१. आज परिवर्तन की भाषा तो सर्वत्र बोली जाती है । प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा हो, चाहे विश्वविद्यालयीन, परिवर्तन होते ही रहते हैं। परिवर्तन संसार का नियम है ऐसा सूत्र भी सर्वश्र सुनाई देता है । परंतु शिक्षा में आज जो परिवर्तन अपेक्षित है वह ऐसा छोटा मोटा या केवल काल के प्रवाह में होने वाला परिवर्तन नहीं है । परिवर्तन भारतीय चिन्तन के अनुसार होना अपेक्षित है । वर्तमान शिक्षाव्यवस्था को समग्रता में देखकर शिक्षा के सम्पूर्ण मंत्र, तंत्र और यंत्र को परिवर्तित करने की आवश्यकता है । इसे ही हम आमूल परितर्वन कहते हैं। ऐसे समग्रता में परिवर्तन किये बिना हम शिक्षा की जिन समस्याओं की बात करते हैं उनका निराकरण होना सम्भव नहीं है । | १. आज परिवर्तन की भाषा तो सर्वत्र बोली जाती है । प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा हो, चाहे विश्वविद्यालयीन, परिवर्तन होते ही रहते हैं। परिवर्तन संसार का नियम है ऐसा सूत्र भी सर्वश्र सुनाई देता है । परंतु शिक्षा में आज जो परिवर्तन अपेक्षित है वह ऐसा छोटा मोटा या केवल काल के प्रवाह में होने वाला परिवर्तन नहीं है । परिवर्तन भारतीय चिन्तन के अनुसार होना अपेक्षित है । वर्तमान शिक्षाव्यवस्था को समग्रता में देखकर शिक्षा के सम्पूर्ण मंत्र, तंत्र और यंत्र को परिवर्तित करने की आवश्यकता है । इसे ही हम आमूल परितर्वन कहते हैं। ऐसे समग्रता में परिवर्तन किये बिना हम शिक्षा की जिन समस्याओं की बात करते हैं उनका निराकरण होना सम्भव नहीं है । |