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| {{One source|date=May 2020 }} | | {{One source|date=May 2020 }} |
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− | भक्तियोगी श्री माधवाचार्य: (स्वामी आनन्दतीर्थः) (1199-1271 ई०) | + | भक्तियोगी श्री माधवाचार्य:<ref>महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078</ref> (स्वामी आनन्दतीर्थः) (1199-1271 ई०) |
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| ब्रह्मैव सर्व न ततोऽस्ति पापं,पुण्यं न किञ्चिज्जगदेव मिथ्या। | | ब्रह्मैव सर्व न ततोऽस्ति पापं,पुण्यं न किञ्चिज्जगदेव मिथ्या। |
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− | इत्यादिनास्तिक्यमवेक्ष्य खिन्नम्, आनन्दतीर्थं तमहं नमामि।21॥। | + | इत्यादिनास्तिक्यमवेक्ष्य खिन्नम्, आनन्दतीर्थं तमहं नमामि॥ |
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| सब कुछ ब्रह्म है, इस लिये पाप-पुण्य कुछ नहीं, संसार मिथ्या है | | सब कुछ ब्रह्म है, इस लिये पाप-पुण्य कुछ नहीं, संसार मिथ्या है |
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| विष्णुः समस्तस्य भवस्य कर्ता सत्यस्य कार्यं जगदस्ति सत्यम्। | | विष्णुः समस्तस्य भवस्य कर्ता सत्यस्य कार्यं जगदस्ति सत्यम्। |
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− | जीवेशभेदं भ्रुवमादिशन्तम्, आनन्दतीर्थ विबुधं नमामि।।22॥। | + | जीवेशभेदं भ्रुवमादिशन्तम्, आनन्दतीर्थ विबुधं नमामि॥ |
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| विष्णुः (सर्वव्यापक परमेश्वर) इस सारे जगत् का कर्ता है, उस | | विष्णुः (सर्वव्यापक परमेश्वर) इस सारे जगत् का कर्ता है, उस |
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| <nowiki>*</nowiki>वेदाः प्रमाणं परमात्मजीवभेदं तु ते व्यक्तमुदाहरन्ति। | | <nowiki>*</nowiki>वेदाः प्रमाणं परमात्मजीवभेदं तु ते व्यक्तमुदाहरन्ति। |
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− | मायावितके खलु तर्कतर्कूं युञ्जानमानन्दमुनिं नमामि।23॥ | + | मायावितके खलु तर्कतर्कूं युञ्जानमानन्दमुनिं नमामि॥ |
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| 1. द्वासुपर्णा ...अनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति (ऋ० 1. 164. 20)। | | 1. द्वासुपर्णा ...अनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति (ऋ० 1. 164. 20)। |
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| वेद स्वतः प्रमाण हैं और वे स्पष्टतया जीव और ईश्वर के भेद का | | वेद स्वतः प्रमाण हैं और वे स्पष्टतया जीव और ईश्वर के भेद का |
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| प्रतिपादन करते हैं इस प्रकार मायावादियों के तर्क में अपने तकं रूप चाकू | | प्रतिपादन करते हैं इस प्रकार मायावादियों के तर्क में अपने तकं रूप चाकू |
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| यदू युक्तिजातं प्रबलं विवादशैली परास्तप्रतिवादिवर्गा। | | यदू युक्तिजातं प्रबलं विवादशैली परास्तप्रतिवादिवर्गा। |
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− | देवेशभक्तिं प्रतिपादयन्तम्, आनन्दतीर्थ विबुधं नमामि।(24॥। | + | देवेशभक्तिं प्रतिपादयन्तम्, आनन्दतीर्थ विबुधं नमामि॥ |
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| जिनकी युक्तियां बड़ी प्रबल थीं और जिनकी विचार शैली विरोधि | | जिनकी युक्तियां बड़ी प्रबल थीं और जिनकी विचार शैली विरोधि |