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| === विद्यालय की बैठक व्यवस्था === | | === विद्यालय की बैठक व्यवस्था === |
− | # बैठक व्यवस्था में भारतीय एवं अभारतीय ऐसे भेद होते हैं क्या ? यदि होते हैं तो क्यों होते हैं ? आप किसके पक्ष में हैं ? क्यों ? | + | # बैठक व्यवस्था में भारतीय एवं अधार्मिक ऐसे भेद होते हैं क्या ? यदि होते हैं तो क्यों होते हैं ? आप किसके पक्ष में हैं ? क्यों ? |
| # बैठक व्यवस्था में शास्त्रीय पद्धति से हम किस प्रकार से विचार कर सकते हैं ? | | # बैठक व्यवस्था में शास्त्रीय पद्धति से हम किस प्रकार से विचार कर सकते हैं ? |
| # आर्थिक दृष्टि से बैठक व्यवस्था के सम्बन्ध में किस प्रकार से विचार करना चाहिये ? | | # आर्थिक दृष्टि से बैठक व्यवस्था के सम्बन्ध में किस प्रकार से विचार करना चाहिये ? |
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| विद्यालय की बैठक व्यवस्था से सम्बन्धित आठ प्रश्नों की यह प्रश्नावली महाराष्ट्र के अकोला जिले के १९ शिक्षकों, ५ मुख्याध्यापकों, १५ अभिभावकों एवं ४ संस्था संचालकों अर्थात् कुल ४३ लोगों ने भरकर भेजी है। | | विद्यालय की बैठक व्यवस्था से सम्बन्धित आठ प्रश्नों की यह प्रश्नावली महाराष्ट्र के अकोला जिले के १९ शिक्षकों, ५ मुख्याध्यापकों, १५ अभिभावकों एवं ४ संस्था संचालकों अर्थात् कुल ४३ लोगों ने भरकर भेजी है। |
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− | प्रथम प्रश्न के उत्तर से यह तो स्पष्ट ध्यान में आता है कि यह तो सभी जानते हैं कि भारतीय और अभारतीय ऐसी दो प्रकार की बैठक व्यवस्था होती है। किन्तु आगे के उपप्रश्नों का उत्तर लिखते समय कुछ वैचारिक संभ्रम दिखाई देता है। भारतीय बैठक व्यवस्था सस्ती होने के कारण कमजोर आर्थिक स्थिति वाले विद्यालयों के लिए ठीक है ऐसा मानते हैं । शास्त्रीय दृष्टि से बैठक व्यवस्था का विचार किसी भी उत्तर में नहीं मिला । व्यावहारिक दृष्टि से बैठक व्यवस्था का विचार करने वाले बिन्दु और लोगों की मानसिकता इन दोनों प्रश्नों के उत्तर में सब मौन रहे हैं। पाँचवे प्रश्न में संस्कारक्षम वातावरण निर्माण करने हेतु कक्षाकक्ष में चित्र, चार्ट्स, सुविचार आदि लगाने चाहिए ऐसे उत्तर मिले हैं । परन्तु वास्तव में ये सारी सामग्री लगाना तो कक्षा कक्ष का सुशोभन करना मात्र ही है, यह तो केवल बाहरी व्यवस्था ही है । संस्कारक्षम वातावरण का आन्तरिक स्वरूप क्या हो यह किसी के भी ध्यान में नहीं आया । सातवें प्रश्न के उत्तर में पुस्तकालय, प्रयोगशाला, कार्यालय आदि में भारतीय बैठक व्यवस्था उचित नहीं ऐसा ही सबका मत था । | + | प्रथम प्रश्न के उत्तर से यह तो स्पष्ट ध्यान में आता है कि यह तो सभी जानते हैं कि भारतीय और अधार्मिक ऐसी दो प्रकार की बैठक व्यवस्था होती है। किन्तु आगे के उपप्रश्नों का उत्तर लिखते समय कुछ वैचारिक संभ्रम दिखाई देता है। भारतीय बैठक व्यवस्था सस्ती होने के कारण कमजोर आर्थिक स्थिति वाले विद्यालयों के लिए ठीक है ऐसा मानते हैं । शास्त्रीय दृष्टि से बैठक व्यवस्था का विचार किसी भी उत्तर में नहीं मिला । व्यावहारिक दृष्टि से बैठक व्यवस्था का विचार करने वाले बिन्दु और लोगों की मानसिकता इन दोनों प्रश्नों के उत्तर में सब मौन रहे हैं। पाँचवे प्रश्न में संस्कारक्षम वातावरण निर्माण करने हेतु कक्षाकक्ष में चित्र, चार्ट्स, सुविचार आदि लगाने चाहिए ऐसे उत्तर मिले हैं । परन्तु वास्तव में ये सारी सामग्री लगाना तो कक्षा कक्ष का सुशोभन करना मात्र ही है, यह तो केवल बाहरी व्यवस्था ही है । संस्कारक्षम वातावरण का आन्तरिक स्वरूप क्या हो यह किसी के भी ध्यान में नहीं आया । सातवें प्रश्न के उत्तर में पुस्तकालय, प्रयोगशाला, कार्यालय आदि में भारतीय बैठक व्यवस्था उचित नहीं ऐसा ही सबका मत था । |
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| ==== अभिमत ==== | | ==== अभिमत ==== |
− | भारतीय और अभारतीय बैठक व्यवस्था में क्या अन्तर है इसकी स्पष्टता तो है। परन्तु आजकल विद्यालय, महाविद्यालय, सार्वजनिक सभागृह, कार्यालय एवं घरों में टेबलकुर्सी का उपयोग हमें इतना अनिवार्य लगता है कि अब हमें भारतीय बैठक व्यवस्था सर्वथा निरुपयोगी लगने लगी है। कुर्सी पर बैठकर भाषण सुनना प्रतिष्ठा का लक्षण माना जाता है । जबकि सुनने का सम्बन्ध कुर्सी से नहीं है, एकाग्रता व ग्रहणशीलता से है। परन्तु हमने तो इसे प्रतिष्ठा व अप्रतिष्ठा का रंग चढ़ा दिया है । | + | भारतीय और अधार्मिक बैठक व्यवस्था में क्या अन्तर है इसकी स्पष्टता तो है। परन्तु आजकल विद्यालय, महाविद्यालय, सार्वजनिक सभागृह, कार्यालय एवं घरों में टेबलकुर्सी का उपयोग हमें इतना अनिवार्य लगता है कि अब हमें भारतीय बैठक व्यवस्था सर्वथा निरुपयोगी लगने लगी है। कुर्सी पर बैठकर भाषण सुनना प्रतिष्ठा का लक्षण माना जाता है । जबकि सुनने का सम्बन्ध कुर्सी से नहीं है, एकाग्रता व ग्रहणशीलता से है। परन्तु हमने तो इसे प्रतिष्ठा व अप्रतिष्ठा का रंग चढ़ा दिया है । |
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| ==== विमर्श ==== | | ==== विमर्श ==== |