Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "भारतीय" to "धार्मिक"
Line 26: Line 26:  
११. अतः अंग्रेजों की प्रथम वरीयता लूट करना, लूट दीर्घ काल तक निरन्तर रूप से कर सकें इस हेतु से व्यापार करना और व्यापार के सारे अवरोध दूर करने हेतु राज्य हस्तगत करना तीसरे क्रम में आता है । इसके साथ ही सुलभ थे इसलिये और दो उद्देश्य जुड गये । एक था यूरोपीकरण और दूसरा था ईसाईकरण । अतः उनके उद्देश्यों का क्रम कुछ इस प्रकार बनता है - १, लूट करना, २. व्यापार करना, ३. राज्य करना, ४. युरोपीकरण करना और ५. ईसाईकरण करना |
 
११. अतः अंग्रेजों की प्रथम वरीयता लूट करना, लूट दीर्घ काल तक निरन्तर रूप से कर सकें इस हेतु से व्यापार करना और व्यापार के सारे अवरोध दूर करने हेतु राज्य हस्तगत करना तीसरे क्रम में आता है । इसके साथ ही सुलभ थे इसलिये और दो उद्देश्य जुड गये । एक था यूरोपीकरण और दूसरा था ईसाईकरण । अतः उनके उद्देश्यों का क्रम कुछ इस प्रकार बनता है - १, लूट करना, २. व्यापार करना, ३. राज्य करना, ४. युरोपीकरण करना और ५. ईसाईकरण करना |
   −
१२. भारत का यूरोपीकरण करने के लिये उन्होंने शिक्षा का माध्यम अपनाया और ईसाईकरण के लिये “सेवा' का । शिक्षा के लिये विद्यालय स्थापित किये, सेवा के लिये मिशन बनाये । इनमें यूरोपीकरण ही सबसे घातक सिद्ध हुआ । शिक्षा ही सबसे प्रभावी माध्यम सिद्ध हुई । इसलिये रोगमुक्त होने के लिये हमें शिक्षा के भारतीयकरण का और भारतीय शिक्षा के माध्यम से भारत के भारतीयकरण का प्रयास पूर्ण शक्ति के साथ करना चाहिये ।
+
१२. भारत का यूरोपीकरण करने के लिये उन्होंने शिक्षा का माध्यम अपनाया और ईसाईकरण के लिये “सेवा' का । शिक्षा के लिये विद्यालय स्थापित किये, सेवा के लिये मिशन बनाये । इनमें यूरोपीकरण ही सबसे घातक सिद्ध हुआ । शिक्षा ही सबसे प्रभावी माध्यम सिद्ध हुई । इसलिये रोगमुक्त होने के लिये हमें शिक्षा के धार्मिककरण का और धार्मिक शिक्षा के माध्यम से भारत के धार्मिककरण का प्रयास पूर्ण शक्ति के साथ करना चाहिये ।
    
१३. भारत में अंग्रेज आये और स्थापित हो गये इसके लिये हम उस समय के पूर्वजों को दोष देते हैं परन्तु आज हम उनसे भी अधिक दोषपूर्ण व्यवहार कर रहे हैं। अंग्रेजीयत का रोग हमारे सम्पूर्ण राष्ट्रशरीर में व्याप्त हो गया है । हमारे सारे लक्षण रोगी के ही हैं । और यदि उपाय नहीं किया तो रोगी की जो स्थिति और गति होती है वही हमारी भी होगी ।
 
१३. भारत में अंग्रेज आये और स्थापित हो गये इसके लिये हम उस समय के पूर्वजों को दोष देते हैं परन्तु आज हम उनसे भी अधिक दोषपूर्ण व्यवहार कर रहे हैं। अंग्रेजीयत का रोग हमारे सम्पूर्ण राष्ट्रशरीर में व्याप्त हो गया है । हमारे सारे लक्षण रोगी के ही हैं । और यदि उपाय नहीं किया तो रोगी की जो स्थिति और गति होती है वही हमारी भी होगी ।
Line 40: Line 40:  
१८. व्यापार की और शासन करने की इस पद्धति को उचित और मान्य सिद्ध करने के लिये अर्थशास्त्र और राजशास्त्र बना है और विश्वविद्यालयों में पढाया जा रहा है । पैसे के बिना चुनाव नहीं जीते जाते और पैसे के बिना विश्वविद्यालय नहीं चलते । पैसे के बिना विश्वविद्यालयों को मान्यता ही नहीं मिलती । ऐसी अर्थनिष्ठा ने धर्मनिष्ठा का स्थान ले लिया है ।
 
१८. व्यापार की और शासन करने की इस पद्धति को उचित और मान्य सिद्ध करने के लिये अर्थशास्त्र और राजशास्त्र बना है और विश्वविद्यालयों में पढाया जा रहा है । पैसे के बिना चुनाव नहीं जीते जाते और पैसे के बिना विश्वविद्यालय नहीं चलते । पैसे के बिना विश्वविद्यालयों को मान्यता ही नहीं मिलती । ऐसी अर्थनिष्ठा ने धर्मनिष्ठा का स्थान ले लिया है ।
   −
१९. जब समाज धर्मनिष्ठा को छोड़कर अर्थनिष्ठ बन जाता है तब सर्वप्रकार से संस्कारों का नाश होकर दुर्गति होती है । आज भारत दुर्गति की ओर धँस रहा है । उस दुर्गति से भारत को बचाना शिक्षा के भारतीयकरण से ही सम्भव है ।
+
१९. जब समाज धर्मनिष्ठा को छोड़कर अर्थनिष्ठ बन जाता है तब सर्वप्रकार से संस्कारों का नाश होकर दुर्गति होती है । आज भारत दुर्गति की ओर धँस रहा है । उस दुर्गति से भारत को बचाना शिक्षा के धार्मिककरण से ही सम्भव है ।
    
२०. हमने देखा कि ब्रिटीशों के क्रमशः पाँच उद्देश्यों में युरोपीकरण सबसे घातक है । यह उद्देश्य सिद्ध हुआ है शिक्षा के माध्यम से । इसलिये हमें शिक्षा पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिये । दुर्भाग्य से आज भारत की मुख्य धारा की शिक्षा यूरोपीय ही है । भारत की सरकार ने सीमित क्षेत्र के लिये जो यूरोपीय शिक्षा थी उसका सार्वत्रिकरण किया । इससे व्यापारीकरण भी सार्वत्रिक हो गया । शिक्षा का भी व्यापारीकरण हो गया । दूसरों का उद्धार करनेवाली, मुक्त करनेवाली शिक्षा स्वयं बन्धनग्रस्त हो गई, बुरी तरह से फँस गई ।
 
२०. हमने देखा कि ब्रिटीशों के क्रमशः पाँच उद्देश्यों में युरोपीकरण सबसे घातक है । यह उद्देश्य सिद्ध हुआ है शिक्षा के माध्यम से । इसलिये हमें शिक्षा पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिये । दुर्भाग्य से आज भारत की मुख्य धारा की शिक्षा यूरोपीय ही है । भारत की सरकार ने सीमित क्षेत्र के लिये जो यूरोपीय शिक्षा थी उसका सार्वत्रिकरण किया । इससे व्यापारीकरण भी सार्वत्रिक हो गया । शिक्षा का भी व्यापारीकरण हो गया । दूसरों का उद्धार करनेवाली, मुक्त करनेवाली शिक्षा स्वयं बन्धनग्रस्त हो गई, बुरी तरह से फँस गई ।
    
=== साम्यवाद का संकट ===
 
=== साम्यवाद का संकट ===
२१. यूरोपीकरण का एक आयाम है साम्यवाद का संकट | संकल्पनात्मक शब्दों के अंग्रेजी और भारतीय भाषाओं में परस्पर अनुवाद का परिणाम होता है शब्दों के अर्थ के बारे में सम्ध्रम और विपरीतता । साम्यवाद ने धर्म को अफीम बताया, सेकुलर को धर्मनिरपेक्ष कहा. और धर्मको भावात्मकता का रूप देकर धर्म निरपेक्षता को बौद्धिक बताया । इससे निधर्मिकता और अधार्मिकता की प्रतिष्ठा हुई । संस्कृति को धर्म से अलग कर उसका. राजनीतिकरण किया । 'राजनीति' *पोलीटीक्स' का अनुवाद है। परन्तु धर्म और रिलीजन, संस्कृति और कल्चर, राष्ट्र और नेशन की तरह राजनीति और पोलीटीक्स का भी घोटाला ही है । राजनीति बहुत ही विधायक अर्थवाला शब्द है, उसकी प्रतिष्ठा है, शासक और प्रशासक - मुख्य रूप से प्रशासक - राजनीतिनिपुण होना चाहिये परन्तु जिस रूप में आज पोलीटीक्स अर्थात् राजनीति को समझा जाता है और व्यवहार में लाया जाता है वह अर्थ है शठता और धूर्तता जिसका लक्ष्य है येनकेन प्रकारेण स्वार्थसिद्धि । साम्यवाद ने दैनन्दिन व्यवहार में संस्कृति के नाम पर स्वार्थ सिद्धि हेतु शठता और धूर्तता को मान्यता दे दी । अब, पोलीटीक्स नहीं चाहिये परन्तु संस्कृति चाहिये । शठता और धूर्तता स्वार्थसिद्धि के साधन के रूप में प्रयुक्त होते हैं तो आपत्ति नहीं ।   
+
२१. यूरोपीकरण का एक आयाम है साम्यवाद का संकट | संकल्पनात्मक शब्दों के अंग्रेजी और धार्मिक भाषाओं में परस्पर अनुवाद का परिणाम होता है शब्दों के अर्थ के बारे में सम्ध्रम और विपरीतता । साम्यवाद ने धर्म को अफीम बताया, सेकुलर को धर्मनिरपेक्ष कहा. और धर्मको भावात्मकता का रूप देकर धर्म निरपेक्षता को बौद्धिक बताया । इससे निधर्मिकता और अधार्मिकता की प्रतिष्ठा हुई । संस्कृति को धर्म से अलग कर उसका. राजनीतिकरण किया । 'राजनीति' *पोलीटीक्स' का अनुवाद है। परन्तु धर्म और रिलीजन, संस्कृति और कल्चर, राष्ट्र और नेशन की तरह राजनीति और पोलीटीक्स का भी घोटाला ही है । राजनीति बहुत ही विधायक अर्थवाला शब्द है, उसकी प्रतिष्ठा है, शासक और प्रशासक - मुख्य रूप से प्रशासक - राजनीतिनिपुण होना चाहिये परन्तु जिस रूप में आज पोलीटीक्स अर्थात् राजनीति को समझा जाता है और व्यवहार में लाया जाता है वह अर्थ है शठता और धूर्तता जिसका लक्ष्य है येनकेन प्रकारेण स्वार्थसिद्धि । साम्यवाद ने दैनन्दिन व्यवहार में संस्कृति के नाम पर स्वार्थ सिद्धि हेतु शठता और धूर्तता को मान्यता दे दी । अब, पोलीटीक्स नहीं चाहिये परन्तु संस्कृति चाहिये । शठता और धूर्तता स्वार्थसिद्धि के साधन के रूप में प्रयुक्त होते हैं तो आपत्ति नहीं ।   
    
२२. अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर कला, संगीत, साहित्य, मनोरंजन आदि के क्षेत्र में मूल्यों पर आघात करना साम्यवादी तरीका है। राम ने सीता को अन्याय किया कहकर पुरुष जाति के स्त्रीजाति पर अन्याय को मुखर बनाना, देवी देवताओं के अश्लील चित्र बनाना, स्त्रियो को लिव इन रिलेशनशीप तक पहुँचा देना, मनोविकृतियाँ पैदा करनेवाले टीवी धारावाहिक बनाना, वेदों की. निन््दा करना, यूरोपीकरण का साम्यवादी तरीका है । समानता के नाम पर ख्त्रीयों को पुरुषों के, गरीबों को आमीरों के, प्रजा को शासकों के, शूट्रों को ब्राह्मणों के, विद्यार्थियों को शिक्षकों के और सन्तानों को मातापिता के विरुद्ध भडकाकर वर्गविग्रह निर्माण करना, आशांति फैलाना और समाज को तोडना यूरोपीकरण का साम्यवादी तरीका है । आधुनिकता के नाम पर सर्व प्रकार के रीतिरिवाजों की निन््दा करना, उनका अपहास करना, उनको अआवैज्ञानिक बताना, अपनी भाषा, वेशभूषा, समारोहों को यूरोपीय बनाना, अनुशासन, आज्ञापालकता, नियमपालन, संस्कारिता, शिष्टता आदि छोड़कर नई पीढी आधुनिक बन सकती है ऐसा प्रचार करना यह संस्कारिता नष्ट करने का साम्यवादी तरीका है । इतिहास के अध्ययन का नाम लेकर हमारे पूर्वजों को काल्पनिक पात्र बताना, पुराणों तथा रामायण, महाभारत, उपनिषद आदि को प्रमाण नहीं मानना, हमारी सारी व्यवस्थायें, विशेष रूप से समाजव्यवस्था पिछडेपन की, अर्थव्यवस्था शोषण की, धर्मव्यवस्था पोंगापन और भोंदुगीरी की ही निशानी है। हमारे शासक विलासी और व्यभिचारी थे, ब्राह्मण सामाजिक अन्याय का प्रतीक थे कहकर राज्यव्यवस्था को गाली देना, ज्ञानव्यवस्था को निकृष्ट बताना 'ज्ञानात्मक' तोड़फोड़ का साम्यवादी तरीके है । इस प्रकार से यूरोपीकरण का तोडफोड के तन्त्र आज भी चल रहा है। इसका सबसे प्रभावी माध्यम शिक्षा है, सबसे कामयाब केन्द्र विश्वविद्यालय है ।   
 
२२. अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर कला, संगीत, साहित्य, मनोरंजन आदि के क्षेत्र में मूल्यों पर आघात करना साम्यवादी तरीका है। राम ने सीता को अन्याय किया कहकर पुरुष जाति के स्त्रीजाति पर अन्याय को मुखर बनाना, देवी देवताओं के अश्लील चित्र बनाना, स्त्रियो को लिव इन रिलेशनशीप तक पहुँचा देना, मनोविकृतियाँ पैदा करनेवाले टीवी धारावाहिक बनाना, वेदों की. निन््दा करना, यूरोपीकरण का साम्यवादी तरीका है । समानता के नाम पर ख्त्रीयों को पुरुषों के, गरीबों को आमीरों के, प्रजा को शासकों के, शूट्रों को ब्राह्मणों के, विद्यार्थियों को शिक्षकों के और सन्तानों को मातापिता के विरुद्ध भडकाकर वर्गविग्रह निर्माण करना, आशांति फैलाना और समाज को तोडना यूरोपीकरण का साम्यवादी तरीका है । आधुनिकता के नाम पर सर्व प्रकार के रीतिरिवाजों की निन््दा करना, उनका अपहास करना, उनको अआवैज्ञानिक बताना, अपनी भाषा, वेशभूषा, समारोहों को यूरोपीय बनाना, अनुशासन, आज्ञापालकता, नियमपालन, संस्कारिता, शिष्टता आदि छोड़कर नई पीढी आधुनिक बन सकती है ऐसा प्रचार करना यह संस्कारिता नष्ट करने का साम्यवादी तरीका है । इतिहास के अध्ययन का नाम लेकर हमारे पूर्वजों को काल्पनिक पात्र बताना, पुराणों तथा रामायण, महाभारत, उपनिषद आदि को प्रमाण नहीं मानना, हमारी सारी व्यवस्थायें, विशेष रूप से समाजव्यवस्था पिछडेपन की, अर्थव्यवस्था शोषण की, धर्मव्यवस्था पोंगापन और भोंदुगीरी की ही निशानी है। हमारे शासक विलासी और व्यभिचारी थे, ब्राह्मण सामाजिक अन्याय का प्रतीक थे कहकर राज्यव्यवस्था को गाली देना, ज्ञानव्यवस्था को निकृष्ट बताना 'ज्ञानात्मक' तोड़फोड़ का साम्यवादी तरीके है । इस प्रकार से यूरोपीकरण का तोडफोड के तन्त्र आज भी चल रहा है। इसका सबसे प्रभावी माध्यम शिक्षा है, सबसे कामयाब केन्द्र विश्वविद्यालय है ।   
Line 55: Line 55:  
२५. हमने अपने स्वयं के लिये विचित्र समस्या निर्माण कर ली है । विदेशी शत्रु के आक्रमण के सामने लडने के लिये हमारे पास सेना है । विदेशी जासूसों को पकडने के लिये हमारे पास जासूसी तन्त्र है । देश में भी जो आतंकवादी हैं उन्हें पकडने के लिये सेना और पुलीस है । गुंडों को पकडने और सजा करने के लिये पुलीस और न्यायालय है । किसी भी प्रकार के सामाजिक और आर्थिक अपराधों के लिये पुलीस और न्यायालय है । परन्तु धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में सुरक्षा का कोई प्रावधान नहीं है । कानूनी अर्थ में जो सामाजिकता है, नैतिकता है उसकी ही रक्षा का प्रावधान है । सांस्कृतिक दृष्टि से जो सामाजिकता है उसकी रक्षा के लिये कोई व्यवस्था नहीं है । धर्म, संस्कृति और ज्ञान ही यदि सुरक्षित नहीं है तो और कौन सी बात सुरक्षित रह सकती है । धर्म, संस्कृति और ज्ञान की रक्षा करना राष्ट्रीय कर्तव्य है ऐसा सरकार को लगता ही नहीं है । धर्म जिनका कार्यक्षेत्र है उन्हें इस मुद्दे की ठीक से समझ नहीं है । यह इसलिये कहना प्राप्त है क्योंकि वे प्रजा को धर्मप्रवण बनाने का तो प्रयास करते हैं परन्तु अर्थक्षेत्र, ज्ञानक्षेत्र और राज्यक्षेत्र की धर्मविमुखता को अपने कार्यक्षेत्र में समाविष्ट नहीं करते । जीवन के इन तीनों महात्त्वपूर्ण क्षेत्रों में यूरोपीकरण के शिकार बने लोगों को वास्तव में धर्मप्रवण कैसे बनाया जा सकता है ?
 
