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− | अध्ययन अध्यापन एक क्रिया है | + | == अध्ययन अध्यापन एक क्रिया है == |
− | | + | * जैसा पूर्व में कहा है कक्षाकक्ष समस्त शिक्षाव्यवहार का केन्द्र है<ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १): पर्व ४, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। कक्षाकक्ष का अर्थ भवन का कोई कमरा ही नहीं है । जहां शिक्षक और विद्यार्थी बैठकर अध्ययन और अध्यापन करते हैं वह स्थान ही कक्षाकक्ष है, भले ही वह शिक्षक का घर हो या मन्दिर हो या वृक्ष की छाया हो । शिक्षक और विद्यार्थी बैठे ही हों यह भी आवश्यक नहीं। वे एकदूसरे से शारीरिक रूप से दूर हों परंतु मानसिक व्यापार से जुड़े हों तब भी वह कक्षाकक्ष ही है। उनका एक दूसरे के साथ ज्ञानव्यवहार ही किसी भी स्थान को कक्षाकक्ष बनाता है । |
− | जैसा पूर्व में कहा है कक्षाकक्ष समस्त शिक्षाव्यवहार | + | * शिक्षक देता है, विद्यार्थी लेता है। यह आदानप्रदान ही अध्ययन अध्यापन है । इस क्रिया और प्रक्रिया में अध्ययन मूल घटना है, अध्यापन उसके अनुकूल होता है। इस तथ्य को जरा ठीक से समझना चाहिए। आचार्य विनोबा भावे कहते हैं कि अँग्रेजी भाषा में अध्ययन और अध्यापन के लिये दो स्वतंत्र क्रियापद हैं। वे हैं - टू टीच और टू लर्न। ये दोनों क्रियापद के मूल रूप हैं। इसका अर्थ यह है कि अध्ययन और अध्यापन दो स्वतंत्र क्रियाएँ हैं । परंतु एक भी भारतीय भाषा में दोनों कामों के लिये दो स्वतंत्र क्रियापद नहीं हैं। टू टीच के लिये है पढ़ाना और टू लर्न के लिये है पढ़ना। ये दो क्रियापद नहीं हैं, एक ही क्रियापद् के दो रूप हैं । अध्ययन और अध्यापन भी एक ही क्रियापद के दो रूप हैं। सीखना और सिखाना भी वैसा ही है। हिन्दी ही नहीं तो सभी भारतीय भाषाओं में ऐसा ही है । इसका अर्थ यह है कि भारतीय विचार अध्ययन और अध्यापन को दो स्वतंत्र क्रियाएँ नहीं मानता है। ये दोनों मिलकर एक ही क्रिया होती है । दोनों एक ही क्रिया के दो रूप हैं । ये दोनों एक ही सिक्के के दो पक्ष की तरह एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। उपनिषद में भी अध्ययन और अध्यापन दोनों के लिये एक ही शब्द का प्रयोग हुआ है और वह शब्द है 'प्रवचन'। जब दोनों मिलकर एक ही क्रिया है तब उसके करने वाले दो व्यक्ति भी अध्ययन और अध्यापन के समय दो नहीं रहते, एक ही हो जाते हैं । तात्पर्य यह है कि शिक्षक और विद्यार्थी का सम्बन्ध एकात्म है। वे अन्दर से एकदूसरे के साथ जुड़े हैं । ऐसा एकात्म सम्बन्ध बनता है तभी ज्ञान प्रकट होता है । जब यह सम्बन्ध किसी भी अर्थ में एकात्म नहीं होता है तब ज्ञान भी अधूरा ही रह जाता है । |
− | | + | * अध्ययन और अध्यापन में मूल संज्ञा है अध्ययन। अध्यापन उसका प्रेरक रूप है। इसका अर्थ यह है कि अध्ययन करने वाला ही केन्द्र में है । अध्यापन करने वाला अध्ययन करने वाले के अनुकूल होता है। दूसरे प्रकार से भी समझा जा सकता है। अध्यापन करने वाला यदि नहीं है तो अध्ययन तो कदाचित हो सकता है परन्तु अध्ययन करने वाला नहीं है तो अध्यापन हो ही नहीं सकता। और भी एक तरीके से समझें तो अध्यापन स्वयं अध्ययन का प्रगत स्वरूप है । अर्थात अध्यापन भी मूल में तो अध्ययन ही है। इस सन्दर्भ में देखें तो आज जिसे बालकेन्द्रित शिक्षा कहते हैं उसका अर्थ भी यही है । परन्तु आज उसका अर्थ बदल गया है । बालकों के लिए शिक्षा ऐसा उसका अर्थ हो गया है अर्थात शिक्षा केवल पढ़ने वाले का विचार करेगी, अन्य किसीका नहीं ऐसा हो गया है। बिना चर्चा या खुलासा किये ही बालकेन्द्रित शिक्षा की संकल्पना को यह अर्थ चिपक गया है। |
− | का केन्द्र है। कक्षाकक्ष का अर्थ भवन का कोई | |
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− | कमरा ही नहीं है । जहां शिक्षक और विद्यार्थी बैठकर | |
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− | अध्ययन और अध्यापन करते हैं वह स्थान ही | |
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− | कक्षाकक्ष है, भले ही वह शिक्षक का घर हो या | |
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− | मन्दिर हो या वृक्ष की छाया हो । शिक्षक और | |
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− | विद्यार्थी बैठे ही हों यह भी आवश्यक नहीं । वे | |
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− | एकदूसरे से शारीरिक रूप से दूर हों परंतु मानसिक | |
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− | व्यापार से जुड़े हों तब भी वह कक्षाकक्ष ही है। | |
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− | उनका एकदूसरे के साथ ज्ञानव्यवहार ही किसी भी | |
