Line 46: |
Line 46: |
| वामपंथियों की हिंसा से प्रेरित राष्ट्रीयता के कारण भी विश्व में मानवता का शोषण हुआ है। सोवियत रशिया -सोवियत युनिअन ने जार की वसाहतों एवं एशिया और युरोप में अनेक आक्रमण किये और अपने साम्राज्य का विस्तार किया। मध्य एशिया के कजाकिस्थान, किरालिस्थान, तनकिस्थान, उजबेकिस्थान और तुर्कमेनिस्थान के करोड़ों लोगों को मार डाला। रशियन राष्ट्रवाद और रशियन साम्राज्यवाद की मानसिकताने वहां की अरबी भाषा को बदल दिया, अनेक देशों की मूल भाषा और संस्कृति को नष्ट किया। इस प्रकार ७० वर्ष तक साम्राज्यवाद की भावना से राज्य चलाने के बाद भी आखिर में १९८९-९० में सोवियत युनिअन बिखर गया, सारे देश स्वतंत्र हो गये। केवल रशिया देश राष्ट्र (नेशन) बचा रहा । अर्थात् राज्य राष्ट्र बनने का आधार नहीं है, सांस्कृतिक आधार ही 'राष्ट्' के नाते जीने का शाश्वत आधार दीखाई देता है। | | वामपंथियों की हिंसा से प्रेरित राष्ट्रीयता के कारण भी विश्व में मानवता का शोषण हुआ है। सोवियत रशिया -सोवियत युनिअन ने जार की वसाहतों एवं एशिया और युरोप में अनेक आक्रमण किये और अपने साम्राज्य का विस्तार किया। मध्य एशिया के कजाकिस्थान, किरालिस्थान, तनकिस्थान, उजबेकिस्थान और तुर्कमेनिस्थान के करोड़ों लोगों को मार डाला। रशियन राष्ट्रवाद और रशियन साम्राज्यवाद की मानसिकताने वहां की अरबी भाषा को बदल दिया, अनेक देशों की मूल भाषा और संस्कृति को नष्ट किया। इस प्रकार ७० वर्ष तक साम्राज्यवाद की भावना से राज्य चलाने के बाद भी आखिर में १९८९-९० में सोवियत युनिअन बिखर गया, सारे देश स्वतंत्र हो गये। केवल रशिया देश राष्ट्र (नेशन) बचा रहा । अर्थात् राज्य राष्ट्र बनने का आधार नहीं है, सांस्कृतिक आधार ही 'राष्ट्' के नाते जीने का शाश्वत आधार दीखाई देता है। |
| | | |
− | धार्मिक राष्ट्रवाद ___धर्म के आधार पर राष्ट्र का निर्माण भी हुआ है। मध्य पूर्व देशों में अधिक मुसलमान (इस्लाम मतावलम्बी) हैं। इस्लाम पंथ भी देश, सीमा मानता नहीं है। परंतु अनेक वर्ष खलीफा को सारे इस्लाम देशों का राजा मानकर चलने के बाद भी जब राष्ट्रीय भावना जाग्रत हुई तब अनेक राष्ट्रों (नेशन्स) का जन्म और विकास हुआ । इरान इराक अलग हैं और दोनों के बीच शत्रुता है। पाकिस्तान- इरान, पाकिस्तान - अफ्धानिस्तान तथा जॉर्डन - पेलेस्टाईन और इजिप्त - पेलेस्टाईन सब के बीच में शत्रुता है। सब अलग राष्ट्र हैं, नेशन्स हैं। | + | == धार्मिक राष्ट्रवाद == |
− | | + | धर्म के आधार पर राष्ट्र का निर्माण भी हुआ है। मध्य पूर्व देशों में अधिक मुसलमान (इस्लाम मतावलम्बी) हैं। इस्लाम पंथ भी देश, सीमा मानता नहीं है। परंतु अनेक वर्ष खलीफा को सारे इस्लाम देशों का राजा मानकर चलने के बाद भी जब राष्ट्रीय भावना जाग्रत हुई तब अनेक राष्ट्रों (नेशन्स) का जन्म और विकास हुआ । इरान इराक अलग हैं और दोनों के बीच शत्रुता है। पाकिस्तान- इरान, पाकिस्तान - अफ्घानिस्तान तथा जॉर्डन - पेलेस्टाईन और इजिप्त - पेलेस्टाईन सब के बीच में शत्रुता है। सब अलग राष्ट्र हैं, नेशन्स हैं। |
− | पश्चिमी जगत में राष्ट्र (नेशन) का स्वरूप
| |
| | | |
| + | == पश्चिमी जगत में राष्ट्र (नेशन) का स्वरूप == |
| पश्चिम में राष्ट्र राज्य अवधारणा (National State Concept) है। राष्ट्र राज्य के आधारित है। जब राज्य जीतता था तब राष्ट्र विद्यमान था, परन्तु जब राज्य बदल जाता था तो राष्ट्र भी बदल जाता था । इस बात को समझने के लिये मिस्र, इजिप्त देश राष्ट्र के इतिहास का अध्ययन करना आवश्यक है। | | पश्चिम में राष्ट्र राज्य अवधारणा (National State Concept) है। राष्ट्र राज्य के आधारित है। जब राज्य जीतता था तब राष्ट्र विद्यमान था, परन्तु जब राज्य बदल जाता था तो राष्ट्र भी बदल जाता था । इस बात को समझने के लिये मिस्र, इजिप्त देश राष्ट्र के इतिहास का अध्ययन करना आवश्यक है। |
| | | |
− | मिस्र विश्व में एक प्राचीन राष्ट्र था । वहाँ फराहो राजा
| + | मिस्र विश्व में एक प्राचीन राष्ट्र था । वहाँ फराहो राजा राज्य करते थे | उन्होंने शवों को सुरक्षित रखने के लिये ममी और पिरामिडज का भी निर्माण किया था | जब जर्मन क्षेत्र से सेमेटिक बर्बर जातियों ने उन पर आक्रमण किया और उनको हराकर उन पर कब्ज़ा कर लिया तब मिस्र राष्ट्र नष्ट हो गया | उसके बाद फ्रांस ने आक्रमण किया, बाद में रोम ने आक्रमण किया और इस तीसरे आक्रमण के बाद मिस्र (ईजिप्त) रोअन साम्राज्य के अंतर्गत आ गया | |
− | | |
− | सोवियत युनिअन ने जार की वसाहतों एवं एशिया और युरोप में अनेक आक्रमण किये और अपने साम्राज्य का विस्तार किया। मध्य एशिया के कजाकिस्थान, किरालिस्थान, तनकिस्थान, उजबेकिस्थानऔर तुर्कमेनिस्थान के करोड़ों लोगों को मार डाला। रशियन राष्ट्रवाद और रशियन साम्राज्यवाद की मानसिकताने वहां की अरबी भाषा को बदल दिया, अनेक देशों की मूल भाषा और संस्कृति को नष्ट किया। इस प्रकार ७० वर्ष तक साम्राज्यवाद की भावना से राज्य चलाने के बाद भी आखिर में १९८९९० में सोवियत युनिअन बिखर गया, सारे देश स्वतंत्र हो गये। केवल रशिया देश राष्ट्र (नेशन) बचा रहा । अर्थात् राज्य राष्ट्र बनने का आधार नहीं है, सांस्कृतिक आधार ही 'राष्ट्र के नाते जीने का शाश्वत आधार दीखाई देता है।
| |
− | | |
− | ==== धार्मिक राष्ट्रवाद ====
| |
− | धर्म के आधार पर राष्ट्र का निर्माण भी हुआ है। मध्य पूर्व देशों में अधिक मुसलमान (इस्लाम मतावलम्बी) हैं। इस्लाम पंथ भी देश, सीमा मानता नहीं है। परंतु अनेक वर्ष खलीफा को सारे इस्लाम देशों का राजा मानकर चलने के बाद भी जब राष्ट्रीय भावना जाग्रत हुई तब अनेक राष्ट्रों (नेशन्स) का जन्म और विकास हुआ । इरान इराक अलग हैं और दोनों के बीच शत्रुता है। पाकिस्तान- इरान, पाकिस्तान - अफ्धानिस्तान तथा जॉर्डन - पेलेस्टाईन और इजिप्त - पेलेस्टाईन सब के बीच में शत्रुता है। सब अलग राष्ट्र हैं, नेशन्स हैं।
| |
− | | |
− | ==== पश्चिमी जगत में राष्ट्र (नेशन) का स्वरूप ====
| |
− | पश्चिम में राष्ट्र राज्य अवधारणा (National State Concept) है। राष्ट्र राज्य के आधारित है। जब राज्य जीतता था तब राष्ट्र विद्यमान था, परन्तु जब राज्य बदल जाता था तो राष्ट्र भी बदल जाता था । इस बात को समझने के लिये मिस्र, इजिप्त देश राष्ट्र के इतिहास का अध्ययन करना आवश्यक है।
| |
− | | |
− | मिस्र विश्व में एक प्राचीन राष्ट्र था । वहाँ फराहो राजा राज्य करते थे। उन्होंने शवों को । सुरक्षित रखने के लिये ममी और पिरामिड्ज का भी निर्माण किया था । जब जर्मन क्षेत्र से सेमेटिक बर्बर जातियों ने उन पर आक्रमण किया और उनको हराकर उन पर कब्जा कर लिया तब मिस्र राष्ट्र नष्ट हो गया। उसके बाद फ्रांस ने आक्रमण किया, बाद में रोम ने आक्रमण किया और इस तीसरे आक्रमण के बाद मिस्र (इजिप्त) रोमन साम्राज्य के अंतर्गत आ गया। | |