२५. हमने अपने स्वयं के लिये विचित्र समस्या निर्माण कर ली है । विदेशी शत्रु के आक्रमण के सामने लडने के लिये हमारे पास सेना है । विदेशी जासूसों को पकडने के लिये हमारे पास जासूसी तन्त्र है । देश में भी जो आतंकवादी हैं उन्हें पकडने के लिये सेना और पुलीस है । गुंडों को पकडने और सजा करने के लिये पुलीस और न्यायालय है । किसी भी प्रकार के सामाजिक और आर्थिक अपराधों के लिये पुलीस और न्यायालय है । परन्तु धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में सुरक्षा का कोई प्रावधान नहीं है । कानूनी अर्थ में जो सामाजिकता है, नैतिकता है उसकी ही रक्षा का प्रावधान है । सांस्कृतिक दृष्टि से जो सामाजिकता है उसकी रक्षा के लिये कोई व्यवस्था नहीं है । धर्म, संस्कृति और ज्ञान ही यदि सुरक्षित नहीं है तो और कौन सी बात सुरक्षित रह सकती है । धर्म, संस्कृति और ज्ञान की रक्षा करना राष्ट्रीय कर्तव्य है ऐसा सरकार को लगता ही नहीं है । धर्म जिनका कार्यक्षेत्र है उन्हें इस मुद्दे की ठीक से समझ नहीं है । यह इसलिये कहना प्राप्त है क्योंकि वे प्रजा को धर्मप्रवण बनाने का तो प्रयास करते हैं परन्तु अर्थक्षेत्र, ज्ञानक्षेत्र और राज्यक्षेत्र की धर्मविमुखता को अपने कार्यक्षेत्र में समाविष्ट नहीं करते । जीवन के इन तीनों महात्त्वपूर्ण क्षेत्रों में यूरोपीकरण के शिकार बने लोगों को वास्तव में धर्मप्रवण कैसे बनाया जा सकता है ?
   −
२६. ज्ञानक्षेत्रकी स्थिति तो अत्यन्त दारुण है । राष्ट्रजीवन की सर्व प्रकार की समस्याओं को सुलझाने का जिनका दायित्व है वे स्वयं यूरोपीय ज्ञान से ग्रस्त हुए हैं । ब्रिटीशों का उद्देश्य भी यही था । इस ज्ञानक्षेत्र की मुक्ति अब सरकार के लिये कठिन मामला बन गई है । अध्यापक स्वयं बेचारे बन गये हैं । भारतीय ज्ञानधारा में अवगाहन करनेवाले लोग मुक्त कराने वाले ज्ञान की बात तो करते हैं परन्तु ज्ञान को मुक्त करने की आवश्यकता नहीं मानते हैं । यह विषय भी उनके विचारक्षेत्र में नहीं है ।
+
२६. ज्ञानक्षेत्रकी स्थिति तो अत्यन्त दारुण है । राष्ट्रजीवन की सर्व प्रकार की समस्याओं को सुलझाने का जिनका दायित्व है वे स्वयं यूरोपीय ज्ञान से ग्रस्त हुए हैं । ब्रिटीशों का उद्देश्य भी यही था । इस ज्ञानक्षेत्र की मुक्ति अब सरकार के लिये कठिन मामला बन गई है । अध्यापक स्वयं बेचारे बन गये हैं । धार्मिक ज्ञानधारा में अवगाहन करनेवाले लोग मुक्त कराने वाले ज्ञान की बात तो करते हैं परन्तु ज्ञान को मुक्त करने की आवश्यकता नहीं मानते हैं । यह विषय भी उनके विचारक्षेत्र में नहीं है ।
   −
२७. शिक्षा को यूरोपीकरण के प्रभाव से मुक्त करने का कितना महत्त्व है इसका ठीक से आकलन करना भी छोटे बडे सब के लिये कठिन हो रहा है । इस शिक्षा का प्रभाव ही ऐसा है कि सर्वसामान्य लोगों को समस्या समस्या ही नहीं लगती है जबकि ब्रिटीशों के शेष सारे कारनामों - लूट, व्यापारीकरण, राज्यव्यवस्था और ईसाईकरण - से बचने का उपाय ही शिक्षा के यूरोपीकरण को निरस्त कर भारतीयकरण करना है । हर प्रकार से हम शिक्षा के भारतीयकरण के मुद्दे पर ही आ पहुँचते हैं ।
+
२७. शिक्षा को यूरोपीकरण के प्रभाव से मुक्त करने का कितना महत्त्व है इसका ठीक से आकलन करना भी छोटे बडे सब के लिये कठिन हो रहा है । इस शिक्षा का प्रभाव ही ऐसा है कि सर्वसामान्य लोगों को समस्या समस्या ही नहीं लगती है जबकि ब्रिटीशों के शेष सारे कारनामों - लूट, व्यापारीकरण, राज्यव्यवस्था और ईसाईकरण - से बचने का उपाय ही शिक्षा के यूरोपीकरण को निरस्त कर धार्मिककरण करना है । हर प्रकार से हम शिक्षा के धार्मिककरण के मुद्दे पर ही आ पहुँचते हैं ।

Navigation menu