुटुम्ब की व्यवहार- जीवन के और शिक्षा के प्रयोजन के सन्दर्भ में बहुत उपेक्षा हो रही है जिसके दुष्परिणाम हम भुगत रहे हैं । इन दुष्परिणामों से बचने हेतु हमें कुटुम्ब में प्राप्त होनेवाली शिक्षा की सम्भावनाओं को पुनः कृति में लाना होगा । इस दृष्टि से यहाँ एक पीढी के निर्माण की प्रक्रिया का निरूपण किया गया है । | शास्त्रों ने भी कहा है, “माता प्रथमो गुरु: । कुटुम्ब में मिलने वाली शिक्षा आजीवन चलती है । सिखाते सिखाते सीखना और सीखते सीखते सिखाना कुटुम्ब में सम्भव होता है । यदि कुटुम्ब में शिक्षा नहीं मिलती है तो विद्याकेन्द्र की शिक्षा भी ठीक से नहीं होती । कुटुम्ब में मिलने वाली शिक्षा का कोई पर्याय नहीं है । आज कुटुम्ब की व्यवहार- जीवन के और शिक्षा के प्रयोजन के सन्दर्भ में बहुत उपेक्षा हो रही है जिसके दुष्परिणाम हम भुगत रहे हैं । इन दुष्परिणामों से बचने हेतु हमें कुटुम्ब में प्राप्त होनेवाली शिक्षा की सम्भावनाओं को पुनः कृति में लाना होगा । इस दृष्टि से यहाँ एक पीढी के निर्माण की प्रक्रिया का निरूपण किया गया है । |