| उन्होंने कुछ नहीं कहा। बहुत आग्रह और आत्मीयता से पूछने के बाद अचानक वह दंपत्ति दुबारा रोने लगे और रोते-रोते बताने लगे: <blockquote>"हमारा केवल एक ही पुत्र है, हमने बहुत ही लाड़ प्यार से उसकी देखभाल की उसकी सारी इच्छाएं पूर्ण की, उसे बहुत ही बड़े इंटरनेशनल विद्यालय में पढ़ाया, कभी हमने अपने रिश्तेदारों या अपने माँ या पिताजी को भी घर में नहीं रखा, कहीं बेटे को कोई दिक्कत ना हो, कभी उसे रहन सहन या पढाई लिखाई में बाधा न पड़े। बड़ा परिवार होते हुए भी छोटे परिवार में रहे और अपना पूरा समय अपने पुत्र को दे दिया। </blockquote><blockquote>उच्चस्तरीय शिक्षा के लिए हमने अपने पुत्र को विदेश भेजा। विदेश में उसकी पढाई अच्छी चली, हमेशा बातचीत और हल चल होते थे । उसे वहां पर अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई, हम बहुत खुश थे। कुछ दिनों पश्चात् फ़ोन नहीं आया, हम चिंतित हो गए और ऑफिस में फ़ोन किया, तो वह नाराज हो गया और कहने लगा क्या आवश्यकता है फ़ोन करने की? जब मुझे समय मिलता, तो मै जरूर करता। अपने माँ पिताजी को आप कितना पूछते थे? </blockquote><blockquote>उस दिन परिवार की कमी का अनुभव हुआ। कुछ दिनों पश्चात् उसकी शादी का फोटो आ गया और वह अपनी दुनिया में जीने लगा केवल पैसे भेज देता बस। उसकी माँ की तबियत भी बहुत ज्यादा ख़राब हो गई थी, फिर भी नहीं आया। पैसे भेज दिए । उस दिन रिश्तो की अहमियत समझ में आई। </blockquote><blockquote>गांव में मेरी माँ का देहांत हो गया। हमने उसे बहुत आग्रह किया परन्तु वह नहीं आया। हम हार मानकर अकेले ही गांव गए । वहां पहुँचने के बाद हमने देखा, मेरे भाई का पूरा परिवार वहां इकट्ठा था, बाकि रिश्तेदार भी वहां आये थे और एक दूसरे की हर कार्य में मदद कर रहे थे। इतना आदर सम्मान, इतने अच्छे संस्कार देखकर केवल हम रोते जा रहे थे । मेरे भाई का भी पुत्र विदेश में पढ़कर आया था परन्तु थोड़ा भी आचरण में बदल नहीं ।</blockquote><blockquote>सब विधि ख़त्म होने के बाद अपने भाई के गले लगकर रोया और और कहा, अगर मैंने भी परिवार और अपनी संस्कृति से मुँह नहीं मोड़ा होता तो आज मुझे यह दिन देखने को नहीं मिलता ।"</blockquote>इस घटना को सुनने के उपरांत हमने उन दंपत्ति से बैठकर बहुत सी बाते की और उन्हें वात्सल्य ट्रस्ट के बारे में बताया तो वे बहुत ही प्रसन्न हुए और वहा नियमित रूप से जाने लगे । परन्तु इस घटना ने मुझे भारतीय शिक्षा और भारतीय संस्कृति की ओर कार्य करने के लिए विवश कर दिया । | | उन्होंने कुछ नहीं कहा। बहुत आग्रह और आत्मीयता से पूछने के बाद अचानक वह दंपत्ति दुबारा रोने लगे और रोते-रोते बताने लगे: <blockquote>"हमारा केवल एक ही पुत्र है, हमने बहुत ही लाड़ प्यार से उसकी देखभाल की उसकी सारी इच्छाएं पूर्ण की, उसे बहुत ही बड़े इंटरनेशनल विद्यालय में पढ़ाया, कभी हमने अपने रिश्तेदारों या अपने माँ या पिताजी को भी घर में नहीं रखा, कहीं बेटे को कोई दिक्कत ना हो, कभी उसे रहन सहन या पढाई लिखाई में बाधा न पड़े। बड़ा परिवार होते हुए भी छोटे परिवार में रहे और अपना पूरा समय अपने पुत्र को दे दिया। </blockquote><blockquote>उच्चस्तरीय शिक्षा के लिए हमने अपने पुत्र को विदेश भेजा। विदेश में उसकी पढाई अच्छी चली, हमेशा बातचीत और हल चल होते थे । उसे वहां पर अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई, हम बहुत खुश थे। कुछ दिनों पश्चात् फ़ोन नहीं आया, हम