कुटुम्ब शिक्षा एवं लोकशिक्षा - प्रस्तावना
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कुटुम्ब व्यवस्था सांस्कृतिक क्षेत्र में भारत की विश्व को देन है [1]। कुटुम्ब व्यवस्था भारत की मनीषा का एक अदभुत आविष्कार है। सांस्कृतिक परम्पराओं की रक्षा करनेवाली यह व्यवस्था है । यहाँ पीढ़ी का निर्माण होता है और पूर्व पीढ़ी नई पीढ़ी को अपनी थाती सौंपती है । व्यक्ति के विकास हेतु शिक्षा के जितने भी आयाम हैं उनमें से अधिकांश कुटुम्ब में सम्भव होते हैं । इसलिये कुटुम्ब बहुत महत्त्वपूर्ण शिक्षाकेन्द्र है ।
शास्त्रों ने भी कहा है, “माता प्रथमो गुरु: । कुटुम्ब में मिलने वाली शिक्षा आजीवन चलती है । सिखाते सिखाते सीखना और सीखते सीखते सिखाना कुटुम्ब में सम्भव होता है । यदि कुटुम्ब में शिक्षा नहीं मिलती है तो विद्याकेन्द्र की शिक्षा भी ठीक से नहीं होती । कुटुम्ब में मिलने वाली शिक्षा का कोई पर्याय नहीं है । आज कुटुम्ब की व्यवहार- जीवन के और शिक्षा के प्रयोजन के सन्दर्भ में बहुत उपेक्षा हो रही है जिसके दुष्परिणाम हम भुगत रहे हैं । इन दुष्परिणामों से बचने हेतु हमें कुटुम्ब में प्राप्त होनेवाली शिक्षा की सम्भावनाओं को पुनः कृति में लाना होगा । इस दृष्टि से यहाँ एक पीढी के निर्माण की प्रक्रिया का निरूपण किया गया है ।
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References
- ↑ धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १): पर्व ५, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे