सौभाग्य से खगोलशास्त्र के लिए बनारस में एक विशाल वृत्तांश विद्यमान है जो उसके स्थापनाकाल से ही, वेधशाला निर्माण हुई तब से ही याम्योत्तर समतल में स्थापित किया गया है। इतना ही नहीं, यह वृत्तांश पत्थर द्वारा निर्मित स्थावर चिनाई है, जिससे उसके दिगंश बदले नहीं जा सकते या यूरोपीय वृत्तांशों की तरह मुड़ भी नहीं सकते हैं । अतएव उसके द्वारा ताराओं के याम्योत्तर और उन्नतांश मापे जा सर्के, ऐसे हैं। आवश्यकता है थोड़ी सी युक्ति की, जिससे मात्र याम्योत्तर और विषुववृत्त के सापेक्ष में उस साधन के स्थान के आधार पर उपर्युक्त गणना विशेष रूप से ठोस परिणामलक्षी हो सकती है, जिसके आधार पर बहुत से उपयोगी निष्कर्ष प्राप्त हो सकते हैं तथा इस अत्यन्त कुतूहलपूर्ण और कठिन मुद्दे का निराकरण हो सकता है। | सौभाग्य से खगोलशास्त्र के लिए बनारस में एक विशाल वृत्तांश विद्यमान है जो उसके स्थापनाकाल से ही, वेधशाला निर्माण हुई तब से ही याम्योत्तर समतल में स्थापित किया गया है। इतना ही नहीं, यह वृत्तांश पत्थर द्वारा निर्मित स्थावर चिनाई है, जिससे उसके दिगंश बदले नहीं जा सकते या यूरोपीय वृत्तांशों की तरह मुड़ भी नहीं सकते हैं । अतएव उसके द्वारा ताराओं के याम्योत्तर और उन्नतांश मापे जा सर्के, ऐसे हैं। आवश्यकता है थोड़ी सी युक्ति की, जिससे मात्र याम्योत्तर और विषुववृत्त के सापेक्ष में उस साधन के स्थान के आधार पर उपर्युक्त गणना विशेष रूप से ठोस परिणामलक्षी हो सकती है, जिसके आधार पर बहुत से उपयोगी निष्कर्ष प्राप्त हो सकते हैं तथा इस अत्यन्त कुतूहलपूर्ण और कठिन मुद्दे का निराकरण हो सकता है। |