चिंतित हो गए और ऑफिस में फ़ोन किया, तो वह नाराज हो गया और कहने लगा क्या आवश्यकता है फ़ोन करने की? जब मुझे समय मिलता, तो मै जरूर करता। अपने माँ पिताजी को आप कितना पूछते थे? </blockquote><blockquote>उस दिन परिवार की कमी का अनुभव हुआ। कुछ दिनों पश्चात् उसकी शादी का फोटो आ गया और वह अपनी दुनिया में जीने लगा केवल पैसे भेज देता बस। उसकी माँ की तबियत भी बहुत ज्यादा ख़राब हो गई थी, फिर भी नहीं आया। पैसे भेज दिए । उस दिन रिश्तो की अहमियत समझ में आई। </blockquote><blockquote>गांव में मेरी माँ का देहांत हो गया। हमने उसे बहुत आग्रह किया परन्तु वह नहीं आया। हम हार मानकर अकेले ही गांव गए । वहां पहुँचने के बाद हमने देखा, मेरे भाई का पूरा परिवार वहां इकट्ठा था, बाकि रिश्तेदार भी वहां आये थे और एक दूसरे की हर कार्य में मदद कर रहे थे। इतना आदर सम्मान, इतने अच्छे संस्कार देखकर केवल हम रोते जा रहे थे । मेरे भाई का भी पुत्र विदेश में पढ़कर आया था परन्तु थोड़ा भी आचरण में बदल नहीं ।</blockquote><blockquote>सब विधि ख़त्म होने के बाद अपने भाई के गले लगकर रोया और और कहा, अगर मैंने भी परिवार और अपनी संस्कृति से मुँह नहीं मोड़ा होता तो आज मुझे यह दिन देखने को नहीं मिलता ।"</blockquote>इस घटना को सुनने के उपरांत हमने उन दंपत्ति से बैठकर बहुत सी बाते की और उन्हें वात्सल्य ट्रस्ट के बारे में बताया तो वे बहुत ही प्रसन्न हुए और वहा नियमित रूप से जाने लगे । परन्तु इस घटना ने मुझे भारतीय शिक्षा और भारतीय संस्कृति की ओर कार्य करने के लिए विवश कर दिया । |
− | जब उस ओर मैंने अपना पहला कदम बढ़ाया तभी से ऐसे ऐसे अनुभव आने लगे की अगर उसे लेख पर उतरना शुरू करू तो पूरी किताब बन सकती है । हमारे दादा जी कहते थी, कि अगर आप कोई कार्य अच्छे मन और अच्छे भाव से शुरू करे तो भगवान हर रूप में आपकी मदत करने के लिए अवश्य आता है और जैसी आपकी नीयत होती है वैसे लोग ही आपको मार्ग में मिलते है । | + | जब उस ओर मैंने अपना पहला कदम बढ़ाया तभी से ऐसे ऐसे अनुभव आने लगे की अगर उसे लेख पर उतरना शुरू करू तो पूरी किताब बन सकती है । हमारे दादा जी कहते थी, कि अगर आप कोई कार्य अच्छे मन और अच्छे भाव से शुरू करे तो भगवान हर रूप में आपकी मदत करने के लिए अवश्य आता है और जैसी आपकी नीयत होती है वैसे लोग ही आपको मार्ग में मिलते है । |
| + | ज्ञान प्राप्ति प्रायः दो प्रकार की होती है ''',प्रथम है''' आकस्मिक या वातावरण द्वारा प्राप्त ज्ञान, जैसे अभिमन्युं का चक्रव्यूह तोड़ने का ज्ञान , या कई बार हमारे मुख से निकल जाता हैं की अरे....... यह इसे कैसे आता है या पता है हमने तो कभी सिखाया या बताया ही नहीं | ऐसा ज्ञान जो कही न कही अकस्मात दिखाई देता है या ऐसी आदत जो हम चाह कर भी बदल नहीं सकते | जो हमारे पूर्वजो के गुण जो हमारे अंदर आ जाते है | |
| + | इसलिए बिना गुरु ज्ञान प्राप्त करना यानि अधूरा ज्ञान प्राप्त करने के सामान होता है ,ज्ञान प्राप्ति का स्थान और वातावरण भी हमारे ज्ञान पर प्रभाव डालते है | इसीलिए पूर्व काल में सभी शिक्षाए एक विशिष्ठ गुरु द्वारा विशेष स्थान पर दी जाती थी ,जहाँ ना अपने परिवार ,समाज या उस वातावरण से कोई सम्बन्ध होता था जहाँ हम रहते थे | किसी जंगल के एकांत जगह पर जाकर रहना जहाँ न कोई श्रीमंत ना कोई गरीब , ना कोई जाती न कोई भेदभाव जहाँ केवल ज्ञान ज्ञान और ज्ञान ही दिखाई , सुनाई और अनुभव में आता था | |