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− | स्थान को कक्षाकक्ष बनाता है । | |
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− | शिक्षक देता है, विद्यार्थी लेता है । यह आदानप्रदान | |
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− | ही अध्ययन अध्यापन है । इस क्रिया और प्रक्रिया में | |
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− | अध्ययन मूल घटना है, अध्यापन उसके अनुकूल | |
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− | होता है। इस तथ्य को जरा ठीक से समझना | |
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− | चाहिए । आचार्य विनोबा भावे कहते हैं कि अँग्रेजी
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− | भाषा में अध्ययन और अध्यापन के लिये दो स्वतंत्र | |
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− | fame CI Aes de oh sw ये दोनों
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− | क्रियापद के मूल रूप हैं । इसका अर्थ यह है कि | |
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− | अध्ययन और अध्यापन दो स्वतंत्र क्रियाएँ हैं । परंतु | |
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− | एक भी भारतीय भाषा में दोनों कामों के लिये दो | |
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− | स्वतंत्र क्रियापद नहीं हैं । टु टीच के लिये है पढ़ाना | |
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− | और टु लर्न के लिये है पढ़ना । ये दो क्रियापद नहीं | |
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− | हैं, एक ही क्रियापद् के दो रूप हैं । अध्ययन और | |
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− | अध्यापन भी एक ही क्रियापद के दो रूप हैं। | |
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− | सीखना और सिखाना भी वैसा ही है । हिन्दी ही नहीं | |
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− | तो सभी भारतीय भाषाओं में ऐसा ही है । इसका | |
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− | अर्थ यह है कि भारतीय विचार अध्ययन और | |
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− | अध्यापन को दो स्वतंत्र क्रियाएँ नहीं मानता है । ये | |
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− | दोनों मिलकर एक ही क्रिया होती है । दोनों एक ही | |
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− | क्रिया के दो रूप हैं । ये दोनों एक ही सिक्के के दो | |
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− | पक्ष की तरह एकदूसरे से जुड़े हुए हैं । उपनिषद में | |
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− | भी अध्ययन और अध्यापन दोनों के लिये एक ही | |
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− | शब्द का प्रयोग हुआ है और वह शब्द है 'प्रवचन' । | |
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− | जब दोनों मिलकर एक ही क्रिया है तब उसके करने | |
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− | वाले दो व्यक्ति भी अध्ययन और अध्यापन के समय | |
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− | दो नहीं रहते, एक ही हो जाते हैं । तात्पर्य यह है कि | |
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− | शिक्षक और विद्यार्थी का सम्बन्ध एकात्म है । वे | |
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− | अन्दर से एकदूसरे के साथ जुड़े हैं । ऐसा एकात्म | |
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− | सम्बन्ध बनता है तभी ज्ञान प्रकट होता है । जब यह | |
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− | सम्बन्ध किसी भी अर्थ में एकात्म नहीं होता है तब | |
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− | ज्ञान भी अधूरा ही रह जाता है । | |
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− | अध्ययन और अध्यापन में मूल संज्ञा है अध्ययन । | |
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− | अध्यापन उसका प्रेरक रूप है । इसका अर्थ यह है | |
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− | कि अध्ययन करने वाला ही केन्द्र में है । अध्यापन | |
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− | करने वाला अध्ययन करने वाले के अनुकूल होता | |
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− | है। दूसरे प्रकार से भी समझा जा सकता है। | |
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− | अध्यापन करने वाला यदि नहीं है तो अध्ययन तो | |
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− | कदाचित हो सकता है परन्तु अध्ययन करने वाला | |
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− | नहीं है तो अध्यापन हो ही नहीं सकता । और भी | |
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− | एक तरीके से समझें तो अध्यापन स्वयं अध्ययन का | |
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− | प्रगत स्वरूप है । अर्थात अध्यापन भी मूल में तो | |
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− | अध्ययन ही है । इस सन्दर्भ में देखें तो आज जिसे | |
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− | बालकेन्द्रित शिक्षा कहते हैं उसका अर्थ भी यही है । | |
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− | परन्तु आज उसका अर्थ बदल गया है । बालकों के | |
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− | लिए शिक्षा ऐसा उसका अर्थ हो गया है अर्थात | |
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− | शिक्षा केवल पढ़ने वाले का विचार करेगी, अन्य | |
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− | किसीका नहीं ऐसा हो गया है। बिना चर्चा या | |
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− | खुलासा किये ही बालकेन्द्रित शिक्षा | |
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− | की संकल्पना को यह अर्थ चिपक गया है । | |
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− | विद्यार्थी शिक्षक का मानस पुत्र
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| + | == विद्यार्थी शिक्षक का मानस पुत्र == |
| शिक्षक और विद्यार्थी को आचार्य और अंतेवासी | | शिक्षक और विद्यार्थी को आचार्य और अंतेवासी |
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| निर्स्थक होती है । | | निर्स्थक होती है । |
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− | समग्रता में सिखाना | + | == समग्रता में सिखाना == |
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| अध्ययन हमेशा समग्रता में होता है । आज अध्ययन | | अध्ययन हमेशा समग्रता में होता है । आज अध्ययन |
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| भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप | | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप |
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− | सिखाता है । जिस प्रकार मातापिता... अध्ययन अध्यापन की कुशलता | + | सिखाता है । जिस प्रकार मातापिता... |
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| + | == अध्ययन अध्यापन की कुशलता == |
| अपनी संतानों के लिये आवश्यक है तब तक काम गत अध्याय में हमने शिक्षक और विद्यार्थी के | | अपनी संतानों के लिये आवश्यक है तब तक काम गत अध्याय में हमने शिक्षक और विद्यार्थी के |
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| के क्षेत्र में विद्यार्थी को स्वतन्त्र बनाना ही उत्तम | | के क्षेत्र में विद्यार्थी को स्वतन्त्र बनाना ही उत्तम |
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− | शिक्षा है। शिक्षक की कुशलता किसमें है ? | + | शिक्षा है। |
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| + | === शिक्षक की कुशलता किसमें है ? === |
| ०. शिक्षक से उत्तम शिक्षा प्राप्त हो सके इसलिये... ०... हर विषय को सिखाने के भिन्न भिन्न तरीके होते हैं । | | ०. शिक्षक से उत्तम शिक्षा प्राप्त हो सके इसलिये... ०... हर विषय को सिखाने के भिन्न भिन्न तरीके होते हैं । |
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| ही जटिल होती है । | | ही जटिल होती है । |
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− | कठिन विषय को सरल बनाने के कुछ उदाहरण देखें - | + | == कठिन विषय को सरल बनाने के कुछ उदाहरण देखें == |
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| है ऐसा ही कहना होगा । | | है ऐसा ही कहना होगा । |
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− | अध्यापन की आदर्श स्थिति | + | == अध्यापन की आदर्श स्थिति == |
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| तात्पर्य यह है कि निष्ठावान और विद्वान शिक्षक को | | तात्पर्य यह है कि निष्ठावान और विद्वान शिक्षक को |
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