| | | |
| उसके बाद अरब (मुस्लिम) आक्रमणकारियों ने रोम पर आक्रमण किया और पूरा इस्लामीकरण हो गया । फराहो संस्कृति, फराहो विचार, फराहो परम्परा को जीवित रखने की व्यवस्था वहाँ नहीं थी इसलिये राज्य बदलते ही राष्ट्र नष्ट हो गया । इन सभी पुराने देशों की - इरान, ग्रीस, रोम, पर्शिया, मिस्र- सब की कहानी लगभग एक समान है। भूजागतिक राष्ट्रीयता होने के कारण राष्ट्र नष्ट होते गये अथवा दूसरों का शोषण करते गये और मानवता का विध्वंस होता गया। | | उसके बाद अरब (मुस्लिम) आक्रमणकारियों ने रोम पर आक्रमण किया और पूरा इस्लामीकरण हो गया । फराहो संस्कृति, फराहो विचार, फराहो परम्परा को जीवित रखने की व्यवस्था वहाँ नहीं थी इसलिये राज्य बदलते ही राष्ट्र नष्ट हो गया । इन सभी पुराने देशों की - इरान, ग्रीस, रोम, पर्शिया, मिस्र- सब की कहानी लगभग एक समान है। भूजागतिक राष्ट्रीयता होने के कारण राष्ट्र नष्ट होते गये अथवा दूसरों का शोषण करते गये और मानवता का विध्वंस होता गया। |
Line 68: |
Line 58: |
| अब जब हम भारत के बारे में सोचते हैं तब स्वराज्य प्राप्ति के बाद का भ्रम सामने आता है । भारत आज़ाद होने के बाद संविधान तो बना । राष्ट्रभक्त महान विद्वान डॉ. संपूर्णानंद को भावनात्मक एकात्मता समिति (Emotional National integration Committee) का अध्यक्ष बनाया गया था। संपूर्ण देश में भावनात्मक एकात्मता निर्माण करने का यह प्रयास था । डॉ. संपूर्णानंदजी लिखते हैं, 'दुर्भाग्य है कि आज तक अपने राष्ट्र का कोई दर्शन निश्चित नहीं है। जब राष्ट्र का दर्शन नहीं है तो शिक्षा का दर्शन तो कहाँ से होगा ? 'अत्यंत आश्चर्य की बात है कि स्वतंत्रता के पश्चात हम कौन है, हमारी परम्परा, हमारा इतिहास क्या है, हमारे पूर्वज कौन थे, हमारे उद्देश्य क्या हैं, विश्व को हमारा योगदान क्या हो इत्यादि विषयों के बारे में कुछ निश्चित नहीं किया गया । | | अब जब हम भारत के बारे में सोचते हैं तब स्वराज्य प्राप्ति के बाद का भ्रम सामने आता है । भारत आज़ाद होने के बाद संविधान तो बना । राष्ट्रभक्त महान विद्वान डॉ. संपूर्णानंद को भावनात्मक एकात्मता समिति (Emotional National integration Committee) का अध्यक्ष बनाया गया था। संपूर्ण देश में भावनात्मक एकात्मता निर्माण करने का यह प्रयास था । डॉ. संपूर्णानंदजी लिखते हैं, 'दुर्भाग्य है कि आज तक अपने राष्ट्र का कोई दर्शन निश्चित नहीं है। जब राष्ट्र का दर्शन नहीं है तो शिक्षा का दर्शन तो कहाँ से होगा ? 'अत्यंत आश्चर्य की बात है कि स्वतंत्रता के पश्चात हम कौन है, हमारी परम्परा, हमारा इतिहास क्या है, हमारे पूर्वज कौन थे, हमारे उद्देश्य क्या हैं, विश्व को हमारा योगदान क्या हो इत्यादि विषयों के बारे में कुछ निश्चित नहीं किया गया । |
| | | |
− | ==== विदेशियों द्वारा भ्रम निर्माण ====
| + | == विदेशियों द्वारा भ्रम निर्माण == |
− | मेक्समूलर नामक विद्वान लिखता है, "Indians are a nation of philosophers and Indian intellect is lacking on political and material speculations and that Indians never know the feeling of nationality'. भारत दार्शनिकों का देश है और भारतीय मनीषियों में राजनीतिक तथा भौतिक चिंतन का अभाव है तथा भारतीयों में कभी राष्ट्रीयता की भावना नहीं रही। ___अंग्रेजों ने हमेशा भारत एक राष्ट्र नहीं रहा यह सिद्ध करने का प्रयास किया है। यहाँ अनेक राज्य थे । इसलिये अज्ञान के कारण तथा धूर्तता के कारण भी वे बोलने लगे कि भारत में अनेक राष्ट्र हैं। वे हमेशा बहुराष्ट्रवाद (multinational theory) के सिद्धांत का प्रतिपादन करते रहे । भारत के आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक राष्ट्रदर्शन को समझना उनके लिये आसान नहीं था, उनकी समझने की इच्छा भी नहीं थी। अंग्रेजी शिक्षा के प्रभाव के कारण, भावनात्मक दासता के कारण बुद्धिजीवी कहलाने वाला एक समूह भारत में एक नया राष्ट्र निर्माण करने की, नेशन मेकिंग की बात करने लगा। उसका प्रभाव आज भी देश में दिखता है। | + | मेक्समूलर नामक विद्वान लिखता है, "Indians are a nation of philosophers and Indian intellect is lacking on political and material speculations and that Indians never know the feeling of nationality'. भारत दार्शनिकों का देश है और भारतीय मनीषियों में राजनीतिक तथा भौतिक चिंतन का अभाव है तथा भारतीयों में कभी राष्ट्रीयता की भावना नहीं रही। |
| + | |
| + | अंग्रेजों ने हमेशा भारत एक राष्ट्र नहीं रहा यह सिद्ध करने का प्रयास किया है। यहाँ अनेक राज्य थे । इसलिये अज्ञान के कारण तथा धूर्तता के कारण भी वे बोलने लगे कि भारत में अनेक राष्ट्र हैं। वे हमेशा बहुराष्ट्रवाद (multinational theory) के सिद्धांत का प्रतिपादन करते रहे । भारत के आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक राष्ट्रदर्शन को समझना उनके लिये आसान नहीं था, उनकी समझने की इच्छा भी नहीं थी। अंग्रेजी शिक्षा के प्रभाव के कारण, भावनात्मक दासता के कारण बुद्धिजीवी कहलाने वाला एक समूह भारत में एक नया राष्ट्र निर्माण करने की, नेशन मेकिंग की बात करने लगा। उसका प्रभाव आज भी देश में दिखता है। |
| | | |
− | ==== राष्ट्र दर्शन - भारत की प्राचीन अवधारणा ====
| + | == राष्ट्र दर्शन - भारत की प्राचीन अवधारणा == |
| भारत की राष्ट्र भावना दार्शनिक है, आध्यात्मिक है और सांस्कृतिक है । हमारे इस राष्ट्रदर्शन और राष्ट्रीयता का आधार पश्चिम की तरह कुल, वंश, रिलिजन, भाषा, राज्य या स्टेट अथवा साम्राज्य या एम्पायर नहीं है। यहाँ हजारों वर्षों से राष्ट्रीय भावना का विकास हुआ है । अथर्व वेद में माता भूमिः पुत्रोऽहंपृथिव्याः अर्थात् हमारा देश हमारी जन्मभूमि है और हम सब पृथ्वी की सन्तान हैं। यह हमारी सांस्कृतिक धारा है। अपनी मातृभूमि की आराधना करना और विश्व को अपना मानना । इसलिये भारत ने दुनिया में कभी लूटपाट नहीं की और शोषण भी नहीं किया। | | भारत की राष्ट्र भावना दार्शनिक है, आध्यात्मिक है और सांस्कृतिक है । हमारे इस राष्ट्रदर्शन और राष्ट्रीयता का आधार पश्चिम की तरह कुल, वंश, रिलिजन, भाषा, राज्य या स्टेट अथवा साम्राज्य या एम्पायर नहीं है। यहाँ हजारों वर्षों से राष्ट्रीय भावना का विकास हुआ है । अथर्व वेद में माता भूमिः पुत्रोऽहंपृथिव्याः अर्थात् हमारा देश हमारी जन्मभूमि है और हम सब पृथ्वी की सन्तान हैं। यह हमारी सांस्कृतिक धारा है। अपनी मातृभूमि की आराधना करना और विश्व को अपना मानना । इसलिये भारत ने दुनिया में कभी लूटपाट नहीं की और शोषण भी नहीं किया। |
