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− | भक्तियोगी श्री माधवाचार्य:<ref>महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078</ref> (स्वामी आनन्दतीर्थः) (1199-1271 ई०) | + | भक्तियोगी श्री माधवाचार्य:<ref>महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078</ref> (स्वामी आनन्दतीर्थः) (1199-1271 ई०)<blockquote>ब्रह्मैव सर्व न ततोऽस्ति पापं,पुण्यं न किञ्चिज्जगदेव मिथ्या।</blockquote><blockquote>इत्यादिनास्तिक्यमवेक्ष्य खिन्नम्, आनन्दतीर्थं तमहं नमामि॥</blockquote>सब कुछ ब्रह्म है, इस लिये पाप-पुण्य कुछ नहीं, संसार मिथ्या है, इत्यादि रूप से नास्तिकता को फैलता हुआ देखकर दुःखित श्री आनन्दतीर्थ को मैं नमस्कार करता हूँ।<blockquote>विष्णुः समस्तस्य भवस्य कर्ता सत्यस्य कार्यं जगदस्ति सत्यम्।</blockquote><blockquote>जीवेशभेदं भ्रुवमादिशन्तम्, आनन्दतीर्थ विबुधं नमामि॥</blockquote>विष्णुः (सर्वव्यापक परमेश्वर) इस सारे जगत् का कर्ता है, उस सत्यस्वरूप का बनाया यह जगत् भी सत्य वा यथार्थ है, जीव और परमेश्वर में वास्तविक भेद है इन तत्त्वों का उपदेश करने वाले श्री आनन्दतीर्थ को मैं नमस्कार करता हूँ।<blockquote>वेदाः प्रमाणं परमात्मजीवभेदं तु ते व्यक्तमुदाहरन्ति<ref>द्वासुपर्णा ...अनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति (ऋ० 1. 164. 20)। |
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− | ब्रह्मैव सर्व न ततोऽस्ति पापं,पुण्यं न किञ्चिज्जगदेव मिथ्या।
| + | न तं विदाथ-अन्यद् युष्माकमन्तरं बभूव(यजु० 17. 31)इत्यादि मन्त्र-द्वारा।</ref>।</blockquote><blockquote>मायावितके खलु तर्कतर्कूं युञ्जानमानन्दमुनिं नमामि॥</blockquote>वेद स्वतः प्रमाण हैं और वे स्पष्टतया जीव और ईश्वर के भेद का प्रतिपादन करते हैं इस प्रकार मायावादियों के तर्क में अपने तकं रूप चाकू का प्रयोग करने वाले श्री आनन्दतीर्थ को मैं नमस्कार करता हूँ ।<blockquote>यदू युक्तिजातं प्रबलं विवादशैली परास्तप्रतिवादिवर्गा।</blockquote><blockquote>देवेशभक्तिं प्रतिपादयन्तम्, आनन्दतीर्थ विबुधं नमामि॥</blockquote>जिनकी युक्तियां बड़ी प्रबल थीं और जिनकी विचार शैली विरोधियों को परास्त करने वाली थी, ऐसे परमात्मा के प्रति भक्तिभाव का प्रतिपादन करने वाले श्री आनन्दतीर्थ को मैं नमस्कार करता हूँ! |
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− | इत्यादिनास्तिक्यमवेक्ष्य खिन्नम्, आनन्दतीर्थं तमहं नमामि॥
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− | सब कुछ ब्रह्म है, इस लिये पाप-पुण्य कुछ नहीं, संसार मिथ्या है
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− | इत्यादि रूप से नास्तिकता को फैलता हुआ देखकर दुःखित श्री आनन्दतीर्थ
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− | को मैं नमस्कार करता हूँ।
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− | विष्णुः समस्तस्य भवस्य कर्ता सत्यस्य कार्यं जगदस्ति सत्यम्।
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− | जीवेशभेदं भ्रुवमादिशन्तम्, आनन्दतीर्थ विबुधं नमामि॥
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− | विष्णुः (सर्वव्यापक परमेश्वर) इस सारे जगत् का कर्ता है, उस
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− | सत्यस्वरूप का बनाया यह जगत् भी सत्य वा यथार्थ है, जीव और
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− | परमेश्वर में वास्तविक भेद है इन तत्त्वों का उपदेश करने वाले श्री
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− | आनन्दतीर्थ को मैं नमस्कार करता हूँ।
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− | <nowiki>*</nowiki>वेदाः प्रमाणं परमात्मजीवभेदं तु ते व्यक्तमुदाहरन्ति।
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− | मायावितके खलु तर्कतर्कूं युञ्जानमानन्दमुनिं नमामि॥
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− | 1. द्वासुपर्णा ...अनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति (ऋ० 1. 164. 20)।
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− | न तं विदाथ-अन्यद् युष्माकमन्तरं बभूव(यजु० 17. 31)इत्यादि मन्त्र-द्वारा। | |
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− | वेद स्वतः प्रमाण हैं और वे स्पष्टतया जीव और ईश्वर के भेद का | |
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− | प्रतिपादन करते हैं इस प्रकार मायावादियों के तर्क में अपने तकं रूप चाकू | |
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− | का प्रयोग करने वाले श्री आनन्दतीर्थ को मैं नमस्कार करता हूँ | |
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− | यदू युक्तिजातं प्रबलं विवादशैली परास्तप्रतिवादिवर्गा। | |
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− | देवेशभक्तिं प्रतिपादयन्तम्, आनन्दतीर्थ विबुधं नमामि॥ | |
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− | जिनकी युक्तियां बड़ी प्रबल थीं और जिनकी विचार शैली विरोधि | |
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− | यों को परास्त करने वाली थी, ऐसे परमात्मा के प्रति भक्तिभाव का प्रतिपादन
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− | करने वाले श्री आनन्दतीर्थ को मैं नमस्कार करता हूँ! | |
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