| | | |
Line 78: |
Line 70: |
| १. ग्रीस के प्रतापी राजा मिनियांडर, नागसेन नामक विद्वान शिक्षक के साथ वार्तालाप और शास्त्रार्थ करते करते बौद्ध बन गया और मिलिंद नाम से विख्यात हुआ। | | १. ग्रीस के प्रतापी राजा मिनियांडर, नागसेन नामक विद्वान शिक्षक के साथ वार्तालाप और शास्त्रार्थ करते करते बौद्ध बन गया और मिलिंद नाम से विख्यात हुआ। |
| | | |
− | २. ईसा के भी कुछ वर्ष पूर्व ग्रीक राजदत हेलियोडोरस यहाँ परम भागवत वैष्णव हो गया । | + | २. ईसा के भी कुछ वर्ष पूर्व ग्रीक राजदूत हेलियोडोरस यहाँ परम भागवत वैष्णव हो गया । |
| | | |
| ३. सारे शक हिंदु हो गये । रुद्रदमन, जयदमन, जीवदमन ये सारे शासक शक ही थे। | | ३. सारे शक हिंदु हो गये । रुद्रदमन, जयदमन, जीवदमन ये सारे शासक शक ही थे। |
Line 86: |
Line 78: |
| १३वीं शताब्दी में असम पर थाई राजाओं का आक्रमण हुआ। तब थाई राजा सकुफा के सामने असम का हिंदु राजा पराजित हो गया । पूरे असम पर थाई राजा का राज्य हो गया । परंतु धीरे धीरे वे सब हिंदु संस्कृति के प्रभाव में आ कर हिंदु बन गये। उन्होंने बड़े बड़े शिव मंदिर निर्माण किये। संस्कृत विद्यालयों की स्थापना की। हिंदु धर्म का प्रचार किया । भारतीय राजा हार गया था परंतु हिंदु राष्ट्र जीत गया था। | | १३वीं शताब्दी में असम पर थाई राजाओं का आक्रमण हुआ। तब थाई राजा सकुफा के सामने असम का हिंदु राजा पराजित हो गया । पूरे असम पर थाई राजा का राज्य हो गया । परंतु धीरे धीरे वे सब हिंदु संस्कृति के प्रभाव में आ कर हिंदु बन गये। उन्होंने बड़े बड़े शिव मंदिर निर्माण किये। संस्कृत विद्यालयों की स्थापना की। हिंदु धर्म का प्रचार किया । भारतीय राजा हार गया था परंतु हिंदु राष्ट्र जीत गया था। |
| | | |
− | ==== इस्लाम काल में संघर्ष ====
| + | == इस्लाम काल में संघर्ष == |
| आठवीं शताब्दी से १७वीं शताब्दी तक भारत पर इस्लाम का आक्रमण होता रहा था। अनेक भूभागों में संघर्ष होता रहता था । विदेशी लोग जीतते गये, राज्य करते गये, हमारे अधिकांश राजा हार गये । देश के बहुत बड़े भूभाग पर विदेशी और विधर्मियों का राज्य था। उन्होंने अनेक मंदिर तोड़े, भयंकर लूट मचाई, लगातार सौ वर्ष तक निरंतर विध्वंस होता रहा । विश्व में इतने लम्बे समय तक का आक्रमण अन्य किसी भी देश पर नहीं हुआ है। फिर भी अनेक देश नामशेष हो गये हैं परंतु भारतीय राष्ट्र जीवंत रहा । भारतीय संस्कृति का प्रवाह अखंड, अविचल रहा । यह कैसे हुआ ? | | आठवीं शताब्दी से १७वीं शताब्दी तक भारत पर इस्लाम का आक्रमण होता रहा था। अनेक भूभागों में संघर्ष होता रहता था । विदेशी लोग जीतते गये, राज्य करते गये, हमारे अधिकांश राजा हार गये । देश के बहुत बड़े भूभाग पर विदेशी और विधर्मियों का राज्य था। उन्होंने अनेक मंदिर तोड़े, भयंकर लूट मचाई, लगातार सौ वर्ष तक निरंतर विध्वंस होता रहा । विश्व में इतने लम्बे समय तक का आक्रमण अन्य किसी भी देश पर नहीं हुआ है। फिर भी अनेक देश नामशेष हो गये हैं परंतु भारतीय राष्ट्र जीवंत रहा । भारतीय संस्कृति का प्रवाह अखंड, अविचल रहा । यह कैसे हुआ ? |
| | | |
Line 99: |
Line 91: |
| सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा में देश को माता मान कर समाज उसका पुत्र है इस रूप में व्यवहार करता है। इस भूमि में जन्म लेकर इस राष्ट्र के लिये अनेक महापुरुषों ने अपना जीवन समर्पित किया । शरणागत शत्रु और मित्र के साथ उनका व्यवहार समान रहा । | | सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा में देश को माता मान कर समाज उसका पुत्र है इस रूप में व्यवहार करता है। इस भूमि में जन्म लेकर इस राष्ट्र के लिये अनेक महापुरुषों ने अपना जीवन समर्पित किया । शरणागत शत्रु और मित्र के साथ उनका व्यवहार समान रहा । |
| | | |
− | भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवादमें उपासना तथा संप्रदाय की पूर्ण स्वतंत्रता है । धर्म, पंथ अथवा संप्रदाय राष्ट्र निर्माण __ का आधार नहीं हैं । राष्ट्र के लम्बे इतिहास में केवल सम्राट __ अशोक ने बौद्ध धर्म को अपने राज्य का आधिकारिक धर्म बनाया था। इस अपवाद को छोडकर भारत कभी भी धर्म शासित राज्य नहीं रहा है। | + | भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवादमें उपासना तथा संप्रदाय की पूर्ण स्वतंत्रता है । धर्म, पंथ अथवा संप्रदाय राष्ट्र निर्माण का आधार नहीं हैं । राष्ट्र के लम्बे इतिहास में केवल सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपने राज्य का आधिकारिक धर्म बनाया था। इस अपवाद को छोडकर भारत कभी भी धर्म शासित राज्य नहीं रहा है। |
| | | |
| भारत में जन्में सभी पंथ अथवा संप्रदाय केवल सहिष्णु ही नहीं तो सब धर्मों के प्रति सम्मान का भाव रखने वाले रहे हैं। मतांतरण करना भारत की सांस्कृतिक धारा में कहीं भी नहीं रहा है। इसीलिये भारतीय राष्ट्रीय चिह्न बहुमतवादी (प्लुरालिस्टिक) है। | | भारत में जन्में सभी पंथ अथवा संप्रदाय केवल सहिष्णु ही नहीं तो सब धर्मों के प्रति सम्मान का भाव रखने वाले रहे हैं। मतांतरण करना भारत की सांस्कृतिक धारा में कहीं भी नहीं रहा है। इसीलिये भारतीय राष्ट्रीय चिह्न बहुमतवादी (प्लुरालिस्टिक) है। |
| | | |
− | ==== राष्ट्र दर्शन की अवधारणा ====
| + | == राष्ट्र दर्शन की अवधारणा == |
| राष्ट्र के विकास के विषय में प्राचीन ऋषियों ने बहुत स्पष्ट वर्णन किया हुआ है। ॐ भद्रम् इच्छन्त ऋषयः स्वर्विदः तपोदिक्षामुपनिषेदुरग्रे ततो राष्ट्र बलम् ओजस्व जातंतदस्मै देवाः उपसन्नमन्तु ॥ (अथर्व वेद १६:४१:१) | | राष्ट्र के विकास के विषय में प्राचीन ऋषियों ने बहुत स्पष्ट वर्णन किया हुआ है। ॐ भद्रम् इच्छन्त ऋषयः स्वर्विदः तपोदिक्षामुपनिषेदुरग्रे ततो राष्ट्र बलम् ओजस्व जातंतदस्मै देवाः उपसन्नमन्तु ॥ (अथर्व वेद १६:४१:१) |
| | | |
− | ऋषियों में लोक मंगलकारी इच्छा प्रकट हुई। वे ऋषि श्रेष्ठ ज्ञानी थे। 'तपो दीक्षाम्' अर्थात उन्होंने दीक्षा भी प्राप्त की थी। उन्होंने अपने कठोर तप एवं परिश्रम से इस राष्ट्र जीवन में बल और तेज निर्माण किया । ऋषि कहते हैं 'तदस्मै देवा उपसन्नमस्तु"आइये हम सब मिलकर इस राष्ट्र भावना की उपासना करें, अभिनन्दन करें, उसकी सेवा करें । इस राष्ट्र को प्रणाम करें और राष्ट्र के प्रति अपना सब समर्पण करें । ऋषियों की भद्र इच्छाओं में निहित था सर्व मंगलकारी दर्शन । इस के अंदर सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था एकात्म बोध । यह एकात्म बोध भारतीय सांस्कृतिक दर्शन की सर्वाधिक मूल्यवान बात थी। ऋषियों ने सभी प्रकार की विविधताओं को सम्मानित करते हुए एक महाधिकार पत्र प्रदान करते हुए कहा, 'एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति'। ऋषियों के इस वैश्विक दर्शन ने सभी को असीमित रूप से उदार बना दिया । | + | ऋषियों में लोक मंगलकारी इच्छा प्रकट हुई। वे ऋषि श्रेष्ठ ज्ञानी थे। 'तपो दीक्षाम्' अर्थात उन्होंने दीक्षा भी प्राप्त की थी। उन्होंने अपने कठोर तप एवं परिश्रम से इस राष्ट्र जीवन में बल और तेज निर्माण किया ।'ऋषि कहते हैं 'तदस्मै देवा उपसन्नमस्तु"आइये हम सब मिलकर इस राष्ट्र भावना की उपासना करें, अभिनन्दन करें, उसकी सेवा करें । इस राष्ट्र को प्रणाम करें और राष्ट्र के प्रति अपना सब समर्पण करें । ऋषियों की भद्र इच्छाओं में निहित था सर्व मंगलकारी दर्शन । इस के अंदर सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था एकात्म बोध । यह एकात्म बोध भारतीय सांस्कृतिक दर्शन की सर्वाधिक मूल्यवान बात थी। ऋषियों ने सभी प्रकार की विविधताओं को सम्मानित करते हुए एक महाधिकार पत्र प्रदान करते हुए कहा, 'एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति'। ऋषियों के इस वैश्विक दर्शन ने सभी को असीमित रूप से उदार बना दिया । |
| | | |
| इसके बाद आया 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' भद्र इच्छाओं की सार्वजनिक स्वीकृति । ऋषियों के परिश्रम एवं प्रयासों के कारण भद्र इच्छाओं का यह भाव सन्देश भारत वर्ष के जनजीवन में नीचे तक पहुँच गया। राजा महाराजाओं, विद्वान एवं निरक्षर, धनवान एवं निर्धनग्रामवासी, नगरवासी तथा वनवासी सब ने उसको स्वीकार किया। | | इसके बाद आया 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' भद्र इच्छाओं की सार्वजनिक स्वीकृति । ऋषियों के परिश्रम एवं प्रयासों के कारण भद्र इच्छाओं का यह भाव सन्देश भारत वर्ष के जनजीवन में नीचे तक पहुँच गया। राजा महाराजाओं, विद्वान एवं निरक्षर, धनवान एवं निर्धनग्रामवासी, नगरवासी तथा वनवासी सब ने उसको स्वीकार किया। |
Line 112: |
Line 104: |
| यह दर्शन और व्यवहार भारत में और विश्व में दूरस्थ स्थानों पर पहुँचे हैं उसके दो उदाहरण... | | यह दर्शन और व्यवहार भारत में और विश्व में दूरस्थ स्थानों पर पहुँचे हैं उसके दो उदाहरण... |
| # असम (गुवाहाटी) में ४२ जनजातियों के प्रमुख नेताओं का सम्मेलन हुआ। सेंकड़ों लोग उसमें सहभागी हुए थे। सभी जनजाति के प्रमुखों ने 'धरती हमारी माता है, हम धरती को पवित्र मानते हैं, उसकी पूजा करते हैं ऐसा बताया। | | # असम (गुवाहाटी) में ४२ जनजातियों के प्रमुख नेताओं का सम्मेलन हुआ। सेंकड़ों लोग उसमें सहभागी हुए थे। सभी जनजाति के प्रमुखों ने 'धरती हमारी माता है, हम धरती को पवित्र मानते हैं, उसकी पूजा करते हैं ऐसा बताया। |
− | # दूसरा प्रश्न पूछा गया, 'आप अपने भगवान से क्या मांगते हैं ?' तब उन्होंने बताया कि वे अपनी पूजा में सब के कल्याण की कामना करते हैं। | + | # दूसरा प्रश्न पूछा गया, 'आप अपने भगवान से क्या मांगते हैं ?' तब उन्होंने बताया कि वे अपनी पूजा में सब के कल्याण की कामना करते हैं।अपने गाँव, अपने परिवार के साथ धरती पर के सभी जीवों के सुख की कामना करते हैं। |
− | # अपने गाँव, अपने परिवार के साथ धरती पर के सभी जीवों के सुख की कामना करते हैं। तीसरा प्रश्न पूछा गया, 'आप अपनी जनजाति से भिन्न अन्य जन जाति की पूजा पद्धति की आलोचना अथवा निन्दा करते हैं क्या ? क्या अन्य पूजा पद्धति वाली जातियाँ आपकी पूजा पद्धति में शामिल हो जाय ऐसी अपेक्षा आप रखते हैं?' तब उत्तर में सभी ने कहा ' नहीं हम ऐसा कभी नहीं करते हैं। हम सब की पूजापद्धतियों को अच्छा मानते हैं और उनका सम्मान करते हैं। सब लोगों के लिये यह बात आश्चर्यजनक थी।
| + | # तीसरा प्रश्न पूछा गया, 'आप अपनी जनजाति से भिन्न अन्य जन जाति की पूजा पद्धति की आलोचना अथवा निन्दा करते हैं क्या ? क्या अन्य पूजा पद्धति वाली जातियाँ आपकी पूजा पद्धति में शामिल हो जाय ऐसी अपेक्षा आप रखते हैं?' तब उत्तर में सभी ने कहा ' नहीं हम ऐसा कभी नहीं करते हैं। हम सब की पूजापद्धतियों को अच्छा मानते हैं और उनका सम्मान करते हैं। सब लोगों के लिये यह बात आश्चर्यजनक थी। |
| | | |
− | ==== विश्व का उदाहरण ====
| + | == विश्व का उदाहरण == |
− | विश्व सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र (International _center for cultural studies) द्वारा हर पाँच वर्ष में एक बार विश्व सम्मेलन होता है। हरिद्वार में आयोजित ऐसे एक सम्मेलन में ४० देशों से वहां के मूल निवासी -प्रकृति पूजक लोग आये हुए थे। प्रतिदिन प्रातः काल में सब अपने अपने इष्ट देवों की, अपनी अपनी भाषा में, अपनी अपनी पद्धति से पूजा करते थे। पूजा में वे क्या कामना करते थे ऐसा पूछने पर उन्हों ने बताया कि 'धरती हमारे लिये पवित्र है, जल पवित्र है, अग्नि भी पूजनीय है इसलिये उनकी कृपा के लिये प्रार्थना करते थे और अपने परिवार के, गाँव के, पृथ्वी के लोगों की तथा संपूर्ण जीव सृष्टि के कल्याण की कामना करते थे। यह सुनकर सभी को बहुत आश्चर्य हुआ, आनंद हुआ। | + | विश्व सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र (International center for cultural studies) द्वारा हर पाँच वर्ष में एक बार विश्व सम्मेलन होता है। हरिद्वार में आयोजित ऐसे एक सम्मेलन में ४० देशों से वहां के मूल निवासी -प्रकृति पूजक लोग आये हुए थे। प्रतिदिन प्रातः काल में सब अपने अपने इष्ट देवों की, अपनी अपनी भाषा में, अपनी अपनी पद्धति से पूजा करते थे। पूजा में वे क्या कामना करते थे ऐसा पूछने पर उन्हों ने बताया कि 'धरती हमारे लिये पवित्र है, जल पवित्र है, अग्नि भी पूजनीय है इसलिये उनकी कृपा के लिये प्रार्थना करते थे और अपने परिवार के, गाँव के, पृथ्वी के लोगों की तथा संपूर्ण जीव सृष्टि के कल्याण की कामना करते थे।' यह सुनकर सभी को बहुत आश्चर्य हुआ, आनंद हुआ। |
| | | |
− | ==== निष्कर्ष ====
| + | == निष्कर्ष == |
| सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अपने राष्ट्र, अपने समाज को सुखी एवं वैभव संपन्न बनाते हुए विश्व में सब के सुख एवं कल्याण की कामना करनेवाला है। | | सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अपने राष्ट्र, अपने समाज को सुखी एवं वैभव संपन्न बनाते हुए विश्व में सब के सुख एवं कल्याण की कामना करनेवाला है। |
